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२२ सितंबर, २०२१
थेकछेन छोलिंग, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत। मोनमाउथ विश्वविद्यालय, न्यू जर्सी के अध्यक्ष डॉ. पैट्रिक लेही ने २२ सितंबर की प्रातः परम पावन दलाई लामा का स्वागत करने के बाद उनसे आनंद, स्वास्थ्य, कल्याण और पृथ्वी के भविष्य के परस्पर संबंधों के बारे में बातचीत की। उन्होंने बताया कि मोनमाउथ के छात्र और शिक्षक पृथ्वी पर आने वाली पीढ़ियों के लाभ के लिए खुशहाल, स्वस्थ, अधिक करुणामय और सामंजस्यपूर्ण जीवन के लिए प्रेरित हैं। परम पावन ने शांति और आनंद के बारे में बात करने का अवसर देने के लिए पहले धन्यवाद दिया फिर इस बारे में बात की।
उन्होंने कहा, ‘जाहिर है, हम सभी शांति से रहना चाहते हैं, जानवर भी शांति से रहना चाहते हैं। अगर आग लगती है तो कीड़े भी उससे बचने की कोशिश करते हैं। हालांकि, जो चीज़ मनुष्य को अलग बनाती है, वह हमारे पास का अद्भुत मस्तिष्क है। हम यह सोचने में सक्षम हैं कि समस्याओं से कैसे बचा जाए और कैसे दूर किया जाए। हम आगे के बारे में भी सोच सकते हैं।
उन्होंने आगे कहा, ‘फिर मनुष्य संकट भी पैदा करता है। हजारों वर्षों से हमने विभिन्न प्रकार के हथियारों का निर्माण किया है। हम कभी-कभी हथियारों को शांति के उपकरण के रूप में संदर्भित करते हैं, लेकिन वास्तव में हथियार का एकमात्र उद्देश्य चोट पहुंचाना और मारना है। हथियारों के बिना दुनिया ज्यादा शांतिपूर्ण होगी।’
उन्होंने कहा, ‘हम घातक से और घातक हथियारों की जटिल से जटिल प्रणालियों के निर्माण में ऊर्जा लगाते हैं और इसके लिए प्रयास करते रहते हैं। फिर हम शांति की बात करते हैं। लेकिन हम इस तथ्य को नजरंदाज कर देते हैं कि वास्तविक शांति प्राप्त करने में हथियारों का कोई योगदान नहीं है।’
परम पावन ने कहा, ‘हमारी दुनिया आज बहुत अधिक एक-दूसरे पर आश्रित है। अतीत में, हम केवल अपने इलाके के लोगों के बारे में ही चिंतित रहते थे। आजकल, जलवायु संकट और ग्लोबल वार्मिंग जैसी नई चुनौतियां हम सभी को प्रभावित करती हैं, साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था के संचालन में हमें पूरी मानवता को ध्यान में रखना चाहिए होता है।’
उन्होंने आगे कहा कि जहां तक हथियारों के निर्माण और बिक्री का संबंध है, हमें बस इतना कहना चाहिए कि ‘अब बस करो।’ हमारा लक्ष्य एक सैन्यविहीन दुनिया में वास्तविक शांति प्राप्त करने का होना चाहिए। इस ग्रह पर मनुष्य के रूप में, हमें मानवता की एकता पर विचार करना होगा। हम सभी को एक साथ शांति और सद्भाव से रहने की जरूरत है। हथियारों के उत्पादन और बिक्री का इसमें कोई योगदान नहीं है।
उन्होंने कहा कि वास्तविक विश्व शांति मन की शांति पाने में निहित है। क्रोध, ईर्ष्या और हताशा आसानी से हिंसा का स्रोत बन जाते हैं। इसलिए हमें करुणा की भावना को मजबूत करने की आवश्यकता है जो कि हमारा मूल मानव स्वभाव है। जैसा कि मैंने पहले कहा, अतीत में हमने वास्तव में केवल अपने स्थानीय समुदाय पर ध्यान दिया है, जबकि अब हमें पूरी मानवता को ध्यान में रखना है।
