आज 10 मार्च 2021 के दिन को हम तिब्बतियों की ओर से साम्यवादी चीन के दमनकारी नीति का विरोध करते हैं। और यह हमारी स्वतन्त्रता को पुनः प्राप्त की दिशा में आयोजित किये तिब्बती शान्तिपूर्ण विद्रोह का 62वें वर्षगाँठ का स्मरण दिवास है।और हम इस महत्वपूर्ण दिन को भूल नहीं सकते हैं, हम सभी को याद रखने की आवश्यकता है कि एक तिब्बत स्वशासित, स्वतन्त्र इकाई थी, जो किसी भी दृष्टिकोण से देखा जा सकता है। इसके भौगोलिक विन्यास के बारही रचना है जिसमें इसकी नदियाँ, पर्वत, पहाड़, हिमपर्वत से घिरे हुये हैं, तिब्बती प्रजातीय का मुख्य रूप से अपने लोग, भाषा, लिपी, वेषभूषा, परम्परा, लोगों के चरित्र व सम्प्रदाय आदि हर प्रकार से भिन्न-भिन्न है। इससे स्पष्ट होगा कि तिब्बतियों का एक अपना स्वतन्त्र राष्ट्र रहा था। हज़ारो वर्ष पूर्व धर्मराजाओं के काल से लेकर एक देश के रूप में तिब्बत पर राजाओं के उत्तराधिकार का शासन रहा था। परम पावन दलाई लामा जी के पुनर्जनमों के उत्तराधिकार के जीवनी व वृत्तांतों से भी स्पष्ट जान सकते हैं, इसके अतिरिक्त परम पावन तेरहवें दलाई लामा जी के शासनकाल में विश्व के कई राष्ट्र के साथ बराबरी स्वतन्त्र रूप से कई संधियों पर हस्ताक्षर किये हैं। ये और अन्य साक्षात् जो दिखते हैं, वह यह है कि प्रथागत और अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अन्य पहलुओं के अधीन एक स्वतन्त्र देश के रूप में तिब्बत कीस्थिति का लम्बा इतिहास कभी भी किसी के द्वारा मिटाया नहीं जा सकता है। न ही कोई स्वतन्त्र देश के रूप में तिब्बत की ऐतिहासिक स्थिति का भौगोलिक वास्तविकता को कोई नहीं ढक सकता।फिर भी जब उन्होंने चीन केक्षेत्र का राजनीतिक नियन्त्रण में लिया, साम्यवादी चीनी ने अन्य लोगों से सम्बन्धित क्षेत्रों को लेने और उन्हें अपने शासनअधीन रखने के लिये पूरी तरह से बेशर्म और शातिर क्रूर योजना बनाई। अपने इतिहास के उल्टफेर के माध्यम से, क्रमाशः पूर्व के चीनी राजाओं के काल में चीन-तिब्बत के बीच छोटे-बड़े कई विभिन्न धार्मिक रिश्तों का बहाना बना कर तिब्बत को चीन के अधिन होने की असत्य दावे करते आ रहे हैं। साम्यवादी चीनी सरकार ने यह मानने के लिये कदम उठाया कि तिब्बत ऐतिहासिक रूप से चीन का हिस्सा था। सन् 1949 शुरुआत से तिब्बत के भूमि में प्रवेश किया अन्ततः 1950 (लोह-बाघ वर्ष) को छम-दोपर दमन द्वारा कब्ज़ा किया गया। 1951 (लोह-शशक वर्ष) को साम्यवादी चीनी नेताओं ने एक तिब्बती प्रतिनिधिमण्डल को “एक सत्रह सूत्रीय संधि” पर हठ पूर्वक हस्ताक्षर करने के लिये बन्धक के भाँति रखा गया था।
तब फिर प्रारम्भ में साम्यवादी चीन द्वारा नारा था चीन-तिब्बत भाई भाई होने की ढोंग रचाना, मीठी-मीठी बातें कर चीन के जनता द्वारा तिब्बती जनता के सेवा करने की बातें कहना, बहुत से तिब्बतियों को बिना कंजूसी किये पैसों का खर्चा आदि छल-कपट उपायों द्वारा विविध प्रलोभन दिया गया, अन्ततोगत्वा उनका झूठा चहरा सामने आ गया, उन्होंने तिब्बत के लोगों के विरूद्ध हिंसक घृणा धार्मिक रूप से समर्पित भिक्षु-भिक्षुणियों