tchrd.org, 17 मई, 2018
तिब्बती आध्यात्मिक धर्मगुरु गेधुन चोएक्यी न्यिमा के जबर्दस्ती गायब कर देने की 23वीं वर्षगांठ पर तिब्बती सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स एंड डेमोक्रेसी ने(टीसीएचआरडी) अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ अपनी आवाज मिलाते हुए चीन से अपील की है कि वह स्वतंत्र निकायों को बिना सरकारी निगरानी और निर्देशन के 11वें पंचेन लामा को सत्यापित करने की अनुमति दे।
17 मई 1995 को गेधुन चोएक्यी न्यिमा मात्र छह साल के थे जब वह अपने माता-पिता के साथ चीनी अधिकारियों के हाथों अपहरण का शिकार बन गए थे। इसके तीन दिन पहले ही परम पावन दलाई लामा ने उन्हें पिछले 10वें पंचेन लामा के अवतार के रूप में मान्यता दी थी। धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार और तिब्बती लोगों की आस्था के अधिकार को सरेआम ठेंगा दिखाते हुए चीनी अधिकारियों ने नवंबर 1995 में ग्याल्त्सेन नोरबू नामक एक और लड़के को अपनी पसंद का पंचेन लामा नियुक्त कर दिया।
पिछले 23 वर्षों से चीनी अधिकारियों ने गेधुन चोएक्यी न्यिमा की स्थिति और ठिकाने के बारे में अस्पष्ट और अविश्वसनीय दावे करके अंतरराष्ट्रीय समुदाय को जानबूझ कर गुमराह कर रखा है। इस महीने की शुरुआत में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) के सदस्यों के एक प्रतिनिधिमंडल ने कनाडाई सांसदों एक दल से पहले बार-बार अपनी पुरानी प्रतिक्रिया दोहराया कि वह ‘स्वस्थ और सुखी जीवन’ जी रहे हैं और वह ‘किसी तरह का व्यवधान नहीं चाहते हैं’। इसके बाद प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि गेधुन चोएक्यी न्यिमा संभवत: अपनी विश्वविद्यालयी शिक्षा को पूरा कर रहे हैं। लेकिन, गेधुन चोएक्यी न्यिमा की स्थिति और ठिकाने का पता लगाने के लिए किसी भी प्रकार की सुविधा या पहुंच दिए बिना चीन द्वारा उनकी भलाई के लिए किए जा रहे सभी तरह के दावे पर संदेह व्याप्त है।
चीनी कठोरता और वाक चातुर्य के बावजूद अंतरराष्ट्रीय समुदाय गेधुन चोएक्यी न्यिमा के बलपूर्वक गायब कर देने के अनसुलझे मामले को भूला नहीं है। कई सरकारी और गैर-सरकारी निकायों ने इस मुद्दे पर चीन से सवाल करना जारी रखा है और चीनी अधिकारियों द्वारा किए गए दावों को मानव अधिकारों के उच्चायुक्त के कार्यालय सहित स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय निकायों से सत्यापित कराने के लिए दबाव डालना जारी रखा है। नवंबर 2017 में कनाडाई विदेश मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने चीन से आह्वान किया कि मानवाधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त और धर्म और विश्वास की स्वतंत्रता पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रिपोर्टियर को हिरासत में रखे गए गेधुन चोएक्यी न्यिमा से मिलने की अनुमति प्रदान करे।
चीनी अधिकारियों को बिना किसी पूर्व शर्त के गेधुन चोएक्यी न्यिमा के जबरिया गायब रखने की प्रवृत्ति को समाप्त करना चाहिए और उनकी आजादी और गरिमा में रहने के उनके मानवाधिकारों का सम्मान करना चाहिए।
झूठ का मकड़जाल
