नई दुनिया, 2 जनवरी, 2017
बोधगया। मानव जगत के कल्याण के लिए भगवान बुद्ध से प्रेरणा लें। चाहे कोई भी धर्म हो, चित्त से ध्यान कर उसका अनुपालन करना चाहिए। केवल प्रार्थना करने से कुछ नहीं होता।
अपने-अपने धर्म के शास्त्रों में बताए गए धार्मिक मूल्यों का अनुसरण करें। सभी धर्म के शास्त्रों में करुणा व मैत्री को विशेष स्थान दिया गया है। करुणा-मैत्री के नियमित अभ्यास से ही विश्व शांति व कल्याण संभव है।
सोमवार को बोधगया (बिहार) के ऐतिहासिक कालचक्र मैदान पर तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाईलामा ने 34वीं कालचक्र पूजा के धार्मिक क्रियाकलापों की विधिवत शुरुआत करते हुए उपरोक्त संदेश दिया।
उन्होंने कालचक्र पूजा का आगाज करते हुए विश्व शांति का आह्वान किया। इसके पूर्व पारंपरिक वाद्ययंत्र वादन और तांत्रिक मंत्रोच्चार के बीच दलाईलामा ने भूमि पूजन किया। मौके पर हजारों बौद्ध श्रद्धालु उपस्थित थे। कार्यक्रम दो घंटे तक चला।
इसके बाद दक्ष बौद्ध लामा ने मंडाला (पूजा चिह्न) निर्माण का काम शुरू कर दिया। धर्मगुरु ने निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रधानमंत्री लोबसांग सांग्ये को दीक्षित किया। उसके बाद सुसज्जित मंच पर लगाए गए आसन पर विराजमान होकर प्रवचन सत्र की शुरुआत की। धर्मगुरु ने कालचक्र के महत्व से श्रद्धालुओं को अवगत कराते हुए कहा कि दान, शील, प्रज्ञा, शांति, सत्य व मैत्री आदि पारमिताएं हैं।
पारमिता के उदय होने से बुद्धत्व संभव है। बुद्धत्व प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील व्यक्ति को बोधिसत्व कहते हैं। अनेक जन्म की साधना के बाद बुद्धत्व की प्राप्ति होती है। 20 भाषाओं में अनुवाद दलाईलामा तिब्बती भाषा में प्रवचन कर रहे हैं। इस प्रवचन का विश्व की 20 भाषाओं में अनुवाद कर एफएम बैंड से प्रसारण किया जा रहा है।
धर्मगुरु को बताया गया कि हिंदी, अंग्रेज़ी, जापानी, कोरियाई, रूसी, चाइनीज, मंगोलियन, वियतनाम, थाई आदि भाषाओं के अनुवादक इस कार्य में लगे हैं। 11 प्रवेश द्वार पर लंबी कतार कालचक्र मैदान पर 14 प्रवेश द्वार बनाए गए हैं। इसमें एक धर्मगुरु व अतिविशिष्ट लामाओं के लिए सुरक्षित है।
दूसरा द्वार विशिष्ट अतिथियों और एक मीडियाकर्मियों के लिए है। शेष 11 प्रवेश द्वार पर धर्मगुरु दलाईलामा के पहुंचने के लगभग एक घंटे पूर्व से श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगी थी। सघन तलाशी के बाद ही मैदान में प्रवेश दिया जा रहा था।
दलाईलामा से मिला थाई शिष्टमंडल आध्यात्मिक गुरु दलाईलामा से सोमवार को उनके आवासन स्थल तिब्बत मंदिर में 20 सदस्यीय थाई शिष्टमंडल मिला। दल का नेतृत्व थाई भारत सोसाइटी वट पा के वरिष्ठ भिक्षु फ्रा बोधिनंदा मुनि कर रहे थे। शिष्टमंडल सदस्यों को संबोधित करते हुए धर्मगुरु ने कहा कि बौद्ध धर्म का जन्म भारत में हुआ और यहीं से विश्व के विभिन्न देशों में फैला।
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