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कोलकाता। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के सूचना और अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग (डीआईआईआर) के तिब्बत संग्रहालय के साथ संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और मानवाधिकार डेस्क ने मिलकर भारत-तिब्बत संबंधों को लेकर पश्चिम बंगाल और सिक्किम के चार शहरों- कोलकाता, सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग और गंगटोक में प्रदर्शनी के साथ अपना ११ दिनों का भाषण दौरा शुरू किया। डेस्क के अधिकारी श्री तेनज़िन कुनखेन और सुश्री लोबसांग क्यिज़ोम ने तिब्बत में वर्तमान मानवाधिकार स्थिति और भारत और दुनिया के लिए तिब्बत के महत्व के बारे में बात की। सेमिनार में संस्कृत कॉलेज और विश्वविद्यालय के ४० से अधिक छात्रों और संकाय सदस्यों ने भाग लिया।
सेमिनार के चार पैनलिस्टों में गणसम्मनय, कोलकाता की अध्यक्ष रूबी मुखर्जी, संस्कृत कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मौसमी सेन भट्टाचार्य और केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के तेनज़िन कुनखेन और लोबसांग क्यिज़ोम शामिल थे।
सेमिनार आयोजित करने में मदद करनेवाली कोर ग्रुप फॉर तिब्बतन कॉज की पूर्व क्षेत्रीय संयोजक एडवोकेट रूबी मुखर्जी भी चार पैनलिस्टों में से एक थीं। अपनी बातचीत के दौरान उन्होंने उन संबंधों पर प्रकाश डाला जो ऐतिहासिक रूप से भारत और तिब्बत को एक साथ बांधते हैं और कहा कि तिब्बत के उचित कारण का समर्थन करना भारतीयों का नैतिक कर्तव्य है।
डीआईआईआर के मानवाधिकार डेस्क के कर्मचारी तेनज़िन कुनखेन ने केंद्रीय तिब्बती प्रशासन का परिचय दिया और तिब्बत पर चीन के कब्जे की पृष्ठभूमि के बारे में संक्षेप में जानकारी दी। उन्होंने आगे तिब्बत के अंदर विभिन्न तरह के मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में बात की, जिसमें ड्रैकगो में चल रही कार्रवाई और विध्वंस, तिब्बत में चीनी औपनिवेशिक शैली के आवासीय स्कूल, ‘देशभक्ति पुनर्शिक्षा’ और तिब्बती बुद्धिजीवियों पर कार्रवाई शामिल है।
उन्होंने कहा, ‘तिब्बत पर अपने कब्जे को वैध ठहराने और अपने राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने के लिए चीनी सरकार तिब्बत में तिब्बतियों के मौलिक मानवाधिकारों की उपेक्षा करती है।’
डीआईआईआर की अनुसंधान और संचार अधिकारी लोबसांग क्यिज़ोम ने भारत के लिए तिब्बत के महत्व पर चर्चा की। उन्होंने इस तथ्य को उजागर किया कि जब भारत की सुरक्षा चिंताओं की बात आती है तो तिब्बत को एक महत्वपूर्ण कारक क्यों माना जाना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने भारत की तिब्बत नीति के पुनर्मूल्यांकन का आह्वान किया। उन्होंने कहा, ‘अगर पीआरसी सरकार की मौजूदा नीतियों को चुनौती नहीं दी गई तो तिब्बत के साथ ही उसके पड़ोसी भी गंभीर रूप से प्रभावित होंगे।’सेमिनार से पहले तिब्बत संग्रहालय के कर्मचारियों ने विश्वविद्यालय हॉल में प्रदर्शनी लगाई, जिसने इच्छुक छात्रों को आकर्षित किया। कर्मचारियों ने प्रदर्शनी के बारे में छात्रों के सवालों के जवाब दिए।