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दिल्ली। आज 16 जून को गलवान घाटी में हुए उस हादसे की पहली बरसी है जिसमें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के सैनिकों के हमलों से भारत की सीमा की रक्षा करते हुए 20 बहादुर भारतीय जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। इस दिन को याद करने के लिए भारत- तिब्बत समन्वय कार्यालय (आईटीसीओ), दिल्ली ने गलवान के सभी बहादुर जवानों को सम्मानित करते हुए ‘भारत-तिब्बत सीमा पर भारतीय सेना के शहीदों का सम्मान’ शीर्षक से एक वेबिनार का आयोजन किया।
अतिथि वक्ताओं में कोर ग्रुप फॉर तिब्बतन कॉज- इंडिया के उत्तरी क्षेत्र- I (जम्मू कश्मीर और लद्दाख) के क्षेत्रीय संयोजक श्री फोन्सोक लद्दाखी; भारत तिब्बत समन्वय संघ (बीटीएसएस) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) एवीएसएम, वीएसएम, पूर्व जेएजी सेना (प्रो.) नीलेंद्र कुमार; कोर ग्रुप फॉर तिब्बतन कॉज- इंडिया के पूर्वोत्तर क्षेत्र- I (असम और मेघालय) के क्षेत्रीय संयोजक श्री सौम्यदीप दत्ता; नेताजी बोस रक्षा अकादमी (एनबीडीए, कोयंबटूर और समन्वयक, फ्रेंड्स ऑफ तिब्बत (एफओटी), कोयंबटूर के निदेशक प्रो. वी.अंटो शामिल थे।
श्री फोन्सोक लद्दाखी ने सभी 20 वीर शहीदों के नाम पढ़कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि हमें देश की रक्षा के लिए उनके बलिदानों को हमेशा याद रखना चाहिए। श्री फोन्सोक ने उल्लेख किया कि गलवान की घटना युद्ध नहीं थी; बल्कि यह कम्युनिस्ट चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय क्षेत्र में घुसने के लिए एक बर्बर कार्य था और भारतीय जवानों पर लोहे की छड़, कांटेदार तारों, स्पाइक्स, पत्थरों आदि से हमला किया था। उन्होंने कहा कि एक भारतीय सैनिक देश की रक्षा करने की शपथ लेता है, न कि कम्युनिस्ट चीन के सैनिकों की तरह, जैसा देखा गया, आक्रामकता की शपथ लेता है।
श्री फोन्सोक ने गर्व से उल्लेख किया कि वह लद्दाख से आते हैं जहां से सड़क गलवान घाटी की ओर जाती है और लद्दाख बहादुर दिलों की भूमि है जहां जवान और नागरिक दोनों सीमा की रक्षा करते हैं। उन्होंने अफसोस जताया कि दुनिया में कोई युद्ध नहीं होना चाहिए क्योंकि यह अपने आप में एक समस्या है, समाधान नहीं। परम पावन दलाई लामा की सलाह के अनुसार संवाद और अन्य शांतिपूर्ण तरीकों को अपनाया जाना चाहिए।
मेजर जनरल (प्रो.) नीलेंद्र कुमार ने जवानों को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें प्रेरणास्पद बताया और कहा कि इतिहास उन्हें उनके बलिदानों के लिए याद रखेगा। उन्होंने कहा कि करीब 4 घंटे तक चले गलवान संघर्ष को भारत-चीन संघर्ष के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। यह समझने की जरूरत है कि भविष्य में ऐसी कोई घटना नहीं हो। उन्होंने कहा कि भारत और चीन के बीच अभी भी स्थिति इतनी अच्छी नहीं है। उन्होंने बताया कि हाल ही में बीजिंग में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की आलोचना और उसके विरोध की गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए एक कानून पारित किया गया है। गलवान घटना के संबंध में प्रेस सेंसरशिप और सोशल मीडिया सेंसरशिप लगी हुई है। यह पीएलए के आलोचकों का मुंह बंद करने का प्रयास है। चीन के अंदर असंतोष बढ़ता जा रहा है।
मेजर जनरल ने आगे रक्षा क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता को साझा करते हुए कहा कि भारत को चीन पर भरोसा नहीं करना चाहिए और अपने क्षेत्र को कम्युनिस्ट चीनी आक्रमण से बचाने के लिए अपने बुनियादी रक्षा ढांचे का विकास करना चाहिए। उन्होंने इस संबंध में नौ विशिष्ट प्रस्तावों की ओर इशारा किया। ये नौ विशिष्ट प्रस्ताव हैं- (i) रक्षा मामलों और निर्णयों के लिए एक विशेष समिति; (ii) सीमावर्ती क्षेत्रों में अवसंरचना और संचार विकास; (iii) आत्मनिर्भरता महत्वपूर्ण है लेकिन देश की सुरक्षा को नजरअंदाज नहीं करते हुए; (iv) उचित राजनयिक तरीके से सीमा वार्ता; (v) हमारे रक्षा प्रशिक्षण सिद्धांत में अत्यधिक सावधानी बरती जानी चाहिए; (vi) संचालन योजना को कुशल और परिणामोन्मुखी बनाया जाना; (vii) भारतीय सेना में आईटीबीपी और विकास बटालियनों को बढ़ाने के लिए उठाए जाने वाले कदम; (viii) भविष्य में किसी भी लड़ाई के लिए इस्तेमाल की जाने वाली नई और अभिनव रणनीति और (ix) सुरक्षा के लिहाज से भारत की उत्तर और उत्तर-पूर्वी सीमाएं चीन का मुकाबला करने के लिए पूरी तरह तैयार रहें।
अपने संबोधन का समापन करते हुए मेजर जनरल नीलेंद्र कुमार ने कहा कि चीन ने महसूस किया है कि वह भारत की सुरक्षा के संबंध में अब और धोखाधड़ी नहीं कर सकता है। चीन का हर संभव तरीके से मुकाबला करने के लिए भारत के लिए विश्व स्तरीय शक्ति हासिल करने का भी समय आ गया है।