परम पावन ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘हमें मन की शांति पाने पर ध्यान देना चाहिए, यह याद रखना चाहिए कि करुणा वास्तविक शांति की नींव है। मनुष्य के रूप में, हमारे पास एक ही तरह का चेहरा और एक ही तरह का दिमाग है। क्योंकि हमारे पास बहुत कुछ समान है, हमें एक शांतिपूर्ण, सुखी दुनिया में साथ-साथ रहने का रास्ता खोजना होगा।’
उन्होंने कहा, ‘मैं मानता हूं कि जब मैं तिब्बत में रहता था, तिब्बती लोग मेरी सबसे बड़ी चिंता थे। हालांकि, निर्वासन में आने के बाद से मुझे व्यापक दुनिया का पता चला है। मनुष्य हर जगह भाई-बहन के समान है। जब मैं अन्य लोगों से मिलता हूं, जहां भी हूं, मैं मुस्कुराता हूं और अधिकतर लोग भी वापस मुस्कुराते हैं। यही मानव भाई-बहन करते हैं। अन्य लोग भी मेरे जैसे ही इंसान हैं। राष्ट्रीयता, नस्ल और धार्मिक आस्था के अंतर तुलनात्मक रूप से गौण महत्व के हैं।’
‘आज सुबह मेरे तिब्बती और एलोपैथिक चिकित्सकों ने मेरी एक संक्षिप्त चिकित्सा जांच की। उन्होंने मुझसे कहा कि मेरा स्वास्थ्य अच्छा है। मेरा मानना है कि इसका एक बड़ा कारण है कि मेरा मन शांत है। लगातार क्रोध और भय हमारे स्वास्थ्य को बाधित करते हैं, जबकि मन की शांति सेहत को सामान्य करने की दिशा को बढ़ावा देने में बहुत मदद करती है।’
‘कभी-कभी शांति की तलाश में लोग ट्रैंक्विलाइज़र लेते हैं। मैंने कभी नहीं लिया। मैं मन की शांति पैदा करने के लिए काम करता हूं और देखता हूं कि मुझे नौ घंटे की नींद आती है। मेरे अनुभव में, करुणा के लिए की जानेवाली कोशिशें सुनिश्चित करती है कि मैं अच्छी तरह सो जाऊं, अच्छी भूख लगे और अच्छा पाचन हो।’
‘भाइयों और बहनों, ये सब कुछ ऐसी बातें हैं, जिसे मैं आज आपके साथ साझा करना चाहता हूं।’
परम पावन से मोनमाउथ विश्वविद्यालय के छात्रों और कर्मचारियों की ओर से अनेक प्रश्न पूछे गए। उन्होंने स्वीकार किया कि हम वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन का सामना कर रहे हैं। जैसे-जैसे सूरज की गर्मी के सामने हमारा सुरक्षा कवच कमजोर होता जा रहा है, दुनिया गर्म होती जा रही है और जलवायु बदल रही है। नतीजतन, उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के ग्लेशियर भी पिघल रहे हैं। हम अपने जीवन स्तर को बदल कर जलवायु परिस्थितियों को स्थिर कर सकते हैं।
परम पावन ने जलवायु परिवर्तन के खतरों का चित्रण करते हुए तिब्बत का उदाहरण दिया। उन्होंने बताया कि तिब्बती पठार एशिया की प्रमुख नदियों का स्रोत है और ये नदियां करोड़ों लोगों को जल की आपूर्ति करती हैं। अगर हम इन नदियों की रक्षा नहीं कर पाए तो क्या होगा, यह कोई नहीं जानता।
परम पावन ने कहा कि कोविड-१९ महामारी ने दुनिया के बड़े हिस्से में संकट पैदा किया है और हमें अपनी सुरक्षा के लिए शारीरिक और मानसिक स्तर पर सावधानी बरतनी होगी। उन्होंने शांतिदेव की बुद्धिमत्तापूर्ण सलाह का हवाला देते हुए कहा कि हमें यह पता लगाना चाहिए कि क्या हमारे सामने आने वाली समस्याओं को दूर किया जा सकता है। अगर किया जा सकता है तो हमें उन उपायों को करने की जरूरत है। यदि वे हमारे नियंत्रण से बाहर हैं तो हमें बस इसे स्वीकार करने की आवश्यकता है; इसके बारे में चिंता करने से मदद नहीं मिलेगी। उन्होंने कहा कि चिकित्सकीय सलाह का पालन करना महत्वपूर्ण है।
