तिब्बत.नेट, 15 अप्रैल, 2019
‘मेरी इच्छा है और इस बात की उम्मीद है कि एक दिन औपचारिक शिक्षा इस बात पर ध्यान जरूर देगी, जिसे मैं हृदय की शिक्षा कहता हूं। मैं उस दिन का इंतजार कर रहा हूं, जब बच्चे और छात्र अपने अनुभव और अपनी भावनाओं के बारे में अधिक जागरूक होंगे और खुद के लिए और विशाल दुनिया के प्रति अधिक जिम्मेदारी की भावना महसूस करेंगे। क्या यह अद्भुत नहीं होगा?’- दलाई लामा।
दलाई लामा 20वीं सदी के उन शुरुआती विचारकों में से हैं, जो यह मानते हैं कि मानवता के सामने सबसे बड़ी चुनौती परमाणु हथियार या विश्व युद्ध नहीं है, बल्कि मुख्य मानव मूल्यों का मौन क्षरण है जिसके कारण समय के साथ वैश्विक भावनात्मक संकट शुरू हो सकता है। इसकी प्रमुख अभिव्यक्ति हम पहले से ही राजनीतिक और सामाजिक तमाशों में देख रहे हैं।
एक-दूसरे की वास्तविक चिंताओं को समझनेवाले और वैश्विक कल्याण के लिए सामूहिक जिम्मेदारी का भाव रखनेवाले मानव समाज की कल्पना करते हुए परमपावन दलाई लामा ने एक शैक्षिक परिवर्तन का प्रस्ताव रखा कि सात अरब मनुष्य खुश रहने की चाह में पूरी तरह से बराबर हैं और वे पीड़ित रहना चाहते हैं। एक साथ सहयोग में हम अपने और अपने समुदाय के लिए यह सब हासिल करना चाहते हैं।
इस प्रयास में परम पावन ने सार्वभौमिक धर्मनिरपेक्ष नैतिकता का विचार प्रस्तुत किया है। इनमें करुणा, मानवीय गरिमा, सहानुभूति, सौहार्द, मूल्यों की समृद्धि और प्रगति, दूसरों के लिए चिंता की वास्तविक भावना को सुनिश्चित करना शामिल है। पिछले कई वर्षों से जब परम पावन भारत में विश्वविद्यालयों और स्कूलों के पाठ्यक्रमों में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की शुरुआत करने पर बल देते रहे हैं, उन्होंने देखा कि उत्तरी अमेरिका और यूरोप में मानवता के उत्कर्ष के लिए मानव बुद्धि के साथ प्यार और करुणा को बढ़ावा देने का काम चल रहा है।
दुनिया में अपने नवीनतम और सबसे विशिष्ट योगदान में परमपावन दलाई लामा ने एमोरी विश्वविद्यालय के ‘सेंटर फॉर कंटेम्पलेटीव साइंस और कम्पासियन बेस्ड एथिक्स’ के साथ मिलकर एक व्यापक रूपरेखा तैयार की है। इसमें बालवाड़ी के बच्चों से लेकर माध्यमिक तक के छात्रों के साथ ही साथ उच्च शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा पा रहे छात्रों में सामाजिक, भावनात्मक और नैतिकता की भावना पैदा करने के लिए एक व्यापक रूपरेखा विकसित की है- एसईई अध्ययन। यह परमपावन दलाई लामा के लंबे समय के सपने, अभिनव कार्यक्रम सार्वभौमिक धर्मनिरपेक्ष नैतिकता पर आधारित है और उनके दृष्टिकोण से करुणाऔर नैतिक दुनिया की भावना से प्रेरित है।
इस शुक्रवार को दुनिया भर के 900 से अधिक शैक्षिक प्रमुखों और नीति निर्माताओं की उपस्थिति में एसईई अध्ययन कार्यक्रम के अंतर्राष्ट्रीय लॉन्च में अपने बीज भाषण में परम पावन ने टिप्पणी की कि पाठ्यक्रम के परिणाम निकट भविष्य में नहीं दिखाई देंगे, लेकिन अगली पीढ़ियों को निश्चित रूप से अधिक करुणापूर्ण इंसान, खुशहाल व्यक्ति और परिवार दिखाई देंगे।
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया, नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी, एमोरी विश्वविद्यालय के डॉ लोबसांग तेनज़िन सहित अन्य विशेषज्ञ और वाना फाउंडेशन के वीर सिंह और दलाई लामा ट्रस्ट के तेम्पा त्सेरिंग ने शिक्षा के लिए दलाई लामा के प्रबुद्ध दृष्टिकोण और मानवता के भविष्य के लिए उनकी व्यावहारिक दृष्टि को सराहा।
परम पावन के लंबे संदेश के अनुरूप, एसईई अध्ययन इस विचार पर आधारित है कि शिक्षा को उन मूल्यों और दक्षताओं को बढ़ावा देने के लिए विस्तारित किया जाना चाहिए जो बड़े पैमाने पर व्यक्तियों और समाज दोनों के लिए व्यापक खुशी का कारण बनती हैं।
इस कार्यक्रम के माध्यम से भविष्य की पीढ़ियां अपने अच्छे के लिए अपनी जबरदस्त क्षमता को साकार करने में ताकत के साथ आगे बढ़ सकती हैं, जिसमें उनका अपना भला, दूसरों का भला और व्यापक दुनिया का भला हो।
नए सेंटर के कार्यकारी निदेशक और एमोरी में धर्म विभाग में प्रोफेसर डॉ लोबसांग तेनजिन नेगी ने कहा कि ‘यह प्रयास करुणा आधारित नैतिकता के लिए है, जिसे मौजूदा पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा, जहां यह प्रत्येक स्कूल की शिक्षा को आगे बढ़ाएगा।‘
एसईई अध्ययन फ्रेमवर्क को तीन आयामों में व्यवस्थित किया गया है जो व्यापक रूप से छात्रों में ज्ञान और दक्षता के प्रकारों को समाहित करता है: (1) जागरूकता (2) अनुकंपा और (3) वचनबद्धता। इसके आगे इन तीन आयामों को तीन स्तरों पर साधा जा सकता है- व्यक्तिगत (२) सामाजिक (3) व्यवस्थागत- जिनमें से सभी को एक शैक्षिक संदर्भ के भीतर होना चाहिए जो करुणा पर आधारित हो और उन शिक्षकों के साथ हो जो इस अंतर्निहित मूल्य को अपनाने में खून-पसीना एक करते हैं।
एसईई अध्ययन कार्यशालाओं में विभिन्न देशों में 600 से अधिक प्रशिक्षकों ने भाग लिया। 2020 तक एक हाईस्कूल पाठ्यक्रम की योजना बनाई गई है। प्रशिक्षकों को तैयार करने के लिए एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया गया है और वर्तमान में पाठ्यक्रम का हिंदी, अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी, जर्मन और चीनी सहित चौदह भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है। एसईई अध्ययन के वैश्विक लॉन्च का आयोजन दलाई लामा ट्रस्ट और वाना फाउंडेशन ऑफ इंडिया की साझेदारी में एमोरी यूनिवर्सिटी द्वारा दिल्ली में किया गया।