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21 जून 2021
भविष्य में तिब्बत के अंदर जो कुछ भी होता है वह भारतीय सुरक्षा वातावरण के लिए और एशिया के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकता है।
पिछले कुछ वर्षों में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने अपने उच्च तकनीक वाले हथियारों को उन्नत किया है और हिमालय की सीमाओं और तिब्बत में लाइव-फायर सैन्य अभ्यास की एक शृंखला आयोजित की है। उदाहरण के लिए, ग्लोबल टाइम्स ने 5 जनवरी, 2020 को रिपोर्ट किया कि चीन के नवीनतम हथियार जिनमें टाइप 15 टैंक और नए 155-मिलीमीटर वाहन- चालित होवित्जर शामिल हैं, दक्षिण-पश्चिम चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में तैनात किए गए हैं। यहां पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने अपने इस अभ्यास शृंखला की पहली कड़ी 2020 में शुरू की थी।
शी जिनपिंग के सत्ता में आने के बाद, 2015 में पीएलए में एक बड़ा पुनर्गठन किया गया और बाद में -/फरवरी 2016 में सात सैन्य क्षेत्रों को पांच थिएटर कमान में पुनर्गठित किया गया। 01 फरवरी, 2016 को बीजिंग में आयोजित आधिकारिक ध्वज-सम्मेलन समारोह के दौरान केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) के अध्यक्ष का भी पदभार संभाल रहे शी ने थिएटर कमांडों को कमांड करने की अपनी क्षमता में सुधार लाने और नियमित संघर्ष में तत्परता लाने और सैन्य कार्रवाइयों में संयुक्त कमान को मजबूती प्रदान कर कार्यों को पूरा करने का आग्रह किया।
तब से, विभिन्न सघन सैन्य अभ्यास हुए हैं, जिसमें पश्चिमी थिएटर कमान सहित विभिन्न थिएटर कमानों के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास भी शामिल है, जो पूर्वी तुर्केस्तान (झिंझियांग) और तिब्बत की सुरक्षा का जिम्मा संभालते हैं। कमांड सिस्टम का यह केंद्रीकरण इस बात का संकेत देता है कि चीन भारत-तिब्बत सीमा पर एक नया मोर्चा बनाने की योजना बना रहा है।
दूसरे शब्दों में, तिब्बत में चीन के सैन्य अभ्यासों की बढ़ती संख्या से भारत के सामने खतरा बढ़ गया है।
पिछले साल जून में गलवान घाटी में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य और राजनयिक गतिरोध के दौरान, भारत के साथ बातचीत करने के बावजूद, उपग्रह छवियों ने साबित कर दिया कि पीएलए अपने सैन्य बुनियादी ढांचे को सक्रिय रूप से उन्नत कर रहा है। गलवान घाटी और पैंगोंग त्सो में सड़कों के निर्माण को रोकने के लिए भारत पर दबाव डालते हुए, चीन भारत की सीमा से लगे तिब्बत में एक उन्नत परिवहन नेटवर्क और सैन्य बुनियादी ढाँचा विकसित करना जारी रखे हुए है।
अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी कंपनी मैक्सार द्वारा जारी उपग्रह चित्रों से यह और साबित हो जाता है। पीएलए द्वारा निर्मित सैन्य हार्डवेयर के लिए बंकर, टेंट और भंडारण इकाइयों से युक्त संरचनाएं जून से पहले हवाई तस्वीरों में दिखाई नहीं दे रही थीं। इसलिए, भारत के साथ व्यवहार में कम्युनिस्ट चीन की ओर से दोहरा बर्ताव किया जा रहा है।
‘हिमालयन फेस-ऑफ़: चाइनीज़ एसेरशन एंड द इंडियन रिपोस्टे’ के 37 वर्षीय लेखक शिशिर गुप्ता की एक रिपोर्ट 20 नवंबर, 2020 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हुई है। इसमें कहा गया है कि “सैन्य कमांडरों और राष्ट्रीय सुरक्षा योजनाकारों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि पिछले एक महीने में उन्होंने देखा कि पीएलए केंद्रीय क्षेत्र में कौरिक दर्रे के पार चुरुप गांव में सड़क निर्माण में संलग्न है और उन्होंने उत्तराखंड में बाराहोती मैदानों के उत्तर में टुनजुम ला के आसपास नए कंटेनर हाउसिंग मॉड्यूल रखे हैं, जो हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में 565 किमी एलएसी से सिर्फ चार किलोमीटर दूर है।
