हरियाणा। भारत में तिब्बत समर्थक समूहों में से एक- भारत तिब्बत समन्वय संघ (बीटीएसएस)- ने २४ और २५ जून, २०२३ को हरियाणा के सोनीपत में ‘चिंतन २०२३’ शीर्षक से अपनी ग्रीष्मकालीन राष्ट्रीय कार्यकारी बैठक का आयोजन किया। बीटीएसएस हरियाणा प्रांत अगुवाई में हरियाणा के सोनीपत के मुरथल स्थित प्रजापति ब्रह्माकुमारी रिट्रीट सेंटर में यह बैठक हुई।
२४ जून को बैठक के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में भाजपा हरियाणा प्रदेश के अध्यक्ष श्री ओम प्रकाश धनखड़ और विशिष्ट अतिथि के रूप में हरियाणा सरकार में पूर्व कैबिनेट मंत्री श्रीमती कविता जैन उपस्थित रहीं।
श्री धनखड़ ने अपने संबोधन में कहा कि तिब्बत के मुक्ति संघर्ष में भारत के लोगों की भावनाएं तिब्बतियों के साथ हैं और यही कारण है कि भारत सरकार ने कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तिब्बत का पक्ष लिया है। उन्होंने कहा कि भारत की सोच लोकतांत्रिक और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की है, जबकि चीन की सोच साम्राज्यवाद की है। उन्होंने कहा कि भारत तिब्बत के बिना अधूरा है क्योंकि भारत और तिब्बत प्राचीन काल से ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों में एक- दूसरे से जुड़े रहे हैं।
इसके अलावा, श्री धनखड़ ने उल्लेख किया कि शांति और करुणा के वैश्विक नेता और तिब्बत के हित के लिए अहिंसक संघर्ष के नेता के रूप में परम पावन दलाई लामा के प्रति उनके मन में बहुत सम्मान है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें तिब्बती में लेखन का शौक है, विशेष रूप से परम पावन छठे दलाई लामा को लेकर उन्होंने कविता लिखी है, जिसमें एक व्यक्ति अपनी मातृभूमि में लौटने की इच्छा को दर्शाता है। चूंकि भारत तिब्बत-समन्वय संघ का मुख्य उद्देश्य तिब्बत को आज़ाद कराना है, जिस पर १९५९ में चीन ने कब्ज़ा कर लिया था। वह ल्हासा में जश्न मनाते हुए एक आज़ाद तिब्बत का सपना देखते हैं।
बीटीएसएस के निमंत्रण पर भारत- तिब्बत समन्वय कार्यालय (आईटीसीओ), नई दिल्ली की समन्वयक (कार्यवाहक) ताशी देकी और कार्यक्रम अधिकारी छोनी छेरिंग ने क्षेत्रीय तिब्बती महिला संघ, दिल्ली की अध्यक्ष फुरबू डोल्मा के साथ बैठक में भाग लिया।
सबसे पहले ताशी देकी ने भारत-तिब्बत समन्वय कार्यालय और केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने तिब्बत के अंदर की वर्तमान स्थिति, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन, पर्यावरणीय गिरावट और दुनिया के नक्शे से तिब्बत को मिटाने के लिए सीसीपी की भयावह नीतियों पर एक सिंहावलोकन किया। उन्होंने बताया कि चीन की दमनकारी नीति का उद्देश्य केवल चीन की मुख्य हान नस्ल की राष्ट्रीय पहचान की भावना को मजबूत करना है और इसके लिए तिब्बती पहचान (संस्कृति, धर्म, भाषा, आदि) का विनाश करना या उसका चीनीकरण करना है। तब्बित के अंदर चीनी अधिकारियों के खिलाफ किसी भी अभिव्यक्ति (शांतिपूर्ण प्रदर्शन) को अलगाववाद माना जाता है और मृत्युदंड तक की कठोर सजाओं तक से दंडित किया जाता है। इसके कारण तिब्बत के अंदर तिब्बतियों को शांतिपूर्ण विरोध के रूप में आत्मदाह करना पड़ रहा है और तिब्बत के अंदर न्याय की गुहार लगानी पड़ रही है। दुर्भाग्य से पिछले १५ वर्षों में १५८ तिब्बतियों ने आत्मदाह कर लिया है। तिब्बत में औपनिवेशिक बोर्डिंग स्कूलों की नीति लागू की गई है, जिसके तहत चार वर्ष की उम्र के बच्चों को उनके परिवारों से अलग कर दिया जाता है और उन्हें जबरन मंदारिन भाषा में पढ़ाया जाता है। चीनी सरकार द्वारा तिब्बत में परिवारों की पूरी पीढ़ी की निगरानी के लिए तिब्बतियों का डीएनए संग्रह किया जा रहा है।
उन्होंने भारत के लिए तिब्बत के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने बताया कि जब तिब्बत स्वतंत्र था, तब भारत-तिब्बत सीमा मामलों में कभी कोई बाधा नहीं थी। बल्कि दोनों देश सहजता से सह-अस्तित्व में थे। सीसीपी द्वारा तिब्बत पर कब्जे के बाद ही सीमा पर तनाव पैदा हो गया है, जिससे भारत सरकार को सीमा सुरक्षित करने में भारी खर्च करना पड़ रहा है। इसके अलावा, तिब्बत दक्षिण एशिया में प्रमुख नदियों का स्रोत है। ये नदियां कई दक्षिण एशियाई देशों की जीवन रेखा हैं। चीनी सरकार द्वारा तिब्बत में नदियों पर बांध बनाए जा रहे हैं और नदियों की धारा को मोड़कर पर्यावरण का विनाश किया जा रहा है। यह परिस्थिति विशेषकर भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है। इसके साथ, उन्होंने बीटीएसएस को धन्यवाद व्यक्त किया और तिब्बत और तिब्बती मुद्दे के लिए उनसे निरंतर सहयोग और समर्थन मांगा।
