प्रो0 श्यामनाथ मिश्र / पत्रकार एवं अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग
तिब्बत समस्या का हल भारत के हित में है। चीन के अवैध नियंत्रण में तिब्बत के जाते ही भारतीय सुरक्षा, समृद्धि, शांति तथा स्वाभिमान पर जो संकट आया वह लगातार गहराता जा रहा है। विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं से जुड़े भारतीय राजनेताओं और विषेषज्ञों ने बार-बार विस्तारवादी चीन की साजिष से हर समय सावधान किया था। उनका स्पष्ट मत था कि तिब्बत में चीनी घुसपैठ का भारत सरकार द्वारा विरोध होना चाहिये। इस विषय में भारत सरकार की चुप्पी से भारत की भौगोलिक एकता-अखंडता को भारी क्षति निष्चित है। बाबा साहब अम्बेडकर, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, डॉ. राम मनोहर लोहिया, सरदार पटेल तथा जे.बी. कृपलानी समेत अनेक विचारक इस बिन्दु पर एकमत थे। लेकिन तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने तिब्बत का साथ नहीं दिया। इस भूल का दण्ड आज भी भारत भुगत रहा है।
तिब्बत पर अवैध नियंत्रण की साजिषपूर्ण प्रक्रिया के समय चीन सरकार का शीर्ष नेतृत्व नेहरू के साथ पंचषील समझौता कर रहा था। हिन्दी-चीनी भाई-भाई के नारे लग रहे थे। इससे प्रभावित प्रधानमंत्री नेहरू शांति के प्रतीक सफेद कबूतर उड़ा रहे थे, जबकि अपनी कुटिल योजनानुसार चीन युद्ध की तैयारी कर रहा था। चीन के हाथों 1962 में भारत की हार इसी का उदाहरण है।
नेहरू ने 1955-56 के बाद भूल सुधार की थोड़ी कोषिष जरूर की थी। देर से ही सही, भारत-तिब्बत के हजारों साल पुराने संबंध उन्हें याद आये और 1959 में चीनी विरोध के बावजूद उन्होंने तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु तथा राजप्रमुख परमपावन दलाई लामा को उनके हजारों अनुयायियों समेत भारत में शरण प्रदान कर दी। भारत पर चीनी आक्रमण का एक कारण इस भूल सुधार को भी बताया जाता है। भारत को उसी समय तिब्बत का साथ देना चाहिये था जब स्वतंत्र तिब्बत को चीन ने अपना भूभाग बताया था। खेतड़ी (राजस्थान) के प्रसिद्ध राजनेता और समाजसेवी कालीचरण गुप्ता बताते हैं कि ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार तिब्बत एक स्वतंत्र देष था, जो भारत एवं चीन के बीच स्थित बफर स्टेट (मध्यस्थ राज्य) था। भारत की सीमा तिब्बत से जुड़ी थी, न कि चीन से। चीन की सीमा चीन की दीवार है। इस दीवार के बाहर का भूभाग अवैध चीनी कब्जा है। सही समय पर सही निर्णय लेने में प्रधानमन्त्री नेहरू की चूक का परिणाम है कि 1959 में स्वतंत्र तिब्बत और उसके बाद 1962 में बहुत बड़ा भारतीय भूभाग चीन के अवैध नियंत्रण में चला गया।
पहले की तरह भारत एवं चीन के बीच विष्वसनीय संबंध बनाने के लिये कालीचरण गुप्ता प्रामाणिकता के साथ बताते हैं कि स्वतंत्र तिब्बत के होते भारत एवं चीन के बीच कोई सीमा विवाद नहीं था। दोनों के बीच युद्ध भी नहीं हुए थे, जबकि अब हर समय दोनों के बीच युद्ध की स्थिति बनी रहती है। भारतीय संसद के सर्वसम्मत संकल्प, जो कि 14 नवंबर, 1962 का है, कि हम भारतीय भूभाग को चीनी नियंत्रण से मुक्त करायेंगे के विपरीत चीन सरकार नये-नये भारतीय भूभागों पर अवैध दावे करती है तथा वहाँ घुसपैठ करती है। अरुणाचल प्रदेष में स्थानों, गाँवों आदि के नामों का वह चीनीकरण कर रही है। उसकी कोषिष भारत को अपमानित करने, कमजोर करने तथा चौतरफा घेरने की है।
चीन सरकार अपनी भारत विरोधी गतिविधियों का संचालन मुख्यतः तिब्बती क्षेत्र से करती है। चीन सरकार को पता है कि वास्तविक प्रमाणों को नष्ट कर या बनावटी प्रमाणों के बल पर वह तिब्बत को अपना भूभाग नहीं बना सकती। इसीलिये वह तिब्बत को बर्बाद कर रही है। तिब्बत की प्राकृतिक संपदा और पर्यावरण के विनाष से भारत की प्राकृतिक संपदा और पर्यावरण का विनाष हो रहा है। वहाँ के ग्लेसियर्स (हिमनद) से सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सतलज आदि नदियाँ निकली हैं। इनकी धारायें मोड़कर तथा इन पर बड़े बांध बनाकर चीन सरकार भारत में अपनी आवष्यकतानुसार बाढ़ एवं सूखा ला सकती है। तिब्बत में परमाणु कचरे को गाड़ने से उसकी रेडियोधर्मिता भारत में भी पर्यावरण को प्रदूषित कर रही है। चीनी वस्तुओं की तस्करी जारी है। चीनी हथियार भारत में आतंककारियों को उपलब्ध कराये जा रहे हैं। सब हो रहा है तिब्बती क्षेत्र से।
चीन सरकार भारत में भी एक ऐसी चीन समर्थक लॉबी संचालित कर रही है जिसमें भारत के तथाकथित बड़े राजनेता, पत्रकार, कलाकार, स्वयंसेवी संगठन तथा विचारक शामिल हैं। यह तिब्बती तथा भारतीय हितों को समान रूप से दुष्प्रभावित करेगी। चीन की विस्तारवादी नीति का समर्थन इसका कार्य है। भारत स्थित तिब्बत समर्थक व्यक्तियों एवं संगठनों का दायित्व है कि वे ऐसी चीन समर्थक लॉबी को बेनकाब करें। तिब्बत में मानवाधिकारों का व्यापक पैमाने पर हनन हो रहा है। वहाँ धार्मिक-सांस्कृतिक स्थल विकृत और नष्ट किये जा रहे हैं। इनका विरोध होना चाहिये। भारत सरकार को चाहिये कि वह जी-20 के विभिन्न कार्यक्रमों में चीनी प्रतिनिधियों के साथ षिष्टाचारपूर्ण से ज्यादा यथोचित व्यवहार करे। शत्रुतापूर्ण व्यवहार वाले से हाथ मिलाना जरूरी नहीं है। उसे दूर से ही नमस्कार करें।
भारत सरकार भारतीय राष्ट्रीय शक्ति का निरंतर विकास करे और कभी-कभी उसे प्रदर्षित भी करे जैसा कि उसने डोकलाम, गलवान घाटी तथा अरुणाचल प्रदेष में भी किया है। अपनी सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करना हमारा कर्तव्य है। उससे भी अधिक जरूरी है वहाँ समस्त बुनियादी संसाधनों और संरचना का सुव्यवस्थित विस्तार।