अध्यक्ष, सेंटर फॉर चाइना एनालिसिस एंड स्ट्रेटेजी
tribuneindia.com
हर साल मार्च में चीन की राजधानी बीजिंग में आयोजित होनेवाली राष्ट्रीय स्तर की मीटिंग्स की इस साल हाल ही में संपन्न हुई बैठकों के परिणाम हमारी उत्तरी सीमा पर स्थित तिब्बत के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिदृश्य में नाटकीय परिवर्तन की संभाव्यता को दर्शाते हैं। चीन की संसद के संस्करण- नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) और राजनीतिक सलाहकार निकाय- चीनी पीपुल्स पॉलिटिकल कंसल्टेंसी कॉन्फ्रेंस (सपीपीपीसीसी) – जैसे दो मंचों पर लिए गए निर्णय भारत पर आनेवाले दिनों में महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाले हैं।
इन बैठकों के निष्कर्ष आने के कुछ दिनों के बाद तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) के अध्यक्ष चे डल्हा ने पीपुल्स डेली में एक लंबे लेख में आसन्न परिवर्तनों की व्याख्या की है।
अंतहीन अटकलों के बाद ब्रह्मपुत्र (यारलुंग त्संगपो) के ग्रेट बेंड पर दुनिया के सबसे बड़े बांध के निर्माण को मंजूरी दे दी गई है। यह बांध यांग्त्जी नदी पर बने दुनिया के अब तक के सबसे बड़े थ्री गोरजेस बांध से तीन गुना अधिक विशाल होगा। और यह अकेला नहीं होगा। यह बांधों की शृंखला में से एक होगा जो भारत के ब्रह्मपुत्र बेसिन और उससे आगे पानी के प्रवाह को प्रभावित करते हुए चीन के विशाल दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र को बिजली देगा और उत्तरी चीन में सिंचाई की सुविधा प्रदान करेगा।
इन बैठकों में अन्य बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को भी मंजूरी दी गई है। इनमें हमारी सीमा पर स्थित राष्ट्रीय राजमार्ग सहित प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्गों का उन्नयन और विस्तार और कम से कम 20 नए सीमावर्ती हवाई अड्डों का निर्माण शामिल है। इसके अलावा, रेलवे का विस्तार करने की तैयारी है, जिसमें तिब्बत के दूसरे सबसे बड़े शहर और पंचेन लामा की आध्यात्मिक पीठ के कारण प्रमुख केंद्र बन चुके शिगात्से तक रेल लाइन बिछाने की योजना है। दूसरी रेलवे लाइन के तौर इस बार चेंगदू और ल्हासा के बीच एक हाई-स्पीड लिंक के माध्यम से तिब्बत और मुख्य भूमि चीन के बीच यात्रा के समय को कम करके केवल 10 घंटे तक कर देगा। लेख में चे डल्हा उत्तरी तिब्बत के प्राकृतिक गैस भंडार के दोहन की भी वकालत कर रहे हैं।
तिब्बती पठार पर बुनियादी ढांचे का व्यापक विस्तार और इस सबसे कम आबादी वाले क्षेत्रों में से एक में लोगों की आमद यहां तापमान बढ़ाएंगे और ग्लेशियरों के पिघलने की गति को तेज करेंगे। ज्ञातव्य है कि बड़ी संख्या में ग्लेशियरों के कारण तिब्बत को दुनिया के तीसरे ध्रुव के रूप में जाना जाता है। तिब्बत के ये ग्लेशियर एशिया की कई विशालकाय नदियों के जल का स्रोत हैं। इस ग्लेशियरों के पिघलने से इन नदियों के बेसिन में पानी के प्रवाह को खतरा होगा, जो सिंधु-गंगा के मैदानी इलाकों में रहने वाले एक अरब से अधिक लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे।
चे दल्हा के लेख का केंद्रीय पहलू दलाई लामा के पुनर्जन्म का मुद्दा है। तिब्बती लोगों में तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रति गहरी आस्था और दलाई लामा के लिए उनके स्थायी समर्थन को देखते हुए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा भिक्षुओं और भिक्षुणियों को अपने धर्म को ‘चीनी विशेषताओं वाले समाजवाद’ के प्रति अनुकूल बनाने के लिए प्रेरित करने और तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायियों को ‘शिक्षित’ करने के अभियान में बहुत धीमी प्रगति हुई है। इन प्रयासों को अब गति प्राप्त करने के लिए तैयार किया गया है। तिब्बती लोगों और बौद्ध भिक्षुओं को दलाई लामा, पंचेन लामा, और अन्य जीवित बुद्ध को मान्यता देने और उनके चयन पर बीजिंग के अधिकार को स्वीकार करने के लिए तैयार कर देने से चीनी शासन को बड़ी जीत हासिल होगी। इसी समय, तिब्बतियों को ‘अलगाववाद’ के खिलाफ अधिक सक्रिय रूप से एकजुट किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि चीन कम्युनिस्ट पार्टी के शासन में ‘अलगाववाद’ शब्द का प्रयोग दलाई लामा के अनुयायियों और उनके प्रभाव को व्यक्त करने के लिए होता है।
