तिब्बत में चीन सरकार द्वारा मानवाधिकार हनन एक अन्तरराष्ट्रीय विषय बन चुका है। पूरे वर्षभर, विशेषकर अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकर दिवस अर्थात् 10 दिसम्बर को विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर यह विषय चर्चा के केन्द्र में होता है। इस वर्ष भी ऐसा ही हुआ जब विभिन्न देशों में 10 दिसम्बर को तिब्बत में साम्राज्यवादी चीन सरकार की दमनकारी नीति की कटु आलोचना करते हुए तिब्बत में मानवाधिकारों की शीघ्र सुरक्षा की मांग की गई। कनाडा की संसद में यह मांग की गई कि निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रतिनिधियों के साथ चीन सरकार पुनः वार्ता प्रारम्भ करे। परमपावन दलाई लामा स्वयं को राजनीतिक गतिविधियों से मुक्त कर चुके हैं। वे तिब्बतियों द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई निर्वासित तिब्बत सरकार को अपने समस्त राजनीतिक अधिकार सौंप चुके हैं। तिब्बत के प्रधान धर्मगुरु के साथ वे वहाँ के राजप्रमुख भी थे। उस समय चीन सरकार की वार्ता दलाई लामा के प्रतिनिधिमंडल के साथ होती थी। अब यह वार्ता निर्वासित तिब्बत सरकार के साथ होनी चाहिये।
दलाई लामा की तरह निर्वासित तिब्बत सरकार भी मध्यममार्ग का समर्थक है। अनेक देशों की तरह कनाडा की संसद ने भी इसी तिब्बती मध्यममार्ग को ही समस्या का उचित समाधान माना है। इसके अनुसार चीनी संविधान और कानून के अंतर्गत तिब्बत को ‘‘वास्तविक स्वायत्तता’’ प्रदान की जाये। वैदेशिक मामले और प्रतिरक्षा चीन सरकार के पास रहें तथा शेष विषयों पर कानून बनाने का अधिकार स्वायत्त तिब्बत सरकार को मिले। इस व्यवस्था से चीन की एकता-अखंडता एवं संप्रभुता पूर्णतः सुरक्षित रहेगी और तिब्बतियों को भी स्वशासन का अधिकार मिल जायेगा। अभी स्वायत्तता के नाम पर तिब्बत के भौगोलिक क्षेत्र को विकृत कर चीन द्वारा तिब्बती पहचान को मिटाया जा रहा है।
मानवाधिकार दिवस पर केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन द्वारा आयोजित समारोह में लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद् के मुख्य कार्यकारी पार्षद ग्याल पी. वांग्यल ने मुख्य अतिथि के रूप में दलाई लामा की प्रेरणा से संचालित शांतिपूर्ण एवं अहिंसक तिब्बती आंदोलन की प्रशंसा की। उनके नेतृत्व में आये प्रतिनिधिमंडल का विचार था कि मामले को निपटाने के लिये चीन पर दबाव बढ़ाया जाये। सच्चाई है कि सन् 1959 या उसके भी पहले से विश्वजनमत, विशेषकर भारत चीन की विस्तारवादी नीति का घोर आलोचक रहा है। कोलकाता में अभी दिसंबर 2019 में आयोजित सम्मेलन में सन् 1959 में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में कोलकाता में ही आयोजित तिब्बत सम्मेलन को याद किया गया, जिसमें तिब्बत पर चीनी कब्जे को विश्वशांति के लिये खतरा बताया गया था। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनकड़, निर्वासित तिब्बत सरकार के सिक्योंग डाॅ. लोबजंग संग्ये, तिब्बती संसद के अध्यक्ष, कई भारतीय सांसदों और अन्य जनप्रतिनिधियों ने भारतीय सुरक्षा, शांति, समृद्धि एवं स्वाभिमान की दृष्टि से मध्यममार्ग लागू करने पर जोर दिया। डाॅ. लोबसंग संग्ये ने पूरे तिब्बती आंदोलन को ‘‘मेक इन इंडिया’’ का उदाहरण बताते हुए कहा कि हमारी शिक्षा तथा संस्कृति भी भारत में ही निर्मित है। निर्वासन में तिब्बतियों को सर्वाधिक सहयोग एवं समर्थन भारत में ही मिल रहा है। इसके लिये तिब्बती समुदाय भारत सरकार और भारतीयों के प्रति कृतज्ञ है।
तिब्बत समर्थक सामाजिक कार्यकर्ता संदेश मेश्राम की 30 दिसंबर को हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला से प्रारम्भ चैथी तिब्बत जनजागरण साइकिल रैली भी भारतीय समर्थन का सराहनीय उदाहरण है। यह रैली 7500 किलोमीटर दूरी तय करके 10 मार्च को कर्णाटक की मनगौड तिब्बत बस्ती में समाप्त होगी। संदेश मेश्राम की तीनों साइकिल रैलियों ने तिब्बती आंदोलन को काफी ऊर्जा प्रदान की थी। इस चैथी रैली का हर जगह स्वागत प्रशंसनीय है।
शांतिप्रिय तीन तिब्बतियों को 10 दिसंबर से पूर्व चीन सरकार ने सिर्फ इसलिये गिरफ्तार कर लिया क्योंकि वे सोशल मीडिया में दलाई लामा तथा तिब्बत की खराब स्थिति के बारे में बता रहे थे। दलाई लामा को नोबेल शांति पुरस्कार मिलने की 30वीं वर्षगाँठ मनाने से भी रोका जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। तिब्बत का चीनीकरण जारी है और तिब्बती अल्पसंख्यक हो रहे हैं। ये विषय भी जनजागरण साइकिल रैली में उठ रहे हैं। बोधगया में दलाई लामा ने ठीक कहा है कि चीन सरकार बंदूक के बल पर सच को दबा नहीं सकती, क्योेंकि तिब्बतियों के पास सच है जो जरूर जीतेगा। उन्होंने गोआ विश्वविद्यालय में दलाई लामा चेयर फाॅर नालंदा स्टडीज का उद्घाटन करते हुए विश्वास व्यक्त किया कि भारतीय दर्शन की नालंदा परंपरा से विश्वशांति मजबूत होगी, क्योंकि इसमें मानवीय मूल्यों पर जोर दिया गया है।
मनगौड (कर्णाटक) में दस दिवसीय प्रवचन, गोमांग मठ के कोर्टयार्ड के उद्घाटन तथा गेलुक परंपरा के संस्थापक जेंत्सोंगखापा के 600वें महापरिनिर्वाण दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में दलाई लामा ने स्पष्ट किया कि विश्व में सर्वाधिक बौद्ध चीन में हैं फिर भी वहाँ की सरकार आध्यात्मिक मूल्यों की उपेक्षा कर रही है। उनके दीर्घजीवन हेतु तिब्बती एवं तिब्बत समर्थक विभिन्न आयोजनों में प्रार्थनायें करते रहते हैं। दलाई लामा ने उनसे अपील की है कि वे उनके पुनर्जन्म के बारे में चिंतित न हों। वे कम से कम 113 साल की उम्र तक जीवित रहकर सेवा करते रहेंगे। हमारी कामना है कि दलाई लामा का यह आश्वासन विश्वशांति के लिये सहारा साबित हो।