इटली। वर्तमान में चल रहे इतालवी संसदीय सत्र के दौरान वहां के सांसद माननीय मेट्टओि लुंगी बिंची ने अपने भाषण में तिब्बतियों और हांगकांग के लोगों पर चीनी दमन और उनके मौलिक अधिकारों के हनन पर पर गहरी चिंता जतायी।
तिब्बत के मामले पर विस्तार से अपनी बात रखते हुए मेट्टओि लुंगी ने कहा कि ‘कम्युनिस्ट पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के एकदलीय शासन द्वारा स्वतंत्रता का दमन करना कोई नई बात नहीं है।‘ उन्होंने आगे ल्हासा तक एक सड़क बनने के साथ तिब्बत में लाए गए विनाश का वर्णन इस प्रकार किया, ‘1950 में उन्होंने ल्हासा के लिए एक संपर्क सड़क का वादा किया, जो तिब्बतियों के लिए शांति और समृद्धि लाने वाला था। लेकिन इसकी असलियत कुछ और थी। वास्तव में सड़क का निर्माण किया गया, लेकिन इसके जरिए टैंकों, राइफलों और सैनिकों का आगमन हुआ, जिन्होंने पूरे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।
मेट्टओि लुंगी बिंची ने संसद में समझाते हुए कहा, ‘मार्च 1959 में तिब्बती विद्रोह के क्रूर दमन ने 14वें दलाई लामा और हजारों तिब्बतियों को भारत में निर्वासन में भागने के लिए मजबूर कर दिया, जहां दलाई लामा तब से निवास कर रहे हैं।‘
तिब्बत और हांगकांग में निराशाजनक मानव अधिकारों की स्थिति के बारे में इतालवी सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए श्री मेट्टओि लुंगी बिंची ने सरकार से सवाल किया कि ‘क्या ये स्थितियां सहनीय हैं’? (…), तिब्बत, होंगकांग और इस तरह के अन्य क्षेत्रों में जहां लोगों के मौलिक अधिकारों पर बीजिंग का अस्वीकार्य दमन जारी है, इसे अनदेखी करने का क्या हम नाटक नही कर रहे हैं?’
श्री मेट्टओि लुंगी ने चीन जैसे ‘रणनीतिक’ और ‘वाणिज्यिक सहयोगी’ के साथ संबंधों के मामले में ‘स्पष्ट रुख’ अपनाने की मांग की। विशेष रूप से इटली जेसे जी-7 में अहम भूमिका निभानेवाले इटली से यह अपेक्षा ज्यादा करते हुए उन्होंने कहा, ‘हम मानते हैं कि किसी भी तरह के समझौते महत्वपूर्ण हैं, लेकिन हम अपने साझीदारों द्वारा हिंसक दमन को बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं।‘ उन्होंने आगे इतालवी सरकार के सदस्यों से ‘राष्ट्रीय हितों’ को ध्यान में रखते हुए चीन के मामले में ‘स्पष्ट रुख’ अपनाने का आह्वान किया।
इटली के सांसद मेट्टओि बिंची ने तिब्बत में सरकारी दमन पर सवाल उठाया
विशेष पोस्ट
संबंधित पोस्ट