पत्रकार एवं अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग / राजकीय महाविद्यालय, तिजारा (राजस्थान)
भारत के हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला से संचालित निर्वासित तिब्बत सरकार, जो कि लोकतांत्रिक तरीके से तिब्बती जनता द्वारा चुनी गई है, सम्पूर्ण विश्व के लिये अनुकरणीय उदहारण है। वर्तमान तिब्बती संसद निर्वाचन की दृष्टि से १७ वीं संसद है। इसी प्रकार कसाग अर्थात् तिब्बती मंत्रिमंडल १६ वीं कसाग है। तिब्बती संविधान के अनुरूप तिब्बती संसद ने अक्टूबर माह में अपने सत्र के दौरान मंत्रिमण्डल में शामिल करने हेतु तीन महिलाओं के नाम स्वीकृत किये थे। उन्हीं तीन महिलाओं को तिब्बती सर्वोच्च न्याय आयुक्त द्वारा नवंबर में पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई गई। मंत्रिमंडल में शामिल ये तीन सदस्य हैं – गैरी डोल्मा, थारलाम डोल्मा और नोर्ज़िन डोल्मा। केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन में विभिन्न पदों पर रहते हुए अनेक महत्वपूर्ण दायित्व सफलतापूर्वक निभाने का अनुभव इन्हें प्राप्त है। इस प्रकार वर्तमान तिब्बती प्रधानमंत्री पेंपा त्सेरिंग के कुशल नेतृत्व में गठित मंत्रिमंडल अपनी समस्त जिम्मेदारियाँ सफलतापूर्वक निभायेगा, ऐसी आशा करना उचित है। समस्त तिब्बती एवं समर्थक आशान्वित हैं कि पेंपा त्सेरिंग के मागदर्शन में तिब्बत सरकार तिब्बत समस्या के समाधान हेतु सभी उपयुक्त प्रयास करेगी।
चीन के पूर्व प्रधानमंत्री देंग श्याओ पिंग ने तिब्बती धर्मगुरु परमपावन दलाई लामा, जो कि तिब्बत के राजप्रमुख भी थे, को स्पष्ट बता दिया था कि तिब्बत को आजाद नहीं किया जायेगा। इसी आधार पर दलाईलामा ने १९७० में ‘‘मध्यममार्ग‘‘ का प्रस्ताव रखा। इसे ‘‘वास्तविक स्वायत्तता‘‘ कहा जाता है। इस प्रस्ताव को तिब्बती संसद की सर्वसम्मत स्वीकृति मिली हुई है। यह प्रस्ताव चीन के संविधान तथा राष्ट्रीयता संबंधी कानून के अनुकूल है। इसके अनुसार चीन सरकार अपने पास प्रतिरक्षा तथा वैदेशिक मामले रख ले और कृषि, शिक्षा समेत अन्य सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार तिब्बत सरकार को मिले। इस व्यवस्था से चीन की क्षेत्रीय एकता-अखंडता तथा संप्रभुता पूर्ववत् सुरक्षित रहेर्गी और तिब्बतियों को भी स्वशासन का अधिकार मिल जायेगा। वर्तमान समय में चीन सरकार ने तिब्बत के कई क्षेत्र अपने भौगोलिक क्षेत्र में मिला लिये हैं। ‘‘वास्तविक स्वायत्तता‘‘ अर्थात् ‘‘मध्यममार्ग की नीति‘‘ संपूर्ण तिब्बत में क्रियान्वित हो।
