पंजाब केसरी, 13 मई 2014
शिमला: हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला के राजनीतिक विज्ञान विभाग और तिब्बत नीति निर्माण संस्थान धर्मशाला के संयुक्त तत्वावधान में सोमवार को विश्वविद्यालय के विधि विभाग के सभागार में शिमला समझौता-1914 के 100 वर्ष पूरे होने पर एकदिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया। संगोष्ठी का शुभारम्भ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो एडीएन वाजपेयी मुख्य अतिथि के रूप में किया। उन्होंने कहा कि शिमला समझौता-1914 का महत्व आज भी कम नहीं हुआ है और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इस संदर्भ में 100 वर्ष पूरा होने पर कार्यक्रम आयोजित करने वाला पहला शैक्षणिक संस्थान है।
उन्होंने कहा कि देश भर के अन्य संस्थान भी निकट भविष्य में ऐसे कार्यक्रम करेंगे। कुलपति प्रो वाजपेयी ने कहा कि भारत-तिब्बत-चीन ही नहीं विश्व के परिदृश्य में पिछले 100 वर्षों में बहुत परिवर्तन हुआ है और एेसे में यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि भले ही चीन ने 1914 के शिमला समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए किन्तु वह इस समझौते की अनदेखी भी नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि वर्ष 2008 में तिब्बत पर ब्रिटेन द्वारा चीन के साथ आर्थिक सम्बंधों के चलते भी अलग नीति बनाने के कारण भी प्रश्नचिन्ह लग गया था।
इस मौके पर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के प्रो. स्वर्ण सिंह ने अपना व्याख्यान दिया। इसी सत्र में तिब्बत की निर्वासित सरकार के सचिव ताशी फुन्चोक ने भी शिमला समझौते के 100 वर्ष पूर्ण होने पर तिब्बत की वर्तमान स्थिति पर विचार व्यक्त किए। दूसरे सत्र में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय हरियाणा के प्रो. आरएस यादव अपना व्याख्यान दिया।
इसी सत्र में तिब्बत की निर्वासित सरकार के तिब्बत नीति निर्माण संस्थान में वरिष्ठ शोधकत्र्ता थंडूप गैल्पो ने भी शिमला समझौते के 100 वर्ष पूर्ण होने पर तिब्बत की वर्तमान स्थिति पर विचार व्यक्त किए। तीसरे सत्र में लोबसांग तैम्पा और तेंजिंग नौरगे ने अपने-अपने पत्र पढ़े। समन्वयक डा. कमल मनोहर शर्मा ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया। संगोष्ठी में प्रो एसएस चौहान, अधिष्ठाता महाविद्यालय विकास परिषद प्रो राजेंद्र चौहान व निदेशक अकादमिक स्टाफ कालेज प्रो बीएस मढ़ ने भी भाग लिया।