tibet.net, १९ जुलाई, २०२१
लखनऊ। १७ जुलाई २०२१ को अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस के अवसर पर भारत-तिब्बत समन्वय संघ (बीटीएसएस) ने ‘जस्टिस फॉर तिब्बत: द लीगल बैटल (तिब्बत के लिए न्याय: कानूनी लड़ाई)’ नामक एक वेबिनार का आयोजन किया। इसमें उत्तर प्रदेश लोक सेवा न्यायाधिकरण के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सुधीर कुमार सक्सेना; भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल श्री शशि प्रकाश सिंह; आरएसएस प्रचारक श्री रामाशीष जी; वरिष्ठ अधिवक्ता और तिब्बती सर्वोच्च न्याय आयोग की पूर्व ज्यूरी श्रीमती नामग्याल त्सेकी; एचआईपीए के संकाय सदस्य और बीटीएसएस हिमाचल प्रदेश के प्रांतीय अध्यक्ष श्री बी.आर. कौंडल और अधिवक्ता परिषद, उत्तर प्रदेश के राज्य महासचिव (कार्यकारी) श्री अश्विनी कुमार त्रिपाठी उपस्थित थे।
न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सुधीर कुमार सक्सेना ने वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि तिब्बत हमेशा से एक स्वतंत्र देश रहा है लेकिन १९४९ में चीन ने इस पर जबरदस्ती कब्जा कर लिया। उन्होंने कम्युनिस्ट चीनी शासन के तहत तिब्बत के अंदर की गंभीर स्थिति की ओर इशारा किया। उन्होंने तिब्बत में मानवाधिकारों के हनन का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि चीन तिब्बत पर अनधिकृत कब्जा कर यहां के संसाधनों का दोहन कर रहा है। तिब्बत की बौद्ध संस्कृति पर हमला किया गया है, जिससे हम भारत के लोग भी बहुत आहत महसूस कर रहे हैं। इसका कारण यह है कि बौद्ध धर्म की उत्पत्ति भारत में हुई थी और भारतीय लोग भगवान बुद्ध और उनकी शिक्षाओं का सम्मान करते हैँ।
उन्होंने आगे कहा कि संयुक्त राष्ट्र ने आत्मनिर्णय के तिब्बत के अधिकार पर विचार किया था, लेकिन चीन के डर से उस पर कभी गंभीर कदम नहीं उठाए गए। उन्होंने कहा कि यह पूरी दुनिया के समर्थन से अंतरराष्ट्रीय मंच पर तिब्बत के लिए खड़े होने और न्याय की मांग करने का समय है और भारत इसका नेतृत्व करेगा।
श्री शशि प्रकाश सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि चीन ने तिब्बत के लोगों को छोटी-छोटी बातों के लिए प्रताड़ित किया है और यह अत्याचार अभी भी बदस्तूर जारी है। तिब्बत की आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे सैकड़ों लोग अभी भी आजीवन कारावास और मृत्युदंड जैसे जघन्य अत्याचारों के शिकार हो रहे हैं। हमें इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रमुखता से उठाना होगा। उन्होंने कहा कि इसका समाधान भारत ही दे सकता है, भारत के पास शक्ति है कि वह पूरी दुनिया के साथ मिलकर तिब्बत की इस समस्या का समाधान कर सकता है।
श्री रामाशीष जी ने अपने संबोधन में कहा कि लद्दाख में चीनी लाल सेना द्वारा की गई हिंसा को कभी भुलाया नहीं जा सकता। भारत ने हमेशा तिब्बत को अपना माना है। चीन सिर्फ बौद्ध धर्म का ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के अध्यात्म का दुश्मन है। उन्होंने कहा कि आज समय की मांग है कि भारत के लोग हर स्तर पर तिब्बत के न्याय के साथ खड़े हों और उनकी लड़ाई में उनका साथ दें। हालांकि, उन्होंने तिब्बतियों से सक्रिय क्रांति करने का बीड़ा उठाने का भी आह्वान किया। उन्होंने दलाई लामा के जन्मदिन पर इस बार प्रधानमंत्री मोदी के बधाई संदेश वाले ट्वीट को चीन के खिलाफ भारत की नीतिगत तैयारियों का संकेत बताया।
