dalailama.com
शेवाट्सेल, लेह, लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश, भारत। परम पावन दलाई लामा१५ जुलाई को लद्दाख पहुंचे। यहां पहुंचने के बाद उन्होंने आज २१ जुलाई को अपने पहले सार्वजनिक कार्यक्रम में सामने आए। इसमें उन्होंने लेह के मध्य में स्थित प्रमुख बौद्ध मंदिर जोखांग, जामा मस्जिद और अंजुमन-ए-इमामिया मस्जिदों और मोरावियन चर्च की तीर्थयात्रा की।
परम पावन के जोखांग आगमन पर लद्दाख बौद्ध संघ के अध्यक्ष थुप्टेन छेवांग और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने उनका हार्दिक स्वागत किया। जोखांग मंदिर में परम पावन ने बुद्ध, मंजुश्री, सहस्र सशस्त्र अवलोकितेश्वरऔर गुरु पद्मसंभव की प्रतिमाओं के समक्ष अपना सिर झुकाया। उन्होंने ल्हासा जोवो के प्रतीक स्वरूप बुद्ध की प्रतिमा के सामने अपना आसन ग्रहण करने से पहले मठों, गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों और अन्य मेहमानों का गर्मजोशी से स्वागत किया।
थुप्टेन छवांग ने परम पावन को यहां का पारंपरिक मंडल भेंट किया। इसके बाद अन्य प्रतिनिधियों ने उन्हें रेशमी खटक (स्कार्फ) पहनाया। तीन बार प्रार्थना करने के बाद हृदय सूत्र का पाठ किया गया।
परम पावन ने जोखांग में और बाहर प्रांगण में एकत्रित सभी लोगों का अभिनन्दन करते हुए अपना प्रवचन प्रारंभ किया। उन्होंने तिब्बती में नमस्कार ‘ताशी देलेग’ करने के बाद कहा,‘हम सभी बहुत पुराने मित्र हैं और हमारे बीच संबंधों के बंधन ठोस हैं। मैं आपके विश्वास और भक्ति के लिए आपको धन्यवाद देना चाहता हूं। क्योंकि यह मेरे लिए प्रोत्साहन का स्रोत है।
उन्होंने कहा,‘हालांकि हम जल्द ही फिर से मिलेंगे, लेकिन आज सुबह मैं आपको बताना चाहता हूं कि धर्म का अधिक से अधिक उपयोग करते हुए मैं सभी जीवों के कल्याण के लिए जितना हो सके योगदान जारी रखने के लिए दृढ़ संकल्पित हूं। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम धर्म का अध्ययन करें, जो हमने सीखा है उस पर चिंतन करें और फिर जो हमने समझा है उसे व्यवहार में लाएं। हमें बुद्ध के वचनों से तैयार किए गए त्रिपिटकों का अध्ययन करना चाहिए और ज्ञान, दर्शन, चारित्र्य की साधना में संलग्न होना चाहिए।‘
जोखांग से परम पावन सुन्नी जामा मस्जिद गए। उन्होंने वहां उपस्थित श्रोताओं को बताया कि इस धर्मस्थल की तीर्थयात्रा करना उनके लिए कितनी खुशी की बात है, जो अंतर-धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने की उनकी प्रतिबद्धताओं के अनुरूप है।
अन्य धर्मों के पूजा स्थलों पर प्रार्थना करना मेरा शगल है। जब भी मौका मिलता है, मैं यह प्रार्थना करता हूं। चूँकि सभी धर्म करुणा का संदेश देते हैं, इसलिएवे सम्मान के पात्र हैं। भले ही उनके दार्शनिक विचार भिन्न हो सकते हैं।
अमदो में बचपन से ही मेरा मुसलमानों के साथ दोस्ताना संबंध रहा है। बाद में ल्हासा में भी मुस्लिम व्यापारियों के छोटे समुदाय के साथ मेरी मित्रता थी जो तिब्बती सरकार के आधिकारिक कार्यक्रमों में नियमित रूप से शामिल होते थे। इसलिए आज यहां मुझे एक बार फिर मुस्लिम भाइयों और बहनों से मिलकर खुशी हो रही है।‘
इसके बादपरम पावन अंजुमन-ए-इमामिया नामक शिया मस्जिद गए। इमाम बरगढ़ में परम पावन का स्वागत करते समय मेजबान ने याद किया कि परम पावन ने ही २००६ में इस मस्जिद का उद्घाटन किया था। इसके बाद से यहां के प्रबंधकों ने उनका कई बार स्वागत किया है। विभिन्न वक्ताओं ने परम पावन को शांति का मसीहा और भाईचारे का अग्रदूत बताया और उनकी प्रशंसा की। एक वक्ता ने तो यहां तक घोषणा कर दी कि, ‘आज यहां आपकी उपस्थिति लद्दाख के विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच एकता, शांति और भाईचारे का मजबूत और आवश्यक संदेश है जो पूरी दुनिया में जाएगी।‘
परम पावन ने इस अवसर पर कहा कि भारत में धार्मिक सद्भाव की एक अच्छी, लंबे समय से चली आ रही परंपरा है जो लद्दाख में विशेष रूप से दिख रही है।
‘चूंकि हम सभी इंसान मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से समान हैं और चूंकि हम सभी खुशी चाहते हैं जो कि हमारा अधिकार भी है। इसलिए हमें हमेशा एक-दूसरे की मदद करने की कोशिश करनी चाहिए।‘
अंत में परम पावन ने लेह में मोरावियन चर्च का दौरा किया जहाँ उपस्थित जन समूह ने विश्व में शांति और सद्भाव में उनके योगदान की सराहना में एक गीत गाकर उनका स्वागत किया।
परम पावन ने सभा को संबोधित करते हुए बताया, ‘आज जो आपने गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया, उसकी मैं तहे दिल से सराहना करता हूं। यह मुझे कई ईसाई भाइयों और बहनों, वैज्ञानिकों और धार्मिक नेताओं की याद दिलाता है।जैसे कि पोलिश पोपजॉन पॉल-II, जिनके साथ मेरे दोस्ताना संबंध रहे हैं।‘
जिस तरह से ईसाइयों ने दुनिया भर में गरीबों और जरूरतमंद लोगों की मदद करने में करुणा दिखाई है और इसके साथ-साथ विश्व विकास योगदान दिया है, उसके लिए उन्होंने उनकी प्रशंसा की और कहा कि उनका यह योगदान मानवता की एकता की भावना को दर्शाता है।