शेवात्सेल, लेह, लद्दाख, भारत, ३१ जुलाई २०२३। परम पावन दलाई लामा ३१ जुलाई की सुबह शेवात्सेल फोडरंग स्थित अपने आवास से प्रवचन स्थल के दूसरे छोर पर स्थित कालचक्र मंदिर तक गए। मंदिर के अंदर सैमटेन लिंग, स्पितुक, रिज़ोंग, लिकिर और ज़ांस्कर सहित कई स्थानीय मठों के भिक्षुओं का एक समूह कालचक्र अनुष्ठान का संचालन कर रहा था। इस समूह ने कालचक्र साधना समूह का गठन किया है। उनके सामने दीवार पर कालचक्र की एक पुरानी थांगका पेंटिंग लटकी हुई थी और मंडल मंडप में एक मंडल की तस्वीर रखी गई थी। परम पावन ने भिक्षुओं के साथ अपना स्थान ग्रहण करने और उनकी प्रार्थना में शामिल होने से पहले इन भिक्षुओं और बुद्ध की प्रतिमा को प्रणाम किया।
इसके बाद परम पावन ७० प्रतिनिधियों को संबोधित करने गए। ये प्रतिनिधि लेह में हाल ही में समाप्त हुई यू-सांग वार्षिक आम सभा की बैठक में शामिल होने आए थे। ये सब मंदिर के बरामदे पर बैठे। प्रार्थना होने के बाद आम सभा की लिखित रिपोर्ट पढ़ी गई।
इसमें कहा गया, ‘तिब्बत के तीनों प्रांतों के हम तिब्बती महान धार्मिक राजाओं के समय से एकजुट रहे हैं। तिब्बत के राजा सोंगत्सेनगाम्पो ने एक चीनी राजकुमारी से विवाह किया और फिर जब उन्होंने तिब्बती लिपि बनाने का फैसला किया, तो उन्होंने भारतीय वर्णमाला पर के आधार पर इस लिपि का निर्माण करना चुना। वह दूरदर्शी और तिब्बती भावना से ओत-प्रोत व्यक्ति थे।
राजा त्रिसॉन्गडेट्सन के समय शांतरक्षित की सलाह पर भारतीय बौद्ध साहित्य का तिब्बती में अनुवाद करने के लिए एक परियोजना शुरू की गई। इसी परियोजना के परिणामस्वरूप हमारे पास मौजूद ३०० खंडों के कांग्यूर और तेंग्यूर ग्रंथों का प्रणयन किया गया है।
शांतरक्षित ने तिब्बत में गौरवशाली नालंदा परंपरा की स्थापना की और तब से हमने इसे जीवित रखा है। हमने इसे अच्छे से संरक्षित करके रखा है।‘आज भी जब परंपरागत विचारों का मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक व्याख्या की बात आती है तो तिब्बती सबसे सटीक भाषा के रूप से सामने आती है। अतीत के आचार्यों और राजाओं का अनुसरण करते हुए हमने शास्त्रीय ग्रंथों की सामग्री का अध्ययन, चिंतन और मनन करके परंपरा को जीवित रखा है। हम ‘एकत्रित विषय‘ और ‘मन और जागरुकता‘ से शुरुआत करते हैं, जिसे मैंने एक छोटे लड़के के रूप में याद किया था।
परम पावन ने आगे कहा, जब मैं बहुत छोटा था तब मुझे अपने जन्मस्थान के पास कुंबुम मठ जाने की घटना याद है। मैंने युवा भिक्षुओं को साष्टांग प्रणाम करते और ओम अरापत्सनाधि मंत्र का उच्चारण करते हुए देखा और उनकी नकल करना चाहता था। शास्त्रीय ग्रंथों के गहन और व्यापक अध्ययन के परिणामस्वरूप अमदो, दो-तू और मध्य तिब्बत में अनेक महान विद्वान-विशेषज्ञों का समूह अस्तित्व में आया।
