25 नवंबर, 2022
थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत। 25 नवंबर की सुबह 65 देशों से लगभग 5000 लोग परम पावन दलाई लामा का प्रवचन सुनने के लिए धर्मशाला के मुख्य तिब्बती मंदिर त्सुक्लखांग में एकत्रित हुए। इनमें कोरिया के 350 भिक्षुओं-भिक्षुणियों और आम लोगों का एक समूह था, जिन्होंने उनसे नागार्जुन की ‘मूलमध्यमकारिका’ पर प्रवचन देने का अनुरोध किया।
मंदिर के प्रांगण से गुजरते हुए परम पावन की दाहिनी ओर कोरियाई मठ के महंत भिक्षु जुंगवूक किम चल रहे थे। हमेशा की तरह गुजरते समय परम पावन मुस्कुराते रहे और भीड़ में मौजूद अपने अनुयायियों का हाथ हिलाकर अभिवादन करते रहे। मंदिर के चारों ओर की बालकनी से उन्होंने नीचे गली में लोगों का हाथ हिलाकर अभिवादन किया। मंदिर के अंदर गांदेन ट्री रिनपोछे, शरपा छोजे और जंगचे छोजे के साथ-साथ दक्षिण भारत पुन:स्थापित कई महान मठों के महंतों का अभिनन्दन किया। इस अवसर पर हल्के भूरे रंग के वस्त्रों को धारण किए हएु कोरियाई दल ने भिक्षुओं और भिक्षुणियों के नेतृत्व में तेजी से ‘हृदय सूत्र’ का जाप किया।
इसके बाद परम पावन ने अपना संबोधन शुरू किया, ‘आज मेरे कोरियाई धर्म मित्र यहाँ हैं। कोरिया पारंपरिक रूप से बौद्ध देश है और मैं कई कोरियाई लोगों से मिलने के दौरान उनकी बौद्ध धर्म में समर्पित रुचि से प्रभावित हुआ हूं। मैं आप सभी को यहां देखकर खुश हूं।’
परम पावन ने कहा, ‘बेशक, हर किसी को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म का पालन करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए। हमारी विभिन्न धार्मिक परंपराओं के अलग-अलग दार्शनिक दृष्टिकोण हैं, लेकिन सभी एक सामान्य संदेश देते हैं कि कोई किसी का अहित न करे और जितना हो सके दूसरों की मदद करे। मैं एक भिक्षु और एक धार्मिक व्यक्ति हूं और विभिन्न धार्मिक परंपराओं में मेरे कई मित्र हैं। चूंकि ये सभी परंपराएं सम्माननीय हैं, इसलिए मैं जहां तक संभव हो, अन्य धर्मों के पूजास्थलों की यात्रा करने का अवसर लेता हूं।’
उन्होंने कहा, ‘आदरणीय मठाधीश जुंगवूक किम ने इन प्रवचनों का आयोजन किया है जिसके लिए मैं उन्हें धन्यवाद देता हूँ। हम कई वर्षों से मित्र रहे हैं जिसके दौरान हमें धर्म प्रवचन देने और प्राप्त करने के कई अवसर मिले हैं।’
परम पावन ने ‘द सेगमेंट डिलिंग विद द मंत्र ऑफ द फर्स्ट सुप्रीम ग्लोरियस वन (प्रथम सर्वोच्च गौरवशाली के मंत्र से संबंधित खंड)’ से एक छंद उद्धृत किया। इस संदर्भ ग्रंथों के संग्रह ‘तेंग्यूर’ में कई जगह प्राप्त होता है।
उन्होंने बताया कि जीवन के तीन लोकों का अस्तित्व स्वभाव से ही अस्तित्व में नहीं हैं, हालांकि वे हमें ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे कि उनके पास स्वयं का एक आवश्यक कोर है। क्योंकि हम इस तरह की धारणा से चिपके रहते हैं, हम आसक्ति, क्रोध आदि विकसित करते हैं। तो हमारे लिए यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि चीजों का कोई आंतरिक, आवश्यक कोर नहीं होता है। जब आप जीवन के तीन लोकों के संबंध में चीजों की किसी भी आवश्यक प्रकृति की इस शून्यता को समझते हैं तो यह आपके इस बोध से चिपकना कम कर देता है कि चीजें और अनुभव ठोस हैं और इसलिए उनसे लगाव और घृणा को सीमित करता है।
