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थाकचेन चोलिंग, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत। आज 12 अप्रैल की सुबह, सोफिया स्ट्रिल-रेवर ने परम पावन दलाई लामा के धर्मशाला स्थित उनके निवास स्थान से परम पावन और फ्रांसीसी ‘बी लव द प्रोग्राम’ तथा कनाडाई ‘वन बेटर वर्ल्ड कलेक्टिव’ के मेहमानों के बीच वार्तालाप का आयोजन कराया। उन्होंने इस बात पर गौर किया कि स्थायी भविष्य की कुंजी एक परोपकारी मानसिकता में है जो प्रतिस्पर्धा की जगह सहयोग करती है और लोगों की भलाई के लिए काम करती हो। उन्होंने परम पावन को आमंत्रित कर यह समझाने का आग्रह किया कि कैसे 21वीं सदी में परोपकारी प्रेम का भाव रखने से हम अपने बीच के विभाजनों को ठीक कर सकते हैं और वास्तविक रूप से वैश्विक शांति, न्याय और खुशी की ओर बढ़ सकते हैं?
परम पावन ने अपना संबोधन शुरू करते हुए कहा, ‘अब, मैं 86 साल का हो गया हूं। मैंने अपने जीवनकाल में कई तरह के युद्धों में बहुत खून-खराबा देखा है। इस तरह की हिंसा का परिणाम सिर्फ पीड़ा और अधिक घृणा है। यह एक कारण है कि मैं यूरोपीय संघ की प्रशंसा करता हूं। इसके सदस्यों में कई ऐसे राष्ट्र शामिल हैं जो ऐतिहासिक रूप से सदियों से एक-दूसरे से लड़ते रहे हैं। इनमें फ्रांस और जर्मनी नियमित रूप से लड़नेवालों में रहे हैं। हालांकि, दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद उन्होंने महसूस किया कि अपने पड़ोसी को दुश्मन के रूप में देखना कोई अच्छी बात नहीं है। इस पर विचार करें कि उस भीषण युद्ध में कितने लोगों की जान चली गई है और इसके बाद के पिछले 70 सालों से अब तक के शांति काल में कितने लोगों की जान बची है।’
उन्होंने आगे कहा, ‘आज, हमें पूरी मानवता के बारे में सोचना होगा। अपने राष्ट्र या महाद्वीप के बारे में सोचने भर से अब काम नहीं चलने वाला है। अब पूरी दुनिया के बारे में सोचना होगा। हमें यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि हम सभी वैश्विक अर्थव्यवस्था का हिस्सा हैं और हम सभी को जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से खतरा है।’
उन्होंने कहा, ‘बुनियादी स्तर पर हम सभी मनुष्य समान हैं। हमारी त्वचा के रंग, हमारी आँखों के आकार या हमारी नाक के आकार में मामूली अंतर हो सकते हैं। लेकिन जब भावनाओं और चेतना की बात आती है, तो हम सब एकसमान हो जाते हैं।’
परम पावन ने कहा, ‘मैं मानवता की एकता के बारे में व्यापक जागरुकता को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हूं। जब मैं तिब्बत में था, मैं स्वीकार करता हूं कि तब मैं केवल अपने देशवासी तिब्बतियों के बारे में ही सोचता था। लेकिन भारत में निर्वासन में आने के बाद मैंने कई अलग-अलग जगहों के लोगों से मुलाकात की और उनसे दोस्ती की। मुझे एहसास हुआ कि इंसान होने के नाते हम सभी समान हैं।’
उन्होंने कहा, ‘जैसा कि मैंने पहले भी कहा है, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम पूरी दुनिया के बारे में सोचते हैं। यह यथार्थवादी है। हमें मानवता की एकता को याद करने की आवश्यकता है। धर्म, नस्ल या राष्ट्रीयता को लेकर हमारे बीच के अंतर हमारे मानव होने की तुलना में दोयम दर्जे की बात है।’
उन्होंने कहा, ‘आप धार्मिक हैं या नहीं, यह आपका व्यक्तिगत मामला है। लेकिन यह सार्वभौम तथ्य यह है कि हमारी सभी धार्मिक परंपराएं प्रेमपूर्ण करुणा के महत्व का संदेश देती हैं। यही कारण है कि सभी धर्म एक साथ रह सकने में समर्थ हैं। इसलिए मैं विभिन्न धर्मों के बीच सद्भाव को प्रोत्साहित करने को लेकर प्रतिबद्ध हूं।’
‘मैं आप सभी मित्रों से एक खुशहाल दुनिया और एक खुशहाल मानवता का निर्माण करने की कोशिश में शामिल होने का आग्रह करता हूँ। अब कुछ प्रश्न हैं।’
वन बेटर वर्ल्ड कलेक्टिव के इयान स्पीयर ने बताया कि मेहमानों के बीच छह समूह हैं। उनके सदस्य अपना परिचय देंगे और उनमें से एक समूह की ओर से एक प्रश्न पूछा जाएगा।
यंग एक्टिविस्ट्स ग्रुप के सदस्यों- विवियन हर्र, राहीन फातिमा और क्लोवर होगन ने सबसे पहले अपना परिचय दिया। क्लोवर ने पूछा, ‘आपने खुद को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार बनाने का फैसला कब किया और इसके बारे में क्या किया?’
परम पावन ने उत्तर दिया कि वे एक धार्मिक व्यक्ति हैं जिन्हें बचपन से ही प्राणिमात्र के लिए चिंता करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। निर्वासन में मैं दुनिया के कई अलग-अलग हिस्सों के लोगों से मिला। तब मैंने महसूस किया कि हम सभी मनुष्य शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से समान हैं। इसके बावजूद हमारे बीच विभाजन की गहरी खाई है, जो संघर्ष और हिंसा की ओर जाती है। अतीत में लोगों का संकीर्ण दृष्टिकोण होना स्वाभाविक था; उनकी चिंता अपने ही देश तक सीमित है। अब, हमें पूरी दुनिया के बारे में सोचना होगा। यह यथार्थवादी और व्यावहारिक लाभ दोनों है।
उन्होंने कहा, अब मैं जहां भी जाता हूं, जो भी मुझसे मिलता है वह सब मेरे लिए सिर्फ और सिर्फ एक इंसान होता है। दूसरे व्यक्ति के बारे में केवल ‘अपने’ और ‘पराए’ की श्रेणी में डालकर सोचने का विचार पुराना है और समस्याओं का स्रोत है।’
दूसरे समूह से माइकल रेंडर ने जानना चाहा कि प्यार लेकर अक्सर डर क्यों रहता है। परम पावन ने उन्हें बताया कि संकीर्ण विचारधारा अवास्तविक है। संपूर्ण विश्व के बारे में चिंतित होने के लिए इससे और अधिक महत्वपूर्ण क्या है।
अगले समूह से बेअट्रिस मार्टिन ने पूछा कि हम अधिक समानता कैसे प्राप्त कर सकते हैं।
परम पावन ने स्पष्ट किया कि ‘हम सभी मनुष्य एक समान ही हैं।’ हालांकि पुरुषों और महिलाओं के बीच थोड़ा सा अंतर है। जब शारीरिक ताकत के संदर्भ में तुलना की जाती है तो महिलाएं आमतौर पर इतनी मजबूत नहीं होती हैं। हालांकि बुद्ध ने पुरुषों और महिलाओं को समान अधिकार प्रदान किए। और जहां तक बुद्धि और ज्ञान का सवाल है, इनके बीच कोई अंतर नहीं है, न ही पुरुषों और महिलाओं के दिमाग में ही कोई अंतर है। हमें पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता लाने के लिए अधिक से अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। और इस समानता को लाने में जब धार्मिक विश्वास या पारंपरिक रीति-रिवाज बाधा बन रहे हों तो उन्हें बदलने का समय आ गया है। ‘मोटे तौर पर पुरुषों और महिलाओं को एक-दूसरे की ज़रूरत होती है और दोनों की ज़रूरत बराबर होती है।’
वूमेन इन्फ्लुएंसर्स समूह की ओर से खुद को पेश करनेवाली मोज्जादा जमालज़दा ने परम पावन को बताया कि उनकी मातृभूमि- अफगानिस्तान कैसे विभाजित और नष्ट हो गई है। स्टेफ़नी बेनेटेटो और सुसान रॉकफेलर ने भी अपना परिचय दिया और रॉकफेलर ने परम पावन से पूछा कि उनकी शिक्षाएं महिलाओं को खुद की, दूसरों की और पृथ्वी की देखभाल करने में कैसे मदद कर सकती हैं।
उन्होंने उनसे कहा, मेरी मुख्य रुचि लोगों को उत्साहित बनाने के लिए ऊर्जा का संचार करना है। जैसे ही हम पैदा होते हैं, हमारी मां हमारी देखभाल करती हैं। वे हमें दूध पिलाती हैं। महिलाएं कमोबेश दूसरों की भावनाओं के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। स्वभाव से वे अधिक दयालु होती हैं। इसलिए हमें महिलाओं को अधिक सक्रिय करने की आवश्यकता है। कभी-कभी मैं यह अनुमान लगाता हूं कि अगर हमारे पास अधिक महिला नेता होतीं, तो दुनिया एक सुरक्षित जगह होती। फिनलैंड और न्यूजीलैंड और उनकी महिला नेताओं की उपलब्धियों को देखें।
उन्होंने कहा, ‘हम सभी के अधिकार समान हैं, लेकिन मुझे लगता है कि यह महिलाओं के लिए सार्वजनिक जीवन में अधिक जिम्मेदारी लेने का समय है। हमें उन्हें करुणा के प्रचार में शामिल करने की आवश्यकता है।’
