तिब्बत देश है एक पवित्र धाम
इसमें है अवतारियों की खान
सभी को है अपने देश से प्यार
न करो वार
किसी और देश पर मेरे यार
सिकन्दर चला था जीतने दुनिया को
हुआ क्या अंजाम यह सबने जाना
पहुँच न पाया घर अपने
यह वक्त ने हमको सिखलाया
दोहराओं मत फिर वही कहानी
होगा अंजाम वही दुबारा
जीतना हो अगर तो
लोगों के दिलों को जीतो
क्यों पड़ोसी के खिड़की में झाँके
बौद्ध भिक्षुओं को न सताओ तुम
जो है बंधन में
उन्हें खुलवाओ तुम
क्योंकि घड़ा अभी भरा नहीं
भर जाएगा जिस दिन घड़ा
फिर उठेगा एक ऐसा लहर
मानव जाति पर बनकर कहर
जगमग है यह सारी दुनिया
फिर तिब्बत में क्यों है अंधेरा
ये पैगाम है मेरा
सभी देशों के नाम है
चाहे कर लो दुनिया मुठी में
कविता लेखक- शेर सिंह मेरूपा
एक दिन सरसों के दाने की तरह
फिसलेगी ज़रूर।
कविता लेखक – शेर सिंह मेरूपा