दलाईलामा.कॉम, २/जुलाई/२०१९
हाल ही में बीबीसी के एक साक्षात्कार के दौरान परमपावन दलाई लामा द्वारा किये गये टिप्पणी से भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुयी है इसलिए, हमें इसका स्पष्टिकरण करना आवश्यक लगा ।
सर्वप्रथम, इस प्रश्न पर कि क्या उनका पुनर्जन्म एक महिला के रूप में हो सकती है, तो इस पर परमपावन ने उत्तर देते हुये कहा था कि यदि वह महिला होगी, तो वह आकर्षक होगी । परमपावन का इस तरह से कहना किसी को आहत करना नहीं था, लेकिन लोगों को उनकी कही गयी बात से ठेस पहुंची है इसके लिए उन्हें गहरा खेद है और वे सहृदय क्षमाप्रार्थी हैं ।
परमपावन ने सदैव बाहरी रूप-रंग के भ्रम-जाल में फंसने के बजाय एक-दूसरे के साथ मानवीय स्तर पर गहराई से जुड़ने की आवश्यकता पर बल दिया है । जिन्हें भी परमपावन से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ है वे इसका अनुभव करते हैं तथा इसकी प्रशंसा करते हैं । परमपावन द्वारा महिला उत्तराधिकारी के शारीरिक रूप-रंग का पहला प्रसंग वोग-पत्रिका के तत्कालीन पेरिस सम्पादक से बातचीत के दौरान आया था, जिन्होंने सन् 1992 में परमपावन को अगले संस्करण के सम्पादन के लिए अतिथि-सम्पादक के रूप में आमंत्रित किया था । तब उस महिला सम्पादक ने उनसे पूछा था कि क्या भावी दलाई लामा एक महिला हो सकती है । परमपावन ने उत्तर दिया था, “निश्चित रूप से, यदि वह अधिक सहायक होगा,” उसी के साथ उन्होंने हास्य भरे अन्दाज़ में कहा था कि वह महिला आकर्षक होना चाहिए । जब वे ऐसा कह रहे थे तो वे आंशिक रूप से टीम के साथ कार्य करने की उस अपरिचित माहौल को भी जवाब दे रहे थे जिनका मुख्य उद्देश्य उच्च फैशन की दुनिया था ।
परमपावन, एक भिक्षु जिनकी आयु अस्सी से ऊपर हो चुकी है, अपनी यात्राओं के दौरान आनुभविक भौतिकतावाद, वैश्वीकृत दुनिया और तिब्बती बौद्ध परम्परा के केन्द्र में स्थित जटिल एवं गूढ़ पुनर्जन्म के विचारों में निहित विरोधाभास की गहरी समझ रखते हैं । हालांकि, कभी-कभी ऐसा होता है कि एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी, जो एक सांस्कृतिक सन्दर्भ में मनोरंजक हो सकता है, लेकिन उसका अन्य सांस्कृतिक सन्दर्भ में अनुवाद करने पर हास्य विहीन हो जाता है ।
अपने जीवन की इस लम्बी अवधि के दौरान परमपावन ने महिलाओं को भोग्या के रूप में प्रस्तुत करने के विचारों का खंडन किया है । यही नहीं उन्होंने महिलाओं के अधिकारों का पक्ष लेने के साथ-साथ लैंगिक समानता और महिलाओं के सम्मान के समर्थन में बढ़ती अन्तर्राष्ट्रीय सहमति की सराहना की है । उनके नेतृत्व में निर्वासित तिब्बती भिक्षुणियों ने पूर्व में भिक्षुओं के लिए आरक्षित उच्च स्तरीय विद्वत्ता प्रदर्शित करने वाली गेशेमा की उपाधि प्राप्त की है । परमपावन प्रायः सुझाव देते हैं कि यदि विश्व में अधिकाधिक महिला नैत्रियां होंगी तो दुनिया और अधिक शांतिपूर्ण बनेगी ।
उसी बीबीसी साक्षात्कार में वर्तमान शरणार्थी और प्रवास के संकट के बारे में व्यक्त किये गये परमपावन के विचारों को अन्यार्थ लिया गया है । वे निश्चित रूप से इस परिस्थिति को जानते हैं कि जो लोग अपने देश छोड़कर आते हैं वे वापस जाने की इच्छा नहीं रखते हैं या फिर लौटने में सक्षम नहीं हैं, और इसमें तिब्बती, जो अपने देश को अपरिवर्तनीय रूप से बदले हुये पायेंगे, वे तिब्बत लौटने की आकांक्षा को संजोये हुये हैं । हालांकि, परमपावन उन देशों की अनिश्चितताओं और कठिनाइयों को भी समझते हैं जहां शरणार्थी और प्रवासी अपने नये घर बसाते हैं । 13 जून, 2016 को वॉशिंगटन पोस्ट के लिए एक ऑप-एड पीस में परमपावन ने जो लिखा है वह इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर उनके विचारों को सारगर्भित रूप में दर्शाता है :
“यह उत्साहजनक है कि हमने दुनिया भर में कई सामान्य लोगों को शरणार्थियों की दुर्दशा के प्रति व्यापक रूप में करुणा को प्रदर्शित करते देखा है । इनमें से अनेक लोगों ने शरणार्थियों को समुद्री खतरों से बचाया है और किसी ने उन्हें न केवल अपनाकर बल्कि उनके साथ मित्र बनकर उनको सहायता प्रदान की है । एक शरणार्थी होने के नाते मैं उनकी इस परिस्थिति में गहरी सहानुभूति महसूस कर रहा हूँ । जब हम उनको इस पीड़ा में देखते हैं तो हमें उनकी मदद के लिए हर सम्भव प्रयास करना चाहिए । मैं मेजबान देशों के लोगों की आशंकाओं को भी समझ रहा हूँ, जो एक प्रकार का दबाव अनुभव करते होंगे । इन परिस्थितियों का संयोजन इस महत्त्वपूर्ण विषय की ओर ध्यान आकर्शित करता है कि जिन देशों से शर्णार्थी आये हैं वहां वास्तविक शांति की स्थापना के लिए हम सबको सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है । तिब्बती शरणार्थियों को ऐसी परिस्थितियों में रहने का अनुभव है । हालांकि, अभी तक हम अपनी मातृभूमि में लौट नहीं पाये हैं, हमें अनेक दशकों से संयुक्त राज्य अमेरिका की जनता सहित अन्य देशों के मित्रों के मानवीय सहयोग प्राप्त हुआ है जिसके लिए हम आभारी हैं ।”
पुनः सितंबर 2017 में पलेर्मो, सिसिली में, उन्होंने कहा था कि यूरोपीय देशों द्वारा प्रवासियों और शरणार्थियों को स्वीकार कर करुणा का व्यवहार में क्रियान्वयन किया है । उन्होंने स्पष्ट करते हुये कहा था कि “हमें उनकी हताश भरी स्थिति में मदद करनी चाहिए लेकिन, अन्ततः वे अपने देश लौटना चाहेंगे । हम तिब्बतियों ने हमेशा इस विचार को अपने मन में रखा है । सबसे पहले हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि जिन देशों से ये शरणार्थी आये हैं, वहां शांति और विकास हुआ हो, लेकिन अन्ततः यह स्वाभाविक है कि हम उसी धरती पर रहना चाहेंगे जहां हम पैदा हुए थे ।”
परमपावन नियमित रूप से हमें सचेत करते हुये कहते हैं कि एक समृद्ध समाज के लिए हमारे द्वारा ‘वे’ और ‘हम’ के रूप में दूसरों को देखने की विभाजनकारी प्रवृत्ति से बचना चाहिए । उनका कहना है कि आज हम जितनी भी समस्याओं का सामना कर रहे हैं उनका समाधान यही है कि हमें यह स्मरण रखना है कि एक मनुष्य के रूप में हम सभी भाई और बहनें हैं और हम सब एक साथ मिलकर हमारे समक्ष खड़े वैश्विक चुनौतियों का सामना कर सकते हैं ।