“हिमालय परिवार विचार गोष्ठी”
हिमालय परिवार के सौजन्य से २९/३/१०१४ को, कैलाश मानसरोवर की मुक्ति एवम तिब्बत की आज़ादी हेतु “हिमालय परिवार विचार गोष्ठी” का आयोजन किया गया जिसमे मुख्या वक्ता के रूप में श्री इन्द्रेश जी और मुख्य अतिथि श्री परमोद गोयल जी उपस्तिथ रहे.
२०० लोगो की उपस्तिथि में विचार गोष्ठी सफल रही, श्री इन्द्रेश जी का उद्बोधन द्वारा दिया गया सन्देश इस प्रकार रहा :-
सम्पूर्ण पृथ्वी का, जल और थल इन दो तत्वों में जब वर्गीकरण करते हैं, तब सात द्वीप और सात ही महासमुंद्र माने जाते थे | हम इसमें से प्राचीन नाम जम्बुद्वीप जिस आअज एशिया द्वीप कहते हैं तथा इंदु सरोवरम जसे आप हिन्द महासागर कहते हैं, के निवासी हैं| इस जम्बूदीप (एशिया) के लगभग मध्य में हिमालय र्पर्वत स्थित है,
इसमें विश्व की सर्वाधिक ऊँची छोटी सागरमाथा,गौरीशंकर है जिसे १७६५ में अंग्रेज शासको ने एवेरेस्ट नाम देकर इसकी प्राचीनता व् पहचान को बदलने का कुटनीतिक षड्यंत्र रचा था |
हमारे इतहास और भरतीय संस्कृति के साथ जितना अन्याय और खिलवाड़ अंग्रेज शासको ने किया उतना शायद किसी ने नहीं किया होगा, इसका एक जिवंत उदहारण दिल्ली में इंडिया गेट है , इन्द्रेश जी ने बताया की जब वे पहली बार दिल्ली आये तो उन्होंने इंडिया गेट देखा और उसके बारे में जो जानकारी ली, वे बोहोत ही आश्चर्यजनक थीं|
इंडिया गेट जिसका निर्माण प्रथम विश्वयुद्ध के बाद हुआ और इस स्मारक में जो नाम अंकित किये गए वो उन अंग्रेज और भरतीय सनिको के थे,जिन्होंने स्वंत्रता सेनानियों और जो राष्ट्र की आज़ादी के लिए संगर्ष कर रहे थे उनका दमन और उन्हें कुचलने का काम किया था और आपको जान के आश्चर्य होगा कि, इंडिया गेट के कुछ हिस्से का मालिकाना हक़ आज भी इंग्लैंड के पास हैं और उस पर कामे करने वालों का वेतन कॉमन वेल्थ के माध्यम से आता है, और इसके पीछे भी एक विशेष कारण है आज भी अंग्रेजों को यह लगता है, कि अगर किसी दिन भारतीयों का स्वाभिमान ना जाग जाये और वे इस गुलामी की निशानी को मिटा न दे उसके लिए उन्होंने इस स्मारक का मालिकाना हक़ अपने पास रखा हुआ है|
इन्द्रेश कुमार जी बताते हैं की जिस दिन से उन्हें ये जानकारी हुई है,तब से उन्होंने इंडिया गेट को सलाम नहीं किया, और न किसी भरतीय को करना चाहिए |
कैलाश मानसरोवर और तिब्बत न कभी चीन के अंग थे, और न कभी होने चाहिए| गुलाम भारत में जितना भारत का वर्ग था उसको टुकड़ों में बाँटने का काम अंग्रेजों ने किया|
८० लाख वर्ग हेक्टेयर से ज्यादा भूमि भारत की हुआ करती थी आज़ादी से पहले लेकिन सन १९४७ को जब भारत आजाद होने के साथ-साथ भारत को विभाजित करने का काम अंग्रेजों ने किया| आजाद भारत के लिए नेता और नीतिया जो होनी थी, वे इस प्रकार होनी चाहिए थी की एक इंच भारत अब घटेगा नहीं, एक जन- भारतीय मरेगा नहीं और एक भी आतंकी, देशद्रोही घुस्पठिया हिंदुस्तान में पलेगा नहीं| लेकिन जो नेता और नीतिया आज़ादी के बाद बनी उन्होंने देश की असीमता और अखंडता के साथ जो किया वो छमा करने योग्य नहीं है |
१९५० के दशक में तिब्बत भारत के पास चीन से अपनी सुरक्षा और भारत के प्रति अपना समर्पण लेकर आया लेकिन पंडित नेहरु की गलत नियत और नीतियों के कारण तिब्बत पर चीन का कब्ज़ा हुआ,और उसके तुरंत बाद १९६२ में चीन ने भारत पे हमला कर कैलाश मान सरोवर पर कब्ज़ा कर भारत की ३०००००० हेक्टेयर जे ज्यादा भूमि पर अपना अधिकार कर लिया|
