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०४ सितंबर २०२१
धर्मशाला। गत २७ मई को सिक्योंग पेनपा त्सेरिंग द्वारा केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के कार्यकारी प्रमुख (सिक्योंग) की जिम्मेदारी संभालने के बाद ३ सितंबरको उनके कार्यकाल के १०० दिन पूरे हो गए।
कार्यालय में अपने १०० दिन पूरे होने के उपलक्ष्य में सिक्योंग पेनपा त्सेरिंग ने तिब्बत टीवी की होस्ट तेनज़िन चेमे को विशेष साक्षात्कार दिया। ३० मिनटलंबे साक्षात्कार में सिक्योंग ने पिछले १०० दिनों में अपने प्रशासन द्वारा किए गए मुख्य कार्यों, निर्वासित तिब्बतियों के समग्र कल्याण के लिए अपनी प्रशासनिक नीति और अन्य बातों के अलावा चीन-तिब्बत संघर्ष को हल करने के लिए अपनी राजनीतिक रणनीतियों के बारे में बातें कीं।
तेनज़िन चेमे: आपने सिक्योंग के रूप में कार्यालय में १०० दिन पूरे कर लिए हैं। क्या मैं सबसे पहले यह सवाल पूछ सकती हूं कि जब आपने पहली बार कार्यालय की जिम्मेदारी संभाली, तब से अब तक का आपका अनुभव कैसा रहा है?
सिक्योंग: जहां तक पिछले १०० दिनों से प्रशासन का नेतृत्व करने वाली मेरी आकांक्षाओं और दूरदर्शिता का संबंध है, मैं सकारात्मक रूप से पुष्टि कर सकता हूं कि वर्तमान कशाग मेरे अभियान घोषणापत्र में उल्लिखित वादों के अनुसार बिना किसी लापरवाही के सुचारू रूप से काम कर रहा है।
तेनज़िन चेमे: आपने कई मौकों पर कहा है कि आपका प्राथमिक प्रयास लंबे समय से चली आ रही तिब्बत समस्या को हल करने की दिशा में होगा। इसे हासिल करने के लिए आपने किस तरह की रणनीति और नीतियों की योजना बनाई है?
सिक्योंग: उनमें से प्रत्येक को विस्तार से सूचीबद्ध करना मुश्किल है। लेकिन मैंने कई मौकों पर कई बार कहा है कि मैं और वर्तमान कशाग चीन-तिब्बत संघर्ष को हल करने के लिए अहिंसा और मध्यम मार्ग दृष्टिकोण पर आधारित नीतियों के लिए अपनी सारी ऊर्जा लगाएंगे और प्रयास करेंगे। परम पावन दलाई लामा द्वारा समर्थित मध्यम मार्ग दृष्टिकोण को निर्वासित तिब्बती संसद का पूरा समर्थन प्राप्त है और तिब्बतियों को इसके बारे में अच्छी तरह से मालूम है।
चीन-तिब्बत वार्ता को फिर से शुरू करने के लिए मैंने जो पहला कदम उठाया, वह चीन-तिब्बत वार्ता पर मौजूदा टास्क फोर्स को भंग करना और इसे एक समिति के तौर पर पुनर्गठित करना रहा है। पिछली समिति के सभी सदस्यों ने सराहनीय कार्य किया है और उनमें से प्रत्येक की इसके लिए मैं प्रशंसा करता हूं। लेकिन मेरा मानना है कि मैंने जो बदलाव किए हैं वे जरूरी थे। जैसे, नई समिति में चार सदस्य होंगे जो सीटीए के प्रत्येक विशिष्ट विभाग से एक सदस्य होंगे, जो इसके कार्य से संबंधित होंगे। सुरक्षा विभाग को इसके प्राथमिक कार्यों के अलावा तिब्बत के अंदर की प्रासंगिक जानकारी प्राप्त करने का कार्य सौंपा गया है। इसी तरह, सूचना और अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग दुनिया भर से तिब्बत संबंधी समाचारों को इकट्ठा करेगा और सीटीए के तिब्बत नीति संस्थान (टीपीआई) को सुरक्षा विभाग और डीआईआईआर द्वारा एकत्र की गई जानकारी पर विश्लेषणात्मक शोध करने के लिए कहा गया है। इसी तरह, एक राजनीतिक सचिव नियुक्त किया गया है जो बाकी सदस्यों के साथ समिति का नेतृत्व करेगा।
सदस्य सौंपे गए संबंधित कार्यों पर अपनी विशेषज्ञता का उपयोग करेंगे और इस बारे में राय देंगे कि एकत्रित जानकारी का उचित उपयोग कैसे करें। जब तक चीन-तिब्बत संघर्ष का समाधान नहीं हो जाता, तब तक टास्क फोर्स तिब्बत के अंदर की वास्तविक स्थिति को उजागर करने और तिब्बत के बारे में चीन के मनगढ़ंत और विकृत आख्यान को वैश्विक समुदाय में उजागर करने के लिए प्रतिबद्ध होगी।
इसी तरह, बड़ी संख्या में तिब्बती इन दिनों पश्चिमी समुदायों में घुलमिल गए हैं। उन्होंने विभिन्न संस्कृतियों के बारे में अच्छी जानकारी प्राप्त की है, विभिन्न भाषाओं को जानते हैं और अपने मेजबान राष्ट्रों की प्रणाली के आदी हो गए हैं। ये ऐसी क्षमताएं हैं जिनका प्रभावी और तर्कसंगत रूप से उपयोग किया जाना चाहिए।
