(धर्मशाला, 1 नवंबर , 2012)
श्रीलंका में सिंहली और तमिल जनता के बीच टकरावों को देखते हुए परमपावन दलार्इ लामा ने श्रीलंका सरकार से अपील की है कि वे इसका कोर्इ मानवीय हल निकालें। इसी तरह, हाल के महीनों में परमपावन ने नोबेल पुरस्कार से सम्मानित दाव (सुश्री) आंग सान सु की को दो बार पत्र लिखकर यह अनुरोध किया है कि वे बर्मा के राखिने प्रांत में रोहिंग्य लोगों की मुशिकलों के लिए कोर्इ शांतिपूर्ण समाधान निकालने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करें।
नर्इ दिल्ली स्थित परमपावन के प्रतिनिधि ने बर्मा दूतावास में मुलाकात की अर्जी लगार्इ है ताकि इस गंभीर मानवाधिकार समस्या के बारे में परमपावन के विचारों को बर्मा सरकार तक पहुंचाया जा सके।
हाल के दिनों में परमपावन को जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविधालय के विधार्थियों और कर्मचारियों सहित संबंधित पक्षों के कर्इ प्रतिनिधियों से कर्इ ज्ञापन मिले हैं जिसमें उनसे इस मामले में हस्तक्षेप करने को कहा गया है। परमपावन सितंबर माह में एक व्याख्यान देने के लिए जामिया विश्वविधालय में गए थे। उन्होंने तब कहा था कि जहां तक बर्मा की बात है, वह वहां व्यकितगत रूप से सिर्फ दाव आंग सान सू की को जानते हैं और उन्होंने उन तक अपने विचार पहुंचा दिए हैं।
कुछ लोगों ने यह सुझाव भी दिया है कि इस स्थिति को सुलझाने के प्रयास के तहत परमपावन को बर्मा का दौरा करने पर विचार करना चाहिए। अगर अवसर मिले तो परमपावन दुनिया के किसी भी अशांति दिखने वाले क्षेत्र में जाने की इच्छा रखते हैं, यदि इससे किसी तरह की मदद मिलती हो तो। परमपावन नियमित रूप से शैक्षिक और अन्य संबंधित संस्थाओं के आमंत्रण पर कर्इ देशों के दौरे पर जाते रहे है। हालांकि, अपने वश में न रहने वाली राजनीतिक मजबूरियों (खासकर एशिया में) की वजह से परमपावन के लिए कर्इ देशों की यात्रा कर पाना संभव नहीं हो पा रहा है, दुर्भाग्य से बर्मा इन्हीं देशों में आता है।
फिर भी, जब भी उन्हें अवसर मिलेगा, परमपावन इस उम्मीद से अपनी चिंताए साझा करते रहेंगे कि इसका एक सकारात्मक नतीजा निकलेगा।