अमर उजाला, 11 मार्च 2016
राष्ट्रीय विद्रोह दिवस की 57वीं वर्षगांठ पर धर्मशाला की सड़कों पर तिब्बती समुदाय सड़कों पर उतर आया। रैली निकालकर समुदाय के हजारों लोगों ने तिब्बत की आजादी और मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर आवाज बुलंद की। तिब्बती समुदाय के लोगों ने मैकलोडगंज से लेकर कचहरी अड्डा तक जुलूस निकाला। रैली में तिब्बतियन यूथ कांग्रेस, तिब्बतियन महिला एसोसिएशन, स्टूडेंट फॉर फ्री तिब्बत, गु-चू-सुम, नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ तिब्बत के सदस्यों ने हिस्सा लिया।
इससे पूर्व मैकलोडगंज स्थित मुख्य बौद्ध मठ में आयोजित कार्यक्रम में निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रधानमंत्री डा. लोबसांग सांग्ये ने चीन की खिलाफत की। उन्होंने कहा कि तिब्बत की आजादी के लिए जान कुर्बान करने वाले तिब्बतियों से प्रेरणा लेनी चाहिए।
पिछले पांच दशकों से अधिक समय से चीन सरकार के दबाव में तिब्बती अपने देश में भी परायों की तरह रह रहे हैं। तिब्बत में आज भी तिब्बती चीन सरकार के दमनकारी रवैये का शिकार हो रहे हैं। तिब्बत में मानवाधिकारों का सरेआम उल्लंघन हो रहा है। उन्होंने कहा कि तिब्बत मुद्दे का हल धर्मगुरु दलाईलामा और चीनी सरकार के प्रतिनिधियों के बीच वार्ता के साथ ही सुलझ सकता है। निर्वासित तिब्बत सरकार बातचीत के लिए मध्यमार्गीय नीति के पक्ष में है।
तिब्बत की स्वायत्तता के लिए विश्व के सभी मंचों पर आवाज उठाई गई है तथा वहां से तिब्बत को पूर्ण समर्थन भी मिला है। ऐसे में वह दिन दूर नहीं जब तिब्बत को पूर्ण स्वायत्ता मिलेगी और शरणार्थी के तौर पर अपने देश से बाहर रह रहे तिब्बती अपने वतन लौटेंगे।
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