दैनिक भास्कर, 29 दिसम्बर 2011
‘तिब्बत एक कठिन लड़ाई लड़ रहा है, जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय का सहयोग जरूरी है। तिब्बत के संघर्ष में तमाम लोगों ने अपनी जान दी है, यह बलिदानों से रुकने वाला नहीं है।’
यह कहना था तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री लाबसेंग सेंग्ये का। वे माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित ‘मीडिया में विविधता एवं अनेकता: समाज का प्रतिबिंब’ संगोष्ठी के समापन समारोह में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। उन्होंने आगे कहा, चीन न तो हमें आजादी दे रहा है न ही हमें चीनी मानता है।
ऐसे में तिब्बत के लोगों की अस्मिता और उनकी आजादी दोनों का दमन किया जा रहा है। तिब्बत के लोगों की बदहाली के लिए चीन जिम्मेदार है जबकि भारत ने हमेशा इस सवाल पर सहयोगी रवैया अपनाया है। कार्यक्रम के मुख्यअतिथि वित्तमंत्री राघवजी ने कहा, पत्रकारिता की सार्थकता इसी में है जब वह समाज का उचित मार्गदर्शन करे।
विशिष्ट अतिथि जनसंपर्क विभाग में अपर सचिव लाजपत आहूजा ने कहा, मीडिया में सभी पक्ष आने चाहिए किंतु इसमें किसी खास विचारधारा का आधिपत्य नहीं होना चाहिए। कार्यक्रम के अध्यक्ष एमसीयू के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा, प्रकृति में विविधता एवं बहुलता अनिवार्य है, तो मीडिया में यह क्यों नहीं दिखनी चाहिए। समान संस्कृति की बात ही अप्राकृतिक और प्रकृति विरोधी है।
इससे पूर्व सुबह के सत्र में ‘एकात्म मानव दर्शन के संदर्भ में मीडिया के कार्य व भूमिका का पुनरावलोकन’ विषय पर आयोजित सत्र में बतौर मुख्य अतिथि अपने विचार व्यक्त करते हुए कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा, भारतीय परंपरा में कुटुंब एक बड़ी विरासत है।