नवंबर 1995 के आखिर में चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता शेन गुओफांग ने दावा किया, ‘हमें दलाई लामा द्वारा चयनित तथाकथित पारलौकिक लड़के के ठिकाने के बारे में कोई जानकारी नहीं है।’ उन्होंने इस बात से इनकार किया कि गेधुन चोएक्यी न्यिमा और उनके परिवार ने आखिरी कुछ महीने बीजिंग में बिताए थे। साथ ही कहा कि ‘वह गुम नहीं है, न ही उसे कैद किया गया है। बल्कि ‘वे जहां पैदा हुए थे, उन्हें वहीं होना चाहिए।’ 28 मई 1996 को चीन ने आखिरकार स्वीकार किया कि गेधुन चोएक्यी न्यिमा और उनके परिवार को हिरासत में लिया गया है और उन्हें एक गुप्त स्थान पर रखा गया है। चीन की यह घोषणा बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र समिति के अनुरोध के बाद आई कि लड़के के ठिकाने के बारे में खुलासा किया जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र में चीन के राजदूत वू जियानमिन ने कहा, ‘(गेधुन चोएक्यी न्यिमा) को उनके माता-पिता के अनुरोध पर सरकार की सुरक्षा में रखा गया है।’ वू ने यह नहीं कहा कि बच्चे को कहां रखा जा रहा है। उस समय चीन के सरकारी मीडिया ने बताया कि ‘लड़के को अलगाववादियों द्वारा अपहरण की आशंका है और उनकी सुरक्षा को खतरा है।’
1997 में तिब्बत में दो पश्चिमी प्रतिनिधिमंडल गया। इनमें से एक के साथ ऑस्ट्रियाई विदेश मंत्री वुल्फगैंग श्यूसेल थे, और दूसरे में अमेरिकी धार्मिक नेताओं का एक समूह था जिसमें तीन भिन्न धार्मिक समुदायों के लोग शामिल थे। इन दोनों को परस्पर विरोधाभासी जानकारी दी गई थी। तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के वाइस गवर्नर यांग चुआंतांग ने ऑस्ट्रियाई समूह से कहा कि गेधुन चोएक्यी न्यिमा अपने जन्मस्थान तिब्बत में लारी में रह रहे हैं जबकि अमेरिकी धार्मिक नेताओं को बताया गया कि लड़का बीजिंग में है।
अक्तूबर 2000 में लंदन में ब्रिटिश-चीन द्विपक्षीय मानवाधिकार वार्ता दौर के दौरान, ब्रिटिश अधिकारियों ने गेधुन चोएक्यी न्यिमा के मुद्दे को उठाया। ब्रिटिश संसद को लिखित एक रिपोर्ट में विदेश कार्यालय मंत्री जॉन बैटल ने कहा कि, ‘हमने चीनी सरकार पर इस बात के लिए दबाव बनाया है कि वह उस बालक के जीवन और स्वास्थ्य स्थितियों के बारे में सत्यापित करने के लिए चीन और तिब्बतियों दोनों द्वारा स्वीकार्य एक स्वतंत्र निकाय को बच्चे से मिलने की अनुमति दे। चीन ने कहा कि लड़का अच्छी तरह से है और स्कूल में पढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि उनके माता-पिता अंतरराष्ट्रीय निकायों और मीडिया को उसके जीवन में घुसपैठ करने की अनुमति नहीं देना चाहते हैं।’ बैटल ने कहा कि पंचेन लामा का दावा करने वाली दो तस्वीरों को हमें दिखाया गया था लेकिन उन्हें सौंपा नहीं गया। ‘दो तस्वीरों मे से एक में एक लड़के को चीनी भाषा में एक ब्लैकबोर्ड पर लिखते दिखाया गया है जबकि दूसरी फोटो में और एक लड़का टेबल टेनिस खेल रहा है। बच्चे को इसमें पहचानने का कोई मतलब नहीं है, तस्वीरों में केवल बच्चे की उम्र उतनी दिख रही है जितनी की पंचेन लामा की होगी। बच्चा कहां है, उसके स्थान को निश्चित करना भी फोटो में असंभव है।
अगस्त 2001 में, ल्हासा जाने वाले एक पोलिश संसदीय प्रतिनिधिमंडल को बार-बार पूछे गए सवालों के जवाब में बताया गया था कि गेधुन चोएक्यी न्यिमा और उनके परिवार को ‘सुरक्षात्मक हिरासत’ में रखा गया है और वे स्वस्थ हैं। प्रतिनिधिमंडल को छह सप्ताह के भीतर लड़के की तस्वीरें देने का वादा किया गया था लेकिन उन्हें कभी नहीं दिया गया। बाद में पोलिश सरकार को वारसॉ में चीनी दूतावास से एक पत्र प्राप्त हुआ जिसमें कहा गया था कि गेधुन चोएक्यी न्यिमा और उनके माता-पिता नहीं चाहते थे कि उनके शांतिपूर्ण जीवन को अजनबियों द्वारा परेशान किया जाए और चीनी सरकार ‘अपने नागरिकों के लिए पसंद की आजादी का सम्मान करती है और उम्मीद करती है कि पोलिश लोग भी इसे समझेंगे।’
