अमर उजाला, 29 सितंबर 2014
विश्व की चार नोबेल पुरस्कार विजेता जोडी विलियम्स, लेमाह गबोई, तवाकोल करमान, शिरिन इबादी धर्मशाला में बौद्ध धर्मगुरु दलाईलामा से मिलने मंगलवार को पहुंचेंगी। चारों नोबेल शांति पुरस्कार विजेता महिलाएं दो अक्तूबर तक मैकलोडगंज में ही रहेंगी।
केंद्रीय तिब्बती प्रशासन का सूचना एवं अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग 14वें दलाईलामा को नोबेल शांति पुरस्कार देने की 25वीं वर्षगांठ पर 2 अक्तूबर को महात्मा गांधी जयंती पर मैकलोडगंज स्थित मुख्य बौद्ध मंदिर में समारोह आयोजित कर रहा है।
इसी समारोह में शिरकत करने के लिए ये चारों हस्तियां मैकलोडगंज पहुंच रही हैं। डीआईआईआर के प्रेस अधिकारी शेरिंग वांगचुक ने बताया कि चारों नोबेल पुरस्कार विजेता 30 सितंबर को धर्मशाला पहुंचेंगी।
दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में 13 से 15 अक्तूबर को होने वाले नोबेल पुरस्कार विजेताओं के विश्व शिखर सम्मेलन में धर्मगुरु दलाईलामा को निमंत्रण मिलने के बावजूद वीजा नहीं मिलने से नोबेल पुरस्कार विजेता जोडी विलियम्स, लेमाह गबोई, तवाकोल करमान, शिरिन नाराज हैं और उन्होंने विश्व शिखर सम्मेलन का बहिष्कार कर दिया है। ये सम्मेलन में भाग लेने दक्षिण अफ्रीका नहीं जाएंगी। कयास लगाए जा रहे हैं कि दलाईलामा को वीजा दिलाने के लिए चारों नोबेल पुरस्कार विजेता धर्मशाला से दक्षिण अफ्रीकी सरकार पर दबाव बनाएंगी।
जोडी विलियम्स: अमेरिका की निवासी जोडी विलियम्स को 1997 में अंतरराष्ट्रीय अभियान चलाकर बारूदी सुरंगों को प्रतिबंधित कराने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार मिला था। विलियम्स बारूदी सुरंगों को प्रतिबंधित कराने के लिए चले अंतरराष्ट्रीय अभियान की संस्थापक समन्वयक हैं। यह अभियान अक्तूबर 1992 को लांच किया गया था।
शिरिन इबादी: ईरान की पहली महिला जज शिरिन इबादी को 2003 में लोकतंत्र और मानवाधिकारों के लिए किए प्रयासों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार मिला था। 1979 में खोमिनी की क्रांति के दौरान उन्हें जज के पद से बर्खास्त कर दिया गया था। उसके बाद इबादी ने लीगल प्रैक्टिस शुरू कर अधिकारियों की ओर सताए गए लोगों की रक्षा की। उन्होंने मौलिक मानवाधिकारों और विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों के अधिकारों के लिए कड़ा संघर्ष किया।
लेमाह गबोई: लाइबेरिया निवासी लेमाह गबोई को महिलाओं के अधिकारों के लिए अहिंसात्मक संघर्ष करने को लेकर 2011 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला था। गबोई लाइबेरिया की शांति एवं सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ महिला अधिकारों की हिमायती हैं। वह मोनरोविया स्थित गबोई पीस फाउंडेशन अफ्रीका की संस्थापक एवं अध्यक्ष हैं। गबोई ने अहिंसात्मक आंदोलन का नेतृत्व कर इसाई और मुस्लिम महिलाओं को एक साथ लाकर लाइबेरिया में 14 वर्ष तक चले गृह युद्ध 2003 में समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
तवाकोल करमान: यमन की पत्रकार, राजनीतिज्ञ और अल इसलाह राजनीतिक पार्टी एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता तवाकोल करमान को 2011 में महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों के लिए अहिंसात्मक संघर्ष के लिए नोबेल शांति पुरस्कार मिला था।
2011 में वह यमन विद्रोह के दौरान अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक चेहरा बन गईं। करमान को यमन के लोग लौह महिला और क्रांति की मां के नाम से पुकारने लगे।