नताली गोमेज, द कूरियर हेरॉल्ड
अधिकांश लोगों के लिए पर्यटन के लिहाज से भारत कभी सर्वोच्च प्राथमिकता वाले देशों की सूची में नहीं रहा है और मैं मानती हूं कि यह अब तक मेरे पसंदीदा देशों में नहीं रहा है। लेकिन अब यह मेरी पसंद के सर्वोच्च देशों की सूची में सबसे ऊपर आ गया है।
कुछ हफ़्ते पहले मुझे व्यापारी नेताओं, शिक्षकों और अन्य पेशेवरों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत के धर्मशाला का दौरा करने का अवसर मिला। ये लोग निर्वासित तिब्बती समुदाय से करुणा के बारे में सीखने के लिए गए थे। यात्रा का नेतृत्व लेफ्टिनेंट गवर्नर साइरस हबीब के कार्यालय और एसोसिएशन ऑफ वॉशिंगटन जनरल्स ने सम्मिलित रूप से किया। यह दौरा ‘करुणा- 2020’ के छतरी शीर्षक के तहत हुआ। प्रतिनिधिमंडल इस यात्रा में नेताओं की अगली पीढ़ी को शामिल करना चाहता था, ताकि एक साथ हम करुणा का अनुभव कर सकें और जो कुछ हमने सीखा वह अपने देश में ला सकें।
तिब्बती प्रवासी लोगों से अपरिचित लोगों के लिए जानकारी है कि 1 जनवरी 1950 को द पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ने तिब्बत पर संप्रभुता का दावा किया और घोषणा की कि वह इस देश में राजनीतिक और सैन्य रूप से हस्तक्षेप करने का इरादा रखता है। 7 अक्तूबर 1950 को चीनी सैनिकों ने तिब्बत पर आक्रमण कर दिया, जिससे तिब्बतियों के लिए एक लंबी और भीषण आपदा शुरू हो गई। इससे लाखों तिब्बतियों का विस्थापन हो जाने का खतरा उपस्थित हो गया। इस आक्रमण के परिणामस्वरूप 1959 तक दोनों राष्ट्रों के बीच तनाव बढ़ गया था और विश्व प्रसिद्ध धार्मिक नेता परम पावन दलाई लामा उत्तरी भारत के लिए पलायन कर गए थे। इस तरह की त्रासदी किसी भी समुदाय को तबाह कर देती है। लेकिन उल्लेखनीय यह है कि तिब्बती समुदाय ने निर्वासन में किस तरह से अहिंसा, करुणा और धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की बौद्ध विचारधारा को बढ़ावा देना जारी रखा है।
भारत के धर्मशाला में रहने वाले 15,000 से अधिक तिब्बतियों का जीवन संस्कृति संरक्षण, पुनर्वास और शेष दुनिया को तिब्बती निर्वासितों के बारे में शिक्षित करने को लेकर समर्पित है। यह सब हमारे पहले गंतव्य-तिब्बती राष्ट्र के लिए शासी निकाय केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) में ही स्पष्ट हो गया। हालांकि सीटीए तिब्बतियों के निर्वासित जीवन में सुरक्षित बदलाव के साथ-साथ तिब्बत में स्थितियों को फिर से सुधारने के लिए काम करने में भी सक्षम हो गया है, ताकि किसी दिन वे अपने वतन को लौट सकें। हमें निर्वासित तिब्बती संसद के सदस्यों के साथ मुलाकात में दुनिया भर में बिखरे प्रवासी तिब्बतियों में अपने देश लौटने की अदम्य इच्छा और इसकी क्षमता के बारे में याद दिलाई गई। वास्तव में यही उनकी प्राथमिक इच्छा है।
इसके अतिरिक्त, सीटीए के सदस्य चीन के बारे में जिस तरीके से बोल रहे थे, वह गैर-शत्रुतापूर्ण और अहिंसक था। यह वह क्षण था जब मुझे अहसास हुआ कि अहिंसा को कर्मों और शब्दों दोनों में व्यक्त किया जाना चाहिए। यह एक सिद्धांत है, जिसे हमारे समाज में लागू किया जाना चाहिए, लेकिन जो है नहीं। इस यात्रा के बाद मैं अब और अधिक जागरूक हो गई हूं कि मैं दूसरों के बारे में और दूसरों से कैसे बोलूं, खासकर राजनीति के मामलों में। जब हम पहले मनुष्य के रूप में एक-दूसरे के बारे में बात करते हैं, तब हम अपने बीच की समानताएं देखना शुरू करते हैं और एक-दूसरे के साथ सहमति बनाने और तर्क करने में सक्षम हो जाते हैं।