‘हाल ही में हम कठिन दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन तिब्बत के तिब्बतियों में विनम्रता की मजबूत भावना है। उन्होंने हमारी भाषा और संस्कृति को जीवित रखने के लिए कड़ी मेहनत की है। इसके अलावा, आज बौद्ध धर्म और विशेष रूप से तिब्बती बौद्ध धर्म में रुचि लेने वाले चीनियों की संख्या बढ़ रही है। लान्झू विश्वविद्यालय के छात्रों ने मुझे बताया कि चीनी अभी हम पर शासन कर सकते हैं, लेकिन दीर्घावधि में हम उन्हें पढ़ाएंगे। चीनी कम्युनिस्ट मुझे हर तरह के अपमानजनक नामों से बुलाते थे, लेकिन हाल ही में ऐसा लगता है कि उन्होंने इस तरह से विशेषण देना बंद कर दिया है।‘
परम पावन ने कहा कि तिब्बती बौद्ध धर्म विज्ञान के अनुकूल है, क्योंकि यह तर्क और कारण के साथ-साथ अध्ययन, चिंतन और ध्यान की प्रक्रिया पर आधारित है। उन्होंने कहा कि चीन और यूरोप में बढ़ती संख्या में लोग बिना किसी धार्मिक प्रतिबद्धता के इस परंपरा पर ध्यान दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह उन्हें उस बात की याद दिलाता है जो जेसोंगखापा ने अपने ‘ज्ञानोदय के पथ के चरणों पर महान ग्रंथ‘ के अंत में लिखी थी।
जहां कहीं भी बुद्ध की शिक्षा नहीं फैली है
और जहां भी यह फैली, लेकिन कम फैली है
मैं अत्यधिक करुणा से प्रेरित होकर स्पष्ट रूप से बता सकता हूं
कि यह सभी के लिए उत्कृष्ट लाभ और खुशी का खजाना है।
उन्होंने कहा कि अतीत में तिब्बती बौद्ध धर्म केवल नाम से जाना जाता था, लेकिन अब बड़े पैमाने पर लोगों को इसकी व्यापक समझ है, क्योंकि शिक्षित लोग और वैज्ञानिक इसमें रुचि लेते हैं।
परम पावन ने आगे कहा, ‘तिब्बती बौद्ध धर्म नालंदा परंपरा और नागार्जुन, चंद्रकीर्ति, धर्मकीर्ति और दिङ्गनाग के लेखन से निकला है। हमने एक ऐसी संस्कृति विकसित की है जिसका दुनिया में लाभकारी योगदान है। ऐसे कारणों से हमें तिब्बती होने पर गर्व हो सकता है।
‘इन दिनों बहुत से लोग विश्व शांति के बारे में बात करते हैं, लेकिन यह तभी संभव होगा जब हममें से अधिक से अधिक लोगों के दिलों में प्यार और करुणा होगी। विश्व शांति मन की शांति में निहित है। दलाई लामा नाम के साथ मैं कई अलग-अलग जगहों पर गया हूं और इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि हमें अपनी सांस्कृतिक परंपराओं पर गर्व हो सकता है। इसका कारण यह है कि विश्व शांति आंतरिक शांति प्राप्त करने पर निर्भर करती है।
‘आप सभी को सहज महसूस करना चाहिए। मेरी उम्र लगभग ९० वर्ष है, लेकिन मैं फिट महसूस करता हूं और मेरे डॉक्टर भी ऐसा ही कहते हैं। मेरे सपनों में संकेत और अन्य स्रोतों से पता चलता है कि मैं ११० वर्ष से अधिक जीवित रहूंगा। ‘पहले उत्संग प्रतिनिधि और फिर कालचक्र समूह के भिक्षु परम पावन के साथ तस्वीरें लेने के लिए उनके आसपास एकत्र हुए।
शेवात्सेल से परम पावन कार से चलकर स्टोक गांव और वहां की विशाल स्वर्ण बुद्ध प्रतिमा तक पहुंचे। सड़क पर स्थानीय लोग सज-धज कर, हाथों में फूल, रेशमी स्कार्फ और चेहरों पर मुस्कान लिए कतार में खड़े थे। उनमें से कुछ सड़क के किनारे सजाने के लिए जेरेनियम और अन्य फूलों के गमले लेकर आए थे।
परम पावन के उुपर रंग-बिरंगा पीला रेशमी छाता तानकर उन्हें तेज़ धूप से बचाया गया। उन्होंने महान प्रतिमा के नीचे से मंदिर में प्रवेश किया जहां उन्होंने श्रद्धांजलि अर्पित की और घी का दीपक जलाया। इसके बाद, उन्होंने शुभकामना के प्रतीक के रूप में फूलों को हवा में उछाला और मूर्तियों, मालाओं और अन्य वस्तुओं को पवित्र करने के लिए प्रार्थना की, जिन्हें पवित्र करने के लिए रखा गया था।
