थेकचेन चोएलिंग, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत। आज ०४ अक्तूबर की सुबह जब परम पावन दलाई लामा छुगलागखांग में चेनरेज़िग महामंत्र से अभिषिक्त करने पहुंचे तो वहां प्रात:कालीन सूर्य की भीनी-भीनी किरणें मंद-मंद बरस रही थीं। वहां पहुंचकर परम पावन मुस्कुराए और धीरे से शिष्यों और शुभचिंतकों की ओर हाथ हिलाया, अपना स्थान ग्रहण किया और तुरंत अभिषेक की प्रारंभिक प्रक्रियाएं शुरू कर दीं। प्रारंभ में ‘हृदय सूत्र’ का जाप पहले चीनी भाषा में और फिर तिब्बती भाषा में किया गया।
जब वह तैयार हो गए तब परम पावन ने सभा में अपना प्रवचन शुरू किया।
‘आज यहां थेकचेन चोएलिंग छुगलागखांग में ताइवान से पधारे हमारे धर्म मित्र मुख्य शिष्य के तौर पर उपस्थित हैं। बौद्ध धर्म सैकड़ों वर्षों से तिब्बत, मंगोलिया और चीन में फला-फूला है। जब मैं १९५५ में चीन गया था तो मैंने वहां कई बौद्ध मंदिर और मठ देखे थे। तिब्बत, चीन और मंगोलिया का भी अवलोकितेश्वर से विशेष संबंध है।
‘चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने संकीर्ण सोच के कारण तिब्बत में बौद्ध धर्म का दमन किया है, लेकिन आज चीन में बौद्ध धर्म के प्रति एक बार फिर रुचि बढ़ रही है। इसके साथ ही तिब्बत पर अवलोकितेश्वर की कृपा बरसती रहती है। इस बात को हमेशा ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है कि चाहे हम धार्मिक हों या नहीं, हम सभी को सुह्रदय होना जरूरी है। हमें दूसरों के प्रति स्नेहपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। अवलोकितेश्वर करुणा के अवतार हैं और पूरे हिमालयी क्षेत्र के लोग उनका भक्त होने के कारण गुणी और सुह्रद हैं।
‘मुझे १४वें दलाई लामा के रूप में जाना जाता है। तिब्बत के लोगों के साथ मेरा जन्म-जन्म का कार्मिक संबंध रहा है। आज मैं संक्षिप्त अवलोकितेश्वर अभिषेक कराने जा रहा हूं। यद्यपि अवलोकितेश्वर से संबंध होने के कारण तिब्बत, चीन और मंगोलिया में भारी परिवर्तन हुए हैं, फिर भी हम बचपन से ही छह अक्षरों वाले मंत्र का जाप करते आ रहे हैं।
‘इन दिनों दुनिया में शांति की बातें चहुंओर जोर-शोर से हो रही है। लेकिन शांति प्राप्त करने के लिए हमलोगों को सबसे पहले मानसिक शांति प्राप्त करने की आवश्यकता है। ‘मानव समूह में रहने के लिए हमें सुहृदय बनने की आवश्यकता है। बचपन में हम अपनी मां की देखभाल और प्यार की छत्रछाया में रहते है। वह हमें जन्म देने के बाद प्यार और जतन से पालन-पोषण करती है। यह अनुभव हम पर गहरा प्रभाव डालता है। इससे हमें यह सीख मिलती है कि हम भी दूसरों के प्रति प्रेमपूर्ण और दयालु हो सकते हैं। मेरे धर्म मित्रों, मैं आपसे सुहृद बनने का आग्रह करता हूं।‘परम पावन ने आगे समझाया कि इस पृथ्वी पर रहनेवाले सभी आठ अरब लोग समान रूप से दुख से मुक्ति और सुख की इच्छा रखते हैं। उन्होंने कहा कि बोधिचित्त की साधना करने से मन की शांति मिलती है। यह शरीर में संतुलन भी लाता है और हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को अच्छा रखने में योगदान देता है। हममें से जो अवलोकितेश्वर की उपासना करते हैं, वे करुणा पर ध्यान देते हैं। छह अक्षरों वाले मंत्र-ओम मणि पद्मे हुम्- का पाठ करने से हमें अपने अंदर करुणा पैदा करने में मदद मिलती है।