प्रतिनिधिमंडल ने अपने दौरे में पसंदीदा स्थानों में तिब्बती चिल्ड्रन विलेज (टीसीवी) को शामिल किया था। वहां हमने जो देखा वह किसी आश्चर्य से नहीं था। वहां तिब्बती बच्चों के लिए सौहार्दपूर्ण वातावरण, देखभाल और करुणा का आश्रय था। लेकिन हम केवल निरीक्षण करने के लिए नहीं गए थे। हम बच्चों के लिए उपहार भी लेकर गए थे। यह सब एक सूटकेस में ले जाया गया था। प्रतिनिधिमंडल वाशिंगटन के सरकारी सुधार गृह में कैदियों द्वारा बनाए गए भरवां टेडी बियर लेकर आया था। जब हमने कम्पासियन स्कॉलर्स को बताया कि हमें बच्चों को सम्मानपूर्वक टेडी बियर उपहार में देना चाहते हैं, तो मेरे पास शब्द नहीं थे। टीसीवी ने उन 50 छात्रों का चयन किया जो अपने माता-पिता से समय तक दूर रह रहे हैं और संभवतः उपहार पाकर सबसे अधिक प्रसन्नता का अनुभव करेंगे। जब हम बच्चों के आवासों के बाहर से गुजरे तो हमेंदेखकर वे मुस्कुराए, हंसे, खेले और खुशी से उपहार स्वीकार किया। हमें उन बच्चों पर इस उपहार का पड़ने वाले प्रभाव को पहचानने के लिए भाषा समझने की जरूरत नहीं थी।
जब उपहार वितरण संपन्न हुआ तो हमने छात्रों के साथ एक छोटी पहाड़ी पर एक तस्वीर खिंचवाई। हम सभी मुस्कुरा रहे थे और कैमरे की तरफ देख रहे थे जब छात्र तिब्बती भाषा में हमारे लिए गाना गा रहे थे। जैसे ही हम गायक छात्रों के बीच बैठे, उन्होंने हमें गले लगाया, धन्यवाद देकर हमारे दिलों को छू लिया। गीत के अंत तक मेरे आँसू बहते रहे। अगर हर कोई दुनिया के बच्चों की देखभाल के लिए समय निकाल सकता है और दूसरों को वही करुणा दिखा सकता है जो हम चाहते हैं कि वह हमें दिखाए, तो मैं विश्वास से कह सकती हूं कि दुनिया एक करुणामयी और देखभाल करने वाली जगह हो सकती है।
परमपावन दलाई लामा के साथ हमारी बैठक की पूर्व संध्या पर मेरे कंपैशन स्कॉलर्स और मैं बहुत घबराहट में थी। मैं उस रात सोने में भी अविश्वसनीय रूप से सहज नहीं हो पाई। रात भी हम इस बात को सोचते रहे ही सुबह होते ही हमें दलाई लामा से मिलने जाना है। सुबह कमरे से चलने से पहले के क्षणों में हर कोई शांत हो गया और प्रतिनिधिमंडल समान भाव से वहां पहुंच गया। सूचना मिली कि दलाई लामा आ रहे हैं। परम पावन ने कमरे में प्रवेश करने ही हमें बधाई दी और अभिवादन किया। परम पावन के साथ वह मुलाकात अविस्मरणीय थी। उनकी शांतिपूर्ण उपस्थिति और उनके प्रवचन को सुनना सम्मान और सौभाग्य की बात थी। इससे हमारे देश में भी कुछ लोगों को इसका लाभ मिलेगा। विशेष रूप से, सद्भाव को बढ़ावा देने, अहिंसा और एकता की भावना उनका सबसे बड़ा उपदेश है जिसे परम पावन पूरी चर्चा के दौरान दोहराते रहे। मैंने देखा कि ये उपदेश बौद्ध उपदेशों के साथ मिलते- जुलते हैं कि क्रोध स्व-विनाशकारी है। जब हम खुद पर और दूसरों पर गुस्सा होते हैं तो हम किसी समुदाय को बनाए रखने के लिए करुणा नहीं रख सकते हैं जो उस समुदाय को बनाए रखने के लिए आवश्यक सामग्री है।
बैठक के दौरान मुझे निर्वासित समुदाय की करुणा के बारे में दलाई लामा से पूछने का अवसर मिला। इसको लेकर मैं आज भी अपने समुदाय में चल रहे संघर्ष की बात मानती हूं। उनकी प्रतिक्रिया थी कि हमें अपने समुदाय में करुणा फैलाने की आवश्यकता है और साथ ही साथ यह समझ भी है कि हम एक ही इंसान हैं। इसके अलावा, जब कोई अन्य व्यक्ति निर्वासित होने के कारण दुर्बलता का अनुभव कर रहा है तो यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन तरीकों से उनकी मदद करें जो हम करने में सक्षम हैं। मैं इस बैठक को अपने पूरे जीवन के लिए संजो कर रखूंगी और भारत में दूसरों के लिए करुणा के बारे में जो कुछ मैंने सीखा है, उसका उपयोग करूंगी। मैं अपनी करुणा परियोजना से शुरू करके इसे दूसरों के जीवन और सेवा में लगाऊंगी।
यह उचित होगा कि कंपैशन स्कालर्स को उनके अपने-अपने समुदायों में करुणा परियोजनाओं को लागू करने का काम सौंपा जाए, जो लेफ्टिनेंट गवर्नर कार्यालय और एसोसिएशन ऑफ वाशिंगटन जनरल्स द्वारा समर्थित हो। भविष्य को देखते हुए मैं अपनी करुणा परियोजना पर काम शुरू करने के लिए तैयार और उत्साहित हूं। हमारी यह परियोजना हमारे क्षेत्र में निर्वासन के मुद्दे को केंद्र में रखेगी और समुदाय के अधिक से अधिक लोगों पर करुणा बरसाएगी।
नताली गोमेज़ के भारत दौरे के सबसे पहले स्थानों में से एक तिब्बती चिल्ड्रन विलेज था, जहाँ वह और ‘करुणा- 2020’ के अन्य प्रतिनिधियों ने तिब्बती बच्चों को टेडी बियर दिया।