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१४ सितंबर २०२३
नई दिल्ली। भारत- तिब्बत समन्वय कार्यालय (आईटीसीओ), नई दिल्ली ने सेंटर फॉर नॉर्थ-ईस्ट एशियन स्टडीज, जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स और ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी, सोनीपत के सहयोग से १२ सितंबर २०२३ को तिब्बत पर एक दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन का विषय था- ‘२१वीं सदी में तिब्बत को जानें (अंडरस्टैंडिंग तिब्बत इन द २१ सेंचुरी)’। सम्मेलन का आयोजन विश्वविद्यालय के ग्लोबल ऑडिटोरियम में किया गया।
दिन भर के सम्मेलन में कई प्रतिष्ठित वक्ताओं ने भागीदारी की और अपने विचार रखे। इनमें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और भारत-तिब्बत मैत्री संघ (आईटीएफएस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. आनंद कुमार, तिब्बतविज्ञानी लेखक क्लाउडे अर्पि, ग्रेटर नोएडा स्थित शिव नादर इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर हिमालयन स्टडीज के प्रतिष्ठित फेलो, तिब्बती कार्यकर्ता और लेखक तेनज़िन छुन्दुए, अंतरराष्ट्रीय तिब्बत नेटवर्क के वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. लोबसांग यांग्त्सो और तिब्बत नीति संस्थान के रिसर्च फेलो धोंदुप वांग्मो शामिल रहे।
सम्मेलन की शुरुआत जेजीयू सोनीपत के जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. श्रीपर्णा पाठक और सहायक प्रोफेसर डॉ. मनोज पाणिग्रही के स्वागत भाषण के साथ हुई। अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स के डीन प्रो. (डॉ.) श्रीराम चौलिया ने सम्मेलन के महत्व और २१वीं सदी में तिब्बत के महत्व पर प्रकाश डाला।
उनके बाद भारत-तिब्बत समन्वय कार्यालय (आईटीसीओ), नई दिल्ली के समन्वयक थुप्टेन रिनज़िन ने अपने मुख्य भाषण में सम्मेलन के प्रतिष्ठित वक्ताओं का परिचय कराया और विशेष रूप से भारत के युवाओं के बीच तिब्बत की प्रासंगिकता को समझने के महत्व पर जोर दिया।
सम्मेलन के पहले सत्र का संचालन जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. स्वाति चावला ने किया। इस सत्र में डॉ. आनंद कुमार, क्लाउडे अर्पि और तेनज़िन छुन्दुए ने भारत-तिब्बत संबंधों के महत्व और इसके विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार रखे।
डॉ. आनंद कुमार ने भारत के लिए तिब्बत के महत्व पर जोर देते हुए बताया कि १९६२ के भारत-चीन युद्ध के बाद तिब्बत के प्रति उनका आकर्षण कैसे विकसित हुआ। उन्होंने बताया कि तिब्बत की उपेक्षा करना भारतीय नेताओं की ऐतिहासिक भूल थी। उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि कई भारतीय इंग्लैंड और अमेरिका के बारे में बहुत कुछ जानते हैं, लेकिन उनमें अक्सर अपने निकटतम पड़ोसी तिब्बत के बारे में जागरूकता की कमी होती है। डॉ. कुमार ने इस बात पर जोर दिया कि अब भारत के लिए तिब्बत के बारे में चर्चा में शामिल होना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
क्लाउडे अर्पि ने भारत और तिब्बत के बीच सदियों से चले आ रहे ऐतिहासिक संबंधों पर पावरपॉइंट के माध्यम से अपनी प्रस्तुति दी। अपने व्याख्यान के दौरान उन्होंने दोनों देशों के बीच प्राचीन काल से चले आ रहे ऐतिहासिक संबंधों, भारत-तिब्बत सीमाओं, चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जे के बाद वहां हुए विकास और भारत पर पड़नेवाले इसके प्रभावों जैसे विषयों पर प्रकाश डाला।
तेनज़िन छुन्दुए ने अपनी प्रस्तुति में लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के हिमालयी समुदायों के बीच सामान्य संस्कृतियों, भाषा और आध्यात्मिक परंपराओं का आदान-प्रदान करने वाले विशेष संबंध के साथ भारत-तिब्बत संबंधों के महत्व पर प्रकाश डाला।
सम्मेलन के दूसरे और दोपहर के सत्र का संचालन जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स के प्रोफेसर डॉ. राजदीप पकानाटी द्वारा किया गया। इस सत्र में डॉ. लोबसांग यांग्त्सो और धोंडुप वांग्मोने तिब्बत के पर्यावरण और पारिस्थितिक पहलुओं पर अपनी बात रखी।
डॉ. लोबसांग यांग्त्सो ने ‘तिब्बत की नदियां और भारत के लिए उनकी प्रासंगिकता’ विषय पर अपनी प्रस्तुति दी, जिसमें उन्होंने तिब्बत से निकलने वाली और भारत और पड़ोसी देशों में बहने वाली प्रमुख नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा की। उनकी प्रस्तुति में चीनी अधिकारियों द्वारा तिब्बत के भीतर इन नदियों के दोहन पर प्रकाश डाला गया, जो भारत और अन्य पड़ोसी देशों के लिए महत्वपूर्ण चिंता का विषय है।
धोंदुप वांग्मो ने ‘तिब्बत पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और तिब्बती खानाबदोशों के पारिस्थितिकीय पुनर्वास’ विषय पर अपनी प्रस्तुति दी। इसमें उन्होंने ग्लेशियरों के पिघलने, वनों की कटाई, खनन, बाढ़ और तिब्बती पठार को नुकसान पहुंचाने वाली अन्य आपदाओं के साथ तिब्बत में हो रहे पारिस्थितिक विनाश पर प्रकाश डाला, जो कि तिब्बती पठार को नुकसान पहुंचाने वाला है। इसका भारत और अन्य पड़ोसी देशों पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ेगा। दोनों सत्रों के बाद सम्मेलन के वक्ताओं के साथ प्रश्नोत्तर का सत्र हुआ, जिसमें श्रोताओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया और सराहना की। सराहना के प्रतीक के रूप में वक्ताओं को आयोजकों- सेंटर फॉर नॉर्थ-ईस्ट एशियन स्टडीज, जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स, ओ. पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी, सोनीपत और भारत-तिब्बत समन्वय कार्यालय, नई दिल्ली द्वारा स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।
सम्मेलन के समापन सत्र में आईटीसीओ नई दिल्ली के कार्यक्रम अधिकारी छोनी छेरिंग ने समापन भाषण दिया। विश्वविद्यालय के नार्थ-इस्ट एशियाई अध्ययन केंद्र के समन्वयक रक्षित शेट्टी ने धन्यवाद ज्ञापन किया। सम्मेलन में धर्मशाला स्थित तिब्बत संग्रहालय को भी आमंत्रित किया गया था और उन्होंने परिसर में ‘भारत-तिब्बत संबंध’ शीर्षक से एक फोटो प्रदर्शनी का प्रदर्शन किया, जिसमें छात्रों और संकायों की भीड़ उमड़ पड़ी। भारत-तिब्बत समन्वय कार्यालय, नई दिल्ली ने सम्मेलन के दौरान तिब्बत से संबंधित पुस्तकें भी वितरित कीं।