पांचवें समूह से अनुभवी गायक और शांतिवादी बफी सैंटे-मैरी ने पूछा कि हम गलत बातों का सामना करुणापूर्ण तरीके से करने के लिए क्या कदम उठा सकते हैं।
परम पावन ने उत्तर दिया, ‘शिक्षा के माध्यम से।’ महिलाओं के बारे में किसी से कम करके सोचना या उन्हें दूसरों से हीन समझने की मानसिकता को बदलना चाहिए। अधिक शांतिपूर्ण दुनिया हासिल करने के लिए महिलाओं को भी अपनी भूमिका निभाने में सक्षम होना चाहिए।
सूडान के शांति कार्यकर्ता समूह इमानुएल की ओर से शीहुतेज़क्लाट मार्टिनेज, मैसी वाइटकनॉफ और इमैनुएल जल ने अपना परिचय सूझान के शरणार्थी के रूप में दिया। उन्होंने परम पावन से पूछा कि उन्होंने कैसे निर्वासन के कष्टों से उबरने का क्या रास्ता देखते हैं। परम पावन ने उत्तर दिया कि तिब्बत और चीन के बीच संबंध लंबे समय से चल रहे हैं और कम से कम सातवीं शताब्दी से तो बने हुए हैं ही, जब एक तिब्बती राजा ने एक चीनी राजकुमारी से शादी की थी। उन्होंने कहा, यह चीन में प्रचलित अधिनायकवादी प्रणाली है, यही समस्या है। यह बात यहां तक आ गई है कि संकीर्णतावादी कम्युनिस्ट अधिकारी तिब्बती भाषा और संस्कृति को बचाने की कवायद को अलगाववाद से जोड़कर देखते हैं और उन्हें खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं।
‘जब मैं 1954 में चीन गया था तो मैं माओ के और अन्य कम्युनिस्ट नेताओं के साधारण श्रमिक वर्ग के कल्याण के प्रति प्रतिबद्धता से प्रभावित था। लेकिन बाद में उन्होंने जिस तरह से सत्ता का इस्तेमाल किया और तिब्बत में हिंसक उत्पीड़न किया, उससे समस्याएं पैदा हुईं और हमें वहां से भागना पड़ा।
उन्होंने कहा कि मानवता की एकता के संदर्भ में हम सभी को शांति और मानवीय रूप से एक साथ रहना होगा। हम चीनी और तिब्बतियों के बीच मतभेदों पर ध्यान नहीं देते हैं। हम तिब्बत से भाग आए क्योंकि खतरा था। मैं भारतीय सीमा में पुराने दोस्तों से मिला था। बाद में मैं पंडित नेहरू से मिला और वह बहुत सहयोगी थे। उन्होंने हमें अपने बच्चों के लिए शिक्षा संस्थान स्थापित करने और भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए अध्ययन केंद्रों की स्थापना में मदद की।
‘मैं शरणार्थी हूं, लेकिन मैं भारत सरकार का मेहमान भी हूं। हम इस बात से प्रसन्न हैं कि हम अपनी उस प्राचीन संस्कृति को बनाए रखने में सक्षम हैं, जो शांतरक्षित के तिब्बत आने और तिब्बत के लोगों को बौद्ध धर्म से परिचय कराने की आठवीं शताब्दी की तारीख तक पीछे जाती है। उन्होंने नालंदा परंपरा की स्थापना की, कारण और तर्क पर आधारित प्रशिक्षण का एक तरीका ईजाद किया। परिणामस्वरूप, हम वैज्ञानिकों के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने में सक्षम हुए हैं।’
उन्होंने कहा, ‘अगर हम शरणार्थी नहीं बनते तो हमारा दृष्टिकोण अधिक सीमित होता। मेरा मानना है कि एक शरणार्थी के रूप में मैं अधिक व्यावहारिक हो गया हूं।’
मिकिस्यू क्री फर्स्ट नेशन की सदस्य मैसी वाइटकनॉफ ने पूछा कि क्या अपने लोगों को प्यार, सम्मान, साहस, ईमानदारी, ज्ञान, विनम्रता और सच्चाई से संबंधित पारंपरिक शिक्षा मानवता और पृथ्वी को ठीक कर सकती है।
