कैनविज टाइम्स, 8 जुलाई 2013
मानवाधिकार की बात करने वाले बुद्धिजीवियों को जेल में ठूंस रही है चीन सरकार: प्रदीप
भारत तिब्बत मैत्री संघ ने तिब्बतीय आध्यातिमक धर्मगुरू परम पावन नोबेल पुरस्कार विजेता 14वें दलार्इ लामा तेनजिन ग्यासों का 78वें जन्मदिन हर्षोल्लास के साथ मनाया। सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन भी किया गया और तिब्बती परम्परानुसार कार्यक्रम के चित्र पर माल्यार्पण कर माखन-दीप प्रज्जवलित किया गया तथा परमपावन दलार्इ लामा के दीर्घायु होने की मंगल कामना की गर्इ। संघ के सभी सदस्यों ने मिलकर आवाज उठार्इ कि तिब्बत देश 50 साल पहले भी एक स्वतंत्र देश था और आज भी स्वतंत्र देश के रूप में होना चाहिए। जैसा कि सन 1950 में चीन की तानाशाह सरकार ने स्वतंत्र तिब्बत देश पर गलत तरीके से धावा बोलकर अनाधिकृत कब्जा करके वर्तमान में सैकड़ों किलो मिटर दूर भारतीय भू-भाग पर भी अपना अनाधिकृत अधिकार जमा लिया है।
इस अवसर पर संघ के अध्यक्ष प्रदीप कुमार रावत ने कहा कि चीन की तानाशाह सरकार लोकतंत्र की मांग करने वालों और मानवाधिकार का समर्थन करने वाले बुद्धिजीवियों पर सख्ती बरत रही है। विगत दिनों इसी मांग को लेकर चीनी नोबेल पुरस्कार विजेता ली-जियाबों को चीन सरकार ने ग्याराह वर्षों की कड़ी सजा सुनार्इ थी, जिसका विश्वभर में विरोध किया गया था। उनका दोष मात्र यही था कि चीन में लोकतांत्रिक सरकार बने। यहां तक कि चीनी ड्रेगन द्वारा अनाधिकृत कब्जे वाले लोकतांत्रिक देश तिब्बत देश में भी तिब्बतियों को उनके मानवाधिकार की बात करने वाले बुद्धिजीवियों को चीन सरकार बड़ी बेरहमी से जेलों में ठूंस रही हैं और उन पर कोर्इ मुकदमा भी नहीं चलाया जा रहा है तथा तरह-तरह की यंत्रणाये भी दी जा रही हैं। यह सिलसिला तिब्बतियों के प्रति चीन देश में बेरोकटोक जारी हैं। जिस कारण तिब्बत के भीतर आत्मदाह की 118 घटनायें सामने आ चुकी हैं। ऐसी नवीनतम घटनायें 27 मर्इ 2013 को हुर्इ, जब तिब्बत के खम क्षेत्र के एक युवा बौद्ध भिक्षु तेनजिन शेराब ने आत्मदाह कर लिया। आंकड़े बताते है कि आत्मादाह की कुल 118 घटनायें, जिनमें 100 पुरूष 18 महिलायें शामिल हैं। उनमें 101 की मृत्यृ हो चुकी है शेष 17 लोग चीन द्वारा गायब कर दिये गये, जिनके बारे में चीन सरकार कोर्इ जानकारी नहीं दे रही है।
इस प्रकार सन 2009 में 1, 2011 में 12, 2012 में 85 और 2013 में 20 तिब्बती आत्मदाह कर चुके हैं। विचार गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि चीन विकास के नाम पर तिब्बतीय हिमालय पर्यावरण का विनाश, हिमालयी खनिजों का दोहन करके वहां के वनों को काटकर व हिमालय में सुरंगे बनाकर उसमें रेलवे लार्इन बिछाकर भारत-तिब्बत-चीन सीमा को मिलाकर भविष्य में आंक्रामक योजना तैयार कर रहा है। यही नहीं, चीन तिब्बत में यारलुंग त्सांग्पो नदी में एक जलविधुत परियोजना को निर्माण कर रहा है और ब्रहमपुत्र नदी में विशालकाय बांध बना रहा है जिससे ब्रहमपुत्र नदी के सूख जाने का खतरा पैदा हो रहा है। सभी का मानना है कि ब्रहमपुत्र नदी जो पूर्वोत्तर राज्यों की जीवन दायिनी है, जिस कारण असम, बांग्लादेश और तिब्बती हिमालय पर्यावरण पर भी इसका दुष्प्रणाम होगा।
आर्इटीएफएस ललितपुर केंद्र के सुधाकर तिवारी ने कहा कि विगत वर्षों की अपेक्षा वर्तमान में चीन द्वारा निर्मित उत्पादों में चीन को 50 फीसदी से ज्यादा लाभ उसे भारत से हुआ है। रोजाना खपत होने वाले चीन के उत्पाद सस्ते होने के कारण भारतीय बाजारों में अपनी बढ़त बनाते जा रहे हैं, जिस कारण भारतीय कुटीर, समूह हथकरघा व लघु उद्योगों का माल महंगा होने के कारण उद्योग ठप होते जा रहे हैं तथा भारत में बेरोजगारी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। इस सब कार्यों में उन्होंने भारत-सरकार की गलत नीतियों को दोषी ठहराया है। उन्होंने कहा कि भारत चीन को खुश करने की पुरानी नीतियों को छोड़कर भारत के राष्ट्रहितों से जुड़े मसलों पर सक्रिय नीति अपनाए और चायनीज माल का बहिष्कार किया जाये। भारतीय कुटीर उद्योगों के कुशल कारीगरों को बड़े उधोगों को उच्चस्तरीय शिक्षा देकर उच्च क्वालिटी के माल तैयार करने हेतु कुशल अप्रेनिटस ट्रेनिंग दी जाएं।
सभा में अध्यक्ष प्रदीप कुमार रावत सहित आर्इटीएफएस ललितपुर केंद्र के समन्वयक सुधाकर तिवारी, डा. साधना मिश्रा, नीलिमा रावत, मंजू रावत, रत्ना वर्मा, डा. ममता गोयल, डा. रामप्रकाश गोयल, ऐके नगार्इच समेत कर्इ सदस्यों ने भारत सरकार से विश्वशांति दूत परमपावन दलार्इ लामा को भारत में शांति और सदभाव हेतु किये गये कार्यों के लिये भारत रत्न से विभूषित करने की मांग की।