ज्ञातव्य है कि कौरिक दर्रे के ठीक सामने एक सड़क के निर्माण से भारत की सुरक्षा को खतरा है। इतना ही नहीं, पूर्वी तुर्केस्तान-तिब्बत राजमार्ग का अस्तित्व, जो कौरिक दर्रे के करीब है, भारत के साथ 1962 के सीमा युद्ध के समय पीएलए के सैनिकों और सैन्य हार्डवेयर की तैनाती के लिए महत्वपूर्ण रणनीतिक सड़कों में से एक रहा है।
29 मई को हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने पुलिस महानिदेशक संजय कुंडू के साथ किन्नौर और लाहौल-स्पीति जिलों में लेपचा के अग्रिम क्षेत्रों का दौरा किया।
निरीक्षण के बाद आउटलुक पत्रिका ने कैबिनेट मंत्री डॉ. राम लाल मारकंडा के साथ मुख्यमंत्री को यह कहते हुए उद्धृत किया था, ‘यह सच है कि चीन तिब्बत क्षेत्र में राज्य की सीमाओं के साथ सड़कों का निर्माण और अन्य ढांचागत परियोजनाओं को तैयार कर रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि चीन अपने निगरानी नेटवर्क को किसी ऐसे स्थान पर स्थापित करने की योजना बना रहा है जो अधिक ऊंचाई पर स्थित हो, ताकि सीमाओं पर हमारी ओर नजर रखी जा सके।’
तिब्बती पठार पर चीनी अवसंरचना का यह निरंतर विकास तिब्बत के महत्व की पुष्टि करता है।
सामरिक दृष्टि से हिमाचल प्रदेश महत्वपूर्ण है क्योंकि हिमाचल प्रदेश के किन्नौर, लाहौल और स्पीति जिलों में तिब्बत के साथ 260 किलोमीटर लंबी झरझरा सीमा लगती है। कुल सीमा की लंबाई में से 140 किलोमीटर किन्नौर जिले में हैं, जबकि 80 किलोमीटर लाहौल और स्पीति जिलों के अंतर्गत आते हैं। इसके अलावा, तिब्बत में राडार स्टेशन पर 5जी की स्थापना से सैन्य संचार में और वृद्धि होगी और भारत-तिब्बत सीमा पर सेना और हथियारों की तेजी से तैनाती के लिए एक विशाल नेटवर्क स्थापित हो जाने की आशंका है।
पिछले एक दशक से गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के नाम पर, लगभग 2,66,000 तिब्बती खानाबदोश और किसानों को भारत- तिब्बत सीमा के पास 960 नए पुनर्वास केंद्रों में स्थानांतरित किया गया है। इन सामूहिक पुनर्वास कार्यक्रमों की दीर्घकालिक योजना तिब्बत सीमा को आबाद करना और उसकी रक्षा करना है। इसके अलावा तिब्बत में पार्टी-राज्य ने प्रमुख पृथक सीमावर्ती गांवों को राजमार्गों से व्यवस्थित रूप से जोड़ा है और अधिकांश सीमावर्ती गांवों को अब केंद्रीकृत निगरानी प्रणाली नेटवर्क के तहत लाया गया है।
2017 में कम्युनिस्ट चीन ने ‘सीमावर्ती क्षेत्रों में मध्यम समृद्धि के गांवों के निर्माण (2017-2020)’ के लिए अपनी योजना जारी की। इस योजना का उद्देश्य तिब्बत के लिए शी की शासन रणनीति द्वारा निर्देशित है: ‘[टू] देश को अच्छी तरह से संचालित करने के लिए हमें पहले सीमाओं पर अच्छी तरह से शासन करना चाहिए, और सीमाओं पर अच्छी तरह से शासन करने के लिए हमें पहले तिब्बत की स्थिरता सुनिश्चित करनी चाहिए।’
भारत-तिब्बत सीमा को लेकर भारत और चीन के बीच कोर कमांडर स्तर की 11 दौर की बातचीत के बावजूद चीन ने हिमालय को लेकर अपनी विस्तारवादी नीति नहीं छोड़ी है।
सैन्य तैयारियों और रणनीतिक गणना से ऐसा लगता है कि चीन का शुरुआती रणनीतिक कदम तिब्बत-हिमाचल सीमा की ओर स्थानांतरित होना है।
लगभग छह दशक पहले, जॉर्ज गिन्सबर्ग्स और माइकल मैथोस ने तिब्बत के महत्व को निम्नलिखित शब्दों में उपयुक्त रूप से अभिव्यक्त किया: ‘वह जो तिब्बत को धारण करता है वह हिमालय पीडमोंट पर हावी है; वह जो हिमालय पीडमोंट पर हावी है, भारतीय उपमहाद्वीप के लिए खतरा है; और जो भारतीय उपमहाद्वीप के लिए खतरा है, उसके नियंत्रण में संपूर्ण दक्षिण एशिया और इस तरह संपूर्ण एशिया हो सकता है।’
संक्षेप में, भविष्य में तिब्बत के भीतर जो कुछ भी होता है वह भारतीय सुरक्षा परिवेश के लिए और एशिया के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकता है।
डॉ. छेवांग दोरजी धर्मशाला में तिब्बत नीति संस्थान में रिसर्च फेलो हैं। यहां व्यक्त किए गए विचार जरूरी नहीं कि तिब्बत नीति संस्थान के विचारों को प्रतिबिंबित करें। इस लेख को 21 जून 2021 को TheFirstPost.com में पुन: प्रकाशित किया गया था।