dalailama.com, ०७ जुलाई, २०२१
थेकचेन छोलिंग, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत। आज ०७ जुलाई को प्रातः परम पावन दलाई लामा को डॉक्टर रेड्डीज फाउंडेशन द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं में करुणा के बारे में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था। यह फाउंडेशन डॉक्टर के. अंजी रेड्डी द्वारा स्थापित गैर-लाभकारी संगठन है। डॉक्टर रेड्डीज लेबोरेटरीज लिमिटेड के सह-अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक जी.वी. प्रसाद ने परम पावन का संक्षिप्त परिचय देते हुए इस कार्यक्रम की शुरुआत की। कल के कार्यक्रम का समापन उन्होंने ही परम पावन को उनके ८६वें जन्मदिन पर बधाई देते हुए किया था।
परम पावन ने शुरुआत में श्रोताओं का अभिनन्दन किया- ‘नमस्ते, ताशी देलेक, सुप्रभात’। उन्होंने इसके बाद अपना संबोधन शुरू करते हुए कहा, ‘यह अवसर प्रदान करने के लिए मैं आपके प्रति आभार प्रकट करता हूं। मेरा जन्म तिब्बत में हुआ था, लेकिन मैंने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा इस सुखद और शांतिपूर्ण देश में बिताया है। यहां धार्मिक सद्भाव और प्रेस की स्वतंत्रता है। यहां पर मैं अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सकता हूं जो दुनिया के विभिन्न हिस्सों तक प्रसारित हो सकते हैं। मैं यहां आकर खुश हूं।’
उन्होंने कहा, ‘जहां तक कल के मेरे जन्मदिन का सवाल है, कई पुराने दोस्तों और शुभचिंतकों ने मुझे शुभकामनाएं भेजीं। इनमें भारत के प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यगण और कई मुख्यमंत्री शामिल हैं। विदेशों से भी कई मित्रों ने मुझे शुभकामनाएं भेजीं। इनमें अमेरिकी कांग्रेस के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की स्पीकर नैन्सी पेलोसी शामिल हैं। उन्होंने करुणापूर्ण शब्दों से आगे बढ़कर समर्थन व्यक्त किया है। असल में उन्होंने तिब्बत का दौरा किया था, तिब्बती और चीनी नेताओं से बात की थीं। इसके बाद वह यहां धर्मशाला भी आई थीं। मैं उन सभी को उनके उदार विचारों के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं।
परम पावन ने आगे कहा, मुझे आए सपनों और अन्य दिव्य झलकों से संकेत मिला है कि मैं ११० से लेकर ११३ वर्ष तक की आयु तक जीवित रह सकता हूं। मैंने महसूस किया कि कल जो मैत्रीपूर्ण संदेश मुझे मिले, वे केवल कूटनीतिक इशारे नहीं, बल्कि सच्चे और पूरे दिल से थे। वे मुझे यथासंभव लंबे समय तक जीने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
उन्होंने कहा, मेरी नित्य की साधना, जिसमें कई घंटों का ध्यान शामिल है, नालंदा परंपरा से निकली है। आठवीं शताब्दी में तिब्बती राजा ने एक महान विद्वान शांतरक्षित को तिब्बत आमंत्रित किया। उन्होंने नालंदा परंपरा की शुरुआत की जो मेरे सभी ज्ञान का स्रोत है। मैं खुद को उस परंपरा का एक छात्र, शायद एक विद्वान मानता हूं। हालांकि एक स्थानीय डीएसपी ने मजाक में मुझे नालंदा के कुलाधिपति के रूप में संदर्भित किया। मैंने अपने प्रशिक्षण में जो कुछ भी सीखा वह भारत का ज्ञान है और यह सब तर्क पर आधारित है।
हाल के दशकों में मैंने कई आधुनिक वैज्ञानिकों से मुलाकात की है और उनके साथ हम आसानी से चर्चा कर सकते हैं क्योंकि वे और मैं दोनों चर्चा में तर्कपूर्ण दृष्टिकोण अपनाते हैं। अधिकतर आधुनिक वैज्ञानिक मस्तिष्क और शारीरिक स्वास्थ्य तक ही खुद को सीमित रखते हैं और वे आंतरिक शांति पर बहुत कम ध्यान देते हैं। हालांकि, उनमें से कई आज हमारी अशांतकारी भावनाओं से निपटने और चित्त की शांति प्राप्त करने के बारे में हमारी बातों को काफी तवज्जो दे रहे हैं।
