बीजिंग ,प्रेट्र । हिमाचल से सटे तिब्बत के ग्रामीण इलाकों में चीनी भाषा में शिक्षा के विरोध पर चीन ने नई योजना बनाई है। उसने प्रस्ताव रखा है कि इस इलाके के नन्हें -मुन्नों को किंडारगार्टन कक्षाओं में दो भाषाएं पढाई जानी चाहिए। तिब्बती भी औऱ मंदारिन भी । 2015 तक दो साल की इन कक्षाओं के लिए कोई शुल्क भी नहीं लिया जाएगा । तिब्बती आंदोलनकर्ताओं को यह प्रस्ताव पसंद नही आया है। उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में चीन की भाषा मंदारिन में अनिवार्य शिक्षा का तिब्बती छात्र और उनके अभिभावक जबर्दस्त विरोध कर रहे थे। उनका कहना है कि ऐसा करके चीन उनकी भाषा और संस्कृति को खत्म करने का षड्यंत्र रच रहा है । चीन के शिक्षा विभाग के प्रवक्ता के अनुसार , प्रस्तावित नई नीति से 24.5 फीसदी के मुकाबले करीब 60 फीसदी बच्चे किंडरगार्टन जाने लगेंगे । उन्होंने कहा इस कदम का लक्ष्य कृषि एंव पशुपालन पर निर्भर रहने वाले तिब्बतियों की बाल शिक्षा में सुधार लाना और बच्चों की तिब्बति और चीनी भाषा में उनकी कुशलता बढा कर उन्हें औपचारिक स्कूल शिक्षा के लिए तैयार करना है । नई योजना की तिब्बती कार्यकर्ता सेरांग वोएजर ने कहा , द्विभाषा शिक्षा नीति 1980 से तिब्बत में किंडरगार्टन को छोडकर प्राथमिक , माध्यमिक और हाई स्कूलों में लागू है । साफ संकेत है कि तिब्बति भाषा को नए सिरे से हाशिए पर ढकेला जा रहा है ।
तिब्बतियों को चीनी पढाने का नया हथकंडा।
[रविवार, 5 दिसम्बर, 2010 | स्रोत : राष्ट्रीय संस्करण दैनिक जागरण]
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