श्रीमती नामग्याल त्सेकी ने वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया की छत कहा जाने वाला तिब्बत १९५९ से अंतरराष्ट्रीय समुदाय से न्याय की गुहार लगा रहा है। आज चीन हर जगह हमारी संस्कृति, भाषा, धार्मिक जीवन और स्वतंत्रता पर हावी होना चाहता है। वर्तमान में तिब्बत में मानवाधिकारों का जिस तरह से हनन हो रहा है उसका कोई अन्य उदाहरण कहीं और नहीं मिल सकता है।
उन्होंने आगे कहा कि तिब्बती लोगों का अस्तित्व मिटाने के लिए चीन हर तरह के हथकंडे अपना रहा है। चीन तिब्बती लोगों का सांस्कृतिक संहार कर रहा है जो जनसंहार से भी बदतर है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इस सांस्कृतिक संहार को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय न्याय प्रणाली में कोई उचित न्यायिक व्यवस्था नहीं है। चीन की हरकतें अंतरराष्ट्रीय शांति और समृद्धि के लिए बेहद खतरनाक हैं। चीन सुरक्षा परिषद में वीटो पावर का दुरुपयोग भी करता रहा है।
तिब्बती मामलों के विशेषज्ञ श्री बी.आर. कौंडल ने कहा कि न्याय के संघर्ष में भारत हमेशा तिब्बत के साथ खड़ा रहा है। तिब्बत की आजादी न केवल तिब्बत के लिए बल्कि भारत की सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो पावर हासिल करने में चीन को तत्कालीन भारत सरकार की मदद आज हमारे लिए खतरा बन गई है। तिब्बत को वास्तविक स्वायत्तता का वादा किया गया था, लेकिन वह वादा आज तक पूरा नहीं हुआ है। उन्होंने सुझाव दिया कि हमें इस मांग को पूरा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में जाना चाहिए।
श्री कौंडल ने कहा कि चीन ने कोरोना के जरिए पूरी दुनिया के खिलाफ जैविक जंग छेड़ दी है। पूरी दुनिया में चीन के खिलाफ माहौल है। भारत को इस मौके का फायदा उठाना चाहिए और चीन के खिलाफ अभियान शुरू करना चाहिए। तिब्बत के लोग तालिबान की तरह हिंसक नहीं बल्कि शांतिप्रिय हैं, इसलिए चीन आज तक उनका दुरुपयोग करता रहा है। यदि ये तिब्बती भी हिंसक होते तो शायद अब तक वे स्वतंत्रता प्राप्त कर चुके होते।
श्री अश्विनी कुमार त्रिपाठी ने अपने संबोधन में आत्मनिर्णय को तिब्बतियों का अधिकार बताया। उन्होंने कहा कि हमें तिब्बत के लोगों के इस संघर्ष में उनका सहयोगी बनक अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में जाना होगा। उन्होंने कहा कि तिब्बत की भूमि के नीचे खनिज संसाधनों का बहुत बड़ा भंडार है, जिसके कारण चीन इसके माध्यम से विश्वर्थव्यवस्था को नष्ट करना चाहता है। लेकिन भारत समेत पूरी दुनिया में जो माहौल बन रहा है, उससे चीन कभी भी अपनी दुर्भावनापूर्ण योजना में कामयाब नहीं हो पाएगा।
वेबिनार कार्यक्रम में देश भर और विदेशों सहित १४० विभिन्न स्थानों से २३२ लोगों ने भाग लिया। बेबिनार का संचालन भारत-तिब्बत समन्वय संघ के विधि विभाग के अधिवक्ता और राष्ट्रीय संयोजक श्री अनीश श्रीवास्तव ने किया और धन्यवाद प्रस्ताव बीटीएसएस के राष्ट्रीय महासचिव श्री विजय मान ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के दौरान बीटीएसएस के केंद्रीय संयोजक श्री हेमेंद्र सिंह तोमर, राष्ट्रीय महासचिव श्री अरविंद केसरी, अंतर्राष्ट्रीय संभाग के राष्ट्रीय संयोजक डॉ अमरीक सिंह ठाकुर, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष श्री अजीत अग्रवाल, श्री अखिलेश पाठक और श्री मनोज गहात्दी का विशेष सहयोग मिला।