30नवंबर, 2022
नई दिल्ली।दिल्ली में आयोजित तिब्बत समर्थक समूहों के दो दिवसीय अखिल भारतीय सातवें सम्मेलन में 29 नवंबर, 2022को अमेरिकी कांग्रेस द्वारा पारित तिब्बत पॉलिसी एंड सपोर्ट बिल (तिब्बत नीति और समर्थन अधिनियम)- 2020के अनुसरण में कई अहम घोषणाएं की गईं। इसके साथ ही सम्मेलन का समापन हो गया। आज अपनाई गई घोषणाएँ भारत सरकार को तिब्बत पर स्पष्ट नीतियों को अपनाने के लिए प्रेरित करने में रोडमैप के रूप में कार्य करने वाली हैं।
प्रतिनिधियों की कुछ महत्वपूर्ण मांगों में भारत सरकार द्वारा केंद्रीय तिब्बती प्रशासन को दुनिया भर में तिब्बतियों के वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने की मांग शामिल है, जबकि चीन-तिब्बत संघर्ष को स्थायी तौर पर हल करने में सीटीए के मध्यम मार्ग दृष्टिकोण का पूर्ण समर्थन किया गया है। इसके अलावा, प्रतिनिधियों ने तिब्बती तुल्कुओं के पुनर्जन्म में चीन के हस्तक्षेप की निंदा की और तिब्बती लोगों की राष्ट्रीय पहचान की रक्षा के लिए अधिक राजनीतिक भागीदारी या समर्थन का आह्वान किया।
दो दिवसीय सम्मेलन के समापन सत्र के मुख्य वक्ताओं में निर्वासित तिब्बती संसद के अध्यक्ष खेनपो सोनम तेनफेल, डॉ. नीरजा माधव, प्रसिद्ध लेखक और तिब्बत के मित्र और हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपतिडॉ. के.सी. अग्निहोत्री और डीआईआईआर के सचिव कर्मा चोयिंग शामिल रहे।
तिब्बती संसद के अध्यक्ष ने तिब्बती आंदोलन की निरंतरता को सुनिश्चित करने के लिए कोर ग्रुप फॉर तिब्बतन कॉज के नेतृत्व की सराहना की। उन्होंने पिछले 60से अधिक वर्षों में तिब्बतियों को भारत से मिल रहे पर्याप्त समर्थन के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा, ‘भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसने हमारा हाथ तब पकड़ा जब हमें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता थी। इसलिए हम भारत सरकार और उसके लोगों के ऋणी हैं।
हालांकि,तिब्बती मुद्दे को दुनिया भर में सरकारों और नीति निर्माताओं से पर्याप्त समर्थन मिल रहा है, फिर भी कई लोग तिब्बत समस्या को चीन के आंतरिक मामले के रूप में देखते हैं। अध्यक्ष ने चेतावनी दी कि तिब्बत पर चीन के दावे की वैधता को स्वीकार करना अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का उल्लंघन करना है। उन्होंने तिब्बत से परे अपने अधिनायकववादी शासन को फैलाने की चीन की क्षमता के बारे में भारत को आगाह किया, जिसे चीन ने भारत-तिब्बत सीमा में घुसपैठ और सैन्य टकराव के माध्यम से बार-बार प्रदर्शित किया है। उन्होंने इंगित किया कि जब तक तिब्बत का मुद्दा अनसुलझा रहेगा, चीन के साथ भारत का लंबे समय से चला आ रहा सीमा संघर्ष अनिर्णित रहेगा।
चीन-भारत के बीच के तनाव को हल करने में तिब्बत एक महत्वपूर्ण कारक है। इसलिए भारत तिब्बत से बच नहीं सकता,क्योंकि तिब्बत चीन-भारतीय संघर्ष का प्रमुख कारक बना हुआ है। इसलिए, चीन के साथ भारत की स्थिरता और शांति के लिए तिब्बत के मुद्दे को हल करने की आवश्यकता है। स्पीकर ने वैश्विक वर्चस्व स्थापित करने की चीन की भूख और व्यापक लक्ष्यों की उसकी खोज के खतरे को भी रेखांकित किया और चीन का मुकाबला करने के लिए भारत और पड़ोसी एशियाई देशों से एक बहुपक्षीय गठबंधन बनाने का आग्रह किया।
सचिव कर्मा चोयिंग ने तिब्बत और तिब्बती लोगों से संबंधित मुद्दों पर विस्तृत प्रकाश डाला।विशेष रूप से तिब्बत के जलवायु परिवर्तन की भू-राजनीति, इसकी सीमा पार की नदियों और चीनी सरकार द्वारा वहां बड़े पैमाने पर सांस्कृतिक संहार पर प्रकाश डाला।
दस प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल होने के नाते तिब्बत भारत और चीन सहित दक्षिण और दक्षिण- पूर्व एशिया में लगभग दो अरब लोगों की जीवन रेखा है। हालांकि, तापमान में वैश्विक वृद्धि के कारण तिब्बती पठार पर पिछले एक दशक में तापमान में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। तिब्बत के अंदर बिगड़ती पर्यावरणीय स्थिति को रेखांकित करते हुए सचिव चोयिंग ने ‘विकास’ की आड़ में तिब्बती पठार की पारिस्थितिकी को अंधाधुंध रूप से नष्ट करने के खिलाफ चीन को चेतावनी देने के लिए वैश्विक स्तर से पहल करने का आग्रह किया। उन्होंने भारत को तिब्बत की पारिस्थितिकी के कायाकल्प और पुनरोद्धार पर पर्याप्त ध्यान देने और चीन को लेकर बनाई जानेवाली अपनी नीतियों में इस चिंता को प्राथमिकता देने के लिए आगाह किया।
डीआईआईआर के सचिव ने कहा, ‘पारिस्थितिकी अपने आप में एक राजनीतिक विषय नहीं है, फिर भी जब हम पारिस्थितिकीय गड़बड़ी के कारण अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय चुनौतियों का सामना करते हैं तो यह राजनीतिक संवाद का एक अभिन्न विषय बन जाता है।‘चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जे का विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि तिब्बत में चीन का आना एक गंभीर पारिस्थितिकीय आपदा के समान था। उन्होंने अपने बयान में तिब्बत की पारिस्थितिकी की वास्तविकता को प्रस्तुत करते हुए कई साक्ष्य तथ्य भी रखे। इनमें विस्तार से बताया गया है कि पीआरसी के कब्जे के बाद से तिब्बत की पारिस्थितिकी कैसे बिगड़ गई है। उन्होंने तिब्बत के उन सीमावर्ती देशों के साथ चीन द्वारा पैदा किए गए भू-राजनीतिक तनाव के बारे में बात की, जो कभी शांति का और विसैन्यीकृत क्षेत्र हुआ करता था।
पारिस्थितिकीय चिंताओं के अलावा सचिव चोयिंग ने तिब्बत में चीन की दमनकारी नीतियों के कारण अस्तित्व के खतरे पर सभा का ध्यान आकृष्ट किया, जो तिब्बती भाषा, संस्कृति और राष्ट्रीय पहचान के विनाश के माध्यम से परिलक्षित होता है। और हाल ही मेंऔपनिवेशिक बोर्डिंग स्कूलों का प्रचलन, बड़े पैमाने पर डीएनए नमूने एकत्र करने का पूरजोर अभियान आदि तिब्बती लोगों के मौलिक मानवाधिकारों के अत्यधिक उल्लंघन के कुछ उदाहरण हैं।
सचिव चोयिंग ने जोर देकर कहा,‘तिब्बत के अंदर तिब्बती लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के बजायचीन तिब्बत पर अपने नाजायज शासन की वैधता को हासिल करने की साम्राज्यवादी मानसिकता से ग्रस्त है।‘उन्होंने कहा कि अब तिब्बतियों के लिए भारत के साथ अपनी दोस्ती और उसके बाद में तिब्बत की सच्चाई के लिए समर्थन हासिल करने और तिब्बती लोगों को चीन के लौह जकड़न से मुक्ति दिलाने के लिए उसे अपने अहिंसक संघर्ष को जारी रखने के लिए आश्वस्त करने की जरूरत है।
डॉ. के.सी. अग्निहोत्री ने चीन द्वारा तिब्बत के कब्जे को भारत के इतिहास में सबसे खेदजनक दिनों में से एक के रूप में याद किया। उनका मानना है कि इस स्थिति को टाला जा सकता था यदि भारत ने लापरवाही नहीं की होती। उन्होंने कहा कि यह लापरवाही चाहे चीन से डर के कारण हो या चीनी सरकार को खुश करने लिए,लेकिन चीन को तिब्बत पर कब्जा करने देना भारत की एक गंभीर गलती थी। भारत की विफलता के कारण, भारत-तिब्बत सीमा पर चीन की सैन्य घुसपैठ से लगातार डर पैदा हो रहा है।उन्होंने तिब्बत पर आक्रमण से पहले सीमा पर शांति के दिनों को याद करते हुए कहा कि अब निस्संदेह भारत इसकी कीमत चुका रहा है।
पूर्व कुलपति ने कहा, ‘जब तिब्बत पर कब्जा नहीं किया गया था, तब भारत को किसी भी प्रकार की सुरक्षा चिंता नहीं थी और न ही तिब्बत के साथ अपनी सीमा की रक्षा करने की चुनौती थी। लेकिन यह आज एक बड़ा विरोधाभास है, क्योंकि सीमा सुरक्षा पर भारत द्वारा बड़ी मात्रा में धन और संसाधन खर्च किए जा रहे हैं।‘
उन्होंने कहा कि भारत और भारत जैसे देशों और कई अन्य देशों की राष्ट्रीयता और राष्ट्रीय पहचान सीधे तौर पर जमीन से जुड़ी हुई है। हालांकि उन्होंने दोहराया कि,तिब्बती लोगों के मामले अलग तरह के हैं। इसके लिए उन्होंने परम पावन दलाई लामा से जुड़ी उनकी राष्ट्रीय अस्मिता की ओर इशारा किया। इस वजह सेजब तिब्बत पर चीनी सैन्य आक्रमण जोर पकड़ने लगा तो तिब्बती लोगों की तत्काल चिंता परम पावन की सुरक्षा थी। पूर्व कुलपति ने कहा कि, ऐसा इसलिए कि जब तक तिब्बती परम पावन दलाई लामा से भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से जुड़े हुए हैं, ‘तिब्बतियों की राष्ट्रीय पहचान को नष्ट करने का चीन का प्रयास व्यर्थ है।‘
डॉ नीरजा माधव ने कहा कि कैसे तिब्बती मुद्दे के साथ उनकी भागीदारी गेशे जम्पा के माध्यम से जुड़ी। उनका पहला लेखन भारत में रहने वाले तिब्बती शरणार्थियों की समस्या पर है,जिसमें उनका सामाजिक और राजनीतिक गुस्सा भी शामिल है। तब से, उसने तिब्बती मुद्दे के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए लेखन में अपने कौशल का उपयोग एक माध्यम के रूप में करने का फैसला किया है। डॉ नीरजा माधव ने अपनी लिखित सामग्री के माध्यम से लगातार भारत सरकार से तिब्बत में सांस्कृतिक संहार पर अपनी चुप्पी तोड़ने और तिब्बती लोगों के मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ बोलने का आग्रह किया है।