परम पावन ने कहा, मेरी मुख्य साधनाओं में करुणा और अहिंसा शामिल हैं। ये ऐसे गुण हैं जिनकी हमें आज पहले से कहीं अधिक जरूरत है। हम जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं उनमें से कई हमारी खुद की पैदा की हुई होती हैं। वे करुणा की कमी के कारण उत्पन्न हो जाती हैं। इसलिए मैं तर्क पर आधारित धर्मनिरपेक्ष संदर्भ में करुणा और अहिंसा दोनों को बढ़ावा देने के लिए समर्पित हूं।
करुणा सभी धर्मों का मूल संदेश है। यही कारण है कि दार्शनिक मतभेदों के बावजूद सभी में करुणा का सम्मान करना संभव है।
मेरी नवीनतम प्रतिबद्धता धर्मनिरपेक्ष आधार पर प्राचीन भारतीय विचारों को पुनर्जीवित करना है। आधुनिक शिक्षा कई मायनों में उपयोगी है, लेकिन इसे और अधिक पूर्ण होने के लिए हमें इसे प्राचीन भारतीय ज्ञान, करुणा और अहिंसा के साथ जोड़ना होगा और साथ ही ‘समता’ और ‘विपश्यना’ से आई दिमाग के कामकाज की समझ के साथ उसे जोड़ना होगा। जो मन और अंतर्मन को शांत रखता है।
पिछली शताब्दी में महात्मा गांधी ने अपने तरीके से अहिंसा का मार्ग दिखाया था। उन्होंने अफ्रीका और अमेरिका में आर्कबिशप टूटू और मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसे अनुयायियों को प्रेरित किया। आज एक ऐसी दुनिया में जहां अपराध और हत्या अभी भी जारी है, हमें करुणा और अहिंसा की आवश्यकता है। इसके लिए मैं इन आदर्शों को आधुनिक शिक्षा के साथ जोड़ने के तरीके खोजने के लिए प्रतिबद्ध हूं। जब कोविड महामारी से संबंधित प्रतिबंध से छूट मिलेगी तो मैं शिक्षाविदों के साथ चर्चा करने के लिए उत्सुक हूं कि यह कैसे किया जा सकता है।जहां तक स्वास्थ्य सेवाओं में करुणा की भूमिका का सवाल है, स्वाभाविक रूप से जब हमारा दिमाग परेशान होता है तो इसका हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हमारा रक्तचाप बढ़ जाता है और हम खुद को सोने में असमर्थ पाते हैं। मैं समझता हूं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारा मन यह सोचकर शांत रहता है कि चाहे कुछ भी हो, हम नौ घंटे अच्छी तरह सो पाएंगे।
हर कोई अपने स्वास्थ्य की देखभाल करना चाहता है, लेकिन हमें यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि मन की शांति का हमारे शारीरिक सेहत पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। करुणा और अहिंसा का ध्यान इसमें रचनात्मक योगदान दे सकता है, यही कारण है कि मुझे इन गुणों को पेश करने और उन्हें आधुनिक शिक्षा के साथ जोड़ने में दिलचस्पी है।
वर्चुअल माध्यम से जुड़े श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर में परम पावन ने सलाह दी कि समय का दबाव रहने पर भी डॉक्टरों को अपने कार्य को पवित्र, आध्यात्मिक सेवा के समान समझना चाहिए। उन्होंने उल्लेख किया कि उनके अपने अनुभव में एक मुस्कुराता हुआ डॉक्टर आपको आराम देता है, जबकि एक कठोर चेहरे वाला चिकित्सक चिंता पैदा कर देता है।
यहां तक कि जब डॉक्टर और नर्स को यह पता हो जाता है कि उनकी देखभाल में रह रहे रोगी के जीवित रहने की संभावना नहीं है तो ऐसे में उनके प्रति कारुणिक और दयावान होना महत्वपूर्ण हो जाता है। यहां भारत में हम मानते हैं कि हम एक जन्म के बाद दूसरा जन्म लेते हैं और मृत्यु के समय शांतचित्त होना जरूरी होता है न कि क्रोधित या भयभीत होना। अपने जीवन की शुरुआत में हमें अपनी मां के स्नेह में करुणा प्राप्त होती है और जैसे ही हमारे जीवन का अंत होता है हमें फिर से करुणा की आवश्यकता होती है।
जहां तक हमारी नकारात्मक भावनाओं को नियंत्रित करने की बात है, मोह और क्रोध हमारे जीवन का हिस्सा हैं। लेकिन उनके लिए मारक भी हैं। हमें न केवल क्रोध और भय से होने वाले नुकसान पर चिंतन करना चाहिए, बल्कि करुणा और अहिंसा की साधना से मिलने वाले लाभों पर भी विचार करना चाहिए और उनके बीच संतुलन खोजना चाहिए। प्राचीन भारत के आचार्यों में से एक शांतिदेव ने क्रोध और घृणा से होनेवाली हानियों और करुणा और क्षमा में निहित लाभों के बारे में विस्तार से लिखा है।