एक राष्ट्र के विकास के लिए युवा नेतृत्व के महत्व को स्वीकार करते हुए वर्तमान प्रशासन कई कार्यक्रमों और पहलों को तैयार करने के लिए प्रतिबद्ध है। ये कार्यक्रम और पहलें तिब्बत मुक्ति साधना में अधिकतम युवाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करेंगी।
अगले साल से विभिन्न देशों में स्थापित ‘तिब्बत कार्यालय’ मेजबान देश की सरकार, संसद, थिंक टैंक, मीडिया हाउस और तिब्बत समर्थक समूहों संपर्कों को बढ़ाएंगे। जहां तक तिब्बती समुदायों और तिब्बती संघों के साथ समन्वय स्थापित करने का संबंध है, मैं एक लोकपाल नियुक्त करने की सोच रहा हूं। उदाहरण के लिए, तिब्बती युवाओं के नेतृत्व में एक प्रभावी ‘अंतरराष्ट्रीय समर्थन अभियान’ शुरू करने के लिए हमें धन की आवश्यकता है। इसके लिए मैं तिब्बती संघों, तिब्बत समर्थक समूहों, संसदीय तिब्बत समर्थक समूहों और तिब्बत के कार्यालयों से ठोस समर्थन मांगने के बारे में सोच रहा हूं। मैं इस बारे में अगले एक या दो महीने में घोषणा कर दूंगा।
तेनज़िन चेमे: अपनी हाल की घोषणा में आपने चीन-तिब्बत वार्ता पर टास्क फोर्स को भंग कर दिया है और इसे एक नई स्थायी रणनीति समिति के साथ बदल दिया है। क्या समिति के नाम में परिवर्तन से समिति की मुख्य गतिविधियों और उद्देश्यों में कोई परिवर्तन होगा? इसके अलावा, चीन-तिब्बत वार्ता २०१०से यानि ११ वर्षों से अधिक समय से रुकी हुई है। वार्ता प्रक्रिया को फिर से शुरू करने में चीनी पक्ष से हमें क्या उम्मीद है?यदि वार्ता फिर से शुरू होती है तो चीनियों के साथ बातचीत करने के लिए तिब्बती दूत के रूप में कौन जाएंगे?
सिक्योंग: हमें सर्वश्रेष्ठ की उम्मीद करते रहना चाहिए। उम्मीद बनाए रखे बिना हमारा संघर्ष भटक जाएगा। इसलिए मैं सर्वश्रेष्ठ की उम्मीद कर रहा हूं और मैं अभी भी परिणाम को लेकर काफी आशान्वित हूं। सबसे पहले, चीनी सरकार को तिब्बत मुद्दे को उग्यूर, मंगोल और हांगकांग के संघर्षों जैसे अन्य मुद्दों के साथ देखना चाहिए। अगर उनमें राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो वे इसे आसानी से सुलझा सकते हैं।
हमें वास्तव में बातचीत के मुद्दे पर चीनी पक्ष से सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं। हालांकि, मैं सतर्क हूं क्योंकि हमें यह सत्यापित करने की आवश्यकता है कि क्या ये संकेत वास्तविक और भरोसेमंद हैं। यह स्पष्ट है कि चीनी सरकार के साथ बातचीत फिर से शुरू किए बिना हम चीन-तिब्बत संघर्ष को बिल्कुल भी हल नहीं कर सकते। साथ ही जब तक चीन-तिब्बत संघर्ष का समाधान नहीं हो जाता, हम तिब्बत के भीतर तिब्बती लोगों के प्रतिनिधियों के रूप में तिब्बत के अंदर की स्थिति को उजागर करने और उसकी निगरानी करने के अपने प्रयास जारी रखेंगे। निश्चिंत रहें हम चीन सरकार पर दबाव बनाने में पूरी ताकत लगा देंगे और हम इसके लिए तैयार हैं।
दूत की नियुक्ति के संबंध में हमें यह महसूस करना चाहिए कि परम पावन दलाई लामा की दृष्टि और आकांक्षा को पूरा करने के लिए चीन-तिब्बती वार्ता के दूत को सबसे पहले काम करना चाहिए। वार्ता प्रक्रिया को फिर से शुरू करने के संबंध में चीनी सरकार की प्रतिक्रियाओं के आधार पर यह तय किया जाएगा कि दूत की नियुक्ति कब और कैसे की जाए।
तेनज़िन चेमे: पिछले कुछ वर्षों में चीनी सरकार की आक्रामक कूटनीति और कोविड-१९ महामारी के कारण कई देशों में चीन के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव आया है। उदाहरण के लिए हमारे मेजबान देश भारत में प्रधानमंत्री मोदी ने परम पावन दलाई लामा को उनके जन्मदिन पर सार्वजनिक रूप से बधाई दी है। तिब्बत मुद्दे पर सार्वजनिक और मीडिया चर्चाओं में भी नाटकीय बदलाव हुआ है। तिब्बती मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए हम इस अवसर का सर्वोत्तम उपयोग कैसे कर सकते हैं?