चीन सरकार साजिशपूर्वक तिब्बत का चीनीकरण कर रही है। तिब्बत के मठ, मंदिर, आध्यात्मिक संस्थान तथा ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक स्थल बर्बाद किये जा रहे हैं। वहाँ चीनी मूल के लोग बड़ी संख्या में बसाये जा रहे हैं। तिब्बत में ऊँचे पदों पर सिर्फ चीनी हैं। कृषि एवं उद्योग में तिब्बती सिर्फ मजदूर बना दिये गये हैं। तिब्बती महिलाओं की जबरन नसबंदी भी चीनीकरण की इसी साजिश का हिस्सा है। ऐसी चिंताजनक स्थिति में तिब्बती एवं तिब्बत समर्थकों की प्राथमिकता तिब्बती पहचान की सुरक्षा है। ‘‘विश्व के तीसरे धु्रव‘‘ तथा ‘‘संसार की छत‘‘ से विख्यात तिब्बत के ग्लेसियर नष्ट होते जा रहे हैं। प्राकृतिक संसाधनों की लूट और चीनी भोगवाद के शिकार तिब्बती पर्यावरण के प्रति संपूर्ण विश्व चिंतित है। संयुक्त राष्ट्रसंघ समेत अन्तरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय संस्थायें तिब्बत में चीन द्वारा जारी अमानवीय नीति तथा मानवाधिकारों के हनन के विरूद्ध हैं।
चीन के साथ वर्ष २०१० के बाद तिब्बती प्रतिनिधिमंडल की वार्ता रूकी पड़ी है। ऐसा साम्राज्यवादी चीन की हठधर्मिता से हुआ है। विश्व जनमत वार्ता पुनः होने के पक्ष में है, क्योंकि तिब्बत समस्या के समाधान से विश्वशांति मजबूत होगी। अभी तिब्बती संघर्ष शांतिपूर्ण एवं अहिंसक है। दलाई लामा की प्रेरणा एवं आशीर्वाद का यह परिणाम है। वे स्वयं को तिब्बती राजप्रमुख के दायित्व से मुक्त कर चुके हैं। वे अपने समस्त राजनीतिक अधिकार तिब्बत सरकार को सौंप चुके हैं। वे सिर्फ आध्यात्मिक जिम्मेदारियाँ निभा रहे हैं। उनके मतानुसार २१वीं शताब्दी के लिये शांति-अहिंसा का मंत्र ही ठीक है।
शांति के लिये नोबल पुरस्कार से सम्मानित दलाई लामा अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। विभिन्न राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को संबोधित कर रहे हैं। उन्होंने तिब्बत के प्रश्न को अन्तरराष्ट्रीय प्रश्न बना दिया है। पड़ोसी होने के कारण भारत के लिये यह और गंभीर प्रश्न है। दलाई लामा के अनुसार भारत से ही बौद्ध दर्शन तिब्बत पहुँचा था। तिब्बत और भारत के सांस्कृतिक-आध्यात्मिक संबंध सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। अन्य सभी क्षेत्रों में भी दोनों देशों के बीच मधुर और विश्वसनीय संबंध थे। स्वतंत्र तिब्बत में भारतीय अपनी सुविधानुसार कैलाश-मानसरोवर के और तिब्बती बेरोकटोक भारत में बौद्ध स्थलों के दर्शन कर लेते थे। इसी कारण दलाई लामा ने अपने हजारों अनुयायियों सहित शरण के लिये भारत को चुना। आज भारतीय समाज में तिब्बती अपने व्यवहार से सबका दिल जीत चुके हैं।
अभी चीन पर दबाव बढ़ाने का उपयुक्त अवसर है। चीन में फरवरी २०२२ में आयोजित हो रहे शीतकालीन ओलंपिक के कूटनीतिक बहिष्कार में शामिल देशों की संख्या और बढ़ने वाली है। इस आयोजन के माध्यम से चीन सरकार तिब्बत की गंभीर स्थिति पर पर्दा डाल रही है। लेकिन उसे मालूम होना चाहिये कि वह इस मुद्दे पर १९५९ से ही बेनकाब है। तिब्बत में तथाकथित विकास के उसके दुष्प्रचार से कोई भी प्रभावित नहीं होने वाला है। चीन सरकार को चाहिये कि वह यथाशीघ्र तिब्बत सरकार एवं दलाई लामा के प्रतिनिधियों के साथ वार्ता पुनः प्रारंभ करे। वह तिब्बत को वास्ततिक स्वायत्तता प्रदान करे अन्यथा उसे तिब्बत को पूर्ण स्वतंत्रता देनी होगी।