लेखा महा परीक्षक
केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के लेखा महापरीक्षक (ओएजी) का कार्यालय 1962 में गठित किया गया था और यह कशाग (कैबिनेट) के तहत एक सचिव की अध्यक्षता में कार्यकारी निकाय के रूप में कार्य करता था। इसका प्रमुंख कार्यकारी प्रमुख होता था। 1991 में इस कार्यालय को निर्वासित तिब्बती चार्टर के अनुसार स्वायत्त निकाय के रूप में कमीशन किया गया था, जो सीधे परम पावन दलाई लामा के प्रति जवाबदेह था। लेखा महा परीक्षक के कार्यालय के चार्टर और विनियमन के अनुसार, ओएजी के पास सभी सीटीए विभागों और उसकी सहायक कंपनियों, स्वायत्त संस्थानों जैसे सहकारी समितियां, व्यापारिक प्रतिष्ठान, शैक्षणिक संस्थान, सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र और अस्पताल आदि जो सीटीए के दायरे में आते हैं, के खातों का ऑडिट करने की शक्ति और जिम्मेदारी है। साथ ही यह पूरी तरह या आंशिक रूप से सीटीए और स्व-वित्त पोषित स्वायत्त संस्थानों द्वारा वित्त पोषित हैं। चूंकि लेखा महा परीक्षक का कार्यालय सीटीए का सर्वोच्च लेखा परीक्षा संस्थान है, इसलिए इसकी लेखा परीक्षा का दायरा केवल वित्तीय लेखा परीक्षा तक ही सीमित नहीं है। इसके पास आवश्यक समझे जाने पर मनी ऑडिट, सिस्टम ऑडिट, मैनेजमेंट ऑडिट आदि के लिए मूल्य का संचालन करने की शक्ति भी है। अब तक, जनशक्ति की कमी और लेखा परीक्षा के अन्य क्षेत्रों में विशेषज्ञता की कमी के कारण, हम केवल वित्तीय और नियामक लेखा परीक्षा पर ही ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। लेखा महा परीक्षक के कार्यालय का नेतृत्व एक लेखा महा परीक्षक द्वारा किया जाता है, जिसे सीधे परम पावन दलाई द्वारा हाल तक यानी उनके द्वारा सत्ता के हस्तांतरण तक नियुक्त किया जाता रहा है। इसके बाद अब अगला लेखा महा परीक्षक 2011 के संशोधित चार्टर के अनुसार निर्वासित तिब्बती संसद द्वारा नियुक्त किया जाएगा। महालेखा परीक्षक दस वर्ष की अवधि के लिए या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो, तक पद धारण करता है।