परम पावन ने टिप्पणी की कि यहाँ तक कि क्वांटम भौतिकी भी कहती है कि जहाँ वस्तुएँ एक प्रकार का वस्तुगत रूप में प्रतीत होती हैं, वे वास्तव में उस तरह से अस्तित्व में होती नहीं हैं। मध्यमक या मध्यम मार्ग दर्शन में कहा गया है कि चीजें अपने आप में किसी प्रकार का वस्तुगत अस्तित्व रखती हैं, लेकिन वास्तव में वह उस तरह से मौजूद नहीं होती हैं। हम उस तरह के वस्तुगत अस्तित्व से चिपके रहते हैं। हालांकि, जब हम समझते हैं कि अस्तित्व के तीन क्षेत्रों में चीजें किसी भी आवश्यक प्रकृति से खाली हैं तो यह चीजों और अनुभवों की दृढ़ता के प्रति हमारे लगाव को कम कर देता है और इस तरह हमारे लगाव और घृणा को कम कर देता है। आम तौर पर, हम सुखद अनुभवों से जुड़े होते हैं और इससे इस आधार पर जुड़े होते हैं कि उनका कुछ ठोस अस्तित्व है।
दूसरी पंक्ति बताती है कि यदि आप समझते हैं कि चीजों का कोई आवश्यक सार नहीं है तो उनके स्वतंत्र, अंतर्निहित अस्तित्व पर पकड़ कम हो जाती है। और चूंकि चीजें जिस रूप में दिखाई देती हैं उस रूप में उनका अस्तित्व नहीं होता है, यदि आप उनका विश्लेषण करें कि वे कैसे अस्तित्व में हैं, तो आप समझ जाएंगे कि वे केवल पदनाम के रूप में मौजूद हैं।
आप शुद्ध मन से अगर अस्तित्व की इस अंतर्भूत कमी को समझ लेते है तो भवचक्र में उलझे रहने से बचे रह सकेंगे। इसके साथ ही आप चीजों की प्रकृति को समझकर सभी प्राणियों के प्रति दया का भाव रखेंगे। आप कामना करेंगे कि वे सभी प्राणी मोहपाश में न फंसे। इस तरह शून्यवाद की दृष्टि वस्तुओं की दृढ़ता और इहलौकिक जीवन में आसक्ति को कम करने में मदद करती है।
दुख से बचने की चाहत करते हुए सभी प्राणी समान रूप से सुख और आनंद की चाह रखते हैं। शून्यता की समझ के साथ-साथ भवसागर में भटक रहे भव्य प्राणियों के लिए करुणा विकसित करके आप विधि और ज्ञान का अनुभव करेंगे। आप संचय,तैयारी,प्रेक्षा, साधना और समाधि के पांच स्तरों से बढ़ते हुए उपर चढ़ेंगे। इस तरह आप अपने जीवन को सफल बनाएंगे और अंतत: ज्ञानोदय तक पहुंचेंगे।
परम पावन ने जानकारी दी कि ‘मुझे कोरिया में हाल की त्रासदी के बारे में सुनकर बहुत दुख हुआ। वहां भगदड़ में इतने सारे लोग मारे गए। आइए मृतकों और घायलों के लिए प्रार्थना करें।
उन्होंने कहा,‘मेरी साधना दो स्तरों वाली है- बोधिचित्त मन को जाग्रत करने के लिए और शून्यता की अंतर्दृष्टि। शून्यता क्रोध को कम करता है जबकि बोधिचित्त आत्म-श्लाघा को कम करता है। यदि आपमें आत्म- श्लाघा भावना कम हैतो आपके मन में दूसरों के लिए अधिक स्थान होगा। आप आराम से और आनंद से भरे रहेंगे। मन की शांति आंतरिक शक्ति लाती है। इसलिए बोधिचित्त स्वयं और दूसरों के लिए सुख का स्रोत है। जब आप दूसरों की मदद करते हैं तो आप अपने लक्ष्यों को भी पूरा करते हैं।
हम बौद्धधर्म को माननेवाले लोग हैं। यदि हम शिक्षाओं को सुनें, मनन करें और दूसरों तक पहुंचाएं तो यह जन्म जन्मांतरों तक में मदद करेगी। हम तत्परता से दूसरों की सेवा करेंगे। शांतिदेव का ‘बोधिसत्व के मार्ग में प्रवेश’ ग्रंथ का यह अंश हमें प्रोत्साहित करता है:
जब तक अंतरिक्ष है,
और जब तक भव्य जीव दुनिया में हैं,
तब तक मैं भी रहना चाहूंगा
ताकि दुनिया के दुख को दूर करने में मदद करता रहूं।
‘यह जीवन को सार्थक बनाने का तरीका है।‘
‘आज दुनिया के सभी आठ अरब लोग एकसमान रूप से सुख चाहते हैं और उनकी इच्छा है कि उनके जीवन में कभी दुख न आए। यद्यपि हम एकसमान रूप से ऐसा चाहते हैं, लेकिन हमारा अनियंत्रित मन हमारे अंदर तनाव पैदा करता है। मोह,लोभ, क्रोध और घृणा हमारे मन की शांति को भंग करते हैं। दुनिया में शांति के बारे में बहुत बातें होती हैं, लेकिन इसकी जड़ें हमारे भीतर शांति में होनी चाहिए। इस दृष्टिकोण से हम देख सकते हैं कि हथियारों पर निर्भर रहना और बल का प्रयोग बेकार बातें है। मैं प्रतिदिन विश्व में शांति के लिए प्रार्थना करता हूं और आशा करता हूं कि भविष्य में कोरियाई प्रायद्वीप में भी और अधिक शांति होगी।
उन्होंने आगे कहा कि जहां तक ग्लोबल वार्मिंग की बात है, तो यह बहुत गंभीर मुद्दा है। जिस तरह से दुनिया गर्म होती जा रही है, उससे ऐसा लगता है कि यह अंततः भस्म हो जाएगी। इस बीच,हमें दूसरों के साथ सहयोग और उनकी सेवा करनी चाहिए।
“मेरे धर्म भाइयों और बहनों, मैं आपसे अच्छे नेकदिल बनने की अपील करना चाहता हूं और यह याद रखने का आग्रह करना चाहता हूं कि चीजों में किसी अंतर्निहित तत्व का अभाव होता है और इस तरह से, दूसरों के हित के लिए खुद को समर्पित करें।
‘शून्यवाद को समझने के लिए हमारे पास नागार्जुन का अनुसरण करने वाले नालंदा परंपरा के आचार्यों के कार्य हैं, जिन्होंने अपने समय में गहन और व्यापक दोनों मार्गों के बारे में लिखा था। नालंदा के कई आचार्यों ने उनके ‘मूलमध्यमकारिका’और ‘प्रिसीयस गारलैंड’का अनुसरण किया और उनके कारण और तर्क को भी नियोजित किया। नागार्जुन दूसरे बुद्ध की तरह थे।‘
‘मुझे इन आचार्यों द्वारा रचित शास्त्रीय ग्रंथ मूल्यवान लगते हैं, जिसमें चंद्रकीर्ति का ‘मध्यम मार्ग प्रवेशिका’ और इसपर उनकी स्वरचित व्याख्या भी शामिल है। इससे यह ग्रंथ समझने में आसान हो जाती है। इन ग्रंथों का अध्ययन करना ही उनके प्रति सबसे बड़ा सम्मान है।
‘इन दिनों बहुत से लोग बुद्ध की शिक्षाओं में नई-नई रुचि ले रहे हैं। वैज्ञानिक अपने मनोविज्ञान के अध्यापन में और दार्शनिक अपने अध्यापन में उनके ‘प्रतीत्य समुत्पाद’ के दर्शन से आश्चर्यचकित हैं। हमें भी उनके शिक्षण पर ध्यान देना चाहिए और फिर उस पर चिंतन और मनन करना चाहिए।