तिब्बती कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि चीन की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा संचालित आवासीय विद्यालयों में लगभग १० लाख तिब्बती बच्चे पढ़ते हैं, हालांकि संख्या की पुष्टि करना मुश्किल है। उनका कहना है कि ये आवासीय स्कूल तिब्बती पहचान को मिटाने और तिब्बतियों को बहुसंख्यक चीनी हान संस्कृति में आत्मसात करने की एक व्यापक रणनीति का हिस्सा हैं।
तिब्बत में शांगरी-ला के एक स्कूल में पहली कक्षा के छात्र डेस्क पर हाथ रखे हुए एक शिक्षक को ब्लैकबोर्ड पर तिब्बती वर्णमाला को ब्रश से मिटाते हुए देख रहे हैं। बाहर, ऊबड़-खाबड़ गगनचुंबी पहाड़ चमकीले नीले आसमान को छूते प्रतीत हो रहे हैं। २८०० मीटर (९१०० फीट) की ऊंचाई पर हवा साफ और कुरकुरी है, हालांकि थोड़ी पतली है।
शांगरी-ला का आवासीय स्कूल चीनी शैली की द्विभाषी शिक्षा का एक उदाहरण है। तिब्बती कार्यकर्ताओं के पास इसके लिए एक अलग शब्द है- ‘जबरन आत्मसात करना’। इस वर्ष इस मुद्दे पर आधिकारिक ध्यान दिया जा रहा है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञ और अमेरिका समेत कुछ पश्चिमी सरकारों के प्रतिनिधि इस प्रणाली की निंदा कर रहे हैं। चीन ने पिछले १०-१२ वर्षों में पूरे तिब्बत में ग्रामीण स्कूलों को बंद कर दिया है और उनकी जगह केंद्रीकृत आवासीय स्कूल स्थापित कर दिए हैं। कई छात्र सुदूर गांवों से आते हैं और स्कूलों में रहते हैं। यह प्रथा केवल इसी क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरे तिब्बती क्षेत्रों में व्यापक प्रतीत होती है।
कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि १० लाख तिब्बती बच्चे ऐसे बोर्डिंग स्कूलों में पढ़ते हैं, हालांकि संख्या की पुष्टि करना मुश्किल है। उनका कहना है कि ये स्कूल तिब्बती पहचान को खत्म करने और तिब्बतियों को बहुसंख्यक चीनी संस्कृति में आत्मसात करने की व्यापक रणनीति का हिस्सा हैं। स्कूल के अध्यापकों का कहना है कि पाठ्यक्रम में गीत और नृत्य जैसे तिब्बती पाठ भी शामिल हैं। उनका कहना है कि इन आवासीय स्कूलों की स्थापना दूरदराज के गरीब क्षेत्रों के बच्चों को सर्वोत्तम शिक्षा प्रदान करने के लिए हुई थी।
शांगरी-ला स्कूल के प्रिंसिपल कांग झाक्सी ने हाल ही में लगभग १० विदेशी पत्रकारों को बताया, ‘जातीय क्षेत्रों में आबादी बिखरी हुई है और सरकार ने शैक्षिक संसाधनों को मजबूत करने और छात्रों के लिए उत्कृष्ट शिक्षण और माहौल प्रदान करने के लिए बहुत प्रयास किए हैं। इस तरह से ये स्कूल कार्य करते हैं।‘ उधर बाहर रात्रि भोजन के समय कैफेटेरिया से बाहर छात्रों की कतारें देखी जा सकती थी।‘चीनी भाषा में बोल रहे कांग झाक्सी का यह नाम चीनी अनुवाद वाला है। वैसे तिब्बती में उनका मूल नाम खाम ताशी होगा।
चीन लंबे समय से तिब्बती बौद्ध धर्म, इस्लाम और ईसाई धर्म सहित विभिन्न समुदायों और धर्मों को नया रूप और आकार देता रहा है। इसका विरोध करने का साहस करने वालों को वह जेल में डाल देता है। इस तरह वह बड़ी जातीय आबादी वाले क्षेत्रों में अशांति की किसी भी संभावना को खत्म करने की कोशिश कर रहा है, ताकि उन्हें लंबे समय से सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के विचारों और लक्ष्यों के साथ जोड़ा जा सके। पिछले दशक में कम्युनिस्ट नेता शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन सरकार का दृष्टिकोण विशेष रूप से तिब्बत के उत्तर स्थित झिंझियांग क्षेत्र में उग्यूर समुदाय पर क्रूर कार्रवाई करते समय और सख्त हो गया है।