परम पावन ने आगे कहा कि वह सुबह उठते ही बोधिचित्त पर ध्यान करते हैं और उससे निकले विचार को शून्यता में अंतर्दृष्टि के साथ जोड़ते हैं। उन्होंने अपने को प्रेरित करनेवाले ‘मध्यम मार्ग में प्रवेश’ के छंदों का हवाला दिया। इस प्रकार, ज्ञान के प्रकाश की किरणों से प्रकाशित बोधिसत्व अपनी खुली हथेली पर आंवले की तरह स्पष्ट रूप से देखते हैं कि तीनों लोक अनादि और अनंत हैं और सनातन सत्य की शक्ति के माध्यम से वह चिर शांति की ओर यात्रा करता है। यद्यपि मन निरंतर चिर शांति में विश्राम कर सकता है, वह अभव्य प्राणियों के लिए भी करुणा उत्पन्न करता है। आगे चलकर वह अपने ज्ञान से भी खुद प्रकाशित होगा वे सभी बुद्ध के उपदेशों और मध्य बुद्धों से पैदा हुए हैं। और अन्य निपुण हंसों से आगे राजहंस की तरह उड़ते हुए अनंत में व्याप्त सनातन और परम सत्य रूपी सफेद पंखों के बल पर, पुण्य की शक्तिशाली हवाओं से प्रेरित होकर, विजेताओं के गुणों के समुद्र के सर्वोत्तम सुदूर तट तक बोधिसत्व यात्रा करेंगे।
परम पावन ने उल्लेख किया कि राजा सोंगछेन गम्पो को अवलोकितेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त था। उन्होंने एक चीनी राजकुमारी से शादी की लेकिन उन्हें तिब्बती संस्कृति को संरक्षित और मजबूत करने की भी चिंता थी। उन्होंने एक तिब्बती लिपि तैयार कराने की व्यवस्था की। इसी का नतीजा रहा था कि जब शांतरक्षित अगली शताब्दी में तिब्बत आए तो उन्होंने यह सुझाव दिया कि भारतीय बौद्ध साहित्य- बुद्ध के वचन और बाद के आचार्यों के ग्रंथों का तिब्बती में अनुवाद किया जाए।
परम पावन ने कहा कि उस साहित्य में निहित प्रवचनों का सार सुहृदय की साधना से संबंधित है। उन्होंने स्वीकार किया, ‘मैंने अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया है, लेकिन ये कठिनाइयां कभी मेरे मन की शांति भंग नहीं कर पाईं।‘ मुझे लगता है कि अच्छे दिल का होना आपके स्वास्थ्य और खुशहाली के लिए अच्छा है, इस बारे में वैज्ञानिक जो कहते हैं, वह सच है। बोधिचित्त न केवल हमारे अपने लक्ष्यों को पूरा करता है, बल्कि यह दूसरों के लक्ष्यों को भी पूरा करता है। यदि आप इसका विकास दिन-रात कर सकते हैं, तो आपको निश्चित रूप से मानसिक शांति मिलेगी।
अभिषेक शुरू करते हुए परम पावन ने स्थानीय आत्माओं का अनुष्ठान में आह्वान करने के लिए एक एक अनुष्ठानिक केक भेंट किया। उन्होंने टेर्डैग लिंग्पा के ऐसा करने के तरीके से सहमति जताते हुए बोधिसत्व प्रतिज्ञा दिलाई, जिसके बाद तांत्रिक प्रतिज्ञा की गई। इसके बाद उन्होंने मूल अभिषेक, परम अभिषेक, गुप्त और शब्द अभिषेक सहित कई अभिषेकों के माध्यम से मंडली का मार्गदर्शन किया। उन्हें पूरा करने के बाद उन्होंने आगे के अनुष्ठान के लिए आज्ञा प्रदान कीं। इसकी परिणति दूसरों को लाभ पहुंचाने की अनुमति के रूप में हुई। इसने वह प्रेरित हुए और शांतिदेव के ‘बोधिसत्व मार्ग में प्रवेश’ से कविता सुनाई, जो उनकी मूल भावना को व्यक्त करता है।
जब तक अंतरिक्ष है,
और जब तक भव्य प्राणी रहेंगे,
तब तक मैं भी रहूं
दुनिया के दुख को दूर करने में मदद करने के लिए।
परम पावन ने कहा, ‘इस अभिषेक को धारण करने के बाद कृपया वैसा ही करें, जैसा प्रमुख देवता ने निर्देशन दी है।‘ इसका अर्थ है प्रतिज्ञाओं और प्रतिबद्धताओं पर कायम रहना। चीनी शिष्यों ने परम पावन की लंबी उम्र के लिए अपने गुरुओं द्वारा रचित प्रार्थना का पाठ किया, जिसका चीनी भाषा में अनुवाद किया गया है।
अपने स्थान से उठते हुए परम पावन ने समर्पण के दो श्लोक पढ़े:
जैसे विद्वान मंजुश्री और समन्तभद्र ने
चीजों को वैसे ही महसूस किया जैसी वे हैं,
वैसे ही मैं भी इन सभी गुणों को सर्वोत्तम तरीके से समर्पित करता हूं
ताकि मैं उनके आदर्श उदाहरण का अनुसरण कर सकूं।
मैं पुण्य की इन सभी मूल तत्वों के प्रति समर्पित हूं
जिसका समर्पण के साथ सर्वश्रेष्ठ के रूप में प्रशंसा की गई है
तीनों काल में प्रकट हुए सभी बुद्धों द्वारा
ताकि मैं बोधिसत्व के महान कार्यों को कर सकूं।