निर्वासित तिब्बत सरकार, जो कि तिब्बतियों की लोकतांत्रिक चुनाव प्रणाली से निर्वाचित सरकार है, के नये मंत्री (कालोन) नॉर्जिन डोल्मा द्वारा तिब्बतन एडवोकेसी कैम्पेन में अपनी अमरीका यात्रा के दौरान चीन सरकार के साथ वार्ता पुनः प्रारंभ किये जाने पर जोर स्वागतयोग्य है। इसी फरवरी, २०२२ को अपनी सप्ताहभर की इस यात्रा में उन्होंने अमरीकी राज्य विभाग के अधिकारियों से भेंट की। वे तिब्बत संबंधी मामलों के समन्वयक अजरा से और अन्तरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के नये राजदूत राशद हुसैन से मिले। उन्होंने विभिन्न अमरीकी अधिकारियों के साथ तिब्बती शरणार्थियों, तिब्बतियों के पलायन एवं पर्यावरण आदि विषयों पर चर्चा की। उन्होंने यह भी बताया कि चीन की दमनकारी नीति के कारण तिब्बती ही तिब्बत में अल्पसंख्यक होने के कगार पर हैं। चीन द्वारा तिब्बती लोगों पर बढ़ते अत्याचार के कारण कई तिब्बती अपने हाथों अपने ही शरीर में आग लगाकर आत्मदा करने को बाध्य हैं। उनका यह बलिदान किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को विचलित करने के लिये काफी है लेकिन चीनी प्रशासन अत्यन्त संवेदन शून्य है। वह आत्मदाह करने वाले तिब्बतियों के परिजनों को प्रताड़ित और दण्डित करने में लगा है। नॉर्जिन डोल्मा ने यह भी बताया कि तिब्बत के प्राकृतिक संसाधन और पर्यावरण को चीन सरकार षड्यंत्रपूर्वक एवं सुनियोजित तरीके से नष्ट कर रही है।
अमरीका सरकार के विभिन्न अधिकारियों को कालोन नॉर्जिन डोल्मा ने तिब्बतियों की लोकतांत्रिक व्यवस्था के बारे में प्रामाणिक जानकारी देते हुए स्पष्ट किया कि परमपावन दलाईलामा की प्रेरणा, प्रोत्साहन एवं आशीर्वाद से निर्वासित तिब्बत सरकार का तिब्बती समुदाय द्वारा निर्वाचन किया जाना लोकतांत्रिक मूल्यों के संरक्षण-संवर्धन में महत्वपूर्ण कदम है। उनका स्पष्ट मत था कि चीन सरकार एवं निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रतिनिधियों के बीच वार्ता पुनः प्रारंभ होनी चाहिए। इस वार्ता का आधार ‘‘मध्यममार्ग‘‘ हो। मध्यममार्ग चीन के संविधान और राष्ट्रीय कानून के अनुकूल है।
चीन सरकार प्रतिरक्षा और वैदेशिक मामले अपने पास रखे तथा अन्य सभी विषयों, जैसे – कृषि, शिक्षा, संस्कृति, पर्यावरण, उद्योग आदि पर कानून बनाने का अधिकार तिब्बतियों को सौंपे। इससे चीन की एकता-अखंडता-संप्रभुता की सुरक्षा के साथ ही तिब्बतियों को स्वशासन का अधिकार मिल जायेगा। यही है तिब्बत को ‘‘वास्तविक स्वायत्तता‘‘। अभी चीन ने तिब्बत को तथाकथित स्वायत्तता दे रखी है। उसने तिब्बत के विभिन्न क्षेत्रों को चीनी भूभाग में मिला लिया है।