परम पावन ने स्पष्ट किया कि बौद्ध दर्शन धर्म चित्त की शांति के महत्व पर बल देता है। व्यक्ति स्थिर चित्त और प्रसन्न रहने के लिए प्रशिक्षण लेता है। इसके बाद वह खुद से सीखी हुई बातों को दूसरों को भी सिखाने में सक्षम हो पाता है। उन्होंने कहा कि बुद्ध ने पहले खुद ज्ञान प्राप्त किया और फिर अपने अनुभव के आधार पर दूसरों को शिक्षा दी। अगर एक व्यक्ति के रूप में हम खुद को बेहतर बनाने, अधिक अनुशासित और खुश रखने में सक्षम हैं तो हम दूसरों के लिए भी लाभकारी हो सकेंगे।
लोग चाहे दुनिया में कहीं भी पैदा हुए हों, इंसान के तौर पर वे एक जैसे होते हैं। वे एक ही तरह से पैदा होते हैं और एक ही तरह से अपनी मां की देखरेख में बड़े होते हैं। सांस्कृतिक विरासत और जीवन के तरीके अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन मौलिक रूप से मनुष्य के रूप में हम सभी समान हैं।
परम पावन ने आगे कहा कि अतीत में अमेरिका में रंग के आधार पर लोगों का विभाजित किया गया था। लेकिन अब हमें नहीं लगता कि रंग हमें विभाजित करने का आधार है, चाहे हम उत्तर, दक्षिण, पूर्व या पश्चिम कहीं से भी आए हों या हम किसी भी धर्म का पालन करते हों। इसके बजाय हमें उस बिंदु पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जो हमें मनुष्य के रूप में समान बनाती है।
परम पावन ने टिप्पणी की, ‘अफ्रीका में बिशप डेसमंड टूटू, नेल्सन मंडेला मेरे अच्छे मित्र हैं और हमारे शरीर का रंग अलग तरह का हैं, लेकिन जब हम मुस्कुराते हैं, तो हम एक सामान्य मानवीय आनंद प्रकट करते हैं।’
उन्होंने कहा कि एक बच्चे को सिखाने में सबसे महत्वपूर्ण बात सौहार्दपूर्ण होना है। स्कूलों में इसके लिए पर्याप्त समय नहीं दिया जाता है। फिर भी यह स्पष्ट है कि छात्र उन शिक्षकों के प्रति अधिक आकर्षित होते हैं जो मुस्कुराते हैं और गर्मजोशी से जवाब देते हैं। परम पावन ने उल्लेख किया कि बचपन में उनके शिक्षक कठोर होने के बजाय हंसमुख और खुले रहते थे, इसीलिए उन्होंने अपने बचपन में खुशी महसूस की है।
यह पूछे जाने पर कि दुख को कैसे दूर किया जाए और आंतरिक शांति कैसे प्राप्त की जाए, परम पावन ने उत्तर दिया कि दुख जीवन का हिस्सा है। उन्होंने सलाह दी कि मुसीबत का सामना करने पर इसलिए चिंता को कम करने के तरीके खोजने के लिए खुद को प्रशिक्षित करना आवश्यक है। चूंकि युवा अधिक अधीर होते हैं, इसलिए उनके बुजुर्ग उन्हें धैर्य रखने की सलाह दे सकते हैं। परम पावन ने कहा कि नकारात्मक अनुभवों का सामना करने से सीखने में सहायता मिलती है और यह प्रक्रिया आंतरिक शक्ति के विकास की ओर ले जाती है।
उन्होंने कहा, ‘जब से मैं शरणार्थी बना हूं, मैं और लोगों को यह सीख देने में सक्षम हो गया हूं कि दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों को मन की शांति विकसित करने के अवसरों में कैसे बदला जाए।’
