हिंदुस्तान, 12 मार्च 2013
आर्इआर्इएमटी में आयोजित समारोह में तिब्बती धर्मगुरु दलार्इ लामा ने रखे विभिन्न विषयों पर विचार
मेरठ: राजनीति और धर्म दोनों अलग-अलग बातें हैं। धर्म और राजनीति में घालमेल नहीं होना चाहिए। राजनीति के लिए धर्म पथ प्रदर्शक बन सकता है, लेकिन राजनीति के साथ मिलकर कोर्इ धर्म, धर्म नहीं रह जाता। किसी भी समाज में अहिंसा और शिक्षा हर समस्या का समाधान है। भारत प्राचीन संस्कृति का वाहक है। इसकी तुलना तिब्बत से नहीं करनी चाहिए।
तिब्बती धर्म गुरु दलार्इ लामा ने आर्इआर्इएमटी कालेज में विभिन्न विषयों पर बेबाकी से विचार रखे। उन्होंने कहा कि भारत में अनेक जातियां, धर्म और राजनीतिक विचार धाराएं हैं। भारत की संस्कृति 16 सौ वर्ष पुरानी है, जबकि तिब्बत की चार सौ वर्ष पुरानी, ऐसे में भारत से तिब्बत की तुलना ठीक नहीं है।
उन्होंने कहा कि तिब्बत की आजादी में लामा संस्कृति की भूमिका भविष्य तय करेगा। तिब्बत की संस्कृति अभी विकास की स्थिति में है। दलार्इ लामा के अनुसार बौद्ध तिब्बत की ही नहीं, बल्कि भारत की भी संस्कृति है। भारत में भी युवाओं का रुझान इसकी ओर बढ़ रहा है। विकास के साथ गरीबी और अशिक्षा को दूर किया जाए तो नक्सलवाद जैसे आंतरिक संघर्ष खुद खत्म हो जाएंगे। आधुनिक दौर में भारत को अपनी संस्कृति को संभालने की जरूरत है। भारत में आधुनिक शिक्षा के साथ परंपरागत भारतीय मूल्यों का संरक्षण जरूरी है। सेमिनार में सैन्य अधिकारी भी शामिल हुए। सांसद राजेंद्र अग्रवाल, चेयरमैन योगेश मोहन गुप्ता, अभिन्व अग्रवाल, कुलभूषण बख्शी, अर्चना शर्मा, सतीश गुप्ता, अमित बंसल आदि मौजूद रहे।