पंथ अनेक, सच एक
तेनजिन ग्यात्सो- परम पावन दलाई लामा- 24 मई, न्यूयॉर्क टाइम्स
जब मैं तिब्बत में एक बच्चा था तो मुझे लगता था कि मेरा बौद्ध धर्म ही सबसे अच्छा है और दूसरे धर्म इससे कुछ निम्न कोटि के हैं। आज मुझे लग रहा है कि मैं कितना भोला था और आज किसी धार्मिक असहिशणुता की अति कितनी खतरनाक हो सकती है।
हालांकि, असहिशणुता भी उतनी ही पुरानी है जितने कि स्वयं धर्म, लेकिन हम अब भी इसकी कड़वाहट के लक्षण देख रहे हैं। यूरोप में आने वाले नए लोगों के बुर्का पहनने या मीनारें खड़ी करने को लेकर गहन बहस चल रही है और वहां मुस्लिम प्रवासियों के खिलाफ हिंसा की कई घटनाएं हुई हैं। उग्र नास्तिक लोग धार्मिक विशवास रखने वालों की आंख मूंदकर आलोचना करते हैं। मध्य पूर्व में विभिन्न पंथों से जुड़े लोगों के बीच घृणा की वजह से ही युद्ध की लपटें भड़कती रही हैं।
इस प्रकार का तनाव और बढ़ता ही दिख रहा है क्योंकि दुनिया एक-दूसरे से अब ज्यादा जुड़ गई है और संस्कृति, लोग और धर्म अब एक-दूसरे से ज्यादा गुंथित हो गए हैं। इन सबसे जो दबाव बना है वह हमारे सहनुशीलता की ज्यादा परीक्षा ले रहा है-इससे इस बात की जरूरत है कि हम शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को बढ़ावा दें और सभी देशों के लोगों में समझ बढ़ाने का प्रयास करें।
कुछ हद तक हर धर्म में अपनी मुख्य पहचान के हिस्से के रूप में एक अलगाव की भावना होती है। फिर भी मेरा मानना है कि पारस्परिक समझ की वास्तविक संभावना है। अपनी परंपरा के पंथ के संरक्षण के साथ ही कोई व्यक्ति दूसरी परंपराओं का भी सम्मान, तारीफ और आदर कर सकता है। मेरे लिए सबसे पहले आंख खोलने वाली बात थी भारत में टैपिस्ट संत थॉमस मेर्टन से मुलाकात जो 1968 में उनकी कुसमय मौत से कुछ दिनों पहले ही हुई थी। मेर्टन ने मुझे बताया कि वह इसाइयत के प्रति पूरी तरह आस्था रखते हैं, लेकिन बौद्ध जैसे अन्य धर्मों का भई गहन अध्ययन करते हैं। मेरे मामले भी यही सच है। एक प्रबल बौद्ध होने के बावजूद दुनिया के अन्य सभी महान धर्मों का अध्ययन कर रहा हूं।
इस मुलाकात की मुख्य बात मेर्टन से मेरी यह चर्चा थी कि किस प्रकार इसाइयत और बौद्ध, दोनों का मुख्य संदेश करूणा है। न्यू टेस्टामेंट के अध्ययन से मैंने पाया कि मैं ईशा मसीह के करूणामयी कार्यों से प्रभावित हो गया हूं। लोएव्स और मछलियों का उनका चमत्कार, उनके उपचार और उनके सभी कार्य इस इच्छा से प्रेरित होते थे कि पीड़ितों को राहत मिले। मेरा इस ताकत में दृढ़ता से भरोसा है कि व्यक्तिगत संपर्क से मतभेदों को कम किया जा सकता है, इसलिए मैं लंबे समय से दूसरे धार्मिक विचारों वाले लोगों से संवाद बढ़ाने का इच्छुक रहा हूं। मेर्टन और मैंने जिस करूणा को दोनों धर्मों के केंद्र के रूप में पाया, वह मुझे सभी प्रमुख पंथों को जोड़ने वाला एक मजबूत धागा लग रहा है। इन दिनों हमें इस बात को रेखांकित करने की जरूरत है कि हमें कौन सी बात जोड़ती है।
मैं यहूदी धर्म का उदाहरण लेता हूं। मैं सबसे पहले भारत में 1965 में एक सिनागॉग देखने गया था और मैं इसके बाद के सालों में कई रब्बी-यहूदी गुरूओं-से मिला हूं। मुझे नीदरलैंड में एक रब्बी से मुलाकात अब भी अच्छी तरह याद है जिन्होंने मुझे होलोकॉस्ट-यहुदियों के संहार-की बातें ऐसी मार्मिकता से बताई कि हम दोनों की आंखों में आंसू आ गए । और मुझे याद आया कि किस प्रकार टालमुड और बाइबिल दोनों में बार-बार करूणा की बात की गई है, जैसे कि लेविटिकस के उद्धहरण में फटकार लगाते हुए कहा गया है,- अपने पड़ोसियों से भी उतना ही प्यार करो जितना खुद से करते
हो।
भारत में हिंदु विद्वानों से कई बार चर्चा के दौरान मैंने यह पाया है कि हिंदुत्व का मूल भी निस्वार्थ करूणा की भावना है, जैसा कि भगवद् गीता में कहा गया है, जो उन लोगों की तारीफ करता है जो सबके कल्याण में खुशी महसूस करते हैं। मेरा मानना है कि महात्मा गांधी जैसे महापुरूशों या बाबा आमटे जैसे लोगों के जीवन में भी इसी मूल्य की अभिव्यक्ति हुई है। बाबा आमटे ने भारत के महाराष्ट राज्य में एक तिब्बती बस्ती के नजदीक कुष्ठ आश्रम की स्थापना की है। वहां वे ऐसे कुष्ठ रोगियों को आश्रय और भोजन देते हैं जो उपेक्षित पड़े हुए थे। जब मैंने नोबेल शांति पुरस्कार हासिल किया तो इस आश्रम को भी कुछ दान दिया।
इस्लाम में भी करूणा का उतना ही महत्व है, और इसे स्वीकार करना 11 सितंबर के बाद के सालों में और भी महत्वपूर्ण हो गया है, खासकर उन लोगों को जवाब देने के लिए जो इस्लाम को एक लड़ाकू धर्म के रूप में चित्रित करना चाहते हैं। 11 सितंबर के हमलों की पहली वर्षगांठ पर मैंने वाशिंगटन के नेशनल कैथेडरल में भाषण देते हुए कहा था कि हमें मीडिया में छप रही सभी बातों के पीछे आंख मूदकर नहीं चलना चाहिए और कुछ लोगों की हिंसक कार्रवाई को पूरे धर्म से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। मैं इस्लाम के बारे में अपनी कुछ जानकारी आप तक पहुंचाना चाहता हूं।
तिब्बत में करीब 400 साल तक इस्लामी समुदाय का प्रभाव रहा है, इसके बावजूद इस्लाम से मेरा सबसे अच्छा संपर्क भारत में हुआ है, जहां दुनिया में दूसरी सबसे ज्यादा मुस्लिम जनसंख्या रहती है। लद्दाख के एक ईमाम ने मुझे एक बार बताया था कि एक सच्चे मुसलमान को अल्लाह के रचे हुए सभी प्राणियों से प्यार और सम्मान करना चाहिए । जहां तक मेरी समझ है, इस्लाम में भी करूणा ही मुख्य आध्यात्मिक सिद्धांत है जो उनके ईशवर के नाम-अल्लाह यानी करूणामय और दयावन-से ही प्रदर्शित होता है जो कुरआन के हर अध्याय की शुरूआत में अंकित है।
विभिन्न पंथों में साझे आधार की तलाश से हमें ऐसे समय में बेकार के बंटवारे को पाटने में मदद मिलेगी जब एक होकर कार्य़ करना इतना महत्वपूर्ण हो गया जितना पहले कभी नहीं था। एक प्राणी के रूप में हमें मानवता की एकता को निशिचत रूप से अपनाना चाहिए क्योंकि आज हमारे सामने आर्थिक संकट, पारिस्थितिकीय विनाश जैसे कई अंतर्राष्ट्रीय मसले हैं। इन सबके लिए हमें एक होकर कार्य़ करना होगा।
हमारी दुनिया में शांतिपूर्ण सहयोग के लिए सभी प्रमुख पंथों के बीच शांति एक महत्वपूर्ण जरूरत बन गई है। इस लिहाज से विभिन्न परंपराओं के बीच पारस्परिक समझ बढ़ाने की जरूरत सिर्फ धर्म को मानने वालों की ही नहीं, बल्कि यह पूरे मानवता के कल्याण के लिए जरूरी है।
तेनजिन ग्यात्सो, 14वें दलाई लामा ने हाल में एक पुस्तक टुवर्ड्स अष्टू किनशिप आँफ फेथसः हाउ द वलर्डस रिलीजंस कैन कम टुगेदर लिखी है।