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धर्मशाला। आज 12 फरवरी को धर्मशाला में एक संवाददाता सम्मेलन में मेंत्सेखांग (सोवा रिग्पा) और मणिपुर अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के बीच एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए।
अपनी स्थापना के बाद से मेंत्सेखांग ने कई संस्थानों के साथ सहयोग किया है। हालांकि, मेंत्सेखांग के निदेशक ताशी त्सेरिंग फुरी ने दावा किया कि एमआईयू द्वारा अपने कुलाधिपति डॉ.हरिराज कुमार पल्लथडका के नेतृत्व में की गई यह दोस्ती और साझेदारी एक ऐतिहासिक है।
इससे पहले जब परम पावन दलाई लामा ने मणिपुर की राजधानी इम्फाल की पहली यात्रा की थी, उस समय विश्वविद्यालय ने तिब्बती चिकित्सा और ज्योतिष के लिए एक केंद्र बनाने का प्रस्ताव दिया था। परम पावन ने उनके दृष्टिकोण और प्रयासों की भी सराहना की और कहा, “आपका विश्वविद्यालय न केवल मणिपुर में, बल्कि भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में और उसके बाहर भी एक महत्वपूर्ण आवश्यकता को पूरा करेगा”।
एमआईयू ने परियोजना को पूरी वित्तीय मदद देने का वादा किया है और इसके अलावा, सोवा-रिग्पा परिसर के निर्माण के लिए 2500 एकड़ भूमि मुफ्त में देने की पेशकश की है। बदले में, मेंत्सेखांग मानव संसाधन की जरूरतों के साथ सहयोग करने के लिए सहमत हो गया है। मेन्त्सेचांग 1 मार्च 2020 को इम्फाल में एमआईयू के मुख्यालय में एक उप परिसर की शुरुआत करेगा।
डॉ.हरिकुमार ने अपने संबोधन में घोषणा की कि एकआईयू में जल्द ही सोवा रिग्पा और इसके अन्य विषयों में डिग्री पाठ्यक्रम शुरू होंगे। नवसृजित समझैते पर बोलते हुए उन्होंने कहा, “आज की हमारी साझेदारी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्थायी संबंध बनाएगी।” उन्होंने आगे उल्लेख किया कि आज की दुनिया में सोवा-रिग्पा की आवश्यकता अत्यावश्यक है और इसका संरक्षण आवश्यक है।
उन्होंने कहा, “हमें सोवा रिग्पा की न केवल रक्षा करने की जरूरत है बल्कि इसका प्रचार और प्रसार करना चाहिए।”
मणिपुर विश्वविद्यालय के साथ मेत्सेखांग के इस सहयोग से न केवल मणिपुर के समुदाय को एक समग्र दृष्टिकोण प्राप्त होगा, बल्कि इस क्षेत्र में रहने वाले तिब्बती समुदाय के साथ उसके संबंधों में सुधार की दिशा में और मजबूती आने की संभावना है।
मणिपुर अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय एक स्वायत्त राज्य वैधानिक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय है जो मणिपुर सरकार द्वारा स्थापित और मान्यता प्राप्त है। मेत्सेखांग एक धर्मार्थ, सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्थान है।
धर्मशाला में 1961 में परमपावन दलाई लामा द्वारा स्थापित शिक्षण, साधना और चिकित्सा विज्ञान के लिए भारत का सबसे पुराना, सबसे बड़ा और सबसे प्रतिष्ठित सोवा-रिग्पा संस्थान है।