एक प्रश्न धर्मों की विविधता के बीच से निकाले जाने वाले सार्वभौमिक संदेश के बारे में किया गया। परम पावन ने उत्तर दिया कि भारत इस मायने में अद्वितीय है कि दुनिया के सभी प्रमुख धर्म यहां फलते-फूलते हैं और परस्पर सम्मान के साथ सह अस्तित्व में रहते हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि सुन्नी और शिया परंपराओं के अनुयायियों के बीच कभी-कभी मतभेद होता है, लेकिन उन्होंने भारत में इस तरह के किसी भी संघर्ष के बारे में नहीं सुना है। परम पावन ने इस बात पर बल दिया कि आस्था जो भी हो, दूसरों के लिए एक सर्वमान्य संदेश करुणा है। उन्होंने कहा कि इसी आधार पर धार्मिक सद्भाव पनपता है।
परम पावन से पूछा गया कि ऐसे समय में जब चिकित्सा उपचार एक व्यवसाय हो गया है, सहानुभूति और करुणा के साथ इसको कैसे जारी रखा जा सकता है। उन्होंने उत्तर दिया कि प्रत्येक मानवीय गतिविधि को स्नेह से ओत-प्रोत किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज सभी सात अरब मनुष्यों को एक साथ रहना है, इसलिए मानवता की एकता की भावना पहले से कहीं अधिक आवश्यक है। जब लोग करुणा से प्रेरित होते हैं तो ईमानदारी और सच्चाई स्वाभाविक रूप से सामने आती है। डॉक्टरों और नर्सों का काम दूसरों की मदद करना है, इसलिए करुणा निश्चित रूप से प्रासंगिक है।
हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि उदारता का तालमेल बुद्धि के साथ भी होना चाहिए। यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति को पैसे देते हैं जो बहुत अधिक शराब पीता है या ड्रग्स का आदी है तो आप उसे खुद को और उसके परिवार को नुकसान पहुंचाने में मदद करते हैं। यह उदार होने के साथ-साथ समझदार और यथार्थवादी भी बने रहने की आवश्यकता का एक उदाहरण है।
वैश्विक आयाम की चुनौतियों का सामना कर रहे विश्व में एक संकीर्ण राष्ट्रीय दृष्टिकोण अनुपयुक्त है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जिसे एक साथ रहना है। हम एक-दूसरे पर निर्भर हैं। इस कोविड महामारी के दौरान उत्पन्न हुई समस्याओं से निपटने में लोगों और राष्ट्रों की एक साझा जिम्मेदारी है। हमें सभी मनुष्यों के कल्याण पर विचार करना होगा। भारत में विभिन्न संस्कृतियों और विभिन्न भाषाओं के लोग एक साथ रहते हैं और इस तरह भारत के लोग विविधता में एकता का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
परम पावन ने सिफारिश की कि गंभीर मामलों के निदान या उपचार में गलतियों से बचने के लिए डॉक्टरों को एक टीम के रूप में रोगियों की जरूरतों पर चर्चा करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मरीजों को यह महसूस करने के लिए प्रोत्साहित करना जरूरी है कि अस्पताल और उसके कर्मचारी उनकी मदद और सुरक्षा के लिए हैं। साथ ही, यह महत्वपूर्ण है कि डॉक्टर और नर्स को इस बात पर गर्व महसूस करना चाहिए कि वह दूसरों की वास्तविक और व्यावहारिक सेवा के लिए काम करते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि जब दुखद अवसरों पर चिकित्सा कर्मी दूसरों की देखभाल करते हुए अपनी जान गंवाते हैं, तो उनके परिवार और दोस्तों को उन पर गर्व महसूस करना चाहिए। उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि इस तरह के बलिदान की प्रशंसा करना सही और उचित है। साथ ही मृतक की आत्मा के कल्याण के लिए भी उन्हें प्रार्थना करना चाहिए। परम पावन ने टिप्पणी की कि वह उन चिकित्सा कर्मियों के लिए प्रार्थना करते हैं जिन्होंने अपने काम के दौरान जीवन बलिदान कर दिया है।
जी.वी. प्रसाद ने परम पावन को यह बताते हुए कार्यक्रम का समापन किया कि श्रोतागण उनकी बात सुनकर कितने खुश हुए हैं और उन्हें कितना गर्व महसूस होता है कि परम पावन स्वयं को ‘भारत का पुत्र’ कहते हैं। उन्होंने ‘धन्यवाद और नमस्ते’ कहकर सभा को समाप्त करने की घोषणा कर दी। परम पावन ने भी जवाब में कहा, ‘धन्यवाद, फिर मिलेंगे।’