सिक्योंग: तिब्बत के हित के सबसे मजबूत समर्थक भारत और अमेरिकी सरकार हैं। इस बारे में विस्तार में न जाते हुए मैं सुरक्षित रूप से कह सकता हूं कि भारत और अमेरिकी सरकार के साथ हमारे संबंध मजबूत और फलदायक बने हुए हैं। यदि अमेरिकी सरकार जल्द ही तिब्बती मुद्दों के लिए विशेष समन्वयक नियुक्त कर सकती है, तो मेरे पास बहुत सी योजनाएं हैं जिन पर मैं संबंधित अधिकारी के साथ चर्चा और पहल करना चाहता हूं।
भारत और अमेरिका ही नहीं, यूरोप में भी चीन के प्रति नजरिया तेजी से बदल रहा है। इसलिए यह जरूरी है कि हम अपना ध्यान यूरोपीय क्षेत्रों पर भी केंद्रित करें। इस कारण से मैं अक्तूबर में यूरोप जाने की योजना बना रहा हूं। इसी तरह यदि अमेरिका तिब्बती मुद्दों के लिए विशेष समन्वयक नियुक्त करने में सक्षम होता है तो मैं भी अमेरिका का दौरा करूंगा।
यदि हम भू-राजनीतिक स्थिति में बदलाव के कारण हमें मिले इस अवसर को हासिल करने में सक्षम नहीं होते हैं तो यह तिब्बती आंदोलन के लिए ऐतिहासिक क्षति होगी। जैसा कि उदाहरण के लिए आपने पहले कहा था कि भारत में तिब्बत की स्थिति पर अभूतपूर्व रुचि विकसित हुई है और इस मुद्दे पर ध्यान दिया जा रहा है। यह मेरे प्रयासों का परिणाम नहीं है। यह उभरी भू-राजनीतिक प्रवृत्ति का परिणाम है, जिसके कारण मुझे विभिन्न भारतीय मीडिया घरानों से बात करने का अवसर मिला। विश्व में चीन के संबंध में भू-राजनीतिक स्थिति हम तिब्बतियों के लिए तिब्बत के लिए समर्थन प्राप्त करने का एक अनूठा और सुविधाजनक अवसर प्रदान करती है। हमें यह मौका नहीं गंवाना चाहिए।
आम तौर पर बहुत कुछ बदलाव हो रहा है। तिब्बती अब दुनिया भर के कई देशों में रह रहे हैं। इसलिए, इस तथ्य का उपयोग करना महत्वपूर्ण है। इसलिए, हम जल्द ही कुछ महीनों में एक घोषणा करने जा रहे हैं ताकि दुनिया भर के तिब्बतियों से युवा पीढ़ी के नेतृत्व में तिब्बत मुक्ति साधना में भाग लेने का आग्रह किया जा सके। यदि हम ऐसा करने में सक्षम होते हैं तो हमारी हिमायत और हमारे लॉबिंग अभियान पिछली उपलब्धियों से बहुत आगे बढ़ जाएंगे।
इसी तरह, विदेशों में स्थित तिब्बत कार्यालय (ओओटी) और उसकी गतिविधियों में भी थोड़ा संशोधन करने की आवश्यकता है। शायद इस साल नहीं, लेकिन अगले साल से तिब्बत कार्यालयों की मुख्य भूमिका मेजबान देश की सरकार, संसद, गैर सरकारी संगठनों, थिंक टैंक, मीडिया घरानों और देश में स्थित तिब्बत समर्थक समूहों तक पहुंचने की होगी। यह ओओटी की मुख्य जिम्मेदारी होंगी। तिब्बती समुदाय और तिब्बती संघों तक पहुंचने और उनके साथ समन्वय करने के लिए हम कुछ और सोचेंगे।
तिब्बती संसद का सत्र आयोजित न हो पाना भी हमारे लिए एक छोटी सी बाधा है। इसलिए, हमें उम्मीद है कि इस मुद्दे को तेजी से सुलझाया जाएगा। कशाग गतिरोध को दूर करने के लिए हरसंभव तरीके से सहायता और सहयोग देगा। हालांकि, कशाग सभी पक्षों की मंजूरी के बिना हस्तक्षेप नहीं करेगा, क्योंकि यह संवैधानिक अधिकार के विरूद्ध बात हो जाएगी। फिर भी, यह हमारी आशा है कि संसद पहले एक सत्र आयोजित करे और गतिरोध को हल करे और फिर हम अपने आंतरिक मुद्दों के साथ-साथ अपने सामान्य मुद्दों पर भी चर्चा कर सकें। यदि इसका समाधान हो जाता है तो हम केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सामान्य कामकाज शुरू कर सकते हैं। मैंने सिक्योंग की भूमिका ग्रहण करने से पहले ही कहा था कि मैं तिब्बती सर्वोच्च न्याय आयोग के साथ-साथ तिब्बती संसद से संपर्क करूंगा ताकि उन्हें अपनी नीतियों और उद्देश्यों के बारे में सूचित किया जा सके। साथ ही यह भी सुनिश्चित हो सके कि हम एक-दूसरे के प्रयासों और गतिविधियों को कैसे बढ़ा सकते हैं। तिब्बती संसद के मामले में मैंने पहले ही एक योजना तैयार कर ली है कि कैसे कशाग तिब्बती संसद को अपना समर्थन देगा और हम अपने प्रयासों में सामंजस्य कैसे स्थापित कर सकते हैं। मैं इसे इस साल मई के अंत या जून की शुरुआत में तिब्बती संसद में प्रस्तुत करने की योजना बना रहा था। हालांकि, वर्तमान गतिरोध और संसद द्वारा अपना सत्र