परम पावन ने उत्तर दिया कि देशी लोग आमतौर पर प्रकृति के अधिक निकट रहते हैं। आखिर संवेदनशील प्राणी के रूप में हम प्रकृति पर निर्भर हैं। इसलिए हमें उसके साथ अपने करीबी संबंधों को संरक्षित करना चाहिए। कभी-कभी हमें लगता है कि तकनीक हमारी समस्याओं को हल कर देगी और हमें जो पसंद है वह करने की अनुमति देगी। लेकिन हमें प्रकृति की शक्ति पर भरोसा करने होंगे। उदाहरण के लिए हमें ऊर्जा पैदा करने के लिए जीवाश्म ईंधन को जलाने पर अंकुश लगाने की जरूरत है और हवा, खेत और सौर ऊर्जा पर निर्भर होना चाहिए।’
रहीम फातिमा के इस सवाल कि क्या परम पावन उसकी उम्र में थे तो क्रांतिकारी थे, के जवाब में परम पावन ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपनी प्रारंभिक रुचि को स्वीकार किया। एक बार उनकी बातचीत के बाद माओत्से तुंग ने उनकी वैज्ञानिक सोच की प्रशंसा की। लेकिन जब माओ ने मेरी आंख में देखा और घोषित किया कि धर्म लोगों की अफीम है, तो परम पावन को सदमा लगा और उसे उन्होंने छुपा दिया। जब वे चीन में थे तो उन्होंने समाजवाद का ज्ञान प्राप्त किया, लेकिन उस समाजवाद का, जो सख्त पार्टी नियंत्रण के बजाय व्यक्तिगत स्वतंत्रता की अनुमति देता है।
परम पावन ने स्टेफ़नी बेनेडेट्टो को बताया कि वह दुनिया के कष्टों के बावजूद हंसने और आनंदित रहने में सक्षम है क्योंकि नालंदा परंपरा में प्रशिक्षित एक बौद्ध भिक्षु के रूप में वह परोपकारिता में विश्वास करते हैं। उन्होंने कहा कि जैसे ही मैं सुबह उठता हूं, परोपकार की अपनी भावना और उसकी समझ को फिर से जागृत करता हूं कि सब कुछ निर्भरता से उत्पन्न होता है। इससे मन को गहरी शांति मिलती है।
चीजों की सामान्य स्थिति में समस्याएं होती हैं, लेकिन शांतिपूर्ण, प्रसन्न मन के साथ उनसे संपर्क करना अधिक फलदायी होता है। चिंतित या पदावनत महसूस करना ज्यादा उपयोगी नहीं है। उपकार करने की भावना मदद करती है। मैं उत्साहित रहने और लोगों के साथ अनुभव साझा करने में विश्वास करता हूं।’
बफी सैंटे-मैरी ने अनुभव बताया कि सेब के पकने को तेज करना मुश्किल है, लेकिन आश्चर्य है कि किसी व्यक्ति के पकने को तेज करना संभव है। परम पावन ने दोहराया कि मनुष्य अपनी माताओं से दया और करुणा के बारे में सीखते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि हम सामाजिक प्राणी हैं। हमें अपने समुदाय के लिए एक स्वाभाविक चिंता है। गर्मजोशी अपने साथ आंतरिक शांति का एहसास दिलाती है। यह क्रोध, ईर्ष्या और भय का निराकरण करनेवाली शक्ति है। अगर आप गुस्से में बने रहेंगे, तो कोई भी आपके साथ नहीं रहना चाहेगा। लेकिन अगर आपके पास मन की शांति है तो दोस्त आपके आसपास इकट्ठा होंगे। यह सामान्य बात है।
इयान स्पीयर ने परम पावन को बताया कि उनके साथ बात करके वह सम्मानित महसूस कर रहे हैं। सोफिया स्ट्रिल-रेवर ने परम पावन, उनके कार्यालय और उन सभी को धन्यवाद दिया जिन्होंने ऑनलाइन वार्तालाप को आयोजित करने में योगदान दिया।
उन्होंने कहा, ‘मानवता की सेवा में प्रेम का आपका अनुपम उदाहरण प्रेरणा, साहस और आशा का स्रोत है। कृपया आप अपना ख्याल रखें और सानंद रहें।’
परम पावन ने इस पर जवाब दिया, ‘फिर मिलेंगे।’ उन्होंने कहा भाइयों और बहनों के रूप में हम सभी का दायित्व है कि हम एक खुशहाल मानवता और अधिक शांतिपूर्ण दुनिया के निर्माण में योगदान दें। इसे अपने दोस्तों के साथ साझा करें। बदलाव कदम दर कदम आता है।