उन्होंने भारत के लिए तिब्बत के महत्व पर भी जोर दिया। जब तिब्बत स्वतंत्र था, तब भारत-तिब्बत सीमा मामलों में कभी कोई बाधा नहीं थी, बल्कि दोनों देश सहजता से सह-अस्तित्व में थे। सीसीपी द्वारा तिब्बत पर कब्जे के बाद ही सीमा पर तनाव पैदा हो गया है, जिससे भारत सरकार को सीमा सुरक्षित करने में भारी खर्च करना पड़ रहा है। इसके अलावा, तिब्बत दक्षिण एशिया में प्रमुख नदियों का स्रोत है जो कई दक्षिण एशियाई देशों की जीवन रेखा हैं। चीनी सरकार द्वारा तिब्बत में नदियों पर बाँध और मार्ग मोड़कर किया जा रहा पर्यावरण विनाश, विशेषकर भारत के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। इसके साथ, उन्होंने बीटीएसएस को धन्यवाद व्यक्त किया और तिब्बत और तिब्बती मुद्दे के लिए उनसे निरंतर सहायता और समर्थन मांगा।
श्रीमती कविता जैन ने अपने संबोधन में तिब्बती भाइयों और बहनों के प्रति अपनी एकजुटता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि बैठक में भाग लेने और सभी वक्ताओं को सुनने के बाद उन्हें तिब्बत के बारे में अधिक जानकारी मिली। उन्होंने अपने अनुभवों को याद करते हुए बताया कि वह हिल स्टेशनों में तिब्बती बाजारों का दौरा करती थीं, जहां उन्हें तिब्बती बहुत मेहनती और शांतिपूर्ण लोग लगते थे। उन्होंने तिब्बती संघर्ष के लिए अपने समर्थन का आश्वासन दिया और चीनी शासन से तिब्बत की शीघ्र मुक्ति के लिए प्रार्थना की।
बैठक को बीटीएसएस के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. प्रयाग दत्त जुयाल, बीटीएसएस महिला अध्यक्ष प्रो. सुमित्रा कुकरेती, बीटीएसएस महिला राष्ट्रीय महासचिव डॉ. रुकमेश चौहान और आरटीडब्ल्यूए दिल्ली अध्यक्ष फुरबू डोल्मा ने भी संबोधित किया।
दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक के समापन सत्र में २५ जून को बीटीएसएस यूथ विंग के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नीरज सिंह मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। नीरज सिंह भारत के माननीय रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह जी के पुत्र हैं। मंच पर उनके साथ बीटीएसएस के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) प्रयाग दत्त जुयाल, बीटीएसएस महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. सुमित्रा कुकरेती, बीटीएसएस के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. विवेक गुरु, बीटीएसएस के राष्ट्रीय संयोजक हेमेंद्र प्रताप सिंह तोमर, आईटीसीओ समन्वयक (कार्यवाहक) ताशी देकी और आरटीडब्ल्यूए दिल्ली की अध्यक्ष फुरबू डोल्मा विराजमान थीं।
दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में झारखंड की राजधानी रांची में आयोजित पिछली राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक ‘मंथन २०२२’ के बाद पिछले छह महीनों के दौरान बीटीएसएस चैप्टर की गतिविधियों और कार्यक्रमों की समीक्षा की गई। बैठक में आने वाले छह महीनों में तिब्बत के लिए काम करने और तिब्बती मुद्दे को मजबूत करने के लिए बीटीएसएस की कार्य योजनाओं और कार्यक्रमों पर चर्चा की गई। बैठक के दौरान भारत-तिब्बत कैलेंडर तैयार कर उसके अनुरूप गतिविधियां संचालित करने, २०२४ में बीटीएसएस युवा सम्मेलन एवं महिला सम्मेलन, बीटीएसएस सदस्यों की निर्देशिका प्रकाशन, तिब्बत पर पुस्तक प्रकाशन, दून विश्वविद्यालय में तिब्बती भाषा पाठ्यक्रम शुरू करने, कैलाश-मानसरोवर की मुक्ति के लिए प्रतिज्ञा और १४ नवंबर, १९६२ को भारतीय संसद द्वारा चीन-भारत युद्ध के दौरान चीन द्वारा हड़पे गए भारतीय क्षेत्रों को वापस पाने के संकल्प की याद दिलाने समेत कई प्रस्ताव पारित किए गए।
बैठक में देश के हर कोने तक पहुंचने और तिब्बत और तिब्बतियों के लिए संगठन के काम को मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, राज्य और जिला स्तर पर नए कार्यकारी सदस्यों की नियुक्ति पर भी चर्चा हुई।
समापन पर आईटीसीओ समन्वयक (कार्यकारी) ताशी देकी ने आरटीडब्ल्यूए दिल्ली की अध्यक्ष फुरबू डोल्मा के साथ बीटीएसएस के राष्ट्रीय कार्यकारी अधिकारियों और सभी सदस्यों को तिब्बत के लिए उनके समर्थन और काम के लिए पारंपरिक तिब्बती पवित्र दुपट्टा ‘खटक’ ओढ़ाकर सम्मानित किया। बैठक की आयोजन समिति सहित प्रजापति ब्रह्माकुमारी रिट्रीट सेंटर के सदस्यों ने भी तिब्बती प्रतिनिधियों को स्कार्फ और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में पूरे भारत से भारत- तिब्बत समन्वय संघ के १५० से अधिक सदस्यों ने भाग लिया।