आहूत करने की असमर्थता के कारण मैं ऐसा नहीं कर सका। मैं पहले ही तीनों स्वायत्त निकायों के प्रमुखों से मिल चुका हूं। कुछ को छोड़कर, मैंने सभी तिब्बती गैर सरकारी संगठनों और तिब्बती मीडिया के प्रतिनिधियों से भी मुलाकात की है। ये सब कशाग के उद्देश्यों को प्रचारित करने और हम भविष्य में एक साथ कैसे आगे बढ़ सकते हैं, को लेकर किया गया है। हर कोई हमारे प्रयासों और उद्देश्यों से प्रसन्न भी दिख रहा है। स्वतंत्रता और मध्यम मार्ग दृष्टिकोण जैसे मुद्दों पर भी मैंने तिब्बती युवा कांग्रेस के प्रमुखों से कहा कि उन्हें सबसे पहले परम पावन दलाई लामा के दृष्टिकोण, सीटीए की नीति और एमडब्ल्यूए के बारे में सोचना चाहिए। ऐसा करना परस्पर लाभकारी होगा। उसके बाद, वे अपने स्वयं के संगठन के उद्देश्य के बारे में बात कर सकते हैं ताकि पता चले कि संगठन उस विशेष उद्देश्य का पालन क्यों करता है। यदि वे ऐसा करते हैं तो यह हमारे समर्थकों को मिश्रित संदेश (विरोधाभासी संदेश) नहीं देगा, बल्कि उल्टे मुद्दे को स्पष्ट करने में मदद करेगा। हमें आपस में बहस करने की भी जरूरत नहीं है। यही मैंने उन्हें बताया और वे भी मान रहे हैं। अगर हम सब ऐसा सोच सकते हैं तो हमें रंगजेन और उमा (स्वतंत्रता और एमडब्ल्यूए) के बारे में अब और झगड़ा करने की जरूरत नहीं है। हालांकि, बात यह है कि, हमारे छोटे तिब्बती समुदाय में, हम क्षेत्रवाद और संप्रदायवाद के शिकार हैं जो समय के साथ बड़ा और छोटा हो जाता है। फिलहाल यह और बड़ा होता दिख रहा है।
मैं मानता हूं कि लोकतंत्र में असहमति होना लाजमी है। हालांकि, साथ ही हमें यह महसूस करना चाहिए कि चीनी सरकार हम सबकी दुश्मन है, न कि हम आपस में एक-दूसरे के दुश्मन हैं। निर्वासित समुदाय में आपस में बहस करने के बजाय, हमें तिब्बत के भीतर हो रहे विकास का अध्ययन करना चाहिए जैसे कि तिब्बती क्षेत्रों में चीनियों का बड़े पैमाने पर घुसपैठ और फिर तिब्बती संस्कृति, भाषा, पर्यावरण आदि के संरक्षण के माध्यम से तिब्बती अस्मिता को संरक्षित करने का प्रयास आदि। यदि हम इन मामलों के बारे में सोचते हैं तो हम महसूस करेंगे कि हम एक महत्वपूर्ण समय से गुज़र रहे हैं जहां हमें तत्काल तिब्बत में अपनी नीतियों के बारे में चीन पर दबाव बनाने की आवश्यकता है। चीन पर दबाव बनाने का समय वास्तव में ज्वलंत स्तर पर पहुंच गया है और हमें अपने प्रयासों को फिर से मजबूत करने की जरूरत है। अपनी पहले से ही सीमित क्षमताओं को आंतरिक कलह में नष्ट करके हम न केवल तिब्बती आंदोलन में बाधा डाल रहे हैं बल्कि परम पावन दलाई लामा द्वारा हमें सौंपी गई जिम्मेदारी और विश्वास के साथ भी घात कर रहे हैं। यह हम पर एक काला धब्बा होगा जिसे हमें ऐतिहासिक रूप से ढोते रहना होगा। अगर ऐसा कुछ होता है तो वाकई शर्मनाक है। इस कारण से मैं प्रशासनिक कार्यों को करने के लिए अपनी पूरी कोशिश कर रहा हूं।
वर्तमान राजनीतिक गतिरोध हमेशा मेरे दिमाग में रहता है। मैंने इसे अलग नहीं किया है और न ही मैं इसके प्रति उदासीन हूं। मैं मामले पर पूरा ध्यान दे रहा हूं। हालांकि, हमारी प्रणाली परम पावन दलाई लामा द्वारा हमें उपहार में दी गई एक लोकतांत्रिक राजनीति है। ५० से अधिक वर्षों से परम पावन ने तिब्बती राजनीति को एक ऐसी लोकतांत्रिक व्यवस्था के रूप में विकसित किया है, जिसे हम अभी देख सकते हैं और उसका आनंद ले सकते हैं। हालांकि, यदि हम नियमों और विनियमों को अलग रखते हैं और केवल कच्ची भावनाओं के आधार पर काम करते हैं, तो हमारा लोकतंत्र सच्चा लोकतंत्र नहीं होगा। नाम से ही लोकतंत्र होगा। हालांकि, मैं इस बात को लेकर दृढ़विश्वासी हूं कि गतिरोध के बारे में सभी पक्ष सोचेंगे और महसूस करेंगे कि प्रशासन के सुचारू कामकाज के लिए हम दूसरों पर निर्भर हैं।
तेनज़िन चेमे: निर्वासित तिब्बती स्कूलों और मठों में तिब्बती छात्रों और तिब्बती भिक्षुओं की घटती संख्या का सामना करना पड़ रहा है। हमें निर्वासन में तिब्बती बस्तियों के निर्वाह के बारे में भी सोचना होगा। इन मुद्दों के लिए आपकी क्या योजनाएं हैं?
