गत 2 सितंबर, 2021 को 61 वाँ तिब्बती लोकतंत्र दिवस विश्वभर में मनाया गया। इसके लिये सभी तिब्बती और तिब्बत समर्थकों को साधुवाद। साम्राज्यवादी चीन ने लोकतांत्रिक मूल्यों, अंतरराष्ट्रीय कानून, मानवीय आदर्शों तथा सांस्कृति कमर्यादाओं का अतिक्रमण कर तिब्बत पर 1959 में अवैध नियंत्रण कर लिया था।पहले तिब्बत एक स्वतंत्र देश था। वह भारत एवं चीन के बीच बफर स्टेट (मध्यस्थ राज्य) था। स्वतंत्र तिब्बत पर चीन के साम्राज्यवादी नियंत्रण ने तिब्बत में अमानवीय क्रूरता शुरू करदी जो कि लगातार जारी है। हर प्रकार से तिब्बती पहचान को मिटाने की साजिश जारी है।
स्वतंत्र तिब्बत पर अवैध नियत्रंण कर के चीन ने अफवाह फैलाई कि तिब्बत कभी स्वतंत्र देश नहीं था। उसने तिब्बत को चीन का अंग बताया और कहा कि वह तिब्बत का भरपूर विकास कर रहा है। विकास के नाम पर तिब्बत की प्राकृति क संपदा की लूट होने लगी तथा वहाँ के पार्यावरण को संकट ग्रस्त कर दिया गया। चीन द्वारा तिब्बती नदियों पर बडे़-बडे़ बांध बनाये जाने तथा उनकी धाराओं को मनमाने ढंग से मोड़ने के कारण तिब्बत के ग्लेसियर (हिमनद) सूखने-सिकुड़ने लगे। ग्लेसियर की अधिकता के कारण ही तिब्बत को ‘‘तीसरा ध्रुव ‘‘और‘‘ दुनिया की छत‘‘ कहा जाता है।
तिब्बती क्षेत्र में चीन सरकार द्वारा सामरिकदृष्टि से कई प्रकार के निर्माण एवं शोध किये जा रहे हैं। इन में से अधिकांश कार्य भारतीय सीमा से सटे तिब्बती क्षेत्र में हो रहे हैं। रेल, सड़क, हवाई पट्टीतथा सैनिक मोर्चों का निर्माणऐ से ही उदाहरण हैं। इनका मुख्य उद्देश्य भारत को कमजोर तथा अपमानित करना है।तिब्बती क्षेत्र का इस्तेमाल भारत के विरोध में करते हुए चीन ने 2017 में डोकलाम तथा 2020 में गलवान घाटी के संकट को पैदा किया। निकट वर्षों मंे वह तवांग या चमोली में भी ऐसा कर सकता है। इस से पूरा हिमालय क्षेत्र संकट ग्रस्त हो जाये गा।
चीन की हर गतिविधि पर नजर रखनी होगी। हाल में भारतीय सीमा से सटे तिब्बती गाँवों को विकसित करने के नाम पर उन्हें सामरिक मोर्चों के रूप में बदला जा रहा है। वे गाँव नहीं रहकर सैनिक छावनी बन जायेंगे। ऐसे में भारत को भी इस से सटे अपने क्षेत्र में सैनिक तैयारी बढ़ानी होगी तथा सुरक्षा व्यवस्था में बढ़ोतरी करनी होगी। भारत विरोधी गतिविधियों के लिये चीन द्वारा नेपाल का इस्तेमाल भी इसी विस्तारवादी साजिश का हिस्सा है।
परमाणु कचरे को तिब्बती भूभाग में गाड़े जा ने से भारत कोभी खतरा है। तिब्बती भूभाग से तस्करीको बढ़ावा देकर चीन भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाता है। भारत में अवैध हथियार और मुद्रा पहुँचा कर आतंकवाद एवं अलगाववाद की मदद की जार ही है। तिब्बत से सटी भारतीय सीमा की सुरक्षा के लिये भारत सरकार पूर्णतः तत्पर है। फिर भी चीन के तथा कथित मित्रता पूर्ण बयानों से हमेशा सावधान रहना होगा।
‘‘पंचशील‘‘ और ‘‘हिन्दी चीनी भाई-भाई‘‘ के नारों के बीच ही चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया था। तब उस ने भारत के बड़े क्षेत्र पर अवैध कब्जा कर लिया था। भारतीय संसद ने 14 नवंबर, 1962 को सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित कर संकल्प लिया था कि हम चीन के अवैध कब्जे से भारतीय भूभाग को पूर्णतः मुक्त करायेंगे। उस संसदीय सकल्प को पूरा करने के लिये हमें तैयारी करनी है। शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रमों में भी उस संसदीय संकल्प को प्रमुखता से छापा जाये। इस से विद्यार्थी वर्ग को परिचित रखना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है। इससे यह भी पता चलेगा कि चीन के साथ ‘‘अर्थहीन-अंतहीनवार्ता‘‘ की कोई जरूरत नहीं है।
भारत की राष्ट्रीय शक्ति में विस्तारही चीनी विस्तारवाद का प्रभावी जवाब है। तिब्बती लोकतंत्र दिवस के सफल आयोजन से भीभार तीय राष्ट्रीय शक्ति में विस्तार हो रहा है। तिब्बत और भारत के लिये हिमालय की सुरक्षा समान रूप सेमहत्वपूर्ण है। दोनों के लिये चीनी साम्राज्यवादी नीति पर अंकुश आवश्यक है। संसार में अनेक देश और संगठन तिब्बती संघर्ष का समर्थन कर रहे है। उनके सहयोग से यह संघर्ष चीनी विरोध के बावजूद जारी हैं भारत भौगोलिक रूप से तिब्बत कापड़ो सी है। ‘‘भारत-तिब्बत सीमा पुलिस ‘‘इसी तथ्य का प्रमाण है कि सैंकड़ों साल से भारत की सीमा तिब्बतसे जुड़ी है। भारत-चीन सीमा तिब्बत की चीनी पराधीनता का प्रतीक है।
चीन सरकार की रुचि तिब्बत मामले को उलझा ने में है। बार-बार विभिन्न संगठन मांग कर रहे हैं कि चीन सरकार लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित तिब्बत सरकार तथा दलाईलामा के प्रतिनिधियों के साथ निर्णायक वार्ता करे और ‘‘मध्यममार्ग‘‘ अपना ते हुए तिब्बतको ‘‘वास्तविक स्वायत्तता‘‘ प्रदानकरे। प्रतिरक्षा और पर राष्ट्र विषय चीन के साथ रहें तथा शेष विषय तिब्बत सरकार को सौंपे जायें। तिब्बत के प्रशासनिक स्वरूप को पूर्वव्त किया जाये। इस समय तिब्बती क्षेत्र का अंगभंग किया गया है और विश्व समुदाय की आँखों में धूल झोंकने के लिये तिब्बत को तथा कथित स्वायत्तता प्रदान की गई है। तिब्बत को वास्तविक स्वायत्तता ही समस्या का समाधान है। इस से तिब्बत को स्वशासन का अधिकार मिल जायेगा और चीन की एकता-अखण्डता भी सुरक्षित रहेगी। ऐसी व्यवस्था के प्रावधान चीन के संविधान और राष्ट्रीयता संबंधी कानून में ही उपलब्ध हैं।