को मुख्य रूप से दुश्मान के भाँति घृणा करना था। बुद्ध तथा प्रत्येक व्यक्ति जो किसी भी धार्मिक अभ्यास में संलग्न थे, का आलोचना और अपमानित कर निशाना बनाया गया। धार्मिक स्थानों और धार्मिक आदेशों से सम्बन्धित लोगो का विनाश और लूट के अधीन किया गया था। चीनी आक्रमण पर अपने मन की बात कहने की साहस रखने वालो साधु व आम विचारशील लोगों का नरसंहार तथा बन्दी बना दिया गया। बोले-भाले जनताओं को झूठे आरोपों में फसाकर कठिन परिश्रम के लिये उनके साथ जानवरों से भी बुरा व्यवहार किया गया। इस तरह के और अन्य माध्यमों से, चीन की साम्यावदी चीनी सरकार ने तिब्बती लोगों को अमानवीय आचारण तथा अकल्पनीय अत्याचारों किया है। वास्तव में, यह स्थिति आज भी वहाँ बनी हुई है। संक्षेप में, चीनी अधिकृत शासन में तिब्बती समाज के सभी स्तरों के लोगों को सुख के एक क्षण भी भाग्य में नहीं है, हृदयविदरक असहनीय दुःखों को झेल रहें हैं। ऐसी स्थिति थी जिसमें चीन सरकार ने तिब्बत के लोगों की रीति-रिवाज सांस्कृतिक, विशेषकर धर्मसम्बन्धी कृत्यों का असहमती होता है बल्कि परम पावन चौदहवें दलाई लामाजी के व्यक्तिगत सुरक्षा को क्षति पहुँचने की हर प्रकार से ऐसे बुरे सजिश रची थी, जब यह बात तिब्बती जनताओं ने जाना तब लम्बे समय से संचित उनके दिलों की पीड़ा था वे पीड़ा एक साथ फुट पड़ने के कारण 10 मार्च 1959 तिब्बत के राजधानी ल्हासा शहर में सभी स्तरों के नागरिकों, एक विचार एक भावना के साथ साम्यवादी चीन के विरूद्ध शान्तिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया। यह एक ऐतिहासिक घटनाक्रम थी। हिमवत् भूमि के इतिहास के कड़ी में यह एक नया अध्याय जोड़ा है। इसलिये यह सबसे महत्त्वपूर्ण है कि अपने देश की धार्मिक विरासत और अपने लोगों के लिये तन-मन-धन तीनों निछावर करने वाले उन वीर पुरुषों व महिलाओं का स्मरण व प्रार्थना करते हैं।
उस समय से, कब्जे वाली चीनी सरकार ने अभियान या अन्दोलनों की एक श्रृंखला शुरू की, जिसमें“अव्यवस्था शान्त”“लोकतान्त्रिक सुधार”“विभाजन संघर्ष”“सार्वजनिक भवन”“सांस्कृतिक क्रान्ति”“सेना शासन” आदि। चीन सरकार ने इन अभियान और आन्दोलनों की आड़ में दस लाख से अधिक तिब्बती लोगों की जान ली। कई हज़ार धार्मिक केन्द्र पूरी तरह नष्ट किया गया। जैसे कि मानव और प्राकृतिक संसाधनों की आन्तरिक सामग्रियों को नष्ट करने, लूटपाट और विनाश कर निष्ठुर कार्य किया।लेकिन इससे भी अधिक, यह तिब्बती धार्मिक विरासत, संस्कृति, भाषा आदि को नष्ट करने की निरन्तर कुयोजना बनाते रहे हैं, यहाँ तक कि तिब्बत और इसके जातीय लोगों की मूल पहचान को समाप्त करने की अपनी ग़लत नीति को निरांकुश रूप से चलाते रहें है। साम्यवादी चीनी सरकारी कर्मचारी ने तिब्बती लोगों को उनके मूलभूत मानवधिकारों और स्वतन्त्रता से वंचित करने की अथक अत्याचार की ऐसी नीति के अधीन तिब्बत के लोगों का जीवन मानो उलट पृथ्वी पर नरक आ गया हो, इस प्रकार के निमर्मतापूर्वक हिंसा किया। और यह एक ऐसी स्थिति है जो कि अभी भी जारी है। वर्तमान मे भी तिब्बत देश को चीनी में परिवर्तन करने की भयावह स्थिति बनी हुई है।
साम्यवादी चीनी सरकार ने तिब्बत पर लम्बे समय से हिंसक दमन की नीति को तिब्बतियों द्वारा धैर्य के टूटने पर विरोध प्रदर्शन के रूप में सन् 2009 से लेकर आज तक अपने बहुमूल्य जीवन का बलिदान देने वाले देशभक्त वीर पुरुषों व महिलाओं में आत्मदाह करने वाले की वास्तविक जानकारी में आये संख्या 155 हुये हैं। चीन सरकार के हिंसक दमन की नीति के अधीन अब भी कई तिब्बतियों का मार दिया जा रहा है। जैसे कि 19 नवम्बर 2019 को बन्दक बनाये गये ज़-वोन-पो मठ के भिक्षु तेज़िन ञिमा उर्फ तमे ला तथा 08 नवम्बर 2013 को बन्दक बनाये गये तिब्बत के च़े ड्रोङ छ़ो-ङा, दोखम नगछु ड्रिरु जिला के कोनछोग जिनपा ला दोनों को कारागार में बेरहम पिटाई व यातनायें दिये जाने कारण दोनों का 19 जनवरी, 2021 तथा 06 फरवरी, 2021 के दिन देहान्त हो गया। इस प्रकार 36 वर्षीय महिला खम ड्रिरु से ल्हमो ला को भी झूठे आरोप में बन्दक बनाया गया, कारागार में पूछताछ, बेरहम पिटाई के परिणामस्वरूप, अगस्त 2020 में वह देहान्त हुई।
17 सितम्बर, 2015 को ड्रिरु ज़िला शगछु ग्राम से शुर्मो ला नामक व्यक्ति का आत्मदाह करने पर स्थानीय चीनी पुलिस ने बन्दक बना लिया, उनको स्थानीय चिकित्सालय ले जाया गया, हालाँकि उसी दिन ही देहान्त हो गया। और इस घटनाक्रम के बारे में दुःखद जानकारी जनवरी 2021 के अन्त को ही बाहरी दुनिया तक पहुँची सकी। इस बात से स्पष्ट है कि चीन की सरकार अपनी क्रूर नीति के अधीन तिब्बत के लोगों के आन्दोलन और गतिविधियाँ पर कतना कड़ा नियन्त्रण रहता है। तिब्बत में हिंसक दमन के बारे में कि वहाँ क्या चल रहा है, इसकी जानकारी सम्भवतः कभी बाहरी दुनिया तक पहुँचे।
यह वास्तव में बहुत अच्छी तरह से सभी को पता है कि परम पावन चौदहवें दलाई लामा जी और केन्द्र तिब्बती प्रशासन के दृढ़ इच्छा है कि हमें मध्यमार्ग नीति को दृढ़ता के साथ पालन करते हुये तिब्बत-चीन संवाद को पुनर्जीवित करना चाहिये। दर्भाग्यवश, चीन सरकार द्वारा कोई भी उचित व्यवहार नहीं हुई। इसके विपरीत, निरन्तर तिब्बत में धार्मिक स्वतन्त्रता का अत्यधिक विनाश किया है, हिंसक दमन, अवरोध आदि नीति को बनाये रखना जारी रखा है। इतना ही नहीं, यह तिब्बत के लोगों की बोलने की स्वतन्त्रता पर कुठारघात करता रहा, अन्धाधुन्त बन्दी बनाता रहा, झूठे मुकदमे में फंसाता रहा, उन्हें जातीय भेदभाव का शिकार बनाता रहा, उन्हें बड़ी संख्या में सैन्य-शैली के प्रशिक्षण अभ्यासशाला में श्रम कार्यक्रम के माध्यम से पुनः शिक्षा देता रहा, चीन ने तिब्बत के लोगों के दमन और उत्पीड़न के कई अन्य रूपों को जारी रखा है और उन्हें उनके मानवाधिकारों से वंचित करने की नीति को जारी रखा है। अतः हम कर्तव्य-बोध वोले संयुक्त राष्ट्र संगठन और उसके शीर्ष मानवाधिकार निकाय, मानवाधिकार परिषद से तिब्बत के लोगों के बुनियादी मानवाधिकार की सुरक्षा के लिये रुचि लें, चिन्ता करें। हम आग्रह करते हैं कि चीन की सरकार से इस उद्देश्य के लिये जो भी उचित कार्यवाही हो, को कार्यान्वयन की जाये। तिब्बत में रह रहे तिब्बतियों की एक बड़ी संख्या को कारावास मे डाले हुये हैं, उन निर्दोष तिब्बती लोगों को बिना किसी शर्त के यथाशीघ्ररिहा किया जाय, कारावास में यतना, उत्पीड़न, अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार को समाप्त किया जाय। तिब्बत भाषा की रक्षा के अभियान चलने वाला टाशि वाङछुग ला को चीन सरकार ने अन्याय रूप से दण्डित कर पाँच वर्ष कारावास में भेजा था। उन्हें इस साल 28 जनवरी, 2021 को कारावास का समयसीमा पूरी करने के बाद रिहा किया गया है परन्तु उनके छोड़ने के बाद भी, यह जानना कठिन है कि उनकी स्वास्थ्य स्थिति क्या है और क्या वह अपनी शैली के अनुसार काम करने के लिये स्वतन्त्र है या नहीं। इसलिय हम चीन के सरकार से टाशि वाङछुग ला को बिना किसी पूर्व शर्त के उसके बुनियादी मानवाधिकारों का पूरी तरह से आनन्द लेने की अनुमति देने की माँग करना चाहते हैं। उनको कारावास के समय चीन सरकार के उत्पीड़न, यातना देने वाले सम्बन्धित उन ज़िम्मेदार नेताओं का निष्पक्षता के साथ जाँच आवश्यक करें। इस प्रकार 11वें पेनछेन लामा गेदुं छोस्की ञिमा जी के साथ जिनका अता पता नहीं तिब्बती राजनीतिक बन्दी, पूर्व बन्दियों की वर्तमान में वास्तविक स्थिति के बारे में जानकारी लेने के लिये संयुक्त राष्ट्र संगठन के माध्यम से चीन सरकार को सख्ती के साथ पूछताछ हेतु आग्रह करते हैं।
आज एक ऐसा दिन है, जिन्होंने तिब्बत के धार्मिक, राजनीतिक और जातीय कारणों से तन-मन-धन सभी अपने बहुमूल्य जीवन का बलिदान दिये हैं, अपने हिमवत् भूमि तिब्बत के देशभक्त वीर पुरुषों-महिलाओं का संवदेनाओं के साथ स्मरण करते हैं। उनके इस साहसिक कार्य, योगदान का हम सम्मान करते हैं। आज के समय भी चीन के हिंसक दमन की नीति के अधीन प्रताड़ित और दुर्व्यवहार सह रहे हैं, उन पीड़ितों को हम कहना चाहते हैं कि इस आन्दोलन में हम अपना सम्मानुभूति-एकता प्रकट करते हैं। तिब्बत में रह रहे तिब्बतियों के इन कष्टों से शीघ्र अतिशीघ्र निकलकर स्वतन्त्रता की आनन्द ले सकें इसके लिये हम त्रिरत्न व सागर बुद्ध को प्रार्थना अर्पित करते हैं।
तिब्बत पर साम्यवादी चीनी आक्रमण के पश्चात् परम पावन चौदहवें दलाई लामा जी को भारत में निर्वासन लेनी पड़ी था उनके साथ कुछ अस्सी हज़ार तिब्बती निर्वासन में पहुँचे। आपने भारत में केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन को स्थापित किया, निर्वासन में आये उन तिब्बतियों के लिये बस्तियों, पाठशाला, धार्मिक केन्द्रों आदि की स्थापना की। आज तिब्बत का मद्दा विश्वस्तर तक लेने का श्रेय विशेषकर परम पावन चौदहवें दलाई लामा जी को जाता है और उस समय के पुराने पीढ़ी के लोगों नेशुद्ध अन्तःकरण से बहुत परिश्रम के साथ अपने कार्य को किया है, उनके त्याग और साहस को भी हमरा कृतज्ञता करना बनता है।
परम पावन चौदहवें दलाई लामा जी महान कार्यों में कार्यरत हैं। विश्व के कई राष्ट्रों के प्रमुख लोगों व बहुत से अनुयायियों को इंरनेट से परम पावन जी द्वारा विश्व के सैकड़ों हज़ारों लोगों को धर्म प्रवचन, परिचर्चा, उपदेश मार्गनिर्दश प्राप्त कर लाभान्वित हो रहे हैं। तिब्बत में रह है तिब्बतियों के स्थिर मन के साथ उत्साह, निर्वासन में बसे केन्द्र तिब्बत प्रशासन और लोगों के प्रयास को देखते हुये तिब्बत समस्या का समर्थन देने वाले सालदर साल वृद्धि हो रही है। सन् 2018 को अमेरिका ने तिब्बत में पारस्परिक अभिगम की तिब्बत अधिनियम और सन् 2020 को तिब्बत नीति व समर्थन दोनों अधिनियम द्वारा मुख्य रूप से तिब्बत का समर्थन करने वाले विश्व के कई राष्ट्रों ने अपने अपने संसदों में वार्ता, विचार-विमर्श, प्रस्तावें, विचारों को पूर्व के भाँति और भी अधिक तेजी से रखा जा रहा है। उन दस्तवेज़ों तथा वार्ताओं के माध्यम से तिब्बत के मुद्दे का हल निकालने के लिये चीन सरकार को कदम उठाने को मजबूर होना पड़े। ऐसा हम आशा व प्रार्थना करते हैं।
मध्य चीनी शहर वुहान से फैले कोविड19 महामारी के प्रकोप के कारण यह 2020 का वर्ष समस्त भूभागों में एक काला साल के भाँति बीता है। इस महामारी ने विश्व के सभी देशों में अपने जनताओं के सावस्थ्य, आर्थिक स्थापना, सामाजिक विकास परियोजनाओं आदि मामलों में अत्यधिक क्षति पहुँची है। तिब्बत व तिब्बत से बाहर रहे तिब्बत के लोग भी इस महामारी के प्रकोप से बच नहीं पाया, निर्वासित तिब्बत संसद को भी लें, तो विगत वर्ष सरकार के कई सारे अधिकारीक जिनके लिये वित्तीय अनुदान आवंटन स्वीकृति हुये हैं, उन्हें अमल में नहीं ला सके। हम प्रार्थना करते हैं कि आगे से कोविड19 महामारी से शीघ्र अतिशीघ्र अन्त होकर समस्त विश्व में दुःख रूपी बादल छटें, सुख रूपी सूर्य का प्रकाशयमान हो।
निर्वासन में रह रहे तिब्बतियों द्वारा वर्ष 2021 सिक्योङ व तिब्बती जनप्रतिनिधियों का प्रारम्भिक महाचुनाव सौहर्द वातावरण में सूचरू से सम्पन्न होने पर प्रशंसा व्यक्त करना चाहता हूँ। साथ ही, हम सभी से यह अनुरोध करते हैं कि आगामी मुख्यचुनाव के समय भी सफल अयोजन मतदान कार्यवाहियों में बिना किसी समस्या के शान्तिपूर्वक सम्पन्न हो, इसके प्रति सभी निरन्तर कर्तव्यों का पालन करेंगे।
हम सभी तिब्बतियों को निर्वासन पहुँचे 62 वर्ष से ऊपर हो रहे हैं, इन दीर्घ काल में यह हमारे लिये दूसरा मातृभूमि के समान बन गया है। क्योंकि भारत सरकार व जनताओं ने हमें अपार प्यार व सहयोग प्रदान किया है। तिब्बत सत्याग्रह अन्दोलन, निर्वासन में तिब्बतियों की शिक्षा, स्वास्थ्य आदि पर अर्थिक सधनों के द्वारा सहायता प्रदान करने वाले अन्तर्राष्ट्रीय सरकार व गैर-सरकारी संगठन आदि का हम उन सभी के प्रति आभार व्यक्त करते हैं।
अन्त में, समस्त जगत के सत्त्वों व विशेषरूप से तिब्बत में रह रहें तिब्बतियों व निर्वासन के सभी तिब्बतियों के नाथ सच्चा रक्षक परम पावन चौदहवें दलाई लामा जीका दीर्घायु हो,उनके सभी मनोकामनाएं सहजता के साथ पूर्ण हों, तिब्बत मुक्त हो, सत्य की जीत यथाशीघ्र हो, इन्हीं कामनाओं सहित।
निर्वासित तिब्बती संसद
10 मार्च 2021
* इस हिन्दी अनुवाद में किसी भी प्रकार के विसंगति के मामले में, सभी प्रयोजन हेतु तिब्बती मूल को आधिकारिक और अन्तिम माना जाना चाहिये।