धर्मशाला। 1969 के बाद से जब भी उनके अगले पुनर्जन्म के बारे में पूछा गया, परमपावन दलाई लामा ने हमेशा अंतरराष्ट्रीय मीडिया से कहा कि यह तिब्बती लोगों द्वारा तय किया जाने वाला मामला है। चूंकि यह अब विषय सामने है, इसलिए तिब्बती लोगों के लिए दलाई लामा के पुनर्जन्म पर एक वैध रुख अपनाना महत्वपूर्ण है। इसके आलोक में, 14वें तिब्बती धार्मिक सम्मेलन में पुनर्जन्म पर एक आवश्यक विशेष प्रस्ताव पारित किया गया, जो आज केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के मुख्यालय में शुरू हुआ। सम्मेलन का आयोजन सीटीए के धर्म और संस्कृति विभाग द्वारा किया जा रहा है।
दलाई लामाओं की परंपरा और तिब्बती लोगों के बीच संबंध सिर और गर्दन के बीच या, शरीर और उसकी छाया की तरह का रहा है और इसलिए कभी अलग नहीं हुआ है। इसलिए यह उम्मीद की जानी चाहिए कि तिब्बती बौद्ध परंपरा के आधार पर लगातार पुनर्जन्म के माध्यम से दलाई लामाओं की परंपरा की निरंतरता तिब्बती लोगों के लिए बनी रहे।
इस तरह इस सम्मेलन के माध्यम से तिब्बती धार्मिक प्रमुख और प्रतिनिधि इस विशेष संकल्प को अनिवार्य मानते हैं जो इस प्रकार प्रस्तुत है।
धर्मशाला घोषणा- संकल्प:
दलाई लामाओं और तिब्बती लोगों के बीच का कर्म का बंधन अविभाज्य रहा है और वर्तमान में तिब्बती लोगों की स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण है। सभी तिब्बती वास्तव में दलाई लामा के संस्थान और पुनर्जन्म की परंपरा को बनाये रखने की कामना करते हैं। इसलिए इस काम के लिए हम परमपावन 14वें दलाई लामा का दृढ़ता से समर्थन करते हैं।
14वें दलाई लामा के अगले पुनर्जन्म की प्रक्रिया के विषय में निर्णय का अधिकार पूरी तरह से परमपावन 14वें दलाई लामा के पास है। किसी सरकार या अन्य के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं होगा। यदि राजनीतिक हित साधने के लिए पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार अगले दलाई लामा का चयन कर उन्हें तिब्बतियों पर थोपती है तो तिब्बती लोग उस उम्मीदवार को न तो स्वीकार करेंगे और न ही उनका सम्मान करेंगे।
जहां तक भविष्य के दलाई लामाओं के अवतारों के चयन की प्रक्रिया का सवाल है, इसमें तिब्बत में अब तक चली आ रही पारंपरिक रीति रिवाज का ही पालन किया जाएगा। यह पद्धति बुद्ध के मूल दर्शन और सिद्धांतों के अनुरूप है क्योंकि 800 साल पहले तिब्बत में इसकी शुरुआत हुई थी।
तीन दिवसीय सम्मेलन में तिब्बती बौद्ध धर्म और स्वदेशी तिब्बती बॉन परंपरा की विभिन्न परंपराओं के प्रमुख और गणमान्य हस्तियां शामिल हैं, जिनमें महामहिम शाक्य त्रिजिन रिनपोछे, महामहिम गादेन त्रि रिनपोछे, महामहिम द्रकिुंग क्याबगोंन चेतसंग रिनपोछे, महामहिम क्याबजे मेनरी त्रजिेन रिनपोछे, क्याबजे त्सुरफु गोरशे ग्याल्त्सब रिनपोछे (ग्याल्वा करमापा के प्रतिनिधि), भंते तकसुंग मात्रुल रिनपोछे (महामहिम ताक्लुंग शाब्द्रुंग रिनपोछे के प्रतिनिधि), नामद्रोलिंग तुल्कु चोएधर रिनपोछे, भंते खेन्पो न्गेधोन तेनजिंन (महामहिम ग्याल्वांग द्रुकचेन के प्रतिनिधि) और जोनांग ग्याल्त्सब रिनपोछे शामिल थे।