तिब्बत अवैध चीनी आधिपत्य के पूर्व भारत एवं चीन के बीच स्थित एक स्वतंत्र देश था। उसके संपूर्ण भौगोलिक क्षेत्र को स्वायत्तता प्रदान की जाये। तिब्बतियों एवं तिब्बत समर्थकों के पक्ष में बढ़ते अमरीकी सरकार के सहयोग और समर्थन की उपेक्षा चीन के लिये नुकसानदेह साबित होगी। विश्वजनमत तिब्बती मध्यममार्ग नीति के पक्ष में है। तिब्बती पूर्ण स्वतत्रंता की मांग छोड़कर सिर्फ वास्तविक स्वायत्तता मांग रहे हैं। तिब्बत समस्या का व्यावहारिक समाधान यही है। तिब्बत एवं चीन के साथ संपूर्ण विश्व का इससे कल्याण होगा।
भारत में रह रहे सभी ४० तिब्बती सांसदों द्वारा तिब्बती कॉलोनियों की वार्षिक यात्रा भी स्वागतयोग्य है। इसी फरवरी माह में तिब्बती कॉलोनियों की समस्याओं को उन्होंने प्रत्यक्ष देखा -जाना। उन्होंने स्थानीय भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों, जैसे – कलक्टर, एस.पी. आदि से भेंट कर उनकी मदद प्राप्त की। वे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल, भारत सरकार के केन्द्रीय मंत्री किरेन रिजिजू, सांसद जयराम रमेश, शशि ठरूर तथा तिब्बत समर्थक सर्वदलीय संसदीय मंच के राष्ट्रीय संयोजक सुजीत कुमार से मिले। सांसदों की रिपोर्ट पर तिब्बत सरकार की कार्यकारिणी विचार करती है। सांसदों के इस कदम से तिब्बतियों एवं भारतीयों के विश्वासपूर्ण तथा सहयोगपूर्ण संबंध और भी मजबूत होते हैं। इससे तिब्बतियों के साथ भारतीयों को भी तिब्बती नीति एवं कार्यक्रमों का पता चलता है। इस दृष्टि से तिब्बती सांसदों का यह वार्षिक कार्यक्रम सराहनीय है। इससे तिब्बती कॉलोनियों में स्थानीय भारतीय लोगों एवं प्रशासन का सहयोग लगातार बढ़ता रहेगा। तिब्बतियों एवं भारतीयों के बीच तिब्बत संबंधी नवीनतम जानकारियों से भरपूर प्रामाणिक जागरुकता लाने का यह प्रभावी साधन है।
जागरुकता प्रयासों का ही परिणाम है कि चीन में ४ फरवरी, २०२२ से आयोजित विंटर ओलंपिक के बहिष्कार हेतु सार्थक विरोध आंदोलन विश्वस्तर पर हुए। ओलंपिक कार्यालय के सामने सत्याग्रह तथा भारत में चीनी दूतावास के बाहर प्रदर्शन इसी विरोध के उद्धरण हैं। चीन सरकार की धमकियों के बावजूद अनेक देशों ने इस आयोजन का राजनयिक बहिष्कार किया। इससे चीन सरकार की तिलमिलाहट के साथ तिब्बत में जारी उसकी क्रूरतापूर्ण अमानवीय नीति भी स्पष्ट हो गई । अमरीका आदि अनेक देशों ने साबित कर दिया कि चीन की तिब्बत नीति का वे जोरदार विरोध जारी रखेंगे।
विंटर ओलंपिक के आयोजन से चीन अपनी छवि चमकाने में लगा था। उसे विश्वास था कि विश्वजनमत तिब्बत में चीनी अत्याचार को भूला देगा। लेकिन परिणाम उल्टा हुआ। साथ ही विश्वजनमत कोरोना महामारी के लिये भी चीन को जिम्मेदार समझता है। कोरोना महामारी चीन के वुहान से पूरे संसार में फैल गई। ऐसे समय भी चीन सरकार निम्न दर्जे के चिकित्सीय उपकरण तथा दवाई आदि बेचकर ‘‘अशुभलाभ‘‘ कमा रही थी। उसका यह कार्य मानवता के विरुद्ध था। कोरोना महामारी फैलाकर उसने फिर से साबित कर दिया कि दया, करुणा, प्रेम, शांति आदि मानवीय मूल्य उसके लिये महत्वहीन हैं।