tibet.net / गुवाहाटी। तिब्बती लेखक और कार्यकर्ता तेनज़िन त्सुंडु अपने ‘वॉकिंग द हिमालयज़’ अभियान के तहत हिमालय की लंबी यात्रा पर हैं। तेनजिंग ने १७ अगस्त २०२१ को लद्दाख की राजधानी लेह से अपनी यात्रा शुरू की थी और पिछले ८७ दिनों में उन्होंने पांच में से चार भारतीय हिमालयी राज्य/ केंद्र शासित प्रदेश का दौरा पूरा कर लिया है। वह गुरुवार ११ नवंबर २०२१ को पूर्वोत्तर भारत के द्वार के रूप में प्रसिद्ध असम की राजधानी गुवाहाटी पहुंचे। यहां पर तेनज़िन त्सुंडु का स्वागत असम स्थित एक तिब्बत समर्थक समूह ‘फ्री तिब्बत: ए वॉयस फ्रॉम असम’ के सदस्यों ने प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता और लेखक श्री सौम्यदीप दत्ता के नेतृत्व में गर्मजोशी से किया। श्री दत्ता कोर ग्रुप फॉर तिब्बतन कॉज- इंडिया के क्षेत्रीय संयोजक भी हैं।
बाद में शाम को ‘फ्री तिब्बत: ए वॉयस फ्रॉम असम’ की गुवाहाटी समन्वयक श्रीमती नोवनिता शर्मा एवं अन्य सदस्यों- सुश्री कंकना दास, श्री पंकज कुमार दत्ता, सुश्री बनानी दास और श्री बिकास बोरदोलोई ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया जिसका शीर्षक था ‘गुवाहाटी के गौहाटी प्रेस क्लब में “तेनज़िन त्सुंडु से मिलिए’ शीर्षक से एक प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया जहां तिब्बती कार्यकर्ता त्सुंडु ने अपने ‘वॉकिंग द हिमालयाज’ अभियान और इसके उद्देश्य, अपनी अब तक की यात्रा और अपनी आगे की यात्रा के बारे में मीडिया मित्रों की एक बड़ी सभा को संबोधित किया। उन्होंने सक्रिय रूप से बातचीत की और मीडिया कर्मियों के सवालों का जवाब दिया। प्रेस मीट में मीडिया बिरादरी और असम सिविल सोसाइटी के कुछ प्रमुख सदस्यों ने अच्छी तरह से भाग लिया और प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों द्वारा इसकी कवरेज अच्छी तरह से की गई।
सदस्यों को ‘एस्केप ऑफ दलाई लामा फ्रॉम तिब्बत’ नामक एक फिल्म भी दिखाई गई। यह फिल्म तिब्बत पर चीनी कब्जे और हिमालय की सीमाओं पर चीनी सैन्य दबाव का बोध कराती है। तेनज़िन ने बताया कि इस फिल्म का अभी तक अस्सी से अधिक बार प्रदर्शन हो चुका है। इसमें बयां की गई तिब्बत की कहानी और करुणा और अहिंसा में दलाई लामा के अडिग विश्वास के प्रदर्शन ने हमारे दर्शकों के मन के अंतस्थल तक को छुआ है। कई लद्दाखियों ने कहा कि यद्यपि परम पावन दलाई लामा उनके आध्यात्मिक गुरु हैं, लगभग उनके भगवान की तरह। लेकिन साथ ही उन्होंने स्वीकार किया कि वे इस बात को लेकर शर्मिंदा हैं कि वे दलाई लामा की वास्तविक कहानी को अब तक नहीं जानते थे। स्पीति और किन्नौर के लोगों ने कहा कि भारत में दलाई लामा की उपस्थिति ने उन्हें अपनी भाषा, संस्कृति और धर्म को जीवित रखने में मदद की है। उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों ने कहा कि दलाई लामा गौतम बुद्ध और महात्मा गांधी द्वारा सिखाई गई करुणा और अहिंसा की महान विरासत को जारी रखे हुए हैं।
हिमालय की सैर या वाकिंग द हिमालयाज असल में तेनजिंग त्सुंडु की पांच हिमालयी भारतीय राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों की यात्रा है। इसका उद्देश्य तिब्बत पर ७० वर्षों से चीनी कब्जे और भारत की ओर के हिमालयी क्षेत्रों पर इसके प्रभाव के बारे में अधिक जागरुकता पैदा करना रहा है। इस अभियान के तहत त्सुंडु ने केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के अलावा हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में अपना दौरा अभियान चलाया और भारत पर बढ़ते चीनी सुरक्षा खतरों के प्रति लोगों को आगाह किया है। अब तक उन्होंने लद्दाख में लेह, कारगिल, ज़ांस्कर, नुब्रा, न्योमा और थिकसे का दौरा किया है; हिमाचल प्रदेश में लाहौल, स्पीति, किन्नौर; उत्तराखंड में दारचुला, मुनस्यारी, पिथौरागढ़, नैनीताल, अल्मोड़ा और हल्द्वानी; सिक्किम में लाचेन, नाथु-ला, नामची, रवंगला, गंगटोक, रुमटेक और वापस जाते समय कलिम्पोंग, दार्जिलिंग, माने बंजांग, मिरिक, सोनाडा, कुसिआंग, ओडलबारी और सिलीगुड़ी के माध्यम से गांवों और कस्बों की यात्रा की। वह अब पांच हिमालयी राज्यों में से अंतिम अरुणाचल प्रदेश के रास्ते में हैं। वह तवांग, जंग, लुमला, जिममेथांग, दरांग, बोमाडिला की यात्रा करेंगे और राजधानी ईटानगर जाते समय जीरो, मेनचुखा, टुटिंग, तेजू और मियाओ होते हुए यात्रा करेंगे।