अक्तूबर 2001 में, एक ऑस्ट्रेलियाई प्रतिनिधिमंडल को बताया गया था कि गेधुन चोएक्यी न्यिमा के माता-पिता चाहते हैं कि किसी भी विदेशी प्रतिनिधिमंडल को उससे मिलने की अनुमति नहीं दी जाए। चीनी अधिकारियों के मुताबिक, माता-पिता ने कहा है कि ‘वे अपनी गोपनीयता के प्रति सम्मान चाहते हैं, कि वे विशेष रूप से चाहते हैं कि लोग बच्चे तक नहीं पहुंच सकें और वे चाहते हैं कि वह सामान्य जीवन जीएं और वे परेशान नहीं होना चाहते हैं।’
मार्च 2002 में, टीएआर स्थित चीनी सरकार के एक प्रतिनिधिमंडल ने यूरोपीय संसद के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की और एक बार फिर कहा कि गेधुन चोएक्यी न्यिमा बहुत परेशान होना नहीं चाहते हैं। चीनी प्रतिनिधिमंडल ने पोलिश प्रतिनिधिमंडल से वादा किए गए तस्वीरों के बारे में सवालों के जवाब देने से इनकार कर दिया।
पृष्ठभूमि
14 मई 1995 को परम पावन दलाई लामा ने पिछले 10वें पंचेन लामा के पुनर्जन्म के रूप में गेधुन चोएक्यी न्यिमा को मान्यता देने की घोषणा की। 15 मई को चीनी सरकार ने दलाई लामा के चयन को खारिज कर एक बयान जारी किया। इसके साथ ही 17 मई को लारी काउंटी स्थित घर से पंचेन लामा और उनके माता-पिता का अपहरण कर लिया गया। इसके बाद उन्हें फिर से कभी नहीं देखा या सुना गया। 29 नवंबर को राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित चीनी सरकार ने 11 वें पंचेन लामा के रूप में ग्याल्त्सेन नॉरबू को नियुक्त कर दिया।
दलाई लामा के चयन को निष्प्रभावी करने के लिए एक प्रतिद्वंद्वी पंचेन लामा की चीन सरकार द्वारा नियुक्ति ने उन तिब्बतियों के बीच गहरे और व्यापक नाराजगी को जन्म दिया जो गेधुन चोएक्यी न्यिमा की रिहाई के लिए आवाज उठाते रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय से लगातार दबाव के बाद 14 मई 1996 को चीनी सरकार को स्वीकार किया कि उसने गेधुन चोएक्यी न्यिमा को अपने पास रख रखा है। सरकार ने कहा कि ऐसा उसने ‘ इस छोटे लड़के के संदिग्ध समूहों द्वारा अपहरण के प्रयासों’ के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने के लिए किया है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय में कई ने चीनी सरकार से जबर्दस्ती गायब किए गए पंचेन लामा और उनके माता-पिता के बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध कराने का भी आह्वान किया। हालांकि अब तक चीनी सरकार पंचेन लामा और उनके माता-पिता की सुरक्षा और कल्याण के बारे में किए जा रहे उपायों के बारे में कोई सबूत देने में विफल रही है।
पुनर्जन्म की तिब्बती प्रणाली राजनीतिक नियुक्तियों, लोकप्रिय चुनावों, नाम और स्थिति की स्थिति द्वारा परिभाषित नहीं है। यह पूर्व वंशावली धारक के उपदेशों को आगे बढ़ाने और विशिष्ट परंपरा को जारी रखने के लिए आध्यात्मिक आवश्यकता से निर्धारित होता है। पारंपरिक तिब्बती प्रणाली के माध्यम से पुनर्जन्म की मान्यता में विशेष संकेत, अभिव्यक्तियां शामिल हैं जो जटिल धार्मिक सिद्धांतों और अनुष्ठानों के बाद परीक्षण करने के लिए आयोजित की जाती हैं। पुनर्जन्म की व्यवस्था को चीन द्वारा राजनीतिकरण कर देने की घटना ने पुनर्जन्म की परंपरागत तिब्बती धार्मिक प्रथा की भूमिका को प्रभावी ढंग से हटा दिया है और इससे धर्म और संस्कृति, रीति-रिवाजों और परंपराओं को नष्ट कर तिब्बती पहचान के अस्तित्व के मिटने का खतरा पैदा हो गया है।