जोधपुर ,(निसं). नोबल पुरस्कार विजेता , शांति के दूत और तिब्बतियों के धर्म गुरु दलाई लामा ने छात्रों से कहा है कि 21 वीं सदी में शांति परम आवश्यक है और शांति कायम करना छात्रों की ही जिम्मेदारी है।
छात्रों को शांति की स्थापना के लिए काम करना होगा, अहिंसा के सिद्धान्तों के अनुरुप छात्रों को अपना दृष्टिकोण विकसित करना होगा । छात्रों को यह समझना होगा और इस बात को अपने हदय में आत्मसात करना होगा कि 21 वीं सदी में शांति स्थापना की जिम्मेदारी उनके कंधों पर ही है। अपने शहर की तीन दिवसीय यात्रा पर आए तिब्बति धर्म गुरु दलाई लामा आज अपने प्रवास के दूसरे दिन होटल हरिताज में अरावली इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेन्ट के छात्रों स् रु-ब- रु हुए। अपने उदबोधन के बाद दलाई लामा ने छात्रों के प्रश्नो के उत्तर भी दिए।
दलाई लामा ने अपने सार गर्भित संबोधन में कहा कि 21 वीं सदी को संवाद की सदी के रुप में याद किया जाएगा। हमें यह मान लेना चाहिए कि संवाद से ही समस्याओं का निराकरण संभव है। समस्या चाहे अन्तर्राष्ट्रीय हो, राष्ट्रीय हो या फिर स्थानीय स्तर की सभी समस्याओं का निराकरण केवल संवाद के माध्यम से ही संभव है। दलाई लामा ने कहा कि हम स्वयं -केन्द्रित होकर या फिर अपनी शर्तों पर ही किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकते । आज विश्व में मानव मूल्यों की स्थापना की जरुरत शिद्दत के साथ महसूस की जा रही है।आपसी विश्वस , सहयोग , समन्वय , आपसी समझ और सहनशीलता को बढाना होगा तभी संवाद के माध्यम से हम समस्याओं के निराकरण की राह तलाश पाएंगे।
तिब्बती समस्या । दलाई लामा ने तिब्बत समस्या का जिक्र करते हुए कहा कि तिब्बत समस्या की स्वीकार्यता धीरे- धीरे बढ रही है।
हम स्वतंत्र होना नहीं चाहते क्योंकि हम गरीब राष्ट्र है और आर्थिक उन्नति चाहते है इसके लिए चीन के साथ रहने में हमें समस्या नहीं है और चीन व अन्य देश भी हमारी इन भावनाओं का अब समर्थन कर रहे है। दलाई लामा ने यह आशा जताते हुए कि , तिब्बत समस्या का शीघ्र निराकरण हो जाएगा, कहा कि हम स्वतंत्रता नहीं मगर स्वायत्तता चाहते है। हमारी संस्कृति और परंपराओं के अनुरुप हम रहें।
संवाद की होगी 21 वीं सदी ।
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