वैश्विक जनमत अपने पक्ष में बनाने के अभियान में चीन सरकार ने सिचुआन प्रांत के मुख्य रूप से तिब्बती क्षेत्र में विदेशी पत्रकारों के लिए दौरे का आयोजन किया। इस दौरान अधिकारियों ने स्कूलों, आर्थिक विकास परियोजनाओं, बौद्ध मठों और तिब्बती चिकित्सा अस्पताल के दौरे का आयोजन किया। इनमें से कई स्थानों पर, जिनमें आवासीय स्कूल भी शामिल हैं, आम तौर पर विदेशी मीडिया के लिए पहुंचना मुश्किल होगा। सभी साक्षात्कार सरकारी अधिकारियों की नजरों के सामने आयोजित किए गए। चीन के कम्युनिस्टों ने १९४९ में सत्ता में आने के बाद १९५१ में तिब्बत पर शासन करने वाले बौद्ध धर्मतंत्र को उखाड़ फेंका। तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रमुख पंथ के प्रमुख दलाई लामा १९५९ में हुए असफल विद्रोह के दौरान निर्वासन में भाग गए और तब से वापस नहीं लौटे।
तिब्बत में वर्षों से विरोध-प्रदर्शन भड़कते रहे हैं। लेकिन २००८ के बीजिंग ओलंपिक से पहले बड़े प्रदर्शनों के बाद सरकार ने गिरफ्तारी और धमकी के माध्यम से असहमति को कुचलने, तिब्बती पहचान को और अधिक चीनीकरण करने, हिमालय की दूसरी ओर उत्तरी भारत और नेपाल की सीमा से लगे सुदूर, पहाड़ी क्षेत्र का विकास और बुनियादी ढांचे पर भारी खर्च करने की योजना बनाई है।
परिवारों के पास कोई विकल्प नहीं है
सिचुआन का कार्दज़े प्रिफेक्चर ऊबड़-खाबड़ पहाड़ों, उफनती नदियों, काले बालों वाले चरते याक और चमचमाते पगोडा और स्तूपों की भूमि है। इसका एक हवाई अड्डा ४४०० मीटर (१४,५०० फीट) की ऊंचाई पर अवस्थित है जो दुनिया का सबसे ऊंचा नागरिक हवाई अड्डा है। ऊंचाई इतनी कि बीजिंग से गए पत्रकारों और सरकारी अधिकारियों की सांसें फूलने लगीं। कुछ को तो राहत के लिए ऑक्सीजन के सिलेंडर लगाने पड़े। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक दशक पहले जिस जगह पर शांगरी-ला नाम का शहर बसाया गया था, उस शहर में २०१२ में बोर्डिंग स्कूल खोल दिया गया था। स्कूल के पास सड़कों पर हॉलिडे इन एक्सप्रेस एंड सुइट्स सहित कतारबद्ध होटलें हैं और घाटी के ऊपर खड़ी चट्टानें हैं।
बोर्डिंग स्कूल को देखकर यह समझना मुश्किल था कि क्या छात्र खुश हैं या अपनी तिब्बती जीवनशैली खोने से दुखी हैं। वे आउटडोर कोर्ट पर बास्केटबॉल उछालते हैं या संगीत कक्षा में कीबोर्ड पर एक सरल मार्ग को दोहराने की कोशिश करते हैं। उनके माता-पिता कहीं नज़र नहीं आए, हालांकि स्कूल के अधिकारियों ने कहा कि वे कभी भी आने के लिए स्वतंत्र हैं। स्कूल के कुल ३९० छात्रों में से लगभग तीन-चौथाई प्राथमिक विद्यालय में रहते हैं। प्रिंसिपल कांग झाक्सी ने कहा कि कई माता-पिता घर से दूरी के कारण अपने बच्चों को आवासीय स्कूलों में भेजना पसंद करते हैं।
आम तौर पर बोलने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि माता-पिता के पास कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि गांव के स्कूल बंद कर दिए गए हैं और अगर वे अपने बच्चों को उन ग्रामीण स्कूलों की जगह बने बड़े आवासीय स्कूलों में नहीं भेजेंगे तो उन्हें दंडित किया जा सकता है। शांगरी-ला बोर्डिंग स्कूल में जाने से पहले कांग झाक्सी ने आठ साल तक एक गांव में पढ़ाया। यह स्पष्ट नहीं था कि उसका पिछला स्कूल बंद कर दिया गया है या नहीं। अमेरिका स्थित तिब्बत एक्शन इंस्टीट्यूट के तिब्बती मूल के कनाडाई निदेशक लादोन टेथोंग ने कहा, ‘आप छोटे बच्चों को उनके माता-पिता, परिवारों और समुदायों से दूर रखकर कोई सही विवेकपूर्ण काम नहीं कर रहे हैं और उन्हें बोर्डिंग स्कूलों में वह माहौल नहीं दे पाते हैं माहौल में वे तिब्बत में पलते-बढ़ते हैं।‘