सिक्योंग: हमने शिक्षा विभाग के साथ कई बैठकें की हैं। अब तक २५ तिब्बती स्कूलों को शिक्षा विभाग के अंतर्गत किया जा चुका है। अब उत्तर भारत के छह स्कूल बचे हैं, जिनको शिक्षा विभाग के अधीन करना बाकी है। अभी कुछ हफ्ते पहले हमने शिक्षा विभाग के माध्यम से सभी सेटलमेंट अधिकारियों से संपर्क किया और उनसे तीन साल तक के सभी बच्चों की सूची बनाने को कहा। हमारे पास पहले से ही किंडरगार्टन और के १२ स्कूलों में नामांकित बच्चों के बारे में आंकड़े है। हमें जो आंकड़ा मिला है, उसके आधार पर यह जानना वाकई चौंकाने वाला है कि २०१२ और २०२१ के बीच इन स्कूलों में तिब्बती छात्रों की संख्या में भारी कमी आई है। २०१२ में तिब्बती स्कूलों में २०,००० से अधिक तिब्बती छात्र थे। जबकि, २०२१ में तिब्बती स्कूलों में केवल ९७०० तिब्बती छात्र हैं। तिब्बती छात्रों की संख्या में ५०% से अधिक की कमी आई है। इस कमी के कई कारण हो सकते हैं। हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक तिब्बत से आने वाले तिब्बतियों के प्रवाह में विशेष रूप से २००८ के बाद से कमी है। फिर २०१३-१४ से प्रवाह और भी कम होकर १०० लोगों से भी कम हो गया। उदाहरण के लिए पिछले वर्ष तिब्बत से निर्वासन में आने वाले केवल पांच लोग थे। और इस साल सिर्फ सात लोग ही निर्वासन में आए हैं। यह तिब्बती स्कूलों में तिब्बती छात्रों की कमी के सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक है। दूसरे, कई तिब्बती भी दूसरे देशों में प्रवास कर रहे हैं। कुछ तिब्बती भारत के बड़े शहरों में भी प्रवास कर रहे हैं और वहां के स्कूलों में जा रहे हैं। इसलिए, हमें यह सोचना होगा कि स्कूलों का विलय कैसे किया जाए। मैं ०७ सितंबर से अगले कुछ दिनों में उन पांच स्कूलों का दौरा करूंगा जिनको शिक्षा विभाग के अधीन किया जाना शेष है। लद्दाख से धर्मशाला वापस जाते समय मैं डलहौजी में स्कूल और बस्ती देखने के लिए रुका था। डलहौजी के स्कूल में केवल २२ छात्र थे। इन २२ छात्रों में से तीन कारगिल के लद्दाखी थे। शेष १९ स्थानीय भारतीय थे। वहीं २२ छात्रों के लिए स्कूल में प्रिंसिपल समेत १५ स्टाफ और टीचर हैं। यही जमीनी हकीकत है। शिमला में तिब्बती स्कूल में ९०% छात्र तिब्बती समुदाय से जबकि १०% छात्र स्थानीय समुदाय से होना चाहिए। हालांकि, आज यह स्थानीय समुदाय से ९०% और तिब्बती समुदाय से १०% छात्र है। हरबर्टपुर और सीएसटी मसूरी में भी यही स्थिति है। और ऐसी स्थिति कई स्कूलों में है। टीसीवी के मामले में इसमें सिर्फ इसके तहत आने वाले स्कूलों की जानकारी होती है। इसी तरह, संभूता के पास केवल अपने स्वयं के स्कूलों के बारे में जानकारी है। तिब्बती स्कूलों और छात्रों के बारे में किसी के पास पूरा आंकड़ा नहीं है। टीएचएफ मसूरी के साथ भी ऐसा ही है। धोंडुपलिंग और देहरादून के आसपास के अन्य क्षेत्रों में कुछ तिब्बती निजी स्कूल भी हैं जैसे लिंगत्संग बस्ती। हमें पूरी तस्वीर देखनी होगी। इसलिए भविष्य के लिए योजना तैयार करने के लिए हम निकट भविष्य में सभी स्कूल प्रमुखों की एक बैठक करेंगे, चाहे उस स्कूल का विलय होना हो या एक-दूसरे को सहायता प्रदान करना हो। हालांकि, हमारा प्राथमिक उद्देश्य तिब्बती बच्चों की शिक्षा है।
जहां तक तिब्बती बस्तियों का संबंध है, भारत में लगभग ४५ तिब्बती बस्तियां हैं। नेपाल में १२-१३ और भूटान में ६-७ बस्तियां हैं। हमें भविष्य में इन बस्तियों की स्थिरता का आकलन करना होगा। विशेष रूप से उन छोटी बस्तियों को, जिनके जीवित रहने की संभावना कम है, उन्हें बड़ी तिब्बती बस्तियों में मिला दिया जाना चाहिए। ये अल्पकालिक परियोजनाएं नहीं हैं जिन्हें एक या दो साल में पूरा किया जा सकता है। इसमें पांच-दस या अधिक वर्ष लग सकते हैं। हमें इन परियोजनाओं को एक सोची-समझी रणनीति के साथ अंजाम देना होगा अन्यथा हमें भविष्य में बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। मुझे उम्मीद है कि सभी लोग इन मामलों पर मिलकर काम करेंगे।