पंडित नेहरु की नियत और भारत के प्रति उनके तुच्छ विचारो का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि संसद में पूछे जाने पर उन्होंने स्पष्ट कह दिया था की घास का एक तिनका भी नहीं उगता सौदा हो सकता है उस भूमि का लेकिन वह ये भूल गए थे, की जो भारत को भूमि मानते हैं वो सौदे की बात करते हैं और जो इसे मातृभूमि मानते हैं वो इसके लिए संघर्ष करते हैं उसके लिए बलिदान होते हैं , और आज भी हमे यही बताया जाता है की कैलाश मानसरोवर और विवदित एक विवादित भूमि है , जो की सरासर मिथ्या है यह दोनों स्थान विवादित नहीं हैं, इन पर चीन का अवैध कब्ज़ा है ,जिसके लिए राष्ट्रीय स्वयं संघ विभिन्न संगठनों द्वारा, पुनः कैलाश मानसरोवर और तिब्बत की आज़ादी हेतु प्रयास रत है |
इसी सन्दर्भ में हिमालय परिवार समय-समय पर विचार विमर्श हेतु गोष्ठियों और सभ्यों का आयोजन करता है| सबसे पहले हमे ये समझना होगा की कैलाश मानसरोवर और तिब्बत कभी भी चीन के अंग नहीं रहे |
कैलाश मानसरोवर जो सनातन संस्कृति का सबसे प्राचीन आस्था का केंद्र रहा जिसे १९६२ में चीन ने हमला कर कब्ज़ा लिया, और तिब्बत जो कि एक स्वंतत्र राष्ट्र था और तिब्बत ने हमशा भारत को अपना अध्यात्मिक गुरु माना है कभी भी चीन को समर्पण नहीं करा वह कभी भी चीन का अंग नहीं रहा अगर तिब्बत चीन का अंग होता तो जो “ग्रेट वाल ऑफ़ चाइना” जो चीन ने अपनी सुरक्षा के लिए बनाई थी उसमे तिब्बत होना चाहिए था लेकिन ऐसा है नहीं |
भारत के समक्ष जब तिब्बत ने अपना समर्पण और प्रस्ताव रखा की उन्हें भारत के साथ रहना है, तब इतिहास की सबसे बड़ी भूल जिसे लोग पंडित नेहरु कहते हैं उन्होंने उनके प्रस्ताव को अस्वीकार किया और इसी कारण से चीन ने तिब्बत में कत्ले आम किया और १२००००० से ज्यादा लोग उस कत्लेआम में मारे गए और उसका परिणाम तिब्बत चीन का गुलाम हुआ और फिर चीन ने भारत पर हमला कर कैलाश मानसरोवर पर अपना अधिकार जमा लिया, और आज वाही चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना अंग बता कर फिर से हिन्दुतान को आँख दिखा रहा है |
अब प्रशन यह आता है कि, चीन जो की एक महाशक्ति के रूप में सबसे बड़ी चुनोती भारत के सामने है , उससे कैलाश मानसरोवर और तिब्बत को आजाद कराया जाया सकता है? और वह भी ऐसे समय में जब उसकी कुदृष्टि हमारे राष्ट्र के एक और अंग अरुणाचल प्रदेश की ओर लगी हुई है |
इस प्रशन का साधारण सा उत्तर हैं, “हाँ” बहुत ही सरलता से हम अपने इन दोनों स्थानों को चीन से मुक्त करा सकते हैं, मित्रों आपको जान कर हैरानी होगी कि सन १९२० में जब गुलाम भारत ने विश्व व्यापर समझोते पर हस्ताक्षर किये थे, उस समय हमने २० पैसों में १ डॉलर खरीदा था और सन १९४७ में जब भारत स्वतंत्र हुआ तब १डॉलर की कीमत १ रूपये आंकी गयी थी |
लेकिन वंशवाद की राजनीती और अपने स्वार्थ को सिद्ध करने हेतु एक परिवार ने देश की आज यह कर दी है कि १डॉलर आज ६५ रूपये में मिलता है|
भाइयों आज पुरे विश्व बाज़ार का ७० % बाज़ार भारत में है ,अमेरिका का ६६ % और चीन का ५८ % सामान हिंदुस्तान में बेचा जाता है, यदि हम १ साल के लिए भी इनके सामानों का बहिस्कार कर दे और अपने जीवन में स्वदेशी को ही सम्मान और उप्योह में लाए, तो केवल मात्र १साल में अमेरिका और चीन हमारे समक्ष भीख मांगने के लिए घुटने पर आ जायेंगे और भारत एक बार पुनः विश्वशक्ति के रूप में अपने उज्जवल भविष्य की और अग्रसर होगा |