भारत के सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों ने तिब्बत के प्रति दिखाया ऐतिहासिक समर्थन
नर्इ दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में तिब्बती जनता के प्रति एकजुटता अभियान की शुरुआत
नर्इ दिल्ली, 30 जनवरी। भारतीय राजनीतिक दलों के विभिन्न नेता बुधवार को तालकटोरा इनडोर स्टेडियम में जुटे जहां ‘तिब्बती जनता के प्रति एकजुटता अभियान’ का उदघाटन समारोह आयोजित किया गया। इस समारोह में 5,000 से ज्यादा लोग आए थे जिनमें भारत, नेपाल और भूटान के 4,500 तिब्बती और दिल्ली, एनसीआर तथा लद्दाख से आए करीब 1,000 भारतीय समर्थक शामिल थे।
भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी ने मुख्य अतिथि के रूप में समारोह को सुशोभित किया। इस समारोह में कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक प्रतिनिधि के तौर पर सांसद प्रिया दत्त और सांसद डा. र्इ.एम. सुदर्शन नतचियप्पन पधारे थे। नेशनल कान्फ्रेंस का प्रतिनिधित्व सांसद श्री हसन खान ने किया।
कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए अपने भाषण में निर्वासित तिब्बती संसद के अध्यक्ष श्री पेनपा सेरिंग ने कहा कि यह ‘अपनी तरह का पहला’ जन अभियान है और यह ‘हमारे संघर्ष के लिए एक ऐतिहासिक क्षण’ है। उन्होंने कहा कि ‘यदि चीन स्वायत्तता देने के लिए गंभीर है तो तिब्बत दक्षिण एशिया के दो सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले देशों-भारत और चीन के बीच शांति के सेतु के रूप में सकारात्मक भूमिका निभा सकता है।’ भारत सरकार और यहां की जनता के प्रति आभार जताते हुए संसद अध्यक्ष ने सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के प्रतिनिधियों से अनुरोध किया कि वे ‘चीन को यह याद दिलाएं कि तिब्बत मसले को हल करने में चीनी जनता का भी व्यापक हित है।
सिक्योंग (तिब्बती जनता के लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित राजनीतिक प्रमुख) ने अपने मुख्य भाषण में उल्लेख किया कि भारत की राजधानी में इस समारोह को आयोजित करना ‘तिब्बतियों के प्रति भारत के प्यार और सहानुभूति का प्रमाण है।’
सिक्योंग ने इस बात पर जोर दिया कि ‘तिब्बतियों को आज़ादी और परमपावन दलार्इ लामा की तिब्बत में वापसी तिब्बत के भीतर रहने वाले तिब्बतियों की सच्ची आकांक्षा और तिब्बत के बाहर रहने वाले तिब्बतियों का सपना है।’ तिब्बत पर ध्यान देने और उसे समर्थन की जरूरत क्यों है, इस बारे में तर्क देते हुए सिक्योंग ने कहा, ‘चीन के लिए तिब्बत एक प्रेरणा और कसौटी है’ और ‘तिब्बत में स्वायत्तता से चीन में आधुनिकीकरण की शुरुआत होगी।’ सिक्योंग ने तिब्बती संघर्ष की सफलता का श्रेय भारत को दिया और उम्मीद जतार्इ कि तिब्बत को ‘भारत की सफलता की कहानी’ बनाया जा सकेगा। उन्होंने अपना भाषण इस दृषिट के साथ संपन्न किया कि ‘एक दिन तिब्बती परमपावन दलार्इ लामा के साथ भारत की पवित्र भूमि से पवित्र शहर ल्हासा जाएंगे।
श्री लालकृष्ण आडवाणी ने सरदार पटेल द्वारा 7 नवंबर, 1950 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को तिब्बत मामले पर लिखे गए पत्र के कुछ अंश लोगों को पढ़कर सुनाए। श्री आडवाणी ने दृढ़ विश्वास के साथ यह माना कि ‘चीन और तिब्बत के बीच एक समाधान से 21वीं सदी भारत की सदी हो जाएगी।’ उन्होंने ‘तिब्बतियों की जीवटता’ की सराहना की और यह भरोसा जताया कि ‘तिब्बती कभी दिन का उजाला देख सकेंगे। आडवाणी जी ने अपना भाषण समाप्त करते हुए कहा कि ‘परमपावन दलार्इ लामा भारत को हमेशा तिब्बत का गुरु बताते हैं, हमें आशा है कि हम उनकी इस उम्मीद पर खरे उतरेंगे।
सुश्री प्रिया दत्त ने ‘तिब्बत के भीतर रहने वाले तिब्बतियों के प्रति अपनी चिंता और एकजुटता को जाहिर किया और अपनी पहचान फिर से हासिल करने के संघर्ष में बलिदान हो चुके 99 युवा लोगों को श्रद्धांजलि दी।” उन्होंने भारत में परमपावन दलार्इ लामा की मौजूदगी और उनका आशीर्वाद मिलते रहने के लिए तिब्बती जनता को धन्यवाद दिया।
डा. हसन खान ने तिब्बती जनता को डटे रहने के लिए उत्साहित किया और कहा कि ‘वह दिन जल्दी आएगा जब तिब्बती अपनी मातृभूमि में वापस लौटेंगे।’
डा. र्इ.एम. सुदर्शन नतचियप्पन ने तिब्बती संघर्ष के प्रति भारत के प्यार और समर्थन का भरोसा दिया और कहा कि ‘तिब्बती लोग भारत के सिर्फ पड़ोसी नहीं बलिक भार्इ-बहन हैं।’
केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) की गृह मंत्री सुश्री डोलमा ग्यारी ने इस समारोह का संचालन किया। परमपावन दलार्इ लामा के ब्यूरो के प्रतिनिधि श्री तेम्पा सेरिंग ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
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