हम जनसंख्या सर्वेक्षण की भी योजना बना रहे हैं। हम इसे अभी जनसांख्यिकीय मूल्यांकन नहीं कह रहे हैं क्योंकि जनसांख्यिकीय मूल्यांकन के लिए परिवार की स्थिति, आर्थिक स्थिति, शिक्षा की स्थिति, सामाजिक स्थिति आदि जैसी बहुत सारी जानकारियों की आवश्यकता होती है। हम केवल व्यक्ति के बारे में जानकारी जुटाने की योजना बना रहे हैं। डेढ़ पृष्ठ की योजना पहले ही तैयार की जा चुकी है और अन्य योजनाएं तैयार होने के क्रम में हैं। इन परियोजनाओं को पूरा करने में थोड़ी देरी हो चुकी है। इसलिए मैं सोच रहा हूं कि इसे अगले साल तक स्थगित कर देना चाहिए। तब तक अधिकांश तिब्बती अपनी-अपनी बस्तियों में पहुंच जाएंगे। एक बार जब मुझे जनसंख्या सर्वेक्षण से सटीक आंकड़ा मिल जाता है, तो मेरे लिए इस आंकड़े के आधार पर परियोजनाएं बनाना आसान हो जाएगा। ऐसा करने से हमारी परियोजनाएं और नीतियां अधिक प्रभावी और कुशल होंगी। हालांकि, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि सिर्फ इसलिए सर्वेक्षण पर भरोसा कर रहा हूं कि इसमें कोई बाधा या त्रुटि नहीं होगी। मेरा मानना है कि अप्रत्याशित समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं लेकिन त्रुटियां मामूली होंगी।
तेनज़िन चेमे: इस समय तिब्बती समुदाय के सामने एक समस्या यह है कि तिब्बती संसद का सत्र आयोजित नहीं हो पा रहा है। इस कारण से तिब्बती संसद से बजटीय अनुमोदन प्राप्त करने जैसे प्रशासनिक कार्यों में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। यदि यह गतिरोध जारी रहा तो समस्या और विकट हो जाएगी। मामले पर आपकी क्या राय है?
सिक्योंग: जैसा कि मैंने पहले उल्लेख किया है, मैं सर्वश्रेष्ठ की उम्मीद कर रहा हूं। हमें यह महसूस करना चाहिए कि हम सब पहले तिब्बती हैं। मूल रूप से लोकतंत्र में हमें नियमों और विनियमों का पालन करना होता है। हम नियमों को दरकिनार कर इसे लोकतंत्र कह कर आगे नहीं बढ़ सकते। इसके बारे में सभी को सोचना होगा। यदि संसद पहले अपना एक सत्र आयोजित करती है, तो हम इस मामले पर चर्चा कर सकते हैं। यह तो हुई एक बात। दूसरी ओर, प्रशासनिक कार्यों के संदर्भ में मुझे नहीं लगता कि कोई बड़ी बाधा है। यदि संसद अपना सत्र आयोजित करती है और तदनुसार कलोनों (मंत्रियों) की नियुक्ति को मंजूरी देती है, तो कशाग की गतिविधियों और क्षमताओं में निश्चित रूप से वृद्धि होगी। कलोन संबंधित विभागों की देखभाल करेंगे जबकि सिक्योंग अन्य महत्वपूर्ण कार्यों जैसे तिब्बती जनता और केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के बीच संबंधों को मजबूत करने और चीन-तिब्बत संघर्ष को हल करने की दिशा में प्रयास करेंगे। निश्चय ही मुझे इन मामलों पर और अधिक समय देने के लिए और समय मिलेगा। बस इतना ही फर्क है। अन्यथा, कोई महत्वपूर्ण बाधा नहीं होगी। इसलिए मैं जनता को आश्वस्त करना चाहता हूं कि कशाग की ओर से प्रशासनिक कार्यों में कोई लापरवाही नहीं होगी। कलोनों के न होने पर भी सचिवों के नेतृत्व में नौकरशाही का पूरा ढांचा है। प्रशासनिक कार्य कलोन और कर्मचारियों के प्रयासों का संगम है। सिक्योंग की जिम्मेदारी संभालने के बाद से मेरे तीन महीनों में स्टाफ बेहद सहयोगी रहा है। यहां तक कि युवा कर्मचारियों में भी बुनियादी वास्तविक ज्ञान और शिक्षा मजबूत है। सभी विभागों के निरीक्षण में मैंने प्रत्येक कर्मचारी से बात की और उनकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि और संबंधित वर्गों के कार्यों के बारे में जानकारी ली। यह निरीक्षण दौरा १६वें कशाग की मुख्य नीतियों, लक्ष्यों और उद्देश्यों से कर्मचारियों को परिचित कराने के उद्देश्य से किया गया था ताकि हम सभी एक-दूसरे के साथ तालमेल बिठाकर एक ही दिशा में आगे बढ़ सकें। यदि कर्मचारी और नेतृत्व एक-दूसरे के साथ तालमेल में नहीं चल रहे हैं तो हमारे सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करना वास्तव में कठिन होगा। इसलिए मैंने अब तक प्रशासन के पुनर्गठन में काफी समय बिताया। उदाहरण के लिए तीन विभागों में कोई अतिरिक्त सचिव नहीं थे। ये संकेत करते हैं कि नौकरशाही ढांचे के भीतर भी अंतराल हैं। नौकरशाही