मंदिर के बरामदे में कुर्सी पर बैठ कर परम पावन प्रार्थना में शामिल हुए। स्टोक के लोगों के प्रवक्ता गेशेत्सेवांगदोर्जे ने सबसे पहले अपने स्वागत भाषण में कहा कि वे आज वह उनका स्वागत करके बहुत खुश महसूस कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि २०१६ से जब बुद्ध की महान प्रतिमा का निर्माण किया गया था, तब से वे हर साल कांग्यूर और तेंग्यूर को एक साथ पढ़ते हैं। उन्होंने ऐसे केंद्र भी बनाए हैं, जहां वे बौद्ध धर्म का अध्ययन कर सकते हैं और एक साथ तिब्बती भाषा सीख सकते हैं।
आज जो बुजुर्ग हो चुके हैं वे अब तक इस तरह का अध्ययन नहीं कर सकते थे। उन्होंने अब इस पाठ और प्रार्थनाओं को सीख लिया है। ऐसी अध्ययन केंद्र हैं, जहां लोग बौद्ध धर्म और विज्ञान का अध्ययन करते हैं। प्रत्येक चंद्र माह की १५ और ३० तारीख को स्टोक के ग्रामीण परम पावन और अन्य महान लामाओं की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करने के लिए इकट्ठा होते हैं। प्रवक्ता ने आगे कहा, हालांकि वे सिर्फ प्रार्थना नहीं कर रहे हैं। वे परम पावन की सलाह के अनुसार ‘पथ के चरणों’ (लैमरिम) और ‘माइंड ट्रेनिंग‘ (लोजोंग) के बारे में भी सीखते हैं। उन्होंने आज प्रतिमा का दौरा करने के लिए परम पावन को धन्यवाद देते हुए अपनी बात समाप्त की। इसके बाद ढोल- बाजे के साथ परम पावन की प्रशंसा में एक गीत और नृत्य की प्रस्तुति हुई। ‘परम पावन ने उपस्थित जनसमूह से कहा, ‘जब मैं शेवात्सेल फोडरंग में होता हूं और ऊपर देखता हूं तो दूर इस महान प्रतिमा को देखता हूं, मुझे ऐसा लगता था कि मैं इसे देखने जा रहा हूं। और आज हम यहां हैं।
‘दुनिया के महान धर्मों के संस्थापक शिक्षकों में केवल बुद्ध ने प्रतीत्य- समुत्पाद के बारे में सिखाया, जो कि गहन शिक्षा है। जहां तक मेरा सवाल है, मैं समझता हूं कि चूंकि यह शिक्षा परस्पर निर्भरता से उत्पन्न हुई हैं, इसलिए चीजें अंतर्निहित अस्तित्व से खाली हैं। ‘‘हम अलग-अलग चीज़ों से आसक्त या विमुख हो जाते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि वे स्वाभाविक रूप से या वस्तुगत रूप से अस्तित्व में हैं। वे हमें एक निश्चित रूप में दिखाई देते हैं, जो वास्तव में केवल एक भ्रम है।
नागार्जुन ने लिखा है:
कर्म और मानसिक वेदनाओं के नाश से मुक्ति मिलती है।
कर्म और मानसिक क्लेश मानसिक विचार से आते हैं।
ये मानसिक उलझनों से आते हैं।
शून्यता से ये उलझनें बंद हो जाती हैं। १८.५
‘मध्यम मार्ग का उद्देश्य हमारे मानसिक कष्टों को कम करना और आत्मज्ञान प्राप्त करना है। मैं हर दिन जितना संभव हो सके शून्यता पर विचार करता हूं। हालांकि, केवल अपनी मुक्ति के बारे में सोचना संकीर्ण रूप से आत्म-केंद्रित होना है।
‘बोधिसत्व का मार्ग‘ हमें बताता है:
जो लोग दूसरों के दुखों को देखकर अपनी खुशी का त्याग नहीं करते हैं, उनके लिए बुद्धत्व प्राप्त करना निश्चित रूप से असंभव है – जीवन-मरण के चक्र में खुशी कैसे हो सकती है? ८/१३१ ‘हम सभी को करुण हृदय विकसित करना चाहिए और स्वार्थ से दूर रहना चाहिए। खुश रहने की चाहत में हम सभी एक जैसे हैं, इसलिए हमें सभी की खुशी की चिंता करनी चाहिए।
‘यहां बुद्ध की इस महान प्रतिमा के समक्ष, जिसे दूर से देखा जा सकता है, हमें बुद्ध की हमारे प्रति करुणा- उनकी शिक्षाओं को याद रखना चाहिए और उनके प्रति आभारी होना चाहिए। ‘‘लद्दाख और हिमालय क्षेत्र के अन्य हिस्सों के लोग बुद्ध के अनुयायी हैं जो विशेष रूप से अवलोकितेश्वर को मानते हैं, मणियों का पाठ करते हैं और बोधिचित्त पर ध्यान करते हैं, जिससे मन को शांति मिलती है। ‘जब मैं हर सुबह उठता हूं तो मैं बोधिचित्त उत्पन्न करता हूं और ओम मणिपद्मे हुम् का जाप करता हूं। हर कोई खुश रहना चाहता है, लेकिन दुनिया में इतनी हिंसा और वेदनाएं है। जब हममें से प्रत्येक को मन की शांति मिलेगी तो हम व्यापक शांति लाने में सक्षम होंगे।
‘बौद्ध धर्मग्रंथ न केवल इस जीवन के बारे में बल्कि अतीत और भविष्य के जीवन के बारे में भी शिक्षा देते हैं। यदि आपका दिल अच्छा है और आप अवलोकितेश्वर पर भरोसा करते हैं तो आप एक शांतिपूर्ण जीवन जीएंगे और कई प्राणियों के लिए लाभकारी होंगे। ‘बौद्ध धर्म केवल बुद्ध, धर्म और संघ में विश्वास रखने के बारे में नहीं है। यह हमारे दिमाग को बदलने के बारे में है। बुद्ध ने यही सिखाया। मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूं, क्योंकि वे सभी अच्छे दिल की कामना करते हैं। बौद्ध धर्म हमें सिखाता है कि इसे कैसे विकसित किया जाए और इसकी साधना कैसे की जाए।
‘बौद्ध धर्म केवल आस्था का विषय नहीं है, इसमें दार्शनिक विचारों की विस्तृत व्याख्या शामिल है। यही कारण है कि हमें अध्ययन करने, जो हमने सीखा है उस पर चिंतन करने और अनुभव प्राप्त होने तक उस पर मनन करने की आवश्यकता है। यही तो मैं आपको बताना चाहता था।‘ स्टोक ग्रामीणों की ओर से गेशेत्सेवांगदोर्जे ने परम पावन को अपने गांव में उनकी दूसरी बार यात्रा के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने दोहराया कि स्टोक के लोग परम पावन की सलाह के अनुसार एक साथ ‘मणियों’ का अध्ययन और पाठ कर रहे हैं। उन्होंने कहा, वे यह भी प्रार्थना करते हैं कि परम पावन बार-बार लद्दाख आएं।
बुद्ध की महान प्रतिमा से परम पावन स्टोक के ऊपर की ओर लद्दाख की पूर्व रानी स्टोक ग्याल्मो के निवास तक गए, जहां रानी और उनके पोते ने उन्हें चाय पर आमंत्रित किया था। बगीचे में उनके लिए छाया में बैठने के लिए एक छोटा वर्गाकार तंबू लगाया गया था और चाय और जलपान परोसे जाने के दौरान उन्होंने साथ- साथ हल्की बातचीत का आनंद लिया। रानी के परिवार के सदस्य और अन्य शुभचिंतक रास्ते के दोनों ओर बैठे थे। जब परम पावन अपनी कार की ओर जा रहे थे, तो वे लोग उनके करीब होने की उम्मीद से आगे बढ़े। बदले में उन्होंने मुस्कुराकर उनका अभिवादन किया। स्टोक से वह सिंधु नदी पर बने पुल के पार चोशोटयाकमा से होते हुए आगे बढ़े और शेवात्सेल फोडरंग लौट आए।