tibet.net, ०९ जुलाई, २०२१
०६ जुलाई २०२१ कुशीनगर। परम पावन दलाई लामा के ८६वें जन्मदिन को दुनिया भर के उनके शुभचिंतकों ने हर्षोल्लास के साथ मनाया। कुशीनगर में भारत-तिब्बत संवाद मंच ने नामग्याल मठ में इस शुभ अवसर का एक भव्य उत्सव का आयोजन किया।
इस उत्सव में थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया, म्यांमार, श्रीलंका और भारत सहित विभिन्न देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले भिक्षुओं ने भाग लिया। कुशीनगर के विधायक श्री रजनीकांत मणि त्रिपाठी मुख्य अतिथि थे, जबकि विशिष्ट अतिथि भारत-तिब्बत संवाद मंच, लखनऊ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संजय शुक्ला थे।
भारत-तिब्बत संवाद मंच, कुशीनगर के क्षेत्रीय संयोजक डॉ. शुभलाल शाह ने अपने स्वागत भाषण में आगत अतिथियों सहित सभी प्रतिभागियों को बधाई दी और बौद्ध धर्म समेत अनेक मतों के ऐसे शुभ तीर्थ स्थल पर इस तरह के एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन करने पर अपनी खुशी का इजहार किया।
विशिष्ट अतिथि वक्ताओं में से एक पीजी कॉलेज, कुशीनगर के बौद्ध अध्ययन विभाग की डॉ. ममतामणि त्रिपाठी ने भारत और तिब्बत के बीच ऐतिहासिक संबंधों और दलाई लामा की भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने ‘दलाई’ और ‘लामा’ शब्दों के गढ़ने के संबंध में प्राथमिक जानकारी के बारे में भी बातें कीं। उन्होंने अपने पेशेवर गरिमा और वाक्पटुता से तिब्बत के अतीत, वर्तमान और भविष्य की संभावनाओं की एक समग्र तस्वीर प्रस्तुत की।
क्षेत्र के एक उल्लेखनीय सामाजिक कार्यकर्ता श्री वीरेंद्रनाथ त्रिपाठी ने भी परम पावन का अभिनंदन किया। उन्होंने उम्मीद जताई कि तिब्बत की संप्रभुता निश्चित रूप से प्राप्त होकर रहेगी।
अंतरराष्ट्रीय बौद्ध संघ के अध्यक्ष भंते महेंद्र ने उन बौद्ध मूल्यों और रीति-रिवाजों पर प्रकाश डाला जो परम पावन का प्रतिनिधित्व करते हैं और जिनका परम पावन प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने एक राजा की कहानी सुनाई, जिसने एक चंदन व्यापारी को केवल इसलिए फांसी देने का आदेश दिया था क्योंकि वह व्यापारी भविष्य में राजा की मृत्यु के उपरांत उनके दाह संस्कार में चिता के लिए अपनी चंदन की लकड़ी की बिक्री से अच्छी कमाई होने की संभावना देख रहा था। मतलब यह कि राजा चाहे कितनी भी कोशिश कर ले अपनी मौत से नहीं बच सकता था, क्योंकि जीवन में एक न एक दिन उसकी मौत निश्चित थी। यह वास्तव में प्राणी की मृत्यु की निश्चितता का संकेत देता है।
भारत-तिब्बत संवाद मंच के अध्यक्ष डॉ. संजय शुक्ला ने मानवता के अस्तित्व के लिए तिब्बत की आवाज को तेज करने और इसके महत्व को उजागर करने में बीटीएसएम की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने भारत-तिब्बत और तीर्थस्थल कैलाश-मानसरोवर तक भारतीयों की पहुंच और उनकी सुरक्षा के संदर्भ में अतीत के तथ्यों की चर्चा की। उन्होंने आगत प्रतिभागियों से इस संदेश को फैलाने का आग्रह किया कि तिब्बत का मुद्दा न केवल उसकी अपनी पहचान और अस्तित्व के लिए है, बल्कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पूरे एशिया और विशेष रूप से दक्षिण एशिया के पारिस्थितिकी और आजीविका से जुड़ा है।
कार्यक्रम के अंत में, मुख्य अतिथि श्री रजनीकांत मणि त्रिपाठी ने अपनी हर्षपूर्ण आकांक्षाओं को व्यक्त करते हुए आग्रह किया कि बौद्ध साधन के लिए अति महत्वपूर्ण स्थान- कुशीनगर के लोग लंबे समय से सविनय प्रतीक्षा कर रहे हैं कि परम पावन उन पर कृपा करेंगे और आने वाले दिनों में भगवान बुद्ध की इस महापरिनिर्वाण भूमि पर पधारेंगे। कुशीनगर के लोग उस दिन को अपनी आनेवाली पीढ़ियों के लिए ऐतिहासिक अवसर बनाने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे।
समारोह के मुख्य विधि-विधान का पालन श्री सुरेश प्रताप गुप्त द्वारा किया गया। कार्यक्रम का आयोजन नामग्याल मठ, कुशीनगर के साथ मिलकर संयुक्त रूप से की गई थी। इसमें महामारी के मौजूदा दौर को ध्यान में रखते हुए सामाजिक दूरी के सभी मानदंडों का पालन करते हुए विशाल सभा हुई। इसके बाद कुशीनगर के माननीय विधायक द्वारा वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया।