tibet.net / धर्मशाला। उत्तर प्रदेश के जिस कुशीनगर में भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण द्वारा संसार के इस नश्वर सत्य कि ‘हर आदी का अंत होता है’ के दर्शन को व्यावहारिक पक्ष को उजागर किया गया है, उसी कुशीनगर के बुद्ध पीजी कॉलेज में ‘तिब्बत के लिए एक दिन’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
इस कॉलेज में १२ विभाग हैं जिनमें लगभग ४००० छात्र अध्ययन करते हैं।
इस कार्यक्रम में बुद्ध पीजी कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ.अमृतांशु शुक्ला; गणित विभाग के प्रोफेसर डॉ.सी.एस.सिंह; शिक्षक शिक्षा विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ.निगम मौर्य; भूगोल विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.कौस्तुभ नारायण मिश्रा, हिंदी विभाग के डॉ.गौरव तिवारी; वनस्पति विज्ञान विभाग की प्रोफेसर डॉ. वीणा कुमारी एवं अन्य विद्वान उपस्थित हुए।
डॉ. गौरव तिवारी ने तिब्बत के साथ भारत के संबंधों के मूल तत्वों पर प्रकाश डाला, विशेष रूप से भारत से उत्पन्न बौद्ध पारंपरिक शिक्षा को रेखांकित किया, जिसे तिब्बती विद्वानों और आचार्यों द्वारा संरक्षित किया गया था। ये वे साहित्य हैं जिन्हें भारतीय विद्वान महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने अच्छी तरह से दस्तावेजीकरण किया और बाद में इनका तिब्बती से संस्कृत में पुन: अनुवाद किया।
डॉ.के.एन. मिश्रा ने चीन की आधिकारिक यात्राओं के दौरान चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों के साथ अपनी बातचीत के आधार पर चीनी कम्युनिस्ट विचारधारा, उसकी निहित पूंजीवादी विचारधारा और इसकी विस्तारवादी नीति के बारे में अपनी जानकारी के अपने व्यक्तिगत अनुभव को साझा किया। उन्होंने श्री इंद्रेश कुमार के नेतृत्व में आयोजित कार्यक्रमों को याद किया, जिनमें तिब्बत मुद्दे के साथ-साथ कैलाश-मानसरोवर की आजादी का मुद्दा उठाया गया था।
डॉ.सी.एस. सिंह ने श्रोताओं से विशेष रूप से छात्रों से इस आयोजन से सीखी गई बातों को साझा करने और प्रत्येक व्यक्ति के मूल को समझने का आग्रह किया, जिसकी अलग-अलग कहानियां हैं, लेकिन उनका मूल एक ही सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक ताने-बाने से जुड़ा हुआ है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि होने के नाते डॉ. अमृतांशु शुक्ला ने इस कॉलेज से जुड़ी अपनी यादों को ताजा करने के लिए आयोजकों का आभार व्यक्त किया, जहां उन्होंने दो दशकों से अधिक समय तक अध्यापन किया और प्रशासन में सेवाएं दीं। उन्होंने न केवल भारत-तिब्बत संबंधों के महत्व को रेखांकित किया, बल्कि इस ज्ञान और क्षमता को भी रेखांकित किया कि यह संबंध मानव जाति के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में योगदान कर सकता है।
भारत तिब्बत समन्वय कार्यालय के समन्वयक श्री जिग्मे त्सुल्ट्रिम ने कार्यक्रम की पृष्ठभूमि, आईटीसीओ के लक्ष्य और उद्देश्य, सीटीए की नीति और कार्यप्रणाली और निर्वासन में तिब्बत की भविष्य की अपेक्षाओं और तिब्बत के अंदर तिब्बतियों की भविष्य की अपेक्षाओं को ‘तिब्बती जीवन शैली’ नामक पीपीटी के माध्यम से रेखांकित किया।’
डॉ. निगम मौर्य ने कार्यक्रम के प्रत्येक वक्ता का परिचय दिया और छात्रों को इस आयोजन का सार्थक उपयोग करने की सलाह दी।
भारत-तिब्बत संवाद मंच, कुशीनगर के संयोजक डॉ. शुभलाल शाह और नामग्याल तिब्बती मठ, कुशीनगर के प्रभारी वें तेनक्योंग ने विशिष्ट आमंत्रितों को स्मारिका पुस्तकों के साथ तिब्बती स्कार्फ भेंट किए।
इस कार्यक्रम में तीन सौ से अधिक छात्रों और कुछ मीडिया प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया।