वाषिंगटन में सम्पन्न तिब्बत पर आठवं विश्वसंसदीय सम्मेलन (22 एवं 23 जून,2022) की घोशणा से स्पश्ट है कि चीन सरकार पूरी तरह सेब बेनकाब हो चुकी है। अन्तरराश्ट्रीय कानून, लोकतांत्रिक मूल्यों तथा मानवता की घोरउपेक्षा कर चीन ने स्वतंत्र तिब्बत पर 1959 में अवैध कब्जा किया था। उसन अफवाह फैर्लाइ कि तिब्बत उसी का अभिन्न अंग था। फिर उसने भ्रम फैलाया। कि उसने तिब्बत को स्वायत्तता दी है। स्वायत्तता के नाम पर तिब्बत के भौगोलिक क्षेत्र को चीनी भू-भाग में मिलाते हुए उसने उसका शड्यंत्रपूर्वक चीनीकरण जारी रखा। यह साम्राज्यवादी नीति आज भी जारी है। इसी औपनिवेषिक चीनी नीति की कटु आलोचना करते हुए सम्मेलन में शामिल 28 देषों के 100 से अधिक प्रतिनिधियों ने चीन सरकार से मांग की कि वह तिब्बती धर्मगुरु परम पावन दलाई लामा तथा लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रतिनिधियों के साथ पुनः वार्ता प्रारम्भ करे।
चीन सरकार वार्ता की प्रक्रिया को उलझाती और टालती जा रही है। उसे आषंका है कि पुनः वार्ता प्रारम्भ हाने पर उसे तिब्बत को ”वास्तविक स्वायत्तता” देनी होगी। प्रतिरक्षा तथा राश्ट्रीयता संबंधीविशय चीन के पास ही रहेंगे। सभी विशय जैसे-शिक्षा, कृशि आदि तिब्बतियों को मिल जायेंगे। इस से चीन की भौगोलिक एकता-अखंडता सुरक्षित रहेगी तथा तिब्बतियों को भी स्वयशासन का अधिकार मिल जायेगा। यही है तिब्बत समस्या के समाधान का ”मध्यमार्ग” ।
लगभग सभी तिब्बत समर्थक तिब्बत की पूर्ण आजादी के पक्ष में हैं फिर भी वे मध्यमार्ग पर आधारित तिब्बतियों की ”वास्तविक स्वायत्तता” की मांग का समर्थन कर रहे हैं। दलाई लामा समेत तिब्बती नेतृत्व तिब्बत में जारी चीनी करण के विरूद्ध है। तिब्बती पहचान खोने का अर्थ है-स्वाभिमानषून्य होना। चीन तिब्बत में विकास के नाम पर तिब्बती पहचान मिटाने में लगा है। यही कारण है कि तिब्बती ने तृत्वपूर्ण आजादी की मांग को छोड़कर वास्तविक स्वायत्तता लेने को तैयार है। विष्व संसदीय सम्मेलन में तिब्बतियों की इस मांग का जोरदार समर्थन प्रमाणित करता है कि विष्व जनमत चीनी विस्तारवादी नीति के विरूद्ध है।
सम्मेलनमें शामिल प्रतिनिधियों का दृढ़ निष्चय है किवे अपने देषों में स्पश्ट तिब्बत अधिनियम का निर्माण करायेंगे, जैसाकि अमरीका में है। इस अधिनियम में चीन से कहा गया है कि वह दलाई लामा के पुन र्जन्म अर्थात् अवतार की प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करे। इस प्रक्रिया के पालन तथा निर्णय का अधिकार सिर्फ तिब्बती धर्मगुरुओं को है। इसमें धर्मविरोधी वामपंथी चीन सरकार का हस्तक्षेप अस्वीकार्य होगा। सम्मेलन की घोशणा में तिब्बत में मानवाधिकार, पर्यावरण, संस्कृति, धर्म आदि की स्थिति को चिंताजनक मानते हुए चीन सरकार से सुधार की अपील की गई।
जून माह में ही अपने अमरीका प्रवास में निर्वासित तिब्बती सरकार के सिक्योंग पेंपा त्सेरिंग ने तिब्बत की 16 वीं कसाग की दोनों प्रतिबद्धताओं को प्रमुखता से उजागर किया। कसाग की पहली प्रतिबद्धता है मध्यमार्ग से तिब्बती संकट का समाधान। दूसरी प्रतिबद्धता है तिब्बती समुदाय का कल्याण। तिब्बती तिब्बत के साथ भारत सहित कई देषों में हैं। सभी तिब्बतियों का कल्याण सुनिष्चित करना तथा उसके लिए योजना-निर्माण एवं क्रियान्वयन विभिन्न देशो की जनता और उनकी सरकारों के सहयोग से ही संभव है। तिब्बती बस्तियों में स्थानीय प्रशासन का सहयोग एवं समर्थन मिलता रहे इसके लिये तिब्बतन एडवोकेसी कैंपेन चलाया जा रहा है। विभिन्न देषों में सुव्यवस्थित रूप से संचालित तिब्बतन एडवोकेसी कैंपेन के परिणामस्वरूप तिब्बती संघ र्शकी सफलता के लिये नई राजनीतिकरण नीति विश्व स्तर पर आकार ले रही है। चीन सरकार की धमकियों तथा विरोधों के बावजूद तिब्बत के पक्ष में ऐसी एकजुटता से चीन पर दबाव बढ़ना स्वाभाविक है।
तिब्बती और तिब्बत समर्थक चाहते हैं कि बौद्ध दर्शन में निहित मानवीय मूल्यों अर्थात् लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रचार-प्रसार चीन में भी हो। शांति, अहिंसा, करुणा तथ सद्भाव चीन के भोगवादी विस्तारवाद पर अंकुष लगायेंगे। इस से चीन में जारी अनियंत्रित भोगवाद से जनता को छुटकारा मिलेगा। दलाई लामा अपने आध्यात्मिक प्रवचनों में इन्ही आदर्शो-मूल्यों को प्रकाशित-प्रचारित-प्रसारित कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के कांगडा़ जिलेमें धर्मशाला स्थित अपने निवास एवं मंदिर से वे इसी की प्रार्थना करते है। वे सबका कल्याण चाहते हैं। चीनियों के लिये भी उनके हृदय में करुणा है। उनके अनुसार प्रचीन नालंदा परंपरा यही है। धर्म विरोधी, अधार्मिक या विधर्मी के लिये भी मानवीय मूल्य जरूरी हैं।
दलाई लामा के दीर्घ जीवन हेतु तिब्बती एवं तिब्बत समर्थक व्यापक स्तर पर पूजा एवं प्रार्थना करते हैं। उन्हें प्रोत्साहित करते हुए 86 वर्शीय दलाई लामा ने आश्वस्त किया है कि 20-30 साल वे अभी और जीवित रहें गे। आश्चर्य है कि दलाई लामा को चीन सरकार अपना शत्रु समझती है। उसकी नजर में वे विघटनकारी और आतंककारी हैं। स्वतंत्र तिब्बत के राजप्रमुख रहे दलाई लामा को, जोकि शांति-करुणा के प्रती कहैं, चीन सरकार भले बुरा समझे लेकिन सच्चाई से विश्व समुदाय परिचित है।
भारत मे दलाई लामा का योगदान प्रशसनीय है। सभी भारतीय इसके लिए उनके प्रति कृतज्ञ हैं। उनकी प्रेरणा, प्रोत्साहन एवं आशीर्वाद से प्राचीन भारतीय नालंदा संस्कृति को विष्व स्तर पर नया जीवन मिला है। इसी संस्कृति के बल पर भारत विशवागुरु कहलाता था। तथाकथित ”हिन्दी चीनी भाई-भाई” और” पंचशील” के माया जाल से निकल कर शक्तिशाली भारतका निर्माण हमारा लक्ष्य रहे।