प्रभावशाली 100 प्रतिभागियों के बीच अन्य गणमान्य तिब्बती रिनपोछे और टुलकुस, हिमालयी क्षेत्र के प्रतिनिधि और लामा, निर्वासन में प्रमुख तिब्बती बौद्ध संस्थानों के खेन रिनपोछे, तिब्बती मठवासी संस्थानों के प्रमुख और सदस्य और तिब्बती भिक्षुणी विहारों के प्रतिनिधि मौजूद थे। तिब्बती प्रशासन के गणमान्य व्यक्तियों में निर्वासित तिब्बती लोकतांत्रिक व्यवस्था के तीनों अंगों के प्रमुख कालोन और निर्वासित संसद के सदस्य उद्घाटन सत्र में उपस्थित रहे।
सम्मेलन में विद्वानों-अनुयायियों के पुनर्जन्म की खोज और मान्यता के महत्व पर विमर्श और नीति निर्माण में तिब्बती बौद्ध धर्म के धार्मिक प्रमुखों और अन्य गणमान्य हस्तियों की व्यापक भागीदारी पर जोर दिया जाएगा। इसमें सबसे अहम परम पावन दलाई लामा के पुनर्जन्म का मुद्दा होगा।
सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए सिक्योंग डॉ लोबसांग सांग्ये ने तिब्बतियों के हाल ही में आयोजित तीसरी विशेष आम बैठक में पारित प्रस्ताव से अवगत कराया, जिसमें यह पारित किया गया है कि परम पावन दलाई लामा के पुनर्जन्म की खोज और मान्यता के बारे में विशेष अधिकार और शक्ति स्वयं परम पावन और दलाई लामा के गादेन फोडरंग ट्रस्ट को हैं। पारित संकल्प के अनुसार इस मामले में चीन द्वारा अपने आदेश संख्या 5 के माध्यम से किए जा रहे किसी भी प्रयास को स्पष्ट रूप से अमान्य माना जाएगा।
इसके बाद सिक्यॉग ने परम पावन दलाई लामा के पुनर्जन्म में चीन की चिंताजनक दखलंदाजी की ओर ध्यान आकृष्ट किया और बताया कि चीन न केवल अपने आदेश संख्या 5 के कार्यान्वयन के माध्यम से, बल्कि अगले दलाई लामा के चयन में हस्तक्षेप करने के खिलाफ भारत को धमकी देकर दबाव डालने का काम कर रहा है।
सिक्यॉग डॉ लोबसांग सांग्ये ने कहा ‘तिब्बत में धार्मिक स्वतंत्रता का चीन द्वारा अत्यधिक दमन हमारे लिए पूरी तरह से अस्वीकार्य है और इसी तरह, हम पुनर्जन्म प्रणाली की प्रक्रिया में चीन के हस्तक्षेप की किसी भी प्रक्रिया को अस्वीकार करते हैं। इस प्रक्रिया में यदि किसी को हस्तक्षेप करने का अधिकार है तो यह तय करना केवल तिब्बतियों को ही है।‘
सिक्योंग ने आगे कहा, ‘हालांकि चीन ने भारत पर दबाव बनाना जारी रखा है, लेकिन भारत की तिब्बतियों के प्रति उदारता और करुणा लगातार और हमेशा बनी रही है।‘
सिक्योंग ने धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी राजदूत सीनेटर ब्राउनबैक की हाल की यात्रा पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अमेरिका दलाई लामा के पुनर्जन्म के चयन करने के तिब्बती बौद्ध प्रणाली का पूरी तरह से समर्थन और पक्षधर है।
निर्वासित तिब्बतियों द्वारा लोकतांत्रिक रूप से चुने गए नेता ने कहा ‘अमेरिकी सरकार ने आधिकारिक तौर पर तिब्बती लोगों को राज्य के हस्तक्षेप के बिना अपने धार्मिक गुरुओं को चुनने, शिक्षित करने और उनकी मदद करने की स्वतंत्रता का समर्थन किया है।‘
धर्म एवं संस्कृति मंत्री वेन कर्मा गेलेक युथोक ने अपनी परिचयात्मक टिप्पणी में विस्तार से सम्मेलन के शीर्षक को बदलने के लिए उठाए गए हालिया कदमों के बारे में बताया। उन्होंने अपनी सदाशयता और विश्वास व्यक्त किया कि यह सम्मेलन अपने उद्देश्यों में सफल परिणामदायक होगा।