श्री सौम्यदीप दत्ता ने अपने संबोधन में 1962 के चीन-भारत युद्ध से लेकर गलवान संघर्ष तक के सभी शहीदों को सम्मान और श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि चीन भारत के खिलाफ एक नहीं, बल्कि तीन प्रकार के युद्ध छेड़ता है। ये भौतिक, दार्शनिक और पारिस्थितिक युद्ध हैं। भारत-तिब्बत सीमा पर शारीरिक युद्ध, भारत से उत्पन्न बौद्ध दर्शन को नष्ट करके दार्शनिक युद्ध और ब्रह्मपुत्र नदी पर कई बांधों का निर्माण करके पारिस्थितिक युद्ध। जिसे तिब्बत में त्संगपो के नाम से जाना जाता है, जो उत्तर पूर्व भारत को प्रभावित करता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत के लोगों को यह जानना चाहिए कि यह भारत-चीन सीमा नहीं है, यह भारत-तिब्बत सीमा है। हमने कभी चीन को अपना पड़ोसी नहीं माना, तिब्बत हमारा पड़ोसी है। चीन ने तिब्बत पर जबरदस्ती कब्जा कर लिया था और अब वह पूर्वोत्तर भारत पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है।
उन्होंने कहा कि ब्रह्मपुत्र नदी जो सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन रेखा है, उसे चीन द्वारा नष्ट किया जा रहा है। इसने ब्रह्मपुत्र पर एक, दो या तीन नहीं बल्कि कई बड़े बांध बनाए हैं जो अरुणाचल प्रदेश, असम और पूरे पूर्वोत्तर के लिए विनाशकारी होंगे। उन्होंने आगे कहा कि बौद्ध धर्म भारत की संस्कृति है। इसे विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में नष्ट कर दिया था लेकिन तिब्बत में इसे संरक्षित रखा गया था। चीन वर्तमान में तिब्बत में इसे नष्ट करने की कोशिश कर रहा है इसलिए इसे भारत में संरक्षित करना महत्वपूर्ण है जहां यह फल-फूल रहा है।
श्री दत्ता ने निष्कर्ष में तिब्बत के संबंध में पूर्वोत्तर भारत में विशेष रूप से नागरिक समाजों में जागरूकता पैदा करने के महत्व, भारत के लिए इसके महत्व और चीन के बुरे इरादों पर जोर दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि इसके संबंध में नागरिक समाज आंदोलन को मजबूत किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए कि: (i) तिब्बत हमारा पड़ोसी है, (ii) भारत चीन के साथ सीमा साझा नहीं करता है, और (iii) चीन एक आक्रामक देश है। उसने तिब्बत पर जबरदस्ती कब्जा कर लिया था और जो तिब्बत के साथ हुआ था वह पूर्वोत्तर भारत के साथ हो सकता है।
प्रो. वी. अंटो ने सीटीए की तुलना ब्रिटिश राज से भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान सिंगापुर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में गठित भारत की निर्वासित सरकार से की। सीटीए द्वारा लागू किए जा रहे अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित मध्यम मार्ग के रुख की सराहना करते हुए प्रो. अंटो ने यह भी संकेत दिया कि न केवल तिब्बतियों बल्कि भारत को भी कम्युनिस्ट चीन का सामना करने के लिए सैन्य रूप से तैयार होना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि तिब्बत की आवाज को बढ़ाना दूसरे शब्दों में चीन के खिलाफ भारत के मोर्चे की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
उन्होंने सीसीपी सरकार की सच्चाई को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले श्री सेतु दास और फ्रेंड्स ऑफ तिब्बत (एफओटी) के अन्य प्रतिष्ठित सदस्यों को भी याद किया। प्रो. अंटो ने 2019 में शी जिंगपिंग की पिछली भारत यात्रा के दौरान शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से अपनी आवाज व्यक्त करने वाले तिब्बती छात्रों के साथ स्थानीय भारतीय पुलिस (महाबलीपुरम में) के व्यवहार के तरीके पर भी अपना विरोध दर्ज कराया।
वेबिनार के दौरान गलवान के 20 वीर जवानों को सम्मान देने के लिए बीच में ‘माँ’ शीर्षक से एक श्रद्धांजलि गीत प्रसारित किया गया। बाद में, कुछ प्रतिभागियों ने अतिथि वक्ताओं के साथ अपने विचार और मत साझा किए।
आईटीसीओ दिल्ली के समन्वयक श्री जिग्मे त्सुल्ट्रिम ने भारत के उन बहादुर जवानों को हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने भारत-तिब्बत सीमा पर देश की सीमा की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी।
आईटीसीओ दिल्ली के उप समन्वयक श्री तेनज़िन जॉर्डन ने परिचयात्मक टिप्पणी दी जिसमें उन्होंने इस दिवस के महत्व और जवानों द्वारा दिखाई गई बहादुरी के बारे में बताया।वेबिनार के अंत में प्रतिभागियों ने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले सभी शहीदों को सम्मान और श्रद्धांजलि देने के लिए दो मिनट का मौन रखा।