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एक हालिया रिपोर्ट के अनुसारचीनी अधिकारी तिब्बती बच्चों के माता-पिता को चीनी भाषा की अच्छी समझ बनाने के लिए कार्यशालाओं और कक्षाओं में भाग लेने के लिए मजबूर कर रहे हैं। ये कार्यशालाएं चीन सरकार के ‘भाषा आत्मसात’ अभियानों का हिस्सा हैं जहां तिब्बती माता-पिता को निर्देश दिया जा रहा है कि वे अपने स्कूल जाने वाले बच्चों को चीनी भाषा सिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं।
नई रणनीति के तहत तिब्बती माता-पिता को इन भाषा कक्षाओं और कार्यशालाओं में जुड़कर चीनी भाषा सीखने के लिए कड़े प्रयास करने को कहा जा रहा है। ये लोग ज्यादातर खानाबदोश और किसान हैं। चीनी भाषा को बढ़ावा देने की नई जिम्मेदारी देना ओर उनसे अपने बच्चों को चीनी में बोलने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए मजबूर करना अधिक चिंता का विषय है। रिपोर्ट में कहा गया है कि माता-पिता के लिए उनकी नई भूमिका में भाषा के बारे में बनाए गए नियमों और कानूनों की अद्यतन जानकारी रखने को भी जरूरी बनाया गया है।
‘तिब्बत वॉच’ की एक रिपोर्ट में पुष्टि की गई है कि इस साल फरवरी से मार्च तक गोलोग तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर के एक माध्यमिक विद्यालय में माता-पिता के लिए लगभग १६ अनिवार्य कार्यशालाएं आयोजित की गईं। एक सूत्र के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि ९ मार्च को आयोजित की गई एक कार्यशाला का उद्देश्य ‘न केवल चीनी भाषा पढ़ाना बल्कि चीनी शिक्षा के माध्यम से (प्रतिभागियों के) विचारों में सुधार करना’ भी था। माता-पिता को निर्देश दिया गया था कि वे पहले ‘सामान्य’ भाषा को अच्छी तरह से सीखें और उसमें सुधार करेंऔर फिर ‘चीनी योजना’में अपने योगदान के तौर पर अपने बच्चों को भाषा सीखने में सहायता करें।
न्यिमा काउंटी के आधिकारिक वीचैट पर स्थानीय अधिकारियों द्वारा रिपोर्ट के अनुसार तथाकथित तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में न्यिमा काउंटी मेंइसी तरह की एक बैठक १२मार्च को हुई थी। काउंटी अधिकारियों द्वारा आयोजित बैठक में स्थानीय अधिकारियों, पार्टी के सदस्यों और स्थानीय तिब्बतियों को ‘राष्ट्रीय भाषा कार्यशाला और परीक्षण’ के बारे में चर्चा करने के लिए बुलाया गया था। भाषा सिखाने के अलावाउपस्थित लोगों को शी जिनपिंग के विचारों के बारे में भी बताया गया और उनसे अपने गांवों में लौटने के बाद सीखी गई जानकारी का प्रचार-प्रसार करने का आग्रह किया गया।
‘चीनी मेरी मातृभाषा है’ का प्रचार
चीनी सरकार ने पिछले दिसंबर में लक्ष्य तय किया था कि २०२५ तक चीन की कुल आबादी का कम कम ८५ प्रतिशत आबादी चीनी भाषा को अपनी मातृभाषा के रूप में स्वीकार कर ले। इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए तिब्बत और आंतरिक मंगोलिया के स्कूलों में अन्य भाषाओं को कमजोर करने की नीतियां सख्ती से लागू की जा रही हैं। कक्षाओं की दीवारों पर ‘चीनी मेरी मातृभाषा है’ जैसे नारों वाले पोस्टर देखे जा सकते हैं। एक अन्य रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि इस तरह के प्रचार का उद्देश्य स्कूली बच्चों को बहुत कम उम्र से ही यह विश्वास दिलाना है कि चीनी उनकी मातृभाषा है।
उसी रिपोर्ट में एक अज्ञात तिब्बती स्रोत के हवाले से कहा गया है कि नई नीति ‘स्कूल के शिक्षकों और बुजुर्गोँको चीनी भाषा में पारंगत बनाने की बात करती है। इसके अलावा, अब रोजगार पाना बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि आप चीनी भाषा बोल सकते हैं या नहीं।’तिब्बती स्कूलों की वर्तमान स्थिति के बारे में पूछे जाने पर स्रोत ने चीन की दोषपूर्ण शिक्षा नीतियों के माध्यम से लगातार तिब्बती भाषा को निशाना बनाए जाने पर नाराजगी व्यक्त की। सूत्र ने आगे उल्लेख किया कि स्कूलों में शिक्षकों, छात्रों और कर्मचारियों को केवल चीनी भाषा में एक- दूसरे के साथ संवाद करना अनिवार्य कर दिया गया है। दीर्घकाल में ऐसी नीतियों का तिब्बती भाषा के अस्तित्व पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा, जो धीरे-धीरे तिब्बतियों को अपने दैनिक जीवन में चीनी भाषा के उपयोग को आत्मसात करने के लिए मजबूर कर देगा।
तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर के न्गाबा (चीनी: अबा) के स्कूलों को धीरे-धीरे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और चीनी भाषा और संस्कृति का सम्मान करने के लिए अनुकूल बनाया जा रहा है। आधिकारिक रिपोर्टों के अनुसार, ‘छात्रों के कल्याण और सुरक्षा को बनाए रखने’ के नाम पर ‘राजनीतिक शिक्षा’ कक्षाओं के संचालन के लिए बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों को स्कूलों और किंडरगार्टन में तैनात किया गया है। ‘सही व्यवहार के निर्माण’ के लिए ये पुलिसकर्मी स्कूल परिसर में दैनिक निगरानी रखते हैं और चीनी सरकार की नीतियों को ध्यान में रखते हुए बच्चों में व्यवहार विकसित करने के लिए उन्हें प्रेरित करते हैं।