उनके समूह ने २०२१ के अंत में एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें चीनी सरकारी दस्तावेजों और अन्य शोधों के आधार पर अनुमान लगाया गया कि कम से कम ८,००,००० तिब्बती बच्चे या स्कूल जाने वाली आबादी का लगभग ८०% ऐसे बोर्डिंग स्कूलों में थे। २०२० के अंत में चीन छोड़ देने वाले तिब्बती शिक्षा विशेषज्ञ ग्याल लो का अनुमान है कि कम से कम १,००,००० प्री-स्कूल बोर्डिंग स्कूल चल रहे हैं, जहां कुल मिलाकर १० लाख के करीब बच्चे हैं। चीन बोर्डिंग स्कूलों में इतनी संख्या में बच्चों के होने की बात से इनकार करता है।
तिब्बत एक्शन इंस्टीट्यूट में कार्यरत ग्याल लो ने कहा कि उन्होंने २०१६ में अपनी ४ और ५ साल की पोती पर पड़ने वाले प्रभाव को देखने के बाद फील्ड रिसर्च के लिए ५० से अधिक बोर्डिंग प्री-स्कूलों का दौरा किया। उन्होंने इसे एक वैचारिक साजिश बताया। उन्होंने कहा कि उनका अंतिम लक्ष्य यही है कि जितनी जल्दी हो सके बच्चों को उनकी संस्कृति से बाहर निकालें ताकि वे तिब्बती बोलने या पढ़ने से विमुख हो जाएं।‘
दुनिया बोल रही है
हांगकांग और उत्तर-पश्चिमी चीन के झिंझियांग क्षेत्र में उग्यूरों के खिलाफ चीन की कार्रवाइयों के खिलाफ चलाए जा रहे मानवाधिकार अभियान दुनिया भर में काफी चर्चित हुए, लेकिन तिब्बत में बोर्डिंग स्कूलों की स्थापना ने तिब्बत को अंतरराष्ट्रीय चेतना को वापस सचेत करने में मदद की है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने फरवरी में घोषणा की कि संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक के रूप में कार्य करने वाले तीन बाहरी विशेषज्ञों ने नवंबर २०२२ में चीन के विदेश मंत्री को १७ पन्नों का पत्र भेजा था। इसमें विशेषज्ञों ने तिब्बती शैक्षणिक, धार्मिक और भाषाई संस्थानों के खिलाफ सिलसिलेवार दमनकारी कार्रवाइयों के माध्यम से तिब्बती संस्कृति को चीनी संस्कृति में आत्मसात करने की चीनी नीति के बारे में अपनी चिंता से उन्हें अवगत कराया था। विशेषज्ञों ने आवासीय स्कूलों को लेकर एक प्रेस विज्ञप्ति जारी किया था, जिसका शीर्षक था: ‘संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ १० लाख तिब्बती बच्चों को परिवारों से अलग करने और आवासीय स्कूलों में जबरन भर्ती कराए जाने से चिंतित हैं।‘
इसके बाद आवासीय विद्यालयों के इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ समिति ने मार्च में चीन में आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों को लेकर आयोजित दो दिवसीय सुनवाई के एजेंडे में शामिल किया। चीनी अधिकारियों ने सुनवाई में आलोचना का जवाब दिया। सुनवाई के बाद १८ सदस्यीय समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट में चीन से ‘तिब्बती बच्चों पर थोपी गई ज़बरन आवासीय स्कूल प्रणाली को तुरंत समाप्त करने और निजी तिब्बती स्कूलों की स्थापना की अनुमति देने का आह्वान किया।‘
इसके बाद जर्मन विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा है कि उनकी सरकार इस आह्वान का समर्थन करती है और चेक और कनाडाई सांसदों ने आवासीय स्कूलों को समाप्त करने के लिए बयान जारी किए हैं। अमेरिका ने इन सबसे आगे बढ़कर अगस्त में घोषणा की कि वह स्कूलों में शामिल अधिकारियों पर वीज़ा प्रतिबंध लगाएगा। अमेरिका ने कहा कि इन आवासीय स्कूलों का उद्देश्य तिब्बती लोगों की युवा पीढ़ियों के बीच तिब्बत की विशिष्ट भाषाई, सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं को खत्म करना है। हालांकि शांगरी-ला के आवासीय स्कूल में दूसरे दिन सूरज डूबने तक लगभग आधी दुनिया में बदलाव के कोई संकेत नहीं दिखे। चीन ने आलोचनाओं को सिरे से खारिज कर दिया है। चीनी विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि सरकार अमेरिकी कार्रवाई का जवाब उन अमेरिकियों पर वीजा प्रतिबंध लगाकर देगी जो ‘चीन को बदनाम करने के लिए अफवाहें फैलाते हैं या लंबे समय से तिब्बत से संबंधित मुद्दों में हस्तक्षेप करते आ रहे हैं।‘