मृत्यु भी जीवन का हिस्सा है। देर-सबेर हम सभी को मरना ही है और जब वह समय आए तो मन की शांति का होना जरूरी है। परम पावन ने बताया कि कैसे सूक्ष्मतम मन शाश्वत है। उन्होंने कहा कि एक बच्चे के पैदा होने की अवधारणा केवल भौतिक तत्वों, शुक्राणु और डिंब की उपस्थिति पर निर्भर नहीं करती है। उन्होंने कहा कि गर्भ में बच्चे का आगमन तभी होता है जब ये तत्व चेतना के साथ जुड़ जाते हैं।
परम पावन ने इस मुद्दे को छुआ कि कैसे मानसिक चेतना की निरंतरता जीवन को रेखांकित करती है। उन्होंने उन बच्चों का हवाला दिया जिन्हें अपने पिछले जन्मों की बातें याद हो आती हैं। उन्होंने ‘थुकदम’ घटना की ओर इशारा किया जो तब होता है जब कुछ लोग मर जाते हैं लेकिन उनके शरीर कुछ समय के लिए ताजा रहते हैं क्योंकि उनका सूक्ष्मतम दिमाग मौजूद रहता है।
एक प्रश्नकर्ता जानना चाहते थे कि निराशा की भावनाओं से कैसे निपटा जाए। इस पर परम पावन ने सुझाव दिया कि यदि ऐसी स्थिति में कोई व्यक्ति केवल भौतिक चीजों में रुचि रखता है तो वे आशा खो सकते हैं। लेकिन, अगर उन्हें मन की कुछ समझ है और वे आंतरिक शांति के लिए काम करते हैं तो वे समाधान ढूंढ लेंगे।
उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया का उद्भव इस बात का प्रतिबिंब है कि चीजें कैसे बदलती हैं। परम पावन ने कहा कि अतीत में हम दुनिया में सोशल मीडिया की इस तरह की प्रवृत्ति के बारे में सोच भी नहीं सकते थे। अब, जब हमें पूरी मानवता की चिंता करने की जरूरत पड़ी है तो हमारे पास मदद करने के लिए सुविधाएं भी आ गई हैं। हमारे पास युवाओं को बल के उपयोग की अतिरेकता और सैन्यविहीन दुनिया बनाने की महत्ता जैसे नए तरीकों के बारे में सोचने के लिए प्रोत्साहित करने के अवसर हैं।
जरूरी नहीं कि आज के युवाओं को वही दोहराने की कोशिश करनी चाहिए जो पहले हुआ करता था। बेहतर होगा कि वे बदली हुई परिस्थितियों के अनुकूल नई सोच विकसित करें। इसे पूरा करने का एक तरीका अधिक करुणाशील समाज के निर्माण के लिए सामूहिक जिम्मेदारी को चिह्नित करना है।
बुद्ध की शिक्षाओं के बारे में अंतिम प्रश्न का उत्तर देते हुए परम पावन ने कहा कि बुद्ध के सिद्धांत का आधार चार आर्य सत्य हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि आठ अष्टांगिक मार्ग का उल्लेख करते हुए कहा कि आर्य सत्यों के लिए ये अष्टांगिक मार्ग में सबसे महत्वपूर्ण हैं। दुख और उसके मूल की सत्यता स्पष्ट है, जबकि तीसरा सत्य यह है कि दुखों और उसके कारणों का निवारण किया जा सकता है और यही सत्य आशा प्रदान करता है। यही सत्य अष्टांगिक मार्ग की साधना में रत होने का उत्साह प्रदान करता है।
‘कांफ्रेंस सर्विसेज’ की निदेशक लू-एन रसेल ने परम पावन की टीम के सदस्यों को धन्यवाद देने के साथ सत्र का समापन किया, जिन्होंने इस अवसर को सुगम बनाया था। उन्होंने परम पावन को उनके स्नेहपूर्ण और करुणामय मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि उनके शब्दों ने उनके प्रत्येक श्रोता को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित किया है। उन्होंने परम पावन से कहा, ‘आपने हम सभी पर जो प्रभाव डाला है, उसके लिए हम आपको धन्यवाद देते हैं। मैं आशा करती हूं कि हमारा सहयोग और निरंतर प्रयास आने वाले दिनों में एक साथ आगे बढ़ता रहे।’