गहरे सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों की भी परिकल्पना की गई है। जैसा कि झिंझियांग और आंतरिक मंगोलिया में पहले से ही किया जा रहा है, चीन तिब्बत की अपनी अनूठी सदियों पुरानी संस्कृति का ‘चीनीकरण’ करने के प्रयासों को आगे बढ़ाएगा और इस तरह तिब्बती संस्कृति को हान मुख्यधारा में शामिल करेगा। मंदारिन को स्कूलों में शिक्षा की मुख्य भाषा बनाया जा रहा है।
2015 से देश के अन्य हिस्सों के स्कूलों में, जहां तिब्बती मूल के लोग निवास करते हैं, तिब्बती की जगह स्कूलों में मंदारिन भाषा के माध्यम से पढ़ाई कराई जा रही है। इस साल जनवरी से यह प्रक्रिया तेज हो गई है जब नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) के कानूनी मामलों की समिति के निदेशक शेन चुंग्याओ ने घोषणा की कि ‘अल्पसंख्यक क्षेत्रों’ के स्कूलों को अब अपनी भाषाओं को पढ़ाने की अनुमति नहीं है क्योंकि यह ‘असंवैधानिक’ है।
चे डल्हा के लेख ने स्पष्ट किया कि तिब्बती लोगों पर चीनी (हान) इतिहास और संस्कृति के सुपरिणाम के प्रयासों द्वारा मंदारिन थोपने पर जोर दिया जाएगा। काम जल्द ही एक नए विश्वकोश की तैयारी से शुरू होने वाला है जो तिब्बत के इतिहास के चीनी संस्करण को तैयार करनेवाला है। द ‘एनसाइक्लोपीडिया ऑफ एथनिक यूनिटी एंड प्रोग्रेस (तिब्बत वॉल्यूम)’ में चीनी विशेषता वाला तिब्बत का इतिहास होगा। तिब्बत के इतिहास के चीनी संस्करण को देश के सभी लोगों के बीच चीनी संस्कृति को भावनात्मक बंधन बनाने के उद्देश्य से स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाया जाएगा। जैसा कि शी जिनपिंग ने कहा, सांस्कृतिक पहचान हर तरह की पहचान का सबसे गहरा रूप है। यह नस्लीय एकता और सद्भाव का मूल और उसकी आत्मा भी है।’
इन गहरे बदलावों के अलावा, लेख बताता है कि तिब्बत का जनसांख्यिकीय अनुपात और पारंपरिक सामाजिक सामंजस्य को भी कमजोर करना है। तिब्बत के उच्च पठार में मेगा बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को पूरा करने के लिए देश के चीनी हान मूल और अन्य दूसरे क्षेत्रों के अन्य नस्ल के इंजीनियरों, तकनीशियनों और श्रमिकों का जो विशाल भीड़ तिब्बत में आएगी, उससे तिब्बतियों का जनसांख्यिकीय अनुपात और पारंपरिक सामाजिक सामंजस्य ढीला पड़ेगा और नस्लीय एकीकरण की दिशा में बढ़ेगा। इसके साथ ही चे डल्हा तिब्बतियों को चीन के अन्य हिस्सों में व्यवसाय स्थापित करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं और मुख्य भूमि से हान व दूसरे मूल के व्यवसायियों को तिब्बत में व्यापार स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
हाल ही में विरल आबादी वाले सीमावर्ती गांवों में आबादी को बढ़ाने पर जोर देने की नीति के तहत देश के अन्य हिस्सों के लोगों को वहां बसने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। मौजूदा सीमावर्ती गांवों को, जिनमें से कई में सिर्फ 1 से 3 तक निवासी हैं, लगभग 20-30 परिवारों को समायोजित करने के लिए तैयार किया जा रहा है। इसके अलावा, नए मॉडल के अच्छी तरह से चाक-चौबंद 200 ‘झिओकांग’ सीमावर्ती गांवों का निर्माण किया जाना है, जिनमें संभवतः विवादित क्षेत्र भी शामिल हैं। चीनी सैनिक चौकियों से काफी दूर-दराज के ये सीमावर्ती गाँव चीनी सेना की ‘आंख और कान’ के रूप में काम करेंगे। इन गांवों को इंटरनेट कनेक्शन और सड़कों सहित आधुनिक सुविधाओं से लैस किया जाएगा।
तिब्बती पठार पर बुनियादी ढांचे के विशाल विस्तार और सांस्कृतिक एकीकरण की योजना के कई परिणाम होंगे। तिब्बत की अनूठी और सदियों पुरानी संस्कृति और तिब्बती बौद्ध धर्म को खतरे में डालने के अलावा, यह भारत को सीधे प्रभावित करता है। भारत को टक्कर देने वाले तिब्बत में चीन के उन्नत रक्षा ढांचे से उत्पन्न सैन्य खतरे को अब पर्यावरणीय चुनौती से लैस किया जाएगा।