संरचना को पिरामिड की तरह माना जाता है, लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं है। इसलिए, कार्य मूल्यांकन समिति की सिफारिशों के आधार पर नए कर्मचारी नियम बनाए जाएंगे और फेरबदल किए जाएंगे। यह प्रशासन के पुनर्गठन के लिए एक बार का फेरबदल होगा। उसके बाद सब कुछ व्यवस्थित हो जाएगा और हमेशा की तरह आगे बढ़ जाएगा। प्रशासन को अच्छा प्रदर्शन करने के लिए कर्मचारियों और कशाग- दोनों के प्रयासों में तालमेल होना चाहिए। ऐसे में कोई भी बड़ी समस्या नहीं होगी। हालांकि असली दिक्कतें अगले साल ३१मार्च के बाद सामने आएंगी। यदि तब तक संसदीय गतिरोध का समाधान नहीं होता है तो संभावना है कि सीटीए को बंद करना होगा। अगर ऐसा होता है तो इसका असर न सिर्फ प्रशासन बल्कि स्कूलों और कई अन्य संस्थानों पर भी पड़ेगा। इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा? हमें इसके बारे में सोचना होगा। अन्यथा जैसा कि मैंने पहले उल्लेख किया है, प्रशासनिक कार्यों के मामले में अगले वर्ष ३१ मार्च तक कोई गंभीर समस्या नहीं होगी। बेशक, इसका कुछ प्रभाव पड़ेगा लेकिन केवल मामूली रूप से। हालांकि, एक बड़े दृष्टिकोण से प्रशासनिक कार्य सुचारू रूप से और कुशलता से चल रहा है। जनता को इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है।
तेनज़िन चेमे: आपने (सिक्योंग की जिम्मेदारी संभालने के बाद से) लद्दाख के लेह और झांगथांग क्षेत्रों से तिब्बती बस्तियों की अपनी आधिकारिक यात्रा शुरू की। लद्दाख की पहली आधिकारिक यात्रा कैसी रही?
सिक्योंग: यह यात्रा बहुत ही फलदायी रही। मैंने अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान एक वादा किया था कि अगर मैं सिक्योंग चुनाव जीतता हूं तो मैं लद्दाख से तिब्बती बस्तियों की अपनी आधिकारिक यात्रा शुरू करूंगा। उसके बहुत सारे कारण हैं। सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि लद्दाख सुदूर क्षेत्र में स्थित सबसे बड़ी बस्तियों में से एक है। अगर आपको झांगथांग इलाकों में जाना है तो आपको कम से कम २०० किलोमीटर का सफर तय करना होगा। अपनी यात्रा के दौरान मैंने पूरे खानाबदोश क्षेत्र का दौरा किया। लेह से न्योमा, न्योमा से कागशुंग, कागशुंग से घोयुल, घोयुल से हनले, हनले से मख्यू, मख्यू से सुमदोह और सुमदोह से राचुंगकारू तक चुमुर और साम्य की खानाबदोश बस्तियों तक की यात्रा की है। इसी तरह, मैंने चोगलमसर और लेह में सभी तिब्बती शिविरों और समुदायों का दौरा किया। मैंने लोगों के साथ अनौपचारिक बैठकें कीं, गरीबों से मुलाकात की और उनकी शिकायतें सुनीं। मैंने स्थानीय लद्दाखी समुदाय के नेताओं और गणमान्य व्यक्तियों से भी मुलाकात की। मैंने बैठकों में भाग लिया और स्थानीय केबल टीवी के माध्यम से तिब्बती समुदाय को संबोधित किया। मैं जहां भी गया, लोगों से कहा कि मैं तब तक नहीं जाऊंगा जब तक कि उनकी हर चिंता, सवाल और शिकायत नहीं सुन लेता। लोगों ने भी बिना किसी आशंका के अपनी चिंताएं व्यक्त कीं। चूंकि मैं सब कुछ हल नहीं कर सकता, इसलिए मैं अपने साथ संबंधित कार्यालयों जैसे गृह विभाग से मिगमार भूटी, नारसांग और एसएआरडी से जुंगनी जैसे अधिकारियों को भी लाया ताकि संबंधित कर्मचारियों को मुद्दों की स्पष्ट और समग्र समझ हो सके। मेरे साथ तिब्बती सहकारी समिति, स्थानीय तिब्बती सभा, क्षेत्रीय स्वतंत्रता आंदोलन, सीआरओ आदि के अधिकारी भी थे। वे ही इस काम को आगे बढ़ाएंगे। लोगों की चिंताओं और सुझावों के आधार पर मैं मुद्दों को हल करने के लिए एक ठोस योजना तैयार करूंगा, चाहे वह सिक्योंग के कार्यालय, गृह विभाग या मुख्य प्रतिनिधि कार्यालय से संबंधित मुद्दा हो। लद्दाख से रवाना होने से पहले मैंने यात्रा के बारे में करीब ४५ मिनट तक जनता को संबोधित भी किया। मेरे अपने अनुभव से, हमें मुद्दों को हल करने के लिए १०-१५ साल की लंबी अवधि की योजना तैयार करनी होगी क्योंकि लद्दाख में ज्यादातर चिंताएं जमीन से संबंधित थीं। कुछ मुद्दे खानाबदोश जीवन शैली की स्थिरता से संबंधित हैं। हालांकि, लद्दाख में सौर ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों की खोज के साथ-साथ अवसरों के रास्ते भी हैं।
आधिकारिक यात्रा के दौरान लद्दाख के लोगों ने मेरा बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया। मुझे लगता है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनका मानना था कि परम पावन दलाई लामा के अधीन काम करने वाले प्रमुख व्यक्ति आए हैं। मैं अपने दिल में जानता हूं कि परम पावन दलाई लामा की कृपा और आशीर्वाद के कारण ही लद्दाख के लोगों ने मुझे इतना सम्मान और प्यार दिया है। ठिकसे रिनपोछे ने भी मुझे बहुत प्यार और आशीर्वाद दिया। जब मैं वहां गया तो मुझे लगा कि हम कुछ ही लोगों से मिलने वाले हैं, लेकिन उन्होंने वहां एक बड़ा और भव्य समारोह आयोजित कर रखा था। मैं हिमालयन तिब्बत समर्थक समूह के सदस्यों और लद्दाख से भारतीय संसद के सम्मानित सदस्य जम्यांग त्सेरिंग नामग्याल से भी मिला। उन्होंने एक तिब्बती स्कूल से स्नातक किया है और वास्तव में अच्छा काम कर रहे हैं। मैं डीसी से मिला और सोवा रिग्पा इंस्टीट्यूट गया। लद्दाख भी पिछले दो साल से केंद्र शासित प्रदेश हो गया है। इसलिए, मैं लद्दाख के मुख्य पार्षद और अन्य पार्षदों से मिला। उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि वे लद्दाख में लद्दाखियों और तिब्बतियों को एक ही मां के दो भाई मानते हैं और दोनों समुदायों को समान समर्थन और सुविधाएं प्रदान करते हैं। चूंकि तिब्बती भारतीय नागरिक नहीं हैं, इसलिए उन्हें सभी अवसर प्रदान नहीं किए जा सकते हैं। इसके अलावा, वे तिब्बतियों की मदद करने के लिए अपनी क्षमता से सब कुछ कर रहे हैं। उन्होंने लद्दाख में परम पावन दलाई लामा के समर्पित निवास शिव त्सेल फोडंग में एक लिफ्ट के निर्माण का भी वादा किया है। इस तथ्य की सराहना करते हुए कि तिब्बती और लद्दाखी समान संस्कृति, परंपराओं और सबसे महत्वपूर्ण परम पावन दलाई लामा के एकसमान भक्त हैं, वे यात्रा के दौरान मुझ पर बहुत विनीत और कृपालु रहे हैं। केवल एक व्यक्ति जिनसे मैं नहीं मिल सका, वह उपराज्यपाल थे। असल में २८ अगस्त को केंद्र सरकार का एक अधिकारी उनसे मिलने आया था। इसके अलावा, मैं लद्दाख में लगभग पूरे नेतृत्व से मिलने में सक्षम रहा। सौभाग्य से, हमारे प्रतिनिधिमंडल में से कोई भी बीमार नहीं पड़ा या हमें किसी अप्रिय घटना का सामना नहीं करना पड़ा। लोगों ने हमें सलाह दी कि हमें अपने शरीर को ऊंचाई के अनुकूल होने देने के लिए आगमन पर कुछ आराम करने की आवश्यकता है। हालांकि, हमने बिना आराम किए अपनी यात्रा शुरू कर दी। हमारा दिन लगभग हर दिन सुबह ८ बजे शुरू होता था और लगभग १० बजे रात को समाप्त होता था। संक्षेप में, मुझे खुशी है कि मैं जनता से मिल पाया और जनता मुझसे मिलकर खुश लग रही थी। मेरा व्यक्तित्व ऐसा है कि मैं लोगों को धोखा नहीं देता या झूठे वादे नहीं करता। मैंने उन्हें बताया कि जो कुछ मुझे लगा वह सच और सटीक था। जनता की मदद करने और उनके कल्याण के लिए काम करने के लिए मुझे सबसे पहले उनकी स्थिति, उनकी जरूरतों और उनकी आकांक्षाओं को समझना होगा। इन्हें समझे बिना हम चाहकर भी कुछ कारगर नहीं कर सकते थे। इसलिए, यह यात्रा वास्तव में सहायक और ज्ञानवर्धक रही। मैं अन्य तिब्बती बस्तियों के साथ भी ऐसा करने की योजना बना रहा हूं ताकि हमारी परियोजनाएं उचित रणनीति के आधार पर सुविचारित और अच्छी तरह से सुनियोजित हों। दानदाताओं से हमें जो पैसे मिल रहे हैं, वह हमारे देशों के लोगों की मेहनत की कमाई से वसूला गया कर का पैसा है। हम इसे यूं ही बर्बाद नहीं कर सकते, हमें इसका सही इस्तेमाल करना होगा। इसे यूं ही बर्बाद करना बौद्ध दृष्टिकोण से भी एक पाप है। जब मैंने अपनी योजनाओं और उद्देश्यों के बारे में बताया, तो जनता ने वास्तव में इसकी सराहना की। यह मेरा गहरा विश्वास है कि सार्वजनिक रूप से निर्वाचित सिक्योंग के रूप में जनता के प्रति मेरी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। उस रवैये के साथ मैं लोगों से मिला, उनसे बातें कीं और उनके हर एक